हेल्लो दोस्तों रिया बैंगलोर में जन्मी अति महत्वकांक्षी अभिनेत्री जिसने तेलगु फिल्म इंडस्ट्री से बॉलीवुड में एंट्री ली थी। हलाकि अब उनकी जीवन की तमाम बातें मीडिया और सीबीआई कुरेद कुरेद कर निकाल रहा है। पर फिर भी हम उनकी जीवनी में सिर्फ फिल्म उद्योग में उनके करियर की शुरुआत और अब तक के सफर की बात ही करेंगे। तो आइए जानते हैं रिया चक्रवर्ती के जीवन में कब क्या और कैसे हुआ।
विषयसूची :
परिवार
बॉलीवुड और टॉलीवुड अभिनेत्रीं रिया चक्रवर्ती (Rhea Chakraborty) का जन्म बैंगलोर के रहने वाले श्री. इंद्रजीत चक्रवर्ती (पिता) व श्रीमति संध्या चक्रवर्ती (माता) नामक दम्पत्ति के यहां पर 1 जुलाई, 1992 को हुआ था। रिया को बचपन से एक्टिंग और मॉडलिंग का शौख था और इसी क्षेत्र में अपना कॅरियर बनाना चाहती थी.
रिया ने अपनी शिक्षा अम्बाला में स्थित (Rhea Chakraborty Education) आर्मी स्कूल से ली. इस प्रकार रिया चक्रवर्ती का बचपन बैंगलोर में ही अपने छोटे भाई शोविक चक्रवर्ती के साथ हंसते-खेलते बीता। स्कूली शिक्षा को पूरा करने के बाद रिया चक्रवर्ती ने, मॉडलिंग में, करियर बनाने के लिए मुम्बई की माया नगरी का रुख किया।
Rhea Chakraborty Biography
करियर
रिया चक्रवर्ती ने अपने करियर की शुरुआत छोटे पर्दे के एमटीवी रियलिटी शो “TVS Scooty Teen Diva” से की थी। वह इस शो की विनर तो नहीं बन सकी और रनरअप बनकर उन्हें संतोष करना पड़ा। उसके बाद इन्होने “Pepsi MTV Watsapp, MTV Gone in 60 Second” और Tic tac College Beat जैसे शोज़ में नजर आयी। इस प्रकार रिया चक्रवर्ती ने, अपने करियर की शुरुआत मे कुछ हल्के – फुल्के टी.वी प्रोग्रामो को हॉस्ट किया था।
फ़िल्मी करियर की शुरुआत इन्होने 2012 में तेलुगु फिल्म “तुनेगा-तुनेगा” से की। इस फिल्म में उन्होंने निधि नाम की भूमिका अदा की थी। इस फिल्म में प्रसिद्धि मिलने के बाद रिया को बॉलीवुड में मौका मिला। साल 2013 में यशराज फिल्म्स बैनर के तले बन रही फिल्म “मेरे डैड की मारुती” में जसलीन को किरदार के रुप में, बॉलीवुड में एंट्री ली. इस फिल्म का निर्देशन किया था आशिमा छिब्बर ने. यह फिल्म रोमांस और कॉमेडी पर आधारित थी.
इसके बाद इन्होने साल 2014 में रमेश शिप्पी की फिल्म “सोनाली केबल” में काम किया। जिसका निर्देशन हिंदी सिनेमा के जानेमाने निर्देशक रमेश सिप्पी ने किया था. हालाँकि यह फिल्म कुछ खास नहीं कर पायी, पर रिया की एक्टिंग को सराहा गया।
कुछ दिन ब्रेक के बाद 2017 में इन्होने 3 फिल्मो में काम किया। जिसमे “Dobaara: See Your Evil” “Half Girlfriend” “Bank Chor” शामिल हैं। साल 2018 में रिया ने वरुन धवन के साथ फिल्म जलेबी “Jalebi” में काम किया था।
2012: तेलगु फिल्म – तुनीगा तुनीगा (Tuneega Tuneega)
2013: मेरे डैड की मारुती – (Mere Dad ki Maruti)
2014: सोनाली केबल (Sonali Cable)
2017: हाफ गर्लफ्रेंड (Camio in Half Girlfriend)
2017: दोबारा (Dobaara)
2017: बैंक चोर (Bank Choor)
2018: जलेबी (Jalebi)
Rhea Chakraborty Biography
विवाद
रिया चक्रवर्ती एक बॉलीवुड अभिनेत्री है। जिन्हे अपने काम से ज्यादा सुर्खियां स्व सुशांत सिंह राजपूत की पूर्व प्रेमिका और महेश भट्ट के साथ नाम जोड़े जाने से मिली है। रिया चक्रवर्ती का नाम फिल्म अभिनेता स्व. सुशान्त सिंह राजपूत की मृत्यु से जोड़ा जा रहा है. हाल में फिर चर्चा में आई जब सुशांत सिंह के पिता ने रिया चक्रवर्ती और उनके पूरे परिवार पर सुशांत सिंह की संपत्ति हड़पने और उन्हें आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया है और इसके लिए उन्होंने बिहार में बाकायदा F.I.R. भी लिखवाई है ।
रिया चक्रवर्ती को आखिरकार नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड (NCB) ने 08 सितम्बर 2020 को ड्रग खरीदने और उसका सेवन करने तथा इससे सम्बंधित अन्य आरोपों के लिए उनको गिरफ्तार कर लिया है। इससे पहले उनके भाई की भी इसी मामले में गिरफ़्तारी हो चुकी हैं। इतना सब कुछ होने के बावजूद मुझे नहीं लगता कि रिया चक्रवर्ती को किसी तरह का अफ़सोस नहीं है। कम से कम रिया चक्रवर्ती के व्यवहार से तो ऐसा ही प्रतीत होता है।
रिया चक्रवर्ती बायोग्राफी
नाम
रिया
पूरा नाम
रिया चक्रवर्ती
पिता और माता
इंद्रजीत चक्रवर्ती (इंडियन आर्मी अफसर) और संध्या चक्रवर्ती
हेल्लो दोस्तों विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) का महापर्व प्रत्येक साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। जगन्नाथ मंदिर ओडिशा के पुरी शहर में स्थित है। यह वैष्णव मंदिर श्रीहरि के पूर्ण अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। पूरे साल इनकी पूजा मंदिर के गर्भगृह में होती है, लेकिन आषाढ़ माह में तीन किलोमीटर की अलौकिक रथ यात्रा के जरिए इन्हें गुंडिचा मंदिर लाया जाता है।
कहा जाता जाता है कि गुंडिचा भगवान श्रीकृष्ण की सच्ची भक्त थीं, और उनकी इसी भक्ति का सम्मान करते हुए ये इन तीनों उनसे हर वर्ष मिलने जाते हैं। इस साल जगन्नाथ यात्रा 1 जुलाई से शुरू होगी और इसका समापन 10 जुलाई को होगा। बता दें पिछले दो साल कोरोना के चलते भक्तगण इस पावन यात्रा में शामिल नहीं हो पाए थे लेकिन इस साल पूरे धूमधाम के साथ रथ यात्रा का महोत्सव मनाया जाएगा.
भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ तीन दिव्य रथों पर सवार होते हैं। तीनों भाई-बहन के रथ अलग-अलग होते हैं। इसके बाद भगवान जगन्नाथ जी अपने धाम से निकलकर गुंडिचा मंदिर जाते हैं, जिसे उनकी मौसी का घर कहा जाता है। वहां पर भगवान जगन्नाथ सात दिनों तक रहते हैं।
हिन्दू धर्म में वर्णित चार धाम में एक धाम पुरी (Puri) का जगन्नाथ मंदिर है। यहाँ हर साल ‘जगन्नाथ रथ यात्रा’ धूमधाम से निकाली जाती है जिसमें शामिल होने देश-दुनिया के कोने-कोने से लोग आते हैं। ऐसा माना जाता है इस रथयात्रा में शामिल होने मात्र से उन्हें सभी तीर्थों के पुण्य का फल मिल जाता है।
Jagannath Rath Yatra
विषयसूची :
जगन्नाथ रथ यात्रा 2022 की तारीख व मुहूर्त
Jagannath Puri Rath Yatra 2022 Date
पंचांग के अनुसार, जगन्नाथ रथ यात्रा का प्रारंभ आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से होता है। इस साल 2022 में पंचांग के मुताबिक जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा 01 जुलाई से शुरू होगी तथा 10 जुलाई को खत्म होगी। संयोग वश 08 जुलाई को देवशयनी एकादशी भी है। इस यात्रा के पहले दिन भगवान जगन्नाथ प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर में जाते हैं। साल 2023 में जगन्नाथ रथ यात्रा 20 जून, 2023 (मंगलवार) को होगी।
आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि का प्रारंभ – 30 जून, गुरुवार को सुबह 10 बजकर 49 मिनट से। आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि का समाप्त – 01 जुलाई, शुक्रवार को दोपहर 01 बजकर 09 मिनट पर।
क्यों निकाली जाती है रथ यात्रा?
Kyo Nikaali Jati Hai Rath Yatra
पद्म पुराण के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार नगर (द्वारका दर्शन) देखने की इच्छा जताई। जिसके फलस्वरूप भगवान जगन्नाथ और बलभद्र अपनी लाडली बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने निकल पड़े। इस दौरान वे मौसी के घर गुंडिचा भी गए और यहां सात दिन ठहरे, तभी से जगन्नाथ यात्रा निकालने की परंपरा चली आ रही है। नारद पुराण और ब्रह्म पुराण में भी इसका जिक्र है। जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा में बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। भगवान जगन्नाथ जी को भगवान श्रीकृष्ण और राधा की युगल मूर्ति का रूप माना जाता है।
01 जुलाई 2022, शुक्रवार – रथ यात्रा प्रारंभ (गुंडिचा मौसी के घर जाने की परंपरा)।
05 जुलाई 2022, मंगलवार – हेरा पंचमी (पहले पांच दिन भगवान गुंडिचा मंदिर में वास करते हैं)।
08 जुलाई 2022, शुक्रवार – संध्या दर्शन (इस दिन जगन्नाथ के दर्शन करने से 10 साल तक श्रीहरि की पूजा के समान पुण्य मिलता है)।
09 जुलाई 2022, शनिवार – बहुदा यात्रा (भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और बहन सुभद्रा की घर वापसी)।
10 जुलाई 2022, रविवार – सुनाबेसा (जगन्नाथ मंदिर लौटने के बाद भगवान अपने भाई-बहन के साथ शाही रूप लेते हैं)।
11 जुलाई 2022, सोमवार – आधर पना (आषाढ़ शुक्ल द्वादशी पर दिव्य रथों पर एक विशेष पेय चढ़ाया जाता है. इसे पना कहते हैं, जो दूध, पनीर, चीनी और मेवा से बनता है)
12 जुलाई 2022, मंगलवार – नीलाद्री बीजे (जगन्नाथ रथ यात्रा के सबसे दिलचस्प अनुष्ठानों में एक है नीलाद्री बीजे)।
Jagannath Rath Yatra
तीनों रथों की विशेषता
Jagannath Rath Specification
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के लिए तीन रथ तैयार किये जाते हैं, जिसमें भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र व बहिन सुभद्रा के साथ निकलते हैं। रथ यात्रा में सबसे आगे श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का रथ रहता है, जिसे इसे तालध्वज कहते हैं। इस रथ में 14 पहिये रहते हैं और उसका रंग लाल एवम हरा होता है। यह रथ 13.2 मीटर ऊँचा होता है। यह लकड़ी के 763 टुकड़ों से बना होता है। रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मतानी होते हैं।
उसके बाद देवी सुभद्रा का रथ होता है, जिसमें 12 पहिये रहते हैं और इसे दर्पदलन या पद्मरथ कहा जाता है। यह 12.9 मीटर ऊँचा होता है और इस रथ में लाल काले कपडे के साथ लकड़ी के 593 टुकड़ों का उपयोग किया जाता है। रथ के रक्षक जयदुर्गा और सारथी अर्जुन होते हैं। सबसे अंत में भगवान जगन्नाथ का 16 पहिये वाला रथ रहता है जिसे नंदीघोष या गरूणध्वज नाम से जाना जाता है। इनके रथ का रंग लाल और पीला होता है। यह रथ 13.5 मीटर ऊँचा होता है। विष्णु का वाहक गरुड़ इसकी रक्षा करता है।
ऐसा कहा जाता है कि इस यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ साल में एक बार प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर में जाते हैं। जगन्नाथ रथ यात्रा के भारत में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के लाखों श्रद्धालु साक्षी बनते हैं। रथ यात्रा से एक दिन पहले श्रद्धालुओं के द्वारा गुंडीचा मंदिर को धुला जाता है। इस परंपरा को गुंडीचा मार्जन कहा जाता है। इस रथयात्रा को गुण्डीचा यात्रा, घोषयात्रा, दशावतार यात्रा आदि के नाम से भी जाना जाता है।
रथ यात्रा के समय रथों में प्रतिमाएं स्थापित करने से पहले तीनों रथों को पवित्र किया जाता है फिर सुदर्शन चक्र लाया जाता है। यहाँ सुदर्शन चक्र गोलाकार न होकर खम्बाकार होता है। इससे जुडी एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार सुदर्शन चक्र को इस बात पर घमंड हो जाता है कि वह ही प्रभु के सबसे प्रिय सेवक है। इस बात का पता चलने पर प्रभु ने उसके घमंड को तोडना चाहा। इसके लिए एक दिन उन्होनें सुदर्शन चक्र से कहा कि वह उनके प्रिय सेवक हनुमान को बुलाकर लाये।
यह सुनकर सुदर्शन को आश्चर्य हुआ कि क्या उनसे ऊपर प्रभु का कोई प्रिय सेवक हो सकता है। उन्होंने हनुमान को प्रभु का समाचार तो दे दिया, पर अपनी शक्ति से सभी द्वार बंद कर दिए। हनुमान रुक तो नहीं सकते थे इसलिए उन्होनें सुदर्शन चक्र को अपनी कांख के नीचे दबाया और प्रभु से मिलने पहुँच गए। इस तरह सुदर्शन चक्र का घमंड चूर हो गया इसलिए यहाँ पर सुदर्शन चक्र को खम्बाकार रूप में ही लाया जाता है। यहाँ पर सुदर्शन चक्र को रक्षा के लिए बहन सुभद्रा के रथ पर रखा जाता है।
जगन्नाथ मंदिर किसने बनवाया
Who Made Jagannath Temple
एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा इंद्रदयुम्न भगवान जगन्नाथ को शबर राजा से यहाँ लेकर आये थे और उन्होनें ही मूल मंदिर का निर्माण कराया था जो बाद में नष्ट हो गया। ऐसा कहा जाता है पूरी में भगवान जगन्नाथ जी का मुख्य मंदिर 12वी शताब्दी में राजा अनंतवर्मन के शासनकाल के समय बनाया गया। उसके बाद जगन्नाथ जी के 120 मंदिर बनाये गए हैं। यह लगभग 10.7 एकड़ वर्ग भूमि में निर्मित जगन्नाथ के मंदिर का शिखर 192 फ़ीट ऊँचा और चक्र तथा ध्वज से सुशोभित रहता है। जगन्नाथ मंदिर का निर्माण एक छोटी सी पहाड़ी पर किया गया है जिसे नीलगिरि कहकर सम्मानित किया जाता है।
जगन्नाथ मंदिर बीस फ़ीट ऊँची दीवार के परखोटे के भीतर है जिसमें अनेक छोटे-छोटे मंदिर हैं। जगन्नाथ के विशाल मंदिर के भीतर चार खंड हैं- पहला भोग मंदिर जिसमें भगवान को भोग लगाया जाता है। दूसरा रण मंदिर- इसमें नृत्य गान आदि का आयोजन किया जाता है। तीसरा भाग है सभा मंडप- इसमें तीर्थ यात्री आदि बैठते हैं और चौथा और अंतिम भाग अंतराल है।
Jagannath Rath Yatra
ऐसे होती है रथ यात्रा की तैयारी
Jagannath Rath Prepration
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा भले ही एक दिन की होती है लेकिन इस महापर्व की शुरुआत वैशाख मास की अक्षय तृतीया से प्रारंभ होकर आषाढ़ मास की त्रयोदशी तक चलती है। इसमें प्रयोग में लाए जाने वाले रथों का निर्माण भी कई महीने पहले से शुरू हो जाता है। भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा के लिए नीम के चुनिंदा पेड़ की लकड़ियों से रथ तैयार किया जाता है। रथ की लकड़ी के लिए अच्छे और शुभ पेड़ की पहचान की जाती है जिसमे कील आदि न ठुके हों और रथ के निर्माण में किसी प्रकार की धातु का उपयोग नहीं किया जाता है। हर साल रथयात्रा के लिए नए रथों का निर्माण होता है और पुराने रथों को तोड़ दिया जाता है।
कैसे बनाई जाती है प्रतिमाएं
जगन्नाथ (Jagannath Rath Yatra) सहित बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाएं नीम की लकड़ी से बनाई जाती है। इसमें रंगों की भी खास ध्यान दिया जाता है। जगन्नाथ का रंग सांवला होने की वजह से नीम की उसी लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता जो सांवले रंग की हो। तो वहीं भाई-बहन का रंग गोरा होने की वजह से मूर्तियों पर हल्के रंग की नीम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है।
भगवान भी रहे थे 14 दिन क्वारंटीन
पौराणिक कथाओं के अनुसार ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ का जन्म हुआ था। उस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा को रत्नसिंहासन से उतार कर भगवान जगन्नाथ के मंदिर के पास बने स्नान मंडप में ले जाया जाता है। वहां भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहिन सुभद्रा को स्नान पूर्णिमा के दिन 108 घड़े के पवित्र जल से शाही स्नान कराया गया था। इतना स्नान कराने से उन तीनों को बुखार हो गया था। यह संक्रमण और अधिक लोगों में न फैले, इसके लिए तीनों देवी देवताओं को अनासर (ओसर) घर ले जाया गया और वहीँ रखा गया था। अनासर घर में ही उनका इलाज किया गया। तब जाकर 14वें दिन तीनों देवी देवता ठीक हुए थे और भक्तों को दर्शन देते हैं. इसे नवयौवन नेत्र उत्सव भी कहते हैं।
इसके बाद आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया को भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ में सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं। तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है। हर साल रथ यात्रा से 14 दिन पहले भगवान क्वारंटीन हो जाते हैं और स्वस्थ होने पर बाहर निकलते हैं। इस क्वारंटीन रूम को अनासर या ओसर घर कहा जाता था।
जगन्नाथ रथ यात्रा पौराणिक कथा
Jagannath Rath Yatra Story
वैसे तो जगन्नाथ रथ यात्रा के संदर्भ में कई धार्मिक-पौराणिक मान्यताएँ जुड़ी हुई हैं जिनमें से एक कथा का वर्णन कुछ इस प्रकार है – एक बार गोपियों ने माता रोहिणी से कान्हा की रास लीला के बारे में जानने का आग्रह किया। उस समय सुभद्रा भी वहाँ उपस्थित थीं। तब माँ रोहिणी ने सुभद्रा के सामने भगवान कृष्ण की गोपियों के साथ रास लीला का बखान करना उचित नहीं समझा, इसलिए उन्होंने सुभद्रा को बाहर भेज दिया और उनसे कहा कि अंदर कोई न आए इस बात का ध्यान रखना। इसी दौरान कृष्ण जी और बलराम सुभद्रा के पास पधार गए और उसके दाएँ-बाएँ खड़े होकर माँ रोहिणी की बातें सुनने लगे। इस बीच देव ऋषि नारद वहाँ उपस्थित हुए। उन्होंने तीनों भाई-बहन को एक साथ इस रूप में देख लिया। तब नारद जी ने तीनों से उनके उसी रूप में उन्हें दैवीय दर्शन देने का आग्रह किया। फिर तीनों ने नारद की इस मुराद को पूरा किया। अतः जगन्नाथ पुरी के मंदिर में इन तीनों (बलभद्र, सुभद्रा एवं कृष्ण जी) के इसी रूप में दर्शन होते हैं।
Jagannath Rath Yatra
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का महत्त्व
Jagannath Puri Rath Yatra mahatva
यह हिंदुओं के चार धामों में से एक है। इस मंदिर की स्थापना करीब 800 साल पहले हुई थी। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ उनके भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा मूर्तियाँ हैं। इनके दर्शन से भक्त की मनोकामनाएं पूरी होती है। धार्मिक मान्यता है कि इस रथ यात्रा के दर्शनमात्र से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस यात्रा में शामिल होने के लिए दुनियाभर से लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। देश-विदेश के शैलानियों के लिए भी यह यात्रा आकर्षण का केन्द्र मानी जाती है। इस यात्रा को पुरी कार फ़ेस्टिवल के नाम से भी जाना जाता है। ये सब बातें इस यात्रा के सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती हैं।
जगन्नाथ से यहाँ आशय ‘जगत के नाथ’ यानी भगवान विष्णु से है। उड़ीसा राज्य के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है। हिन्दू मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि हर व्यक्ति को अपने जीवन में एकबार जगन्नाथ मंदिर के दर्शन के लिए अवश्य जाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस यात्रा में शामिल होने मात्र से भक्तों पर भगवान जगन्नाथ की कृपा बरसती है और उसे 100 यज्ञों के बराबर पुण्यफल प्राप्त होता है।
हेल्लो दोस्तों, आज अविका गौर (Avika Gor) का जन्मदिन (Avika Gor Birthday) है। वो हिंदी टीवी सीरियल की बहुत मशहूर अभिनेत्री हैं। उन्होंने हिंदी सीरियल में ‘आनंदी’ के रोल से अपने अभिनय की शुरुआत की थी, जिसे लोगो ने इतना प्यार दिया था की लोग अपने बच्चियों का नाम ‘आनंदी’ ही रख रहे थे। उन्होंने अपने अभिनय की शुरुआत 2008 में की थी।
फेमस टीवी शो ‘बालिका वधु’ (Balika Vadhu) फेम अविका गौर 30 जून को अपना 25वां बर्थडे सेलिब्रेट कर रही हैं। उन्होंने 11 साल की उम्र से ही अभिनय करना शुरू कर दिया था। आनंदी के किरदार के बाद अविका का दूसरा सबसे लोकप्रिय सीरियल ‘ससुराल सिमर का’ में ‘रोली’ का रोल निभाया है।
इस सीरियल में भी इनके किरदार को बहुत प्यार दिया गया था। अविका ने 2009 से फिल्मो का सफर शुरू कर दिया था।
काफी कम लोग जानते हैं कि अविका सीरियलों के अलावा फिल्मों में भी सक्रिय हैं। अविका ने हिंदी फिल्मों में बाल कलाकार के तौर पर ‘पाठशाला’ और ‘तेज’ जैसी फिल्मों में काम किया है। वहीं तेलुगू सिनेमा में उन्होंने कई फिल्में की हैं। ये फिल्मों और सीरियलों में मोटी फीस लेती हैं। एक फिल्म के लिए अविका 50 लाख फीस लेती हैं। वहीं ‘ससुराल सिमर का’ सीरियल के लिए वो 25,000 रुपये प्रति एपिसोड लेती थीं।
Avika Gor Biography
अविका न ही सिर्फ अपनी एक्टिंग बल्कि अपनी लव लाइफ को लेकर भी खूब चर्चा में रही हैं। ‘ससुराल सिमर का’ सीरियल में उनके को-स्टार रहे मनीष रायसिंघानी से अविका के अफेयर के खूब चर्चे थे। मनीष अविका से उम्र में 18 साल बड़े हैं।
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उड़ी थी अफेयर की खबरें:
जब अविका 17 साल की थी तब मनीष 34 साल के थे। दोनों ने ना सिर्फ साथ टीवी शोज किए, बल्कि फिल्म्स, फोटोशूट और सोशल मीडिया पर दोनों साथ-साथ फोटोज पोस्ट करते थे। दोनों ने साथ एक शॉर्ट फिल्म ‘अनकही बातें’ भी की है, जिसे 2016 के कान्स फिल्म फेस्टिवल के लिए सिलेक्ट किया गया था।
ऐसे में दोनों की अफेयर की खबरें और तेजी से आने लगीं। हालांकि, इस साल अप्रेल में अविका ने अफेयर की खबरों पर चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि वो और मनीष सिर्फ अच्छे दोस्त हैं। बता दें, अभी भी दोनों ने सोशल अकाउंट पर इनकी स्पेशल बॉन्डिंग देखी जा सकती है। मनीष और अविका अक्सर एक-दूसरे के साथ कई तस्वीरें शेयर करते रहते हैं।
अविका गौर के पसंदीदा चीज़ो की बात करे तो उनको खाने में बटर चिल्ली गार्लिक नूडल और पाव भाजी पसंद है। अविका के पसंदीदा अभिनेता ऋतिक रोशन, शहीद कपूर और शाहरुख खान हैं। अभिनेत्रियों में इन्हे माधुरी दीक्षित, ऐश्वर्या राय और काजोल पसंद हैं। अविका को अभिनय करने के अलावा तस्वीरें खींचना, नाचना और गाना गाना पसंद है। अविका गौर अपने एक दिन के शूट का 25 हज़ार चार्ज करती है और 1 फिल्म में अभिनय करने का 50 लाख चार्ज करती हैं।
अविका गौर छोटे पर्दे पर अभिनय
2008 – 2010, कलर्स टीवी के सीरियल ‘बालिका वधू – कच्ची उम्र के पक्के रिश्ते’ में ‘आनंदी’ का बाल किरदार अभिनय किया था।
2009, कलर्स टीवी के शो ‘इंडियाज गॉट टैलेंट – सीज़न 1’ में अतिथि डांसर के रूप में देखा गया था।
2008, इमेजिन टीवी के सीरियल ‘राजकुमार आर्यन’ में ‘राजकुमारी भैरवी’ का बाल किरदार अभिनय किया था।
2011 – 2016, कलर्स टीवी के सीरियल ‘ससुराल सिमर का’ में ‘रोली’, ‘झुमकी’ और ‘श्रुति वर्मा’ का किरदार अभिनय किया था।
2012, कलर्स टीवी के शो ‘झलक दिखला जा – सीजन 5’ में वाइल्ड कार्ड एंट्रेंट से कंटेस्टेंट के रूप में भाग लिया था।
2013, कलर्स टीवी के शो ‘कॉमेडी नाइट्स विद कपिल’ में अतिथि के रूप में देखा गया था।
2015, कलर्स टीवी के शो ‘कॉमेडी नाइट्स बचाओ’ में अतिथि के रूप में देखा गया था।
2016, कलर्स टीवी के शो ‘बॉक्स क्रिकेट लीग – सीजन 2’ में कंटेस्टेंट के रूप में भाग लिया था।
2017, कलर्स टीवी के शो ‘बिग बॉस 11’ में अतिथि के रूप में भाग लिया था।
2018, कलर्स टीवी के शो ‘लाडो – वीरपुर की मर्दानी’ में ‘अनुष्का’ का किरदार अभिनय किया था।
2019, कलर्स टीवी के शो ‘फियर फैक्टर: खतरों के खिलाड़ी 9’ में कंटेस्टेंट के रूप में भाग लिया था।
2019, कलर्स टीवी के शो ‘किचन चैंपियन’ में भाग लिया था।
2019, कलर्स टीवी के शो ‘खतरा खतरा खतरा’ में भाग लिया था।
अविका गौर बड़े पर्दे पर अभिनय
2009 – हिंदी फिल्म ‘मॉर्निंग वॉक’ में ‘गार्गी’ का किरदार अभिनय किया था।
2010 – हिंदी फिल्म ‘पाठशाला’ में ‘अविका’ का किरदार अभिनय किया था।
2012 – हिंदी फिल्म ‘तेज’ में ‘पिया रैना’ का किरदार अभिनय किया था।
2013 – तेलुगु फिल्म ‘उय्याला जम्पला’ में ‘उमा देवी’ का किरदार अभिनय किया था।
2014 – तेलुगु फिल्म ‘लक्ष्मी रावे माँ इंटिकी’ में ‘लक्ष्मी’ का किरदार अभिनय किया था।
2015 – तेलुगु फिल्म ‘सिनेमा चोपिस्टा मावा’ में ‘परिणीता चटर्जी’ का किरदार अभिनय किया था।
2015 – तेलुगु फिल्म ‘थानू नेनु’ में ‘कीरथी’ का किरदार अभिनय किया था।
2015 – कन्नड़ फिल्म ‘फ़ुटपाथ 2’ में ‘गीता’ का किरदार अभिनय किया था।
2015 – हिंदी फिल्म ‘किल देम यंग’ में ‘गीता’ का किरदार अभिनय किया था।
2015 – तेलुगु फिल्म ‘माँजा’ में ‘कीर्ति’ का किरदार अभिनय किया था।
2016 – तेलुगु फिल्म ‘इक्कादिकि पोथुव चिन्नवदा’ में ‘आयशा’ और ‘अमाला’ का किरदार अभिनय किया था।
2019 – कन्नड़ फिल्म ‘नटस्वरभूम्मा’ में ‘ब्राइड’ की भूमिका निभाई थी।
2019 – तेलुगु फिल्म ‘राजू गारी गाधी 3’ में अभिनय किया था।
Avika Gor Biography
अविका गौर की वेब सीरीज
2016 – अनकही बातें में अभिनय किया था।
2017 – ‘आई, मी और माइसेल्फ’ में अभिनय किया था।
पुरस्कार और उपलब्धियां
2008 – ‘8वां इंडियन टेलीविज़न अकैडमी अवार्ड्स’ में सीरियल ‘बालिका वधु – कच्ची उम्र के पक्के रिश्ते’ के लिए ‘बेस्ट चाइल्ड आर्टिस्ट’ का अवार्ड मिला था।
2008 – ‘8वां इंडियन टेलीविज़न अकैडमी अवार्ड्स’ में सीरियल ‘बालिका वधु – कच्ची उम्र के पक्के रिश्ते’ के लिए ‘बेस्ट एक्ट्रेस – ड्रामा (जूरी)’ का अवार्ड मिला था।
2009 – ’12वाँ राजीव गांधी नैशनल अवार्ड्स’ में सीरियल ‘बालिका वधु – कच्ची उम्र के पक्के रिश्ते’ के लिए ‘यंग प्रोडिजी’ का अवार्ड मिला था।
2009 – ‘9वाँ इंडियन टेलीविजन अकैडमी अवार्ड्स’ में सीरियल ‘बालिका वधु – कच्ची उम्र के पक्के रिश्ते’ के लिए ‘बेस्ट चाइल्ड एक्ट्रेस’ का अवार्ड मिला था।
2010 – ’10वें इंडियन टेलीविजन अकैडमी अवार्ड्स’ में सीरियल ‘बालिका वधु – कच्ची उम्र के पक्के रिश्ते’ के लिए ‘बेस्ट चाइल्ड एक्ट्रेस’ का अवार्ड मिला था।
2014 – ‘तीसरा तेलुगु इंडियन इंटरनेशनल फिल्म अवार्ड्स’ में फिल्म ‘उय्यला जम्पला’ के लिए ‘बेस्ट फीमेल डेब्यूटेंट’ का अवार्ड मिला था।
Real Name –
Avika Sameer Gor
Nickname –
Laddo, Beendni, Chuhiya, Anandi, Roli, Theekhi Mirchi and Mitshi
Date of Birth –
30 June 1997
Birth Place –
Mumbai, Maharashtra, India
Profession –
Actress
Height & Weight –
5′ 4″ & 58 Kg
Figure Measurements–
32-24-34
Family –
Father – Sameer Gor Mother – Chetna Gor
Boy Friend –
Milind Chandwani (Founder & CEO of the NGO Camp Diaries)
Alia Bhatt announce Pregnancy : आज 27 जून को बॉलीवुड से एक बहुत बड़ी गुडन्यूज सामने आई है. जिसे सुनने के बाद आप चौंक जाएंगे. बॉलीवुड की मोस्ट गॉर्जियस और क्यूट एक्ट्रेस आलिया भट्ट मां बनने वाली हैं. आलिया ने इंस्टा पर ये गुडन्यूज शेयर की है.
आलिया भट्ट ने अपनी इन्स्टाग्राम पोस्ट में बताया कि बहुत जल्द उनका बेबी आने वाला है. वे और रणबीर कपूर दो से तीन होने वाले हैं. आलिया की ये गुडन्यूज पोस्ट वायरल हो रही है. फैंस और सेलेब्स आलिया को ढेरों बधाई दे रहे हैं.
जैसा की हम सभी जानते हैं इसी साल 14 अप्रैल को रणबीर कपूर और आलिया भट्ट ने शादी की थी. उनकी प्राइवेट वेडिंग मुंबई में ही हुई थी. आलिया भट्ट और रणबीर की शादी की जबरदस्त चर्चा रही थी. शादी के तुरंत बाद ही कपल ने गुडन्यूज शेयर कर दी है. इस गुडन्यूज के सामने आने के बाद कपूर और भट्ट परिवार में खुशी की लहर दौड़ रही है.
आलिया के प्रेग्नेंसी पोस्ट पर उनकी मां सोनी राजदान और ननद रिद्धिमा कपूर साहनी का भी रिएक्शन आया है. रिद्धिमा ने हार्ट इमोजी बनाए हैं, वहीं उनकी मां सोनी राजदान ने लिखा- बधाई मामा एंड पापा लॉयन. आलिया को अपनी बेटी मानने वाले करण जौहर की भी खुशी का ठिकाना नहीं है.
आलिया ने इंस्टा पर दो तस्वीरें शेयर की हैं. पहली फोटो में वे अस्पताल के बेड पर लेटी हुई हैं. उनकी सोनोग्राफी हो रही है. कंप्यूटर स्क्रीन को ब्लर कर उसपर हार्ट इमोजी बनाया है. कंप्यूटर स्क्रीन पर बेबी को देखने के बाद आलिया की खुशी का ठिकाना नहीं है.
Alia Bhatt announce Pregnancy
आलिया की बगल में कोई शख्स भी बैठा है. उसका बैक नजर आता है. तस्वीर से मालूम पड़ता है कि वे रणबीर कपूर हो सकते हैं. दूसरी फोटो में आलिया ने शेर शेरनी और उनके एक बच्चे की फोटो शेयर की है. मतलब ये कि आलिया की फैमिली पूरी होने वाली है.
आलिया ने जिस तरह शादी के 3 महीने बाद ही फैंस को गुडन्यूज दी है, इससे हर कोई सरप्राइज हो गया है. आलिया और रणबीर ने साल 2018 में डेट करना शुरू किया था. फिल्म ब्रह्मास्त्र के सेट पर उनका प्यार परवान चढ़ा था. आलिया और रणबीर इस फिल्म में पहली बार स्क्रीन शेयर करेंगे. कपल की फिल्म ब्रह्मास्त्र 9 सितंबर 2022 को रिलीज होगी.
हेल्लो दोस्तों हिंदू धर्म में हर माह आने वाली अमावस्या का विशेष महत्व होता है। हिंदू धर्म में आषाढ़ के महीने में पड़ने वाली इस अमावस्या को बहुत ही ज्यादा माना जाता है। किसानों के लिए यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। यह दिन किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि आषाढ़ माह में पड़ने वाली इस अमावस्या के समय तक वर्षा ऋतु शुरू हो जाती है और धरती भी नम हो जाती है। फसल बोने का यह सबसे अच्छा समय है। इसे आषाढ़ी अमावस्या भी कहते हैं।
हलहरिणी अमावस्या के दिन हल की पूजा इसी का प्रतीक है। इसे मनाने का उद्देश्य यह है कि किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत भगवान की पूजा, पूजा और धन्यवाद से करनी चाहिए। रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं का भी उचित सम्मान करना चाहिए। इस दिन किसान विधि विधान से हल की पूजा करते हैं और हरी फसल की कामना करते हैं ताकि घर में कभी भी अन्न और धन की कमी न हो।
कहते हैं कि इस दिन हल पूजा और पुश्तैनी पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन पितृ दोष निवारण के उपाय करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इस दिन पितरों का तर्पण करने से पितरों की संतुष्टी मिलती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। किसानों द्वारा इस दिन कृषि उपकरणों का पूजन किया जाता है और साथ ही फसलों की बुवाई के लिए यह दिन खास होता है। इस दिन विशेषकर माता धरती से अच्छी फसल के उत्पादन के लिए प्रार्थना की जाती है साथ ही सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए सूर्य की उपासना होती है।
Halharini Amavasya Vrat
अच्छी बारिश के लिए इस दिन इंद्र देव को प्रसन्न किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि अमावस्या के दिन पूजा पाठ करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और अपने परिवारजनों को आशीर्वाद देते हैं तो आइए जानते हैं हलहारिणी अमावस्या की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि और महत्त्व के बारे में।
विषयसूची :
आषाढ़ी अमावस्या 2022 शुभ मुहूर्त
Halharini Amavasya Shubh Muhurt
आषाढ़ी हलहारिणी अमावस्या तिथि – 28 जून, मंगलवार।
अमावस्या तिथि का प्रारंभ – 28 जून, मंगलवार, प्रातः काल 5 बजकर 33 मिनट से शुरू।
अमावस्या तिथि का समाप्त – 29 जून, बुधवार, प्रातः काल 8 बजकर 23 मिनट पर होगा।
आषाढ़ मास की अमावस्या को हलहारिणी अमावस्या (Halharini Amavasya) के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन पितरों के निमित्त तर्पण, पूजा, स्नान और दान की परंपरा है. इसके अलावा इस दिन लोग व्रत भी रखते हैं. किसानों के लिए भी हलहारिणी अमावस्या का खास महत्त्व होता है.
दरअसल इस दिन किसानअपने बैलों को खेतों में काम करने के लिए नहीं लगाते हैं, बल्कि वे उन्हें चरने के लिए खुला छोड़ देते हैं. इसके अलावा इस दिन किसान व्रत रखकर कृषि कार्य में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों (औजारों) की पूजा करते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन से वर्षा ऋतु का आरंभ हो जाती है. ऐसे में लोग खेतों में अच्छी फसल के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं.
पौधा लगाने से पितृ होते हैं खुश
इस दिन किसान हल की पूजा करते हैं और कोई नया पौधा लगाने को भी शुभ मानते हैं। इस दिन पौधा लगाने से पितृ गण खुश होते हैं। इसलिए हर व्यक्ति को इस दिन एक पौधा जरूर लगाना चाहिए। अगर आपके पितृ खुश रहेंगे तो आपके ऊपर उनकी असीम कृपा बनी रहेगी और आप धन धान्य से फलते फूलते रहेंगे ! कभी किसी काम में कोई परेशानी या व्यवधान नहीं आएगा !
Halharini Amavasya Vrat
हलहारिणी अमावस्या पर करें ये उपाय
Halharini Amavasya Vrat Par karen Ye Upay
इस दिन किसी भी पवित्र नदी के जल से स्नान करना चाहिए।
अमावस्या के दिन भूखे प्राणियों को भोजन कराएं और जरूरतमंदों को अनाज और वस्त्रों का दान करें।
अमावस्या के दिन सुबह स्नान करने के बाद आटे की गोलिया बनाकर किसी तलाब में मछलियों को खिलाने से आर्थिक स्थिति बेहतर होती है।
इस दिन रुद्राभिषेक, पितृदोष शांति पूजन और शनि उपाय करने से व्यक्ति की सभी इच्छाएं और जीवन के सभी कष्टों को दूर हो जाते हैं।
इस दिन घर के ईशान कोण में गाय के घी का दीपक जलाने से शुभ फलदायी माना जाता है।
हलहारिणी अमावस्या के दिन खेती से जुड़े औजारों और यंत्रों की पूजा से सुख-समृद्धि आती है।
हलहारिणी अमावस्या के दिन काली चीटियों को शक्कर मिला हुआ आटा खिलाएं। ऐसा करने से आपके पाप कर्म का क्षय होगा और कामना पूरी होगी।
काल सर्प दोष के निवारण के लिए चांदी के बने नाग नागिन की पूजा करके उसे सफेद पुष्प के साथ बहते हुए जल में प्रवाहित करें। कालसर्प दोष से छुटकारा मिल जाएगा।
अपने शत्रुओं को पराजित करने के लिए अमावस्या की रात्रि में काले कुत्ते को तेल से चुपड़ी रोटी खिलाएं अगर कुत्ता रोटी उसी समय खा लेता है तो शत्रु उसी समय से शांत होने शुरू हो जाएंगे।
आषाढ़ अमावस्या पर भगवान सूर्य, भगवान शिव, माता गौरी और तुलसी की 11 बार परिक्रमा करनी चाहिए।
अमावस्या की रात बहते नदी के पानी में 5 लाल फूल और 5 जलते हुए दीये छोड़ दें। इस उपाय से धन लाभ होने के प्रबल योग बनेंगे।
अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए अमावस्या के दिन मुख्यत: तिल, तेल, चावल, चद्दर, छाता, चना, खिचड़ी, पुस्तक, साबूदाना, मिठाई, चने की दाल, अन्न, वस्त्र, रुई, उड़द की दाल आदि का दान दिया जाता है।
आषाढ़ अमावस्या पर भूलकर सूर्योदय के बाद देर तक नहीं सोना चाहिए।
अमावस्या के दिन भूलकर भी किसी बुजुर्ग, गरीब या कमजोर व्यक्ति का अपमान नहीं करना चाहिए।
इस दिन किसी की निंदा या आलोचना नहीं करना चाहिए और न ही कठोर शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
इस दिन भूलकर भी श्मशान घाट, सुनसान जंगल, लंबे समय से खाली पड़े घर या कमरे आदि में नहीं जाना चाहिए।
आषाढ़ अमावस्या के दिन तामसिक चीज़ों जैसे मांस, मदिरा आदि का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए।
इस दिन जप तप करने वाले व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए साथ ही शारीरिक संबंध नहीं बनाना चाहिए।
इस दिन घर की साफ सफाई करना चाहिए साथ ही शुभ या मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए।
Halharini Amavasya Vrat
हलहारिणी अमावस्या का महत्व
Halharini Amavasya Ka Mahatv
हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार अमावस्या तिथि धार्मिक कार्य करने के लिए बेहद खास मानी जाती है। हर साल बारह अमावस्या आती हैं और हर अमावस्या खास मानी जाती हैं, लेकिन आषाढ़ मास की अमावस्या (Ashadh Amavasya) को पितरों के निमित्त तर्पण के लिए अच्छा माना जाता है। इसके अलावा यह अमावस्या किसानों के लिए भी खास होती है। इस दिन किसान कृषि कार्य के लिए इस्तेमाल किए जाने वाली उपकरणों की पूजा करते हैं, साथ ही भगवान से अच्छे फसल आने के लिए प्रार्थना करते हैं। यही कारण है कि आषाढ़ मास की अमावस्या को हलहारिणी अमावस्या (Halharini Amavasya 2022) भी कहते हैं। इस दिन गंगा नदी में स्नान के बाद दान भी किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन दान करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
हम्मस कैसे बनाते हैं, हम्मस बनाने की विधि, hummus recipe in hindi, humas kaise banate hain
हम्मस एक स्वादिष्ट और प्रोटीन से भरपूर गाढा और क्रिमी डीप हैं, जो काबुली चना (सफेद चना) से बनाई जाता हैं। इसे घर पर बनाना बहुत ही आसान हैं क्योंकि इसे बनाने के लिए बहुत ही कम सामग्री की जरूरत पडती हैं. इसमें पकाए हुए काबुली चना/सफेद चना को तहिनी, लहसुन, नींबू का रस, ओलिव ओइल और नमक के साथ मुलायम होने तक पीसकर बनाया जाता हैं।
इसे बिस्किट, कटी हुई सब्जियों (गाजर, ककड़ी, ब्रोकोली, ज़ुकिनी) के साथ एक डीप की तरह या फलाफल और ब्रेड के साथ एक सॉस की तरह खाया जाता हैं या सेंडविच बनाने के लिए एक स्प्रेड की तरह उपयोग किया जाता हैं।
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हेल्लो दोस्तों शास्त्रों में प्रदोष व्रत को बहुत महत्त्व दिया गया है. रविवार को आने वाले प्रदोष को रवि प्रदोष (Ravi Pradosh Vrat Katha Poojan) या भानु प्रदोष (Bhanu Pradosh Vrat) कहते हैं. रविवार प्रदोष के दिन भगवान शिवजी और सूर्य देव की विशेष रूप से पूजा की जाती है. रविवार को आने वाला यह प्रदोष स्वास्थ्य की दृष्टि से शुभ माना गया है.
आषाढ़ मास का पहला प्रदोष व्रत उदया तिथि होने के कारण 26 जून को पड़ रहा है. इस दिन शिवजी की पूजा करने से जीवन में खुशहाली बनी रहती है और भक्तों की सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं। मान्यता है कि इस दिन पूजा-व्रत आदि करने से महादेव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों के सभी संकट दूर करते हैं।
सनातन धर्म में 33 करोड़ देवी देवताओं में भगवान शिव को देवाधिदेव महादेव की उपाधि मिली है। भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए शिव पुराण में विविध व्रतों का उल्लेख मिलता है। प्रदोष व्रत अत्यंत प्रभावशाली तथा शीघ्र फलदाई माना गया है।
यह व्रत करने वाले की स्वास्थ्य से संबंधित समस्या दूर होती है इससे उम्र बढ़ती है और बीमारियां दूर होती है रविवार को शिव और शक्ति की पूजन करने से दाम्पत्य जीवन को सुख मिलता है सभी परेशानियां दूर होती है इस प्रदोष से सभी मान्यता पूरी होती है।
विषयसूची :
रवि प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त
Ravi Pradosh Vrat Shubh Muhurt
रवि प्रदोष व्रत आरंभ – 25 जून, शनिवार, देर रात 1 बजकर 09 मिनट तक
रवि प्रदोष व्रत समाप्त – 27 जून, सोमवार, दोपहर 03 बजकर 25 मिनट तक
रवि प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त – 26 जून, रविवार, शाम 07 बजकर 23 मिनट से लेकर रात 09 बजकर 23 मिनट तक
रवि प्रदोष व्रत का अभिजीत मुहूर्त – 26 जून, रविवार, सुबह 11 बजकर 56 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 52 मिनट तक
Ravi Pradosh Vrat Katha Poojan
रवि प्रदोष व्रतपूजन विधि
Ravi Pradosh Poojan Poojan
सुबह पहले स्नान करके सफेद वस्त्र धारण करना चाहिए।
सबसे पहले गणेश जी की पूजन करें
फिर शिवजी पूजन के साथ पूरे शिव परिवार की पूजन करना चाहिए।
भगवान शिव का अभिषेक करने के बाद उन्हें वस्त्र आभूषण सुगंध के साथ बेलपत्र धतूरा मदार आदि अर्पित करके धूप दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
प्रदोष व्रत में शाम के समय प्रदोष काल में भगवान शिव की विधि विधान पूर्वक पंचोपचार व षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए।
प्रदोष व्रत की कथा का पाठ करें और पूजन के दौरान ओम् नम: शिवाय मंत्र का जप करें।
पूजा के बाद भगवान शिव की आरती उतारें और प्रसाद लोगों में बांट दें।
भगवान शिव की महिमा में उनकी प्रसन्नता के लिए प्रदोष स्त्रोत का पाठ एवं स्कंध पुराण में वर्णित प्रदोष व्रत कथा का श्रवण अवश्य करना चाहिए।
रविवार के दिन प्रदोष व्रत आप रखते हैं तो सदा नीरोग रहेंगे।
सोमवार के दिन व्रत करने से आपकी इच्छा फलितहोती है।
मंगलवार कोप्रदोष व्रत रखने से रोग से मुक्ति मिलती है और आप स्वस्थ रहते हैं।
बुधवार के दिन इस व्रत का पालन करने से सभी प्रकार की कामना सिद्ध होती है।
बृहस्पतिवार के व्रत से शत्रु का नाश होता है। शुक्र प्रदोष व्रत सेसौभाग्य की वृद्धि होती है।
शनि प्रदोष व्रत से पुत्र की प्राप्ति होती है
Ravi Pradosh Vrat Katha Poojan
रवि प्रदोष व्रत कथा
Ravi Pradosh Vrat Katha
एक गाँव में अति दीन ब्राह्मण निवास करता था। उसकी साध्वी स्त्री प्रदोष व्रत किया करती थी, उसे एक ही पुत्र रत्न था। एक समय की बात है वह पुत्र गंगा स्नान करने के लिये गया। दुर्भाग्यवश मार्ग में चोरों ने उसे घेर लिया और वे कहने लगे कि हम तुम्हें मारेंगे, नहीं तो तुम अपने पिता के गुप्त धन के बारे में हमें बतला दो। बालक दीन भाव से कहने लगा कि बंधुओं! हम अत्यंत दु:खी दीन हैं। हमारे पास धन कहाँ है? तब चोरों ने कहा- “तेरे इस पोटली में क्या बंधा है?”
बालक ने नि:संकोच कहा- “मेरी माँ ने मेरे लिये रोटियाँ दी हैं। ”यह सुनकर चोर ने अपने साथियों से कहा- “साथियों ! यह बहुत ही दीन दु:खी मनुष्य है। अत: हम किसी और को लूटेंगे।” इतना कहकर चोरों ने उस बालक को जाने दिया। बालक वहाँ से चलते हुए एक नगर में पहुँचा। नगर के पास एक बरगद का पेड़ था। वह बालक उसी बरगद के वृक्ष की छाया में सो गया। उसी समय, उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उस बरगद के वृक्ष के पास पहुँचे और बालक को चोर समझकर बंदी बना राजा के पास ले गये। राजा ने उसे कारावास में बंद करने का आदेश दिया।
ब्राह्मणी का लड़का जब घर नहीं लौटा, तब उसे अपने पुत्र की बड़ी चिता हुई। अगले दिन प्रदोष व्रत था, ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत किया और भगवान शंकर से मन-ही-मन अपने पुत्र के कुशलता की प्रार्थना करने लगी। भगवान शंकर ने उस ब्राह्मणी की प्रार्थना स्वीकार कर ली।उसी रात भगवान शंकर ने उस राजा को स्वप्न में आदेश दिया कि वह बालक चोर नहीं है, उसे प्रात: काल छोड़ दें, अन्यथा उसका सारा राज्य-वैभव नष्ट हो जायेगा। प्रात:काल राजा ने शिव जी की आज्ञानुसार उस बालक को कारावास से मुक्त कर दिया।
बालक ने अपनी सारी कहानी राजा को सुनाई। सारा वृतांत सुनकर, राजा ने अपने सिपाहियों को उस बालक के घर भेजा और उसके माता-पिता को राज दरबार में बुलाया। उसके माता पिता बहुत हीं भयभीत थे। राजा ने उन्हें भयभीत देखकर कहा- “आप भयभीत न हो। आपका बालक निर्दोष है।” राजा ने ब्राह्मण को पांच गाँव दान में दिये, जिससे वे सुख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सके। भगवान शिव की कृपा से ब्राह्मण परिवार आनंद से रहने लगे। जो भी इस प्रदोष व्रत को करता है ,वह सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करता है।
Pradosh Vrat
व्रत में बरतें ये सावधानियां
Ravi Pradosh Vrat Katha Tips
घर में और घर के मंदिर में साफ सफाई का ध्यान रखें।
साफ-सुथरे कपड़े पहन कर ही भगवान शिव और सूर्य की पूजा करें।
सारे व्रत विधान में मन में किसी तरीके का गलत विचार ना आने दें।
अपने गुरु और पिता के साथ सम्मान पूर्वक व्यवहार करें।
रवि प्रदोष व्रत विधान में अपने आप को भगवान शिव को समर्पण कर दें।
शिव को प्रसन्न करने के उपाय
Ravi Pradosh Vrat Upay
यदि सूर्य के कारण आपके दाम्पत्य जीवन में तनाव आ गया है तो 27 लाल गुलाब के फूलों को लाल धागे में पिरोएं और पति-पत्नी मिलकर सांध्य के समय भगवान शिव को अर्पण करें और वहीं बैठकर भगवान शिव से प्रार्थना करें ऐसा करने से दांपत्य जीवन में मधुरता आएगी।
जिन लोगों को सरकारी नौकरी में समस्या आ रही हो वह इस रवि प्रदोष पर संध्या के समय भगवान शिव को कच्चे दूध से स्नान कराएं और गुलाब का इत्र अर्पण करें। इससे सरकारी नौकरी की चिंता परेशानी बहुत जल्द समाप्त होगी।
जिस किसी को भी सूर्य से संबंधित कोई रोग हो जैसे- हृदय रोग आदि तो वह जातक सफेद चंदन में गंगाजल मिलाकर इसका लेप रवि प्रदोष की संध्या पर शिवजी को करें।
रवि प्रदोष पर रात को सोते समय एक गिलास दूध भर कर अपने सिरहाने रखें, फिर सोमवार यानि महाशिवरात्रि को सूर्योदय से पहले उठें और स्नान आदि से निवृत्त होकर दूध को बबूल के पेड़ की जड़ में अर्पित कर दें और फिर लगातार 7 या 11 रविवार यह उपाय करने से धन धान्य में वृद्धि होगी।
इस बार रवि प्रदोष पर तांबे के बर्तन या घी का दान करें। इस दिन आदित्य हृदय स्त्रोत और रुद्राष्टक का पाठ करना लाभकारी रहेगा। इसके साथ ही नेत्रोपनिषद का पाठ करने से नेत्रों की ज्योति सही रहगी। इस दिन तांबे के लोटे में जल भर कर, इसमें लाल फूल डालकर सूर्य को अर्घ्य देने से नेत्र बाधा हटेगी।
इस दिन किसी भी सूर्य मंत्र का 21 बार जाप करें। इस रवि प्रदोष पर लाल वस्तुओं का अधिक से अधिक दान करना लाभकारी सिद्ध होगा। साथ ही माणिक्य, गुड़, कमल-फूल, लाल-वस्त्र, लाल-चंदन, तांबा, स्वर्ण सभी वस्तुएं इस दिन दान करें।
मनोकामना पूर्ति के लिए ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप करें या फिर पूजा के समय बेलपत्र पर ओम नम: शिवाय लिख कर भगवान भोलेनाथ को चढ़ाएं. इस उपाय से आपकी जो भी मनोकामना है, वह शिव कृपा से पूरी होगी.
यदि आप किसी रोग की चपेट में हैं या फिर कोई विकट समस्या है, जिसका समाधान नहीं मिल पा रहा है, तो आप रवि प्रदोष व्रत के दिन महामृत्युंजय मंत्र का जाप कराएं.
जमीन-जायदाद या अन्य मामलों से जुड़े कोर्ट केस से आप परेशान हैं, तो प्रदोष व्रत के दिन गंगाजल में अक्षत मिलाकर भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करें. शिव कृपा से आपकी समस्या का समाधान होगा.
अनजाने भय से डरे हुए हैं, शरीर शक्तिहीन लगता है, आत्मविश्वास की कमी है, तो प्रदोष व्रत के दिन शिव पंचाक्षरी मंत्र ओम नम: शिवाय का 108 बार जप करें. मंत्र जाप के लिए रुद्राक्ष या चंदन की माला का उपयोग करें. आपको लाभ मिलेगा.
रवि प्रदोष व्रत उद्यापन विधि
Ravi Pradosh Udyapan Vidhi
स्कंद पुराण के अनुसार इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
उद्यापन वाली त्रयोदशी से एक दिन पूर्व श्री गणेश का विधिवत षोडशोपचार से पूजन किया जाना चाहिये। पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है।
इसके बाद उद्यापन के दिन प्रात: जल्दी उठकर नित्यकर्मों से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध कर लें।
रंगीन वस्त्रों और रंगोली से सजाकर मंडप तैयार कर लें। मंडप में एक चौकी पर शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें। और विधि-विधान से शिव-पार्वती का पूजन करें।
भोग लगाकर उस दिन जो वार हो उसके अनुसार कथा सुनें व सुनायें।
‘ऊँ उमा सहित शिवाय नम:’ मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन किया जाता है। हवन में आहूति के लिए गाय के दूध से बनी खीर का प्रयोग किया जाता है।
हवन समाप्त होने के बाद भगवान शिव की आरती की जाती है और शान्ति पाठ किया जाता है।
अंत में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। इसके बाद प्रसाद व भोजन ग्रहण करें।
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हेल्लो दोस्तों शिवरात्रि भगवान शिव और शक्ति के संगम का एक पर्व है. हिन्दू पंचांग के अनुसार हर महीने कृष्ण पक्ष के 14वें दिन यानी चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि (जिसे शिव चतुर्दशी भी कहा जाता है) मनाई जाती है ऐसा माना जाता है की इस दिन भगवान् शिव की उपासना करने से सुख-समृद्धि बनी रहती है.
आषाढ़ मास की मासिक शिवरात्रि (Ashadh Masik Shivratri) कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को तिथि को मनाई जाएगी. इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. ताकि जीवन से कष्टों का अंत और भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त हो सके. इस दिन लोग काफी शुभ मानते हैं. इस तरह हर माह आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि या शिव चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है. आषाढ़मास की मासिक शिवरात्रि 27 जून, सोमवार को पड़ रही है.
मान्यता है कि इस दिन यदि भगवान शिव और माता पार्वती की विधि विधान से पूजा की जाए तो असंभव कार्य भी कुछ दिनों में संभव हो जाते हैं. साथ ही उनके सभी संकटों को दूर करते हुए मनोकामनाएं पूरी करती है. इस बार सोमवार के दिन पड़ने के कारण इसका महत्व और भी अधिक बढ़ गया है।
शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि प्रत्येक माह में पड़ने वाली शिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत रखने से दुख, दरिद्रता और दोष से छुटकारा मिल जाता है और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं मासिक शिवरात्रि के तिथि, पूजन विधि और महत्व के बारे में.
पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार इन्हें विनाशक भी कहा जाता है भगवान शिव को त्रिदेवों में इन्हें सर्वोच्च स्थान है। शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी, इन्द्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती और रति ने भी शिवरात्रि का व्रत किया था। और उन्होंने अपनी सभी मनो कामना पूर्ण की थी । इसी प्रचलन के कारण मासिक शिव रात्रि का प्रचलन प्रारम्भ हुआ।
Masik Shivratri Vrat Katha
विषयसूची :
मासिक शिवरात्रि शुभ मुहूर्त
(Masik Shivratri Muhurat)
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 27 जून 2022, दिन सोमवार को सुबह 03 बजकर 25 मिनट से आरंभ होगी। इसका समापन 28 जून दिन मंगलवार को सुबह 05 बजकर 52 मिनट पर होगा। उदयातिथि के आधार पर व्रत के नियमानुसार मासिक शिवरात्रि व्रत 27 जून दिन सोमवार को रखा जाएगा. आषाढ़ माह की मासिक शिवरात्रि की रात्रि पहर के पूजन का शुभ मुहूर्त देर रात 12 बजकर 04 मिनट से 12 बजकर 44 मिनट तक है। मासिक शिवरात्रि की रात्रि प्रहर की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 40 मिनट का है.
आषाढ़ मास की मासिक शिवरात्रि सर्वार्थ सिद्धि योग में है. पंचांग के मुताबिक 27 जून को पूरे दिन सर्वार्थ सिद्धि योग है. अमृत योग शाम 04 बजकर 02 मिनट से अगले दिन सुबह 05 बजकर 26 मिनट तक है. ये दोनों योग मांगलिक कार्य के लिए शुभ माने जाते हैं. इस बार मासिक शिवरात्रि सोमवार को पड़ रही है. मान्यतानुसार सोमवार भगवान शिव की पूजा के लिए बेहद खास होता है. मासिक शिवरात्रि के दिन अभिजित मुहूर्त 11 बजकर 56 मिनट से दोपहर 12 बजकर 52 मिनट तक है.
मासिक शिवरात्रि पूजन विधि
(Masik Shivratri Poojan Vidhi)
इस दिन सुबह स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें।
इसके बाद भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश, कार्तिकेय और नंदी की पूजा करें।
इस दिन भोलेनाथ का अभिषेक करने से विशेष फल मिलता है अभिषेक के दौरान भगवान शिव की प्रिय चीज़ों का भोग लगाएं और शिव मन्त्रों का जाप करें
भक्त शिवरात्रि की पूरी रात जागकर भगवान शिव की पूजा करते हैं।
इसके बाद शिवजी पर बेलपत्र, धतूरा और श्रीफल चढ़ाएं। और अगरबत्ती, दीपक, फूल और फल के माध्यम से इसकी पूजा करें।
सुनिश्चित करें कि आप शिव पुराण, शिव स्तोय, शिव अष्टक, शिव चालीसा और शिव श्लोक पढ़ें।
इसके बाद शाम को फल खा सकते हैं लेकिन व्रत रखने वालों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
इस व्रत को महिला और पुरुष दोनों कर सकते हैं
अगर विवाह में कोई अड़चन आ रही है तो शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाते वक्त नम शिवाय का जाप करें.
संतान संबंधी कोई भी परेशानी है तो आप शिवरात्रि के दिन आटे से 11 शिवलिंग बनाएं और 11 बार इनका जल अभिषेक करें.
भगवान शिव की पूजा के बाद अगले दिन उपवास समाप्त किया जा सकता है। कहा जाता है कि मासिक शिवरात्रि पर शिव पार्वती की पूजा करने से व्यक्ति सभी प्रकार के ऋणों से मुक्त हो जाता है।
Masik Shivratri Vrat Katha
मासिक शिवरात्रि की कथा
(Masik Shivratri Vrat Katha)
जिस तरह से हर व्रत आदि के पीछे कोई न कोई कथा होती है वैसे ही मासिक शिवरात्रि करने के पीछे भी एक कथा है आइये जानते हैं कथा
पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव महा शिवरात्रि के दिन मध्य रात्रि के समय लिंगम के रूप में स्वयं प्रकट हुए थे। जिसके बाद से सबसे पहले भगवान् ब्रह्मा विष्णु ने उनकी पूजा की थी उस दिन से लेकर आज तक इस दिन को भगवान शिव जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है एक बार ब्रह्मा और विष्णु के बीच विवाद हो गया कि उनमें से कौन श्रेष्ठ है।
उस दौरान उनके सामने आग का एक खंभा दिखाई दिया। खंभे की उत्पत्ति और अंत नहीं मिला है, वे दोनों परस्पर सहमत थे कि जो कोई भी खंभे के एक छोर की खोज करता है वह दोनों के बीच सबसे बेहतर होगा। ब्रह्मा ने ऊपर देखने के लिए हंस के रूप में उड़ान भरी, जबकि नीचे देखने के लिए विष्णु ने जमीन के माध्यम से खुदाई करने के लिए एक सूअर का रूप धारण किया।
कई युगों तक प्रयास करने के बावजूद उनमें से कोई भी सफल नहीं हो सका। हालांकि, जब ब्रह्मा ने झूठ बोला कि उन्होंने सबसे ऊपर देखा है, भगवान शिव ने दृश्य में दिखाई दिया और खुलासा किया कि यह वह था जो स्तंभ के रूप में प्रकट हुआ था। अपनी असत्य की सजा के रूप में, भगवान शिव ने कहा कि ब्रह्मा के पास पृथ्वी पर उनके लिए समर्पित मंदिर कभी नहीं होगा। यह शिवरात्रि का दिन था जब भगवान शिव लिंगम के रूप में प्रकट हुए।
धार्मिक ग्रंथों में मासिक शिवरात्रि व्रत के महत्व के बारे में बताया गया है. मान्यता है कि इस दिन पूजा, व्रत करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं और सारी इच्छाएं पूर्ण होती है. इतना ही नहीं, मान्यता है कि मासिक शिवरात्रि के दिन पूजा-पाठ करने से घर में सुख-समृद्धि आती है. शास्त्रों के अनुसार मासिक शिवरात्रि के दिन रुद्राभिषेक भी करने की भी मान्यता है. भगवान को मासिक शविरात्रि का दिन अत्यंत प्रिय होने के कारण भी इसका महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है. इस दिन रुद्राभिषेक से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इस दिन व्रत करने से वैवाहिक जीवन की समस्याओं से निजात पाया जा सकता है.
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खाना बनाना एक कला है लेकिन रसोई में काम करते समय सतर्क रहना बहुत जरूरी होता है क्योंकि खाना बनाते समय थोड़ी सी लापरवाही पूरी खाने के स्वाद को खराब कर देती है जैसे कि खाने में नमक ज्यादा होना, सब्जी का जल जाना। इस तरह से काफी सारा नुकसान हो जाता है। कभी कभी तो छोटी सी छोटी जानकारी ना होने के कारण भी भोजन की सामग्री का नुकसान हो जाता है और खाना बनाने का समय भी अलग बर्बाद हो जाता है।
यदि आप ऐसा भोजन बनाने की शौकीन है जो कम समय में ज्यादा स्वादिष्ट बने तो यह किचन टिप्स आपके काम जरूर आ सकते हैं। अतः बताए गए इस किचन 15 टिप्स में अपने खाना बनाने के समय इसका स्वयं उपयोग कर अनुभव इकट्ठा करें। यह किचन टिप्स काफी महत्वपूर्ण है तो इसे आप ध्यान से पढ़ें..
1. गुड़ की चाशनी बनाते समय अगर कड़ाही में थोड़ा सा घी या तेल लगा देंगे तो चाशनी कड़ाही चिपकेगी नहीं।
2. यदि दूध की मलाई में एक चम्मच चीनी डालकर फेटा जाए तो मक्खन अधिक मात्रा में निकल आता है।
3. गुलाब जामुन को एकदम सॉफ्ट और अंदर से रसीला जालीदार बनाने के लिए खोया(मावा) में थोड़ा सा पनीर या छेना डालकर मिलाएं। गुलाब जामुन एकदम रसीले मुलायम और स्वादिष्ट बनेंगे।
4. रसगुल्ला स्पंजी बनाने के लिए रसगुल्ले को चाशनी में पकाते समय जब रसगुल्ले चाशनी में फूलने लगे तो बीच-बीच में उसमें 1 से 2 बड़े चम्मच पानी डालें। इससे चाशनी गाढ़ी नहीं होगी और रसगुल्ला ज्यादा स्पंजी बनते है।
5. अगर दही नहीं जमा है तो एक समतल थाली में पानी लें और फिर इसमें दही वाले बर्तन को रखें, फिर देखे 1 घंटे में दही जम कर तैयार हो जाता है. लेकिन बर्तन हिलना नहीं चाहिए, उसे एकदम स्थिर रखें।
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6. आम के अचार को लंबे समय तक स्टोर करने के लिए उसे बीच-बीच में धूप दिखाते रहिये और अचार को किसी सूखे जगह पर ही रखें और जब आपको अचार खाने का मन हो तो सूखे साफ चम्मच से थोड़ा सा निकाल कर अलग कर लीजिये। बार-बार अचार में हाथ ना लगाएं, तभी अचार आपका लंबे समय तक चलेगा।
7. आम के अचार बनाते समय इसमें थोड़ा सा गुड़ डालकर मिलाएं इससे अचार अधिक स्वादिष्ट बनता है।
8. पानी वाले ताजे नारियल को आसानी से फोड़ने के लिए पहले नारियल का सारा पानी ऊपर से छेद करके निकाल लेंगे और फिर उसे गैस बर्नर पर रख कर दो मिनट तक सेंके। इससे नारियल का ऊपर वाला कड़क हिस्सा आसानी से चटककर अलग हो जाता है।
9. केले का गुच्छा लटका कर रखने से केला 5 से 6 दिनों तक खराब नहीं होता है।
10. दूध से अधिक मलाई निकालने के लिए पहले दूध को अच्छे से उबालने के बाद ठंडा होने के लिए रख देंगे और फिर इसके बाद उसे फ्रिज में रखें। इससे दूध में मलाई अधिक मात्रा में मोटी जमती है।
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आलू की कम मसालेवाली सब्जी बनाना चाहते हैं तो एक बार मट्ठा आलू की सब्जी ट्राई करें. यह खानें इतनी टेस्टी होती है कि बार-बार आपका मन इसे खाने का करेगा…
झुलसाने वाली गर्मी बढती जा रही है तो, ऐसे में जरुरी है कि हम अपनी डाइट में कुछ ऐसे खाघ पदार्थों को शामिल करें जो हमें अंदर से ठंडा रखें, पानी की कमी को पूरा करें और पकाने में भी आसान हों। गर्मियों के समय मट्ठा बहुत फायदा करती है और इंफेकशन से भी बचाती है।
आज हम आपको मट्ठा के प्रयोग से आलू की सब्जी बनाना सिखाएंगे, जिसे आप रोटी या चावल के साथ खा सकते हैं। इस सब्जी को बनाने के लिये आपको आलू के चार भाग कर के प्रेशर कुकर में उबाल लेना होगा और फिर उसे मट्ठा के साथ पकाना होगा। यह रेसीपी बहुत ही जल्दी बन जाती है और साथ ही मट्ठा का स्वाद बहुत ही लाजवाब होता है। आइये देखते हैं मट्टा आलू की सब्जी बनाने की विधि
Mattha Aalu Ki Sabji Recipe
आवश्यक सामग्री
आधा किलो मट्ठा/छाछ (ताजा नहीं)
4 आलू उबले हुए
एक चौथाई चम्मच जीरा
स्वादानुसार नमक
एक चौथाई चम्मच लाल मिर्च पाउडर
आधा छोटा चम्मच हल्दी पाउडर
चुटकीभर हींग
1 बड़ा चम्मच तेल
एक बड़ा चम्मच धनिया पत्ती, बारीक कटी हुई
Mattha Aalu Ki Sabji Recipe1
बनाने की विधि
सबसे पहले आलू को छीलकर हल्का मैश कर लें.
इसके बाद एक बड़ा बर्तन में आलू, मट्ठा , हल्दी पाउडर, हरी मिर्च और लाल मिर्च डालें.
अब एक कड़ाही में तेल डालकर गर्म होने के लिए रखें. जब तेल गरम हो जाए तो इसमें हींग और जीरा डालकर तड़काएं.
जैसे ही जीरा तड़क जाए तो इसमें तैयार किया मट्ठा का मिश्रण डालें और उबाल आने तक कड़छी से हिलाते हुए चलाते हुए पकाएं.
जब इसमें अच्छी तरह उबाल आ जाए तो इसमें नमक और धनिया पत्ती डालकर 5 मिनट पकाकर आंच बंद कर दें.
मट्ठा आलू की सब्जी को रोटियों के साथ सर्व करें और खाएं.
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हेल्लो दोस्तों रानी दुर्गावती का नाम भारत की उन महानतम वीरांगनाओं की सबसे अग्रिम पंक्ति में आता है जिन्होंने मातृभूमि और अपने आत्मसम्मान की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान दिया। रानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीरत सिंह की पुत्री और गोंड राजा दलपत शाह की पत्नी थी। इनका राज्य क्षेत्र दूर-दूर तक फैला था।
रानी दुर्गावती बहुत ही कुशल शासिका थीं । इनके शासन काल में प्रजा बहुत सुखी थी और राज्य की ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी। इनके राज्य पर ना केवल अकबर बल्कि मालवा के शासक बाजबहादुर की भी नजर थी। रानी ने अपने जीवन काल में कई युद्ध लड़े और उनमें विजय भी पाई।
सारा देश प्रतिवर्ष रानी दुर्गावती के साहस और शौर्य के लिए 24 जून को बलिदान दिवस के रूप में मनाता है और रानी दुर्गावती को याद किया जाता है। जबलपुर में रानी की समाधि है और जबलपुर में रानी दुर्गावती के नाम से एक विश्वविद्यालय भी है।रानी दुर्गावती का समाधि स्थल जबलपुर जिले के नरई नाला में स्थित है।
प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ कल्पना जायसवाल ने एक ताम्रपत्र खोजने का दावा किया है, जिससे इस बात की पुष्टि हो जाती है कि रानी दुर्गावती का जन्म कालिंजर के दुर्ग में ही हुआ था। इस ताम्रपत्र में रानी दुर्गावती की जन्म कुंडली भी बनी हुई है जो कि संस्कृत भाषा में है।
विषयसूची :
रानी दुर्गावती का जन्म
(Rani Durgavatis Birth)
रानी दुर्गावती का जन्म चंदेल राजा कीरत राय (कीर्तिसिंह चंदेल) के परिवार में कालिंजर के किले में 5 अक्टूबर 1524 को महोबा में हुआ था। राजा कीरत राय की पुत्री का जन्म दुर्गा अष्टमी के दिन होने के कारण उसका नाम दुर्गावती रखा गया। वर्तमान में कालिंजर उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में आता है। इनकी माता का नाम माहोबा था। इनके पिता राजा कीरत राय का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता था।
Rani Durgawati Balidan Diwas
इनका सम्बन्ध उस चंदेल राज वंश से था जिसके राजा विद्याधर ने महमूद गजनबी को युद्ध में खदेड़ा था और विश्व प्रसिद्ध खजुराहो के कंदारिया महादेव मंदिर का निर्माण करवाया। कन्या दुर्गावती का बचपन उस माहोल में बीता जिस राजवंश ने अपने मान सम्मान के लिये कई लड़ाईयां लड़ी। कीर्तिराय की एकमात्र संतान दुर्गावती ही थी इसीलिए उन्होंने दुर्गावती को एक पुत्र के समान ही समझा था और उन्हें शस्त्र चलाने की शिक्षा बचपन से ही देने लगे थे।
रानी दुर्गावती का विवाह
(Rani Durgavati’s marriage)
दुर्गावती जब विवाह योग्य हुई तब 18 साल की उम्र में सन 1542 में उनका विवाह गोंड राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह (Dalpat Shah) के सांथ संपन्न हुआ। राजा संग्राम शाह का राज्य बहुत ही विशाल था उनके राज्य में 52 गढ़ थे और उनका राज्य वर्तमान मंडला, जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, भोपाल, सागर, दमोह और वर्तमान छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों तक फैला था।
गोंड राजवंश और राजपूतों के इस मेल से शेरशाह सूरी को करार झटका लगा। शेरशाह सूरी ने 1545 को कालिंजर पर हमला कर दिया और बड़ी मुश्किल से कालिंजर के किले को जीतने में सफल भी हो गया, परन्तु अचानक हुए बारूद के विस्फोट से वह मारा गया।
1545 में रानी दुर्गावती ने एक पुत्र को जन्म दिया। पुत्र का नाम वीरनारायण रखा गया। 1550 में राजा दलपत शाह बीमार पड़ गए और उनकी मृत्यु हो गई। पति के ना रहने पर उन्होंने सती होने जाने का निश्चय किया परंतु दलपतशाह के शुभचिंतकों के अनुरोध पर इस दु:ख भरी घड़ी में रानी को अपने नाबालिग पुत्र वीर नारायण को राजगद्दी पर बैठा कर स्वयं राजकाज की बागडोर संभालनी पड़ी।
रानी दुर्गावती की राजधानी सिंगोरगढ़ थी। वर्तमान में जबलपुर-दमोह मार्ग पर स्थित ग्राम सिंग्रामपुर में रानी दुर्गावती की प्रतिमा से छः किलोमीटर दूर स्थित सिंगोरगढ़ का किला बना हुआ है। सिंगोरगढ़ के अतिरिक्त मदन महल का किला और नरसिंहपुर का चौरागढ़ का किला रानी दुर्गावती के राज्य के प्रमुख गढ़ों में से एक थे। रानी का राज्य वर्तमान के जबलपुर, नरसिंहपुर , दमोह, मंडला, होशंगाबाद, छिंदवाडा और छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों तक फैला था।
रानी के शासन का मुख्य केंद्र वर्तमान जबलपुर और उसके आस-पास का क्षेत्र था। अपने दो मुख्य सलाहकारों और सेनापतियों आधार सिंह कायस्थ और मानसिंह ठाकुर की सहायता से राज्य को सफलता पूर्वक चला रहीं थीं। रानी दुर्गावती ने 1550 से 1564 ईसवी तक सफलतापूर्वक शासन किया। रानी दुर्गावती के शासन काल में प्रजा बहुत सुखी थी और उनका राज्य भी लगातार प्रगति कर रहा था।
रानी दुर्गावती के शासन काल में उनके राज्य की ख्याति दूर-दूर तक फ़ैल गई। रानी दुर्गावंती ने अपने शासन काल में कई मंदिर, इमारते और तालाब बनवाये। इनमें सबसे प्रमुख हैं जबलपुर का रानी ताल, जो रानी दुर्गावती ने अपने नाम पर बनवाया। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरिताल और दीवान आधार सिंह के नाम पर आधार ताल बनवाया। रानी दुर्गावती ने अपने शासन काल में जात-पात से दूर रहकर सभी को समान अधिकार दिए उनके शासन काल में गोंड, राजपूत और कई मुस्लिम सेनापति भी मुख्य पदों पर आसीन थे।
शेर शाह सूरी के कालिंजर के दुर्ग में मरने के बाद मालवा पर सुजात खान का अधिकार हो गया। जिसे उसके बेटे बाजबहादुर ने सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया। गोंडवाना राज्य की सीमा मालवा को छूती थी और रानी के राज्य की ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी। मालवा के शासक बाजबहादुर ने रानी को महिला समझकर कमजोर समझा और गोंडवाना पर आक्रमण करने की योजना बनाई।
1556 में बाजबहादुर ने रानी दुर्गावती पर हमला कर दिया। रानी की सेना बड़ी बहादुरी के सांथ लड़ी और बाजबहादुर को युद्ध में हार का सामना करना पड़ा और रानी दुर्गावती की सेना की जीत हुई। युद्ध में बाजबहादुर की सेना को बहुत नुकसान हुआ। इस विजय के बाद रानी का नाम और प्रसिद्धी और अधिक बढ़ गई।
Rani Durgawati Balidan Diwas
रानी दुर्गावती और अकबर की लड़ाई
(Rani Durgavati and Akbar’s Battle)
1562 ईसवी में अकबर ने मालवा पर आक्रमण कर मालवा के सुल्तान बाजबहादुर को परास्त कर मालवा पर अधिकार कर लिया। अब मुगल साम्राज्य की सीमा, रानी दुर्गावती के राज्य की सीमाओं को छूने लगी थीं।वहीं दूसरी तरफ अकबर के आदेश पर उसके सेनापति अब्दुल माजिद खान ने रीवा राज्य पर भी अधिकार कर लिया। अकबर अपने साम्राज्य को और अधिक बढ़ाना चाहता था।
इसी कारण वह गोंडवाना साम्राज्य को हड़पने की योजना बनाने लगा। उसने रानी दुर्गावती को संदेश भिजवाया कि वह अपने प्रिय सफेद हांथी सरमन और सूबेदार आधार सिंह को मुगल दरवार में भेज दे। रानी अकबर के मंसूबों से भली भांति परिचित थी उसने अकबर की बात मानने से साफ इंकार कर दिया और अपनी सेना को युद्ध की तैयारी करने का आदेश दिया।
इधर अकबर ने अपने सेनापति आसफ खान को गोंडवाना पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया। जैसे ही मुगल सेना ने घाटी में प्रवेश किया रानी के सैनिकों ने उस पर धावा बोल दिया। लड़ाई में रानी की सेना के फौजदार अर्जुन सिंह मारे गये अब रानी ने स्वयं ही पुरुष वेश धारण कर युद्ध का नेतृत्व किया दोनों तरफ से सेनाओं को काफी नुकसान हुआ। शाम होते होते रानी की सेना ने मुगल सेना को घाटी से खदेड़ दिया और इस दिन की लड़ाई में रानी दुर्गावती की विजय हुई।
दो बार हारकर आसफ खान लज्जा और ग्लानी से भर गया। रानी दुर्गावती अपने राजधानी में विजयोत्स्व मना रही थी। उसी गढ़मंडल के एक सरदार ने रानी को धोखा दे दिया। उसने गढ़मंडल का सारा भेद आसफ खान को बता दिया। आसफ खान ने अपने हार का बदला लेने के लिए तीसरी बार गढ़मंडल पर आक्रमण किया। अपनी हार से तिलमिलाई मुग़ल सेना के सेनापति आसफ खान ने दूसरे दिन विशाल सेना एकत्र की और बड़ी-बड़ी तोपों के सांथ दुबारा रानी पर हमला बोल दिया।
रानी दुर्गावती भी अपने प्रिय सफ़ेद हांथी सरमन पर सवार होकर युद्ध मैदान में उतरीं। रानी के सांथ राजकुमार वीरनारायण भी थे रानी की सेना ने कई बार मुग़ल सेना को पीछे धकेला। कुंवर वीरनारायण के घायल हो जाने से रानी ने उन्हें युद्ध से बाहर सुरक्षित जगह भिजवा दिया।
युद्ध के दौरान एक तीर रानी दुर्गावती के कान के पास लगा और दूसरा तीर उनकी गर्दन में लगा। तीर लगने से रानी कुछ समय के लिये अचेत हो गई। जब पुनः रानी को होश आया तब तक मुग़ल सेना हावी हो चुकी थी। रानी के सेनापतियों ने उन्हें युद्ध का मैदान छोड़कर सुरक्षित स्थान पर जाने की सलाह दी परन्तु रानी ने इस सलाह को दरकिनार कर दिया। अपने आप को चारो तरफ से घिरता देख रानी ने अपने शरीर को शत्रू के हाँथ ना लगने देने की सौगंध खाते हुए अपने मान-सम्मान की रक्षा हेतु अपनी तलवार निकाली और स्वयं तलवार घोपकर अपना बलिदान दे दिया और इतिहास में वीरंगना रानी सदा-सदा के लिये अमर हो गई।
जिस दिन रानी ने अपना बलिदान दिया था वह दिन 24 जून 1564 ईसवी था। भारत के इतिहास में रानी दुर्गावती और चाँदबीबी ही ऐसी वीर महिलाएं थी जिन्होंने अकबर की शक्तिशाली सेना का सामना किया तथा मुगलों के राज्य विस्तार को रोका। अकबर ने अपने शासन काल में बहुत सी लड़ाईयां लड़ी किन्तु गढ़मंडल के युद्ध ने मुग़ल सम्राट के दांत खट्टे कर दिए।
Rani Durgawati Balidan Diwas
रानी दुर्गावती की समाधि
(Rani Durgavati Samadhi)
वर्तमान में जबलपुर जिले में जबलपुर और मंडला रोड पर स्थित बरेला के पास नारिया नाला वह स्थान है जहां रानी दुर्गावती वीरगती को प्राप्त हुईं थी। अब इसी स्थान के पास बरेला में रानी दुर्गावती का समाधि स्थल है। प्रतिवर्ष 24 जून को रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर लोग इस स्थान पर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
रानी दुर्गावती का सम्मान
(In Honar of Rani Durgavati)
रानी दुर्गावती के सम्मान में 1983 में जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय कर दिया गया।
भारत शासन द्वारा 24 जून 1988 रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर एक डाक टिकट जारी कर रानी दुर्गावती को याद किया।
जबलपुर में स्थित संग्रहालय का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर रखा गया।
मंडला जिले के शासकीय महाविद्यालय का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर ही रखा गया है।
इसी प्रकार कई जिलों में रानी दुर्गावती की प्रतिमाएं लगाई गई हैं और कई शासकीय इमारतों का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर रखा गया है।
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हेलो फ्रेंड्स, इमरती भारत की एक प्रसिद्ध मिठाई है। इमरती को ठंडा और गरम दोनों तरह से सर्व किया जाता है। यह मिठाई देश के हर छोटे-बड़े शहरों या गांव में मिल जाता है। यह एक गोलाकार मिठाई है इसको बनाने का तरीका एकदम जलेबी जैसा है। लेकिन स्वाद में यह जलेबी से बिल्कुल अलग है, क्योंकि जलेबी मैदा से बनता है और इमरती उड़द की दाल से।
इमरती को चाहे बच्चों हो या बड़े सभी पसंद करते हैं। यह सभी लोगों की पसंदीदा मिठाई है। इस मिठाई को बनाना बहुत ही आसान है। अगर आप इमरती बनाने की सोच रहे हैं तो आप घर पर इस तरीके से बिल्कुल आसानी से बना सकते हैं।
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हेल्लो दोस्तों योगासन सदियों से वैदिक संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। हमारे ऋषिमुनियों की ये देन योग रूपी दीपक, आज दुनिया के करोड़ों लोगो के जीवन को प्रज्जवलित करता है। सूर्य नमस्कार योगासनों का अद्भुत समन्वय है। सूर्य नमस्कार आसन (Surya Namaskar Asan) में 12 योग आसन है। जो हमारे शरीर एवं मन को प्रफुल्लित रखता है। तो आइए जानते हैं सूर्य नमस्कार आसन क्या है! यह कब?, क्यों? और कैसे किया जाता है?, जानिए संपूर्ण जानकारी।
सूर्य नमस्कार आध्यात्मिक, शारीरिक एवं मानसिक स्थिति को मजबूत करने के लिए किया जाने वाले योग के आसन है। सूर्य नमस्कार के 12 आसन हमारे मन को शांत एवं तन स्वस्थ रखने के लिए अति उत्तम योग माना जाता है। इसमें हम शरीर को सुडोल, निरोगी, स्वस्थ एवं मजबूत बनाने के लिए अलग-अलग प्रकार के व्यायाम करते हैं।
सूर्य नमस्कार एक रामबाण इलाज है। सूर्य नमस्कार करने के बाद हमें दूसरे किसी व्यायाम या योगासन करने की आवश्यकता नहीं है। इसे बाल, युवा, वृद्ध, स्त्री और पुरुष कोई भी कर सकता है। यदि हम अपने शरीर को निरोगी रखना चाहते है। शरीर को मजबूत और तेजस्वी देखना चाहता है। मन को हम हमारे वश में करना चाहते है, तो सूर्य नमस्कार अति उत्तम उपाय है। सूर्य नमस्कार को भारतीय संस्कृति में आराधना पद्धति भी कहा जाता है। सनातन हिन्दू धर्म में सूर्य को भगवान माना जाता है।
सूर्य नारायण के आदि-अनादि काल से अनंत उपकार इस सृष्टि पर है। सूर्य नारायण नित्य और नियमित अपनी कृपा का स्त्रोत्र प्रकाश के रूप में इस विश्व में फैला रहे है। सूर्य देव बिना थके बिना रुके सूर्योदय और सूर्यास्त की क्रिया से विमुख नहीं होते। भगवान सूर्य नारायण का निस्वार्थ प्रेम हमें वंदन करने के लिए, नमस्कार करने के लिए प्रेरणा देता है।
सूर्य नमस्कार से हम भगवान सूर्य देवता को कृतज्ञता पूर्वक वंदन करते है, नमन करते है और प्रणाम करते है। यही सूर्य नमस्कार है। सूर्य नमस्कार में कुल बारह (12 Steps) स्टेप्स और बारह मंत्र होते है। एक सूर्य नमस्कार में एक मंत्र का उच्चारण करके 12 स्टेप्स किये जाते है। इस बारह स्टेप्स में योगासनों की सभी मुद्रा का उपयोग होता है।
Surya Namaskar Asan
सूर्य नमस्कार श्लोक
Surya Namaskar Shlok
भगवान सूर्य नारायण की कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए हमारे शास्त्रों में कई श्लोक है। उन्हीं में से ये श्लोक, जिसका सूर्य आराधना में हम इस्तेमाल कर सकते हैं। इसे सूर्य नमस्कार से पहले हम सूर्य नारायण के लिए यह श्लोक बोल सकते हैं।
आदि देव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर। दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर दर्शनम।।
अर्थ – है आदिदेव सूर्य नारायण, आपको प्रणाम करता हूँ। हे भास्कर आप मुझ पर प्रसन्न हों। हे दिवाकर, हे प्रभाकर मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
आदित्यस्य नमस्कारान ये कुर्वन्ति दिने दिने। आयुः प्रज्ञा बलं वीर्य तेजस्तेषां च जायते।।
अर्थ – जो मानव प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करते है, उनका आयुष्य (आयु), प्रज्ञा (रौशनी), बल, वीर्य एवं तेजस्विता (तेज) बढ़ती है। साथ में हमारी त्वचा से जुड़े रोग दूर होते है।
सनातन हिन्दू संस्कृति में किसी भी मंत्र का विशेष महत्व है। मंत्र के दोनों शब्दों (मं+त्र) को अलग किया जाये तो, मन का अर्थ मनन होता है। और त्र का अर्थ शक्ति होता है। मन की शक्ति बढ़ाने के लिए किया जाने वाला जाप इसे मंत्र कहते है। सूर्य नमस्कार सिर्फ व्यायाम नहीं है। ये एक साधना पद्धति भी है। सूर्य नमस्कार मंत्र से हम भगवान सूर्य नारायण की आराधना कर सकते है। सूर्य नमस्कार आसन के दौरान बोले जाने वाले मंत्र से हमारी भावना जुड़ी होती है। इसके भाव और भक्ति से हमें शक्ति मिलती है। भगवान सूर्य नारायण के अनेक उपकार इस सृष्टि पर है। और सूर्य भगवान को प्रत्यक्ष देव माना जाता है। सूर्य नमस्कार के दौरान सूर्य नमस्कार मंत्र का उच्चारण अनिवार्य है।
सूर्य नमस्कार के मंत्र –
ॐ मित्राय नमः।
ॐ रवये नाम:।
ॐ सूर्याय नमः।
ॐ भानवे नमः।
ॐ खगाय नमः।
ॐ पूष्णे नमः।
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।
ॐ मरीचये नमः। (वा, मरीचिने नम: – मरीचिन् यह सूर्य का एक नाम है)
ॐ आदित्याय नमः।
ॐ सवित्रे नमः।
ॐ अकाय नमः।
ॐ भास्कराय नमः।
ॐ सवितृ सूर्यनारायण नमः।
सूर्य नमस्कार योगासनों का राजा है। योग के उत्तम 12 आसनों की एक माला है। वजन कम करना हो, वजन बढ़ाना हो, निरोगी रहना हो, जवान रहना हो, आयुष्य लम्बा रखना हो, तो हमें ये माला का जाप करना चाहिए।
सूर्य नमस्कार के सुझाव
Surya Namaskar Tips
सूर्य नमस्कार की शुरुआत करने से पहले सभी आसन एवं मंत्र का अभ्यास कर लेना चाहिए। यदि हमें इस आसन की सही जानकारी होगी तो हम अच्छी तरह से कर पाएंगे।
सूर्य नमस्कार सूर्योदय पश्चात् सूर्य नारायण के सुबह के किरणों में किया जाये तो उत्तम है। सुबह के सूर्य किरण कोमल एवं ऊर्जावान और हमारे स्वाथ्य के लिए अति लाभदायी है।
सूर्य नमस्कार के आसन की शुरुआत करने से पहले हल्का व्यायाम (warm up) करें।
सूर्य नमस्कार आसन के दौरान अपना चेहरा सूर्य देवता की तरफ रखना चाहिए।
सूर्य नमस्कार करने से पहले हमारा पेट खाली होना जरुरी है। भोजन के बाद एवं पानी का सेवन करके सूर्य नमस्कार नहीं करना चाहिए।
सूर्य नमस्कार के दौरान ढीले और आरामदायक कपड़ें ही पहनें। जो व्यायाम में डिस्टर्ब न करे।
सूर्य नमस्कार के आसन घास (लॉन) पर करें या जमीन है तो आसन बिछाकर करें।
सूर्य नमस्कार शरीर एवं मन दोनों की कसरत है। मन को एकाग्र रखने का प्रयास करें।
सूर्य नमस्कार करने के बाद थोड़ी देर आराम करे या थोड़ी देर शवासन की मुद्रा में रहे।
Surya Namaskar Asan
सूर्य नमस्कार के आसन
Surya Namaskar Asan
सूर्य नमस्कार योगासनों का समूह है। योग का कोई भी एक आसन विशिष्ट पद्धति से विशिष्ट लाभ के लिए किया जाता है। यहाँ प्रक्रिया एक ही है, पर आसान एक से अधिक है। सूर्य नमस्कार आसन 12 आसनों का समूह है। एक सूर्य नमस्कार में हम कुल 12 योग के आसन करते है। सूर्य नमस्कार के आसन के दौरान दोनों पैरों का बारी-बारी से इस्तेमाल होता है। यदि हम पहले दाहिने पैर से शुरुआत करें तो इसमें 12 आसन किये जाते है। एक पैर से 12 आसन करने के बाद हम आधी मंज़िल तक पहुंचते है।
एक सूर्य नमस्कार को पूर्ण करने के लिए हमें दाहिने के बाद बायें पैर का उपयोग करके 12 आसन करना होता है। हम दोनों पैर का उपयोग करके 12 -12 आसन करते है, तब एक सूर्य नमस्कार आसन का एक राउंड पूर्ण होता है। सूर्य नमस्कार के दौरान किये जाने वाले 12 आसनों के नाम नीचे दिये गए है। सभी आसनों का अलग महत्व है। सभी आसनों का महत्व भी जानना जरुरी है। सूर्य नमस्कार के सभी आसनों को क्रमबद्ध तरीके से करना जरुरी है। इसे हम आमतौर पर किया जाने वाला व्यायाम समझने की भूल न करें। सूर्य नमस्कार आसन हमारे ऋषि मुनियो द्वारा दी गयी अनमोल भेंट है।
सूर्य नमस्कार के 12 आसन
सूर्य नमस्कार में स्टेप्स का बहुत महत्व है। एक सूर्य नमस्कार आसन में 12 स्टेप्स होते है। कौन सा स्टेप्स कब करना है ? और कैसे करना है ? ये जानना बहुत जरुरी है। सही पद्धति से सभी स्टेप्स किया जाये तो इसका लाभ भी अच्छा रहता है। नीचे सूर्य नमस्कार की हर स्टेप्स (Surya Namaskar Poses) को बताया गया है। यहाँ से आप सभी Surya Namaskar Steps की विस्तार से जानकारी ले सकते हैं।
Sr. No.
Asan Surya Namaskar Asan in Hindi
Asan Surya Namaskar Asan in English
1
प्रणाम आसन
Pranamasana – The Prayer Pose
2
हस्तउत्तानासन आसन
Hasta Uttanasana – Raised Arms Pose
3
हस्तपाद आसन या पाद-हस्तानासन आसान
Padahastasana – Standing Forward Bend
4
अश्व संचालन आसन
Ashwa Sanchalanasana – Equestrian Pose
5
दंडासन
Dandasana – Staff (Stick) Pose
6
अष्टांग आसन (नमस्कार)
Ashtanga Namaskara – Eight Limbed pose or Caterpillar Pose
7
भुजंगासन आसन
Bhujangasana – Cobra Pose
8
पर्वत आसन
Parvat Aasan – Mountain Pose
9
अश्व संचालन आसन
Ashwa Sanchalan Asana – Equestrian Pose
10
हस्तपाद आसन
Hastapadasana – Standing Forward Bend (Hand to Foot Pose)
11
हस्तउत्थान आसन
Hasta Uttanasana – Raised Arms Pose
12
प्रणाम मुद्रा (ताड़ासन)
Pranamasana – The Prayer Pose (Mountain Pose)
1- प्रणाम आसन सूर्य नमस्कार स्टेप्स में सबसे पहला आसन प्रणाम आसन है। प्रणाम आसन करने के लिए सबसे पहले हमें एक साफ सुथरी जगह पसंद करके या बिछाना लगाकर खड़े हो जाना है। सूर्य नमस्कार आसन की शुरुआत के लिए मानसिक एवं शारीरिक तौर पर हमें तैयार होना है। हमारे दोनों पैर एक साथ एक लाइन में जोड़कर खड़े रहना है। शरीर को ढीला रखें, मन को एकाग्र करने का प्रयास करें। हमारे हाथ दोनों बाजु को ऊपर की तरफ उठाये और साँस अंदर लेते हुए सिर के ऊपर दोनों हाथो को एकत्र करें। अब दोनों हाथो के पंजे को एकत्र करें। इसके बाद साँस छोड़ते हुए दोनों हाथ अपनी छाती के सामने ले आएं। यह पोजीशन नमस्कार की बनती है। इसे Surya Namaskar Asan का पहला स्टेप्स प्रणाम आसन कहते हैं।
2- हस्त उत्तानासन हस्त उत्तानासन एक संस्कृत शब्द है। इसका अर्थ हाथ को ऊपर की तरफ उठाने वाला आसन होता है। ये आसन सूर्य नमस्कार आसन में दूसरे नंबर का आसन है। ये आसन की शुरुआत प्रणाम आसन के बाद होती है। प्रणाम आसन के बाद गहरा साँस लेते हुए दोनों हाथो को ऊपर की तरफ ले जाना है। हाथो को धड़ से पीछे की तरफ ले जाकर C आकर का कर्व बनाएं। हस्त उत्तानासन हमारे हाथ पैर, शरीर के ऊपर के हिस्से को असर करता है। छाती चौड़ी होती है। पीछे के मसल्स मजबूत होते है और पेट के स्नायु का झुकाव होता है।
3- हस्तपाद आसन या पाद-हस्तानासन आसान पाद हस्तासन को उत्तानासन भी कहा जाता है। उत्तानासन संस्कृत शब्द है उसका का अर्थ जोर से खिचाव होता है। सूर्य नमस्कार के तीसरे आसन में हस्त उत्तानासन से पाद हस्तासन की तरफ जाना है। इसमें साँस अंदर की तरफ खींचते हुए अपने दोनों हाथ को नीचे की तरफ लाना है। नीचे की तरफ झुकते हुए हो सके तो अपने हाथ के पंजे पैर के पंजो के समांतर में ले जाएं। यहाँ दर्द होने की संभावना रहती है। इसीलिए आप जहां तक कम्फर्ट समझो वहीं तक जाओ। सूर्य नमस्कार आसन के इस स्टेप में पैर से लेकर सिर तक पूरा हिस्सा प्रभावित होता है। पैर में घुटने की पीछे की नसें, पीठ का हिस्सा, गर्दन और मस्तिष्क सभी हिस्से प्रभावित होते है। सूर्य नमस्कार स्टेप्स करने में ये स्टेप्स लोगो को सबसे कठिन लगता है। ये स्टेप्स करने में घुटने की पीछे की नसों का खिचाव होता है।
4- अश्व संचालन आसन अश्व संचालन आसन का अर्थ है, घुड़सवार आसन। इस आसन को करते समय हमारी स्थिती घुडसवार की बन जाती है। पाद हस्तासन से आगे बढ़ते हुए अपने दोनों पैर में से एक को आगे ले जाना है। हमारी जांघ और पिंडी के बीच में 90 ‘ का एंगल बनाना जरुरी है। हमारा घुटना हमारी दाढ़ी के नीचे आएगा और हमारा सिर ऊपर की तरफ ले जाना है। गर्दन को मोड़ना है। हमारे दोनों हाथो को पैर के समान्तर रखना है। ये आसन हमारे हदय और फेफड़ो की क्षमता बढ़ाता है। इससे पाचन शक्ति बढ़ती है। हमारे स्किन की चमक बढ़ती है और शरीर का लचीलापन बढ़ता है। सूर्य नमस्कार स्टेप्स के दौरान किसी भी आसन में खुद पर ज्यादा दबाव न बनाये। हमारी रोज की प्रैक्टिस से ही हमारे शरीर को सुडोल बना सकते हैं।
5 – दंडासन सूर्य नमस्कार आसन का ये पाँचवा स्टेप्स है। इसमें अश्व संचालन की मुद्रा के बाद दंडासन की मुद्रा में जाना है। दंडासन में दोनों पैर पीछे ले जाना है। हमारे दोनों हाथ समांतर में है, ठीक उसी तरह दोनों पैर समांतर में रखना है। हमारे शरीर को सीधा रखे। दंड का व्यायाम आमतौर पर युवाओं द्वारा ज्यादा किया जाता है। ये सूर्य नमस्कार के 12 आसन में से एक मुद्रा है।
6 – अष्टांग आसन अष्टांग आसन में शरीर के आठ भाग धरती को छूते हैं, इसीलिए इसे अष्टांग आसन कहते है। दंडासन से अष्टांग आसन की और जाने के लिए सबसे पहले अपने घुटने को धीरे धीरे धरती की और ले जाएं। इसके बाद अपने मुँह और छाती को जमीन की और ले जाएं। हमारे दो पैर के पंजे, दो हाथ, दो घुटने, छाती एवं ठुड्डी को मिलाकर आठ भाग भूमि को स्पर्श करता है। ये आसन हमारे हाथ, पैर, बाहें, हथेलियां, घुटने एवं हिप्स को मजबूत करता है। वैदिक संस्कृति में यह आसान अपने गुरु एवं आराध्य देव को प्रणाम करने के लिए भी किया जाता था।
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7 – भुजंग आसन भुजंग आसन सूर्य नमस्कार आसन का सातवां आसन है। ये आसन खाली पेट ही करना चाहिए। 15 से 30 सेकंड तक यह आसन करने की अवधि है। ये आसन अष्टांग आसन के बाद का आसन है। इसलिए हमें अष्टांग आसन से भुजंग आसन की तरफ मोड़ना है। इसमें हाथ को सीधा करें और सिर को ऊपर की तरफ ले जाएं। इसमें शरीर का पूरा वजन हथेलियों पर आएगा। छाती को ऊपर ले जाना है। पेट और जांघ को जमीन के साथ रखना है। दोनों पैरो को साथ में रखना है। इस आसन में हमारी मुद्रा कोब्रा की तरह होती है। इस आसन से पांचन तंत्र मजबूत होता है। कमर के निचले हिस्से की स्ट्रेंथ बढ़ती है। अस्थमा एवं साइटिका जैसी बीमारी में राहत मिलती है। हदय की नसों को खोलने में मदद मिलती है और रीढ़ की हड्डी मजबूत बनती है।
8 – पर्वतासन सूर्य नमस्कार आसन में भुजंग आसान के बाद का आसन पर्वतासन है। भुजंग आसान के दौरान हमारा सिर ऊपर की तरफ था, उसे नीचे की तरफ लेना है। हाथ सीधा रखना है और हमारे शरीर के बीच का हिस्सा ऊपर की तरफ ले जाना है। इस आसान में हमारे शरीर से पर्वत का आकर निर्माण होता है। इसीलिए इसे पर्वतासन कहते है। इस आसान को हम 1 से 3 मिनिट तक कर सकते है। पैर की एड़िया को जमीन पर रखने की कोशिश करें। इससे नसों का खिचाव होगा, पर धीरे धीरे आदत बन जाएगी। पर्वतासन हमारे पेट एवं कमर के हिस्से की चर्बी कम करता है। पैर मजबूत होते है, और फेफड़ो की कार्यक्षमता अच्छी रहती है।
9 – अश्वसंचालन आसन अश्वसंचालन आसान हम चार नंबर पर कर चुके है। सूर्य नमस्कार आसन में यह आसन रिपीट होता है। यहां पर्वतासन से अश्वसंचान की तरफ जाना है। श्वास को अंदर की तरफ खींचना है। जो पैर हम ने चार नंबर के आसान के समय इस्तेमाल किया था, वही पैर का इस्तेमाल करना है। पीछे से पैर को अपनी मुँह के सामने लाना है। और घुटने को 90 का एंगल बनाना है। हाथ को सीधा रखना है। मुँह को ऊपर ले जाना है। घोड़े सवारी का पोज़ बनाना है।
10 – हस्तपादासन यहां अश्वसंचालन से हस्तपादासन की तरफ जाना है। सूर्य नमस्कार आसन में यह 10वाँ आसन है। दोनों पैर को समांतर में रखना है। अपने आप को नीचे की तरफ मोड़ना है। दोनों पैर को सीधा रखना है। सिर को दोनों पैर के बीच में घुटने तक ले जाना है। सूर्य नमस्कार में 03 नंबर और 10 नंबर का यह आसान अत्यंत लाभदायी है। इसमें पृष्ठ भाग की मासपेशियो की खिचाव होता है। रीड की हड्डी मजबूत होती है।
11- हस्तउत्थान आसन सूर्य नमस्कार स्टेप्स में 12 आसन होता है। हस्त उत्थान आसन 2 और 11 का आसन है। यहाँ हमें हस्तपादासन से हस्तउत्थान आसन की तरफ बढ़ना है। हमें सीधे खड़े होकर श्वास को अंदर लेते हुए हाथ को ऊपर की तरफ ले जाना है। अपने शरीर को कमर से पीछे की तरफ मोड़ना है। नियमित करने से इस आसन के अनेक लाभ है। इससे रीढ़ की हड्डी, पैर की मास्पेशियाँ, पेट की चर्बी दूर होती है।
12 – प्रणाम मुद्रा (ताड़ासन) ताड़ासन (तड़ासन) सूर्य नमस्कार आसन का ये आखरी स्टेप्स है। हस्त उत्तानासन से ताड़ासन में जाने की प्रक्रिया आसान है। पीछे की तरफ से थोड़ा आगे स्ट्रैट रहना है। हमारे दोनों पैर समान्तर रहना चाहिए और इसके बीच मे थोड़ी गैप रहनी चाहिए। दोनों हाथ ऊपर से जोड़ देना है। ताड़ासन हाथ की नसे, पैर, रीड की हड्डी को मजबूत करता है। ताड़ासन के बाद हम सूर्य नमस्कार के बीच में पहुंच जाते है। एक सूर्य नमस्कार पूर्ण करने के लिए कुल मिलाकर 24 आसन किया जाता है। यह आसान से शारीरिक एवं मानसिक संतुलन विकसित होता है।
Surya Namaskar Asan
इन बातों का रखें ध्यान
सूर्य नमस्कार आसन के साथ साधना भी है और एक व्यायाम भी है। ये हमें मानसिक एवं शारीरिक स्वस्थता प्रदान करता है। आज देश और दुनिया में लाखो लोग सूर्य नमस्कार करते है। सूर्य नमस्कार हम शरीर एवं मन के स्वास्थ्य के लिए करते हैं। पर कई परिस्थितियां ऐसी है कि, जिसमें सूर्य नमस्कार में ध्यान न दिया जाये तो ये हमें लाभ की जगह नुकसान कर सकता है। सूर्य नमस्कार करने से पहले कुछ विशेष बातों का ध्यान रखा जाता है।
1 – भूखे पेट सूर्य नमस्कार करना चाहिए सूर्य नमस्कार करने से पहले ध्यान रहे की हमें यह भूखे पेट करना है। हमें कुछ खाना खाकर या पानी पीकर सूर्य नमस्कार नहीं करना चाहिए। इसे हमारे पांचन तंत्र पर ख़राब असर पड़ सकता है। खाना खाने के बाद हमारी पाचन क्रिया स्टार्ट हो जाती है। हमारा सबसे ज्यादा एनर्जी वहां खर्च होती है। ऐसे में हमारी शारीरिक कसरत शरीर के ब्लड सर्कुलेशन को असर करता है। दूसरा खाने के बाद शारीरिक श्रम करना, आसन करना, योग करना अनुचित है । क्योंकि हमारा शरीर ही इसके लिए तैयार नहीं होता। यदि हम यह करेंगे तो, हम पूर्ण उत्साह के साथ नहीं कर पाएंगे। इसीलिए हमें खाली पेट करना चाहिए।
2- सूर्य नमस्कार प्रक्रिया के दौरान पानी नहीं पीना चाहिए जब हम सूर्य नमस्कार करते है, तो एक तरह से पूरा शरीर श्रम करता है। हमारे शरीर का तापमान बढ़ जाता है। हमारे ब्लड का सर्कुलेशन बढ़ जाता है। एक तरह से ये हमारे शरीर में शक्ति सिंचन की प्रक्रिया है। पीने का पानी का तापमान कम होता है। यदि सूर्य नमस्कार के बीच मे हम पानी का सेवन करते हैं, तो यह पानी हमारे शरीर के तापमान को डाउन कर देता है। सूर्य नमस्कार प्रक्रिया (Surya Namaskar Steps) के द्वारा जिस एनर्जी संचालन की प्रक्रिया होती है, उसे यह विपरीत दिशा में ले जाता है। इसीलिए सूर्य नमस्कार के दौरान हमें पानी पीने से परहेज करना चाहिए।
3- सूर्य नमस्कार आसन जल्दी-जल्दी नहीं करना है। सूर्य नमस्कार करने की एक पद्धति है। इसके सभी स्टेप्स एक सिस्टम के तहत होने चाहिए। सूर्य नमस्कार के 12 आसान है। सभी आसनों को पर्याप्त समय मिलना चाहिए। कई बार बहुत ज्यादा सूर्य नमस्कार करने के चक्कर में हम सभी आसनों को पर्याप्त समय नहीं दे पाते हैं। तो कई बार समय की कमी के चलते Surya Namskar Steps जल्दी-जल्दी करने लगते है। कई बार लोग झटके मार कर जल्दी-जल्दी सूर्य नमस्कार करते हैं। सूर्य नमस्कार व्यायाम एक साधना है, इसे जल्दबाजी में करने से न हम साधना कर पाते है और नहीं व्यायाम। जल्दबाजी में करने से लाभ से ज्यादा नुकसान है। इसीलिए हमें सूर्य नमस्कार योग पर्याप्त समय देकर करना चाहिए।
4- सूर्य नमस्कार स्टेप की संपूर्ण जानकारी होना जरुरी है। अधूरा ज्ञान कहीं पर भी मुसीबत खड़ी कर सकता है। यहाँ हम सूर्य नमस्कार की बात कर रहे है, जो हमारे तन और मन को स्वस्थ रखता है। मानसिक एवं शारीरिक स्थिति को मजबूती प्रदान करता है। पर यदि इसे सही तरीके से न किया जाये तो हम अपने शरीर को नुकसान भी पहुंचा सकते है। सूर्य नमस्कार स्टेप्स आज सोशल मीडिया पर उपलब्ध है। सूर्य नमस्कार से जुड़ी संपूर्ण जानकारी आपको यू टब से भी मिल सकती है। जिसमे सूर्य नमस्कार के 12 steps कैसे किया जाता है, इसकी संपूर्ण जानकारी होती है। सूर्य नमस्कार का हर एक आसान का विशेष महत्व और लाभ है। भगवान सूर्य नारायण की साधना के नजरिये से सूर्य नमस्कार मंत्र को जानना जरुरी है। और शरीर की पुष्ट के लिए 12 आसान जानना जरुरी है। सूर्य नमस्कार के सही लाभ के लिए हमें सम्पूर्ण जानकारी के साथ करना चाहिए। सूर्य नमस्कार सिर्फ व्यायाम नहीं है, पर भगवान सूर्य नारायण के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक जरिया है। जो अपने तन और मन को स्वस्थ रखता है और भगवान में विश्वास पैदा करता है।
5- अनियमित सूर्य नमस्कार कर सकता है नुकसान किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, सिद्धि के लिए निरंतर और नित्य प्रयास जरुरी होते है। हमारी नियमितता ही हमें मंज़िल तक पहुंचा सकता है। नित्य और नियमित साधना एक तप बन जाता है। किसी भी कार्य में अनियमितता हमें लाभ नहीं पहुँचता, बल का नुकसान कर सकता है। यदि हम नित्य सूर्य नमस्कार करते हैं तो, हमारा शरीर और मन एक गति से मजबूती की तरफ बढ़ता है। हमारे शरीर को आदत हो जाती है। पर यदि हम इसे नियमित नहीं करते तो कही न कही हम अपने आप को नुकसान पहुंचाते है। व्यायाम में यदि ब्रेक लगता है तो शरीर ढीला हो जाता है और शरीर में फ्लेक्सिबिलिटी नहीं रहती। जब फिरसे स्टार्ट करते है तो हमारे मसल्स और शरीर दर्द करने लगते है। Surya Namaskar Benifit के लिए हमें ये नियमित करना चाहिए।
6- हमारी क्षमता के अनुसार सूर्य नमस्कार करे मनुष्य का मन चंचल होता है। कई बार हम आवेश में आकर कोई भी काम हमारी क्षमता से ऊपर कर देते है। बाद मे उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। सूर्य नमस्कार के आसन हमें शारीरिक स्वस्थता प्रदान करता है। सूर्य नमस्कार स्टेप्स हमारे पूरे शरीर के स्नायु को असर करता है। इसलिए इसकी शुरुआत कम से करनी चाहिए और धीरे धीरे इसकी संख्या बढ़ाना चाहिए। शुरुआत में हमारा शरीर दर्द कर सकता है, पर रोजाना की क्रिया में शामिल होने के बाद ये नित्यक्रम बन जाता है। शुरुआत में सूर्य नमस्कार के लाभ सुनकर कई लोग आवेश में आ जाते है। इसे शरीर की क्षमता के ऊपर जाकर करते हैं। जिससे यह हमारे शरीर के लिए नुकसान कारक साबित हो सकता है। और बीमार भी कर सकती है।
7- सूर्य नमस्कार के दौरान श्वासो श्वास की प्रक्रिया पर ध्यान दे । सूर्य नमस्कार में श्वास की क्रिया का बहुत महत्व है। गहरी सांस लेना और छोड़ना ये योग की प्रक्रिया है। इससे शरीर के अंदर की मांसपेशिया प्रभावित होती है। लम्बे श्वास के दौरान शुद्ध ऑक्सीज़न शरीर की कोशिकाओं तक पहुँचता है। और स्वास निकलते समय कार्बन डायोक्साइड बाहर निकलता है। सूर्य नमस्कार आसन के दौरान इस प्रक्रिया से हमारा मन एकाग्र रहता है। शांति की अनुभूति करता है। इसलिए कब श्वास को अंदर लेना है, कब बाहर निकालना है, इसे अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए। और इसी प्रकार से सूर्य नमस्कार आसन की श्वास की प्रक्रिया करनी चाहिए।
सूर्य नमस्कार के लाभ
Benefits Of Surya Namaskar
सूर्य नमस्कार एक नित्य नियमित किया जाने वाला व्यायाम है। ये हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रदान करता है। सूर्य नमस्कार से दौरान श्वासो की क्रिया हमारे शरीर को बेहतर बनाती है। सूर्य नमस्कार के 12 आसान से हमारी पेट की मासपेसियां मजबूत होती है। इसे नित्य और निरंतर किया जाये तो पेट का मोटापा दूर होता है और चर्बी कम होती है। सूर्य नमस्कार के 12 स्टेप्स में पूरे शरीर का व्यायाम हो जाता है। इससे पूरा शरीर लचीला एवं कोमल बनता है। सूर्य नमस्कार के व्यायाम से बुढ़ापा जल्दी नहीं आता। रोजाना जीवन में सूर्य नमस्कार हमें लम्बे समय तक जवान रखता है। इसको करने से हमारा शरीर स्फुर्तीला रहता है। बढ़ा हुआ वजन कम करने में सूर्य नमस्कार रामबाण इलाज है। नियमित रूप से सूर्य नमस्कार किया जाये तो हम आसानी से वजन कम कर सकते है।
स्त्रियों के लिए के लिए सूर्य नमस्कार विशेष लाभदायी होता है। मासिक धर्म में अनियमितता या दर्द सूर्य नमस्कार से दूर होता है। निरंतर करने से संतान को जन्म देते समय का दर्द कम होता है। सूर्य नमस्कार से हमारे फेफड़े मजबूत होते है। सूर्य नमस्कार के दौरान स्वसन क्रिया की एक पद्धति है। इस पद्धति से श्वास लेना छोड़ना ये सूर्य नमस्कार का हिस्सा है। इससे स्वच्छ ऑक्सीज़न मिलता है और कार्बन डाईऑक्साइड बाहर निकलता है। पेट से जुड़ी समस्या जैसे अपच, कब्ज दूर होती है। सूर्य नमस्कार से पांचन तंत्र मजबूत बनता है। शांत चित एवं एकाग्रता से सूर्य नमस्कार हमारी स्मरण शक्ति को बढ़ाता है। हमारे तन और मन को प्रफुलित रखता है। सूर्य नमस्कार रूपी योग हमारे हदय, त्वचा, लीवर, गला एवं पीठ की हड्डी सभी को असर करता है और इसे स्वस्थ एवं मजबूत रखता है।
Surya Namaskar Asan
किसे नहीं करना चाहिए
सूर्य नमस्कार 12 असानो की योग पद्धति है। इससे शारीरिक एवं मानसिक दोनों तरह के व्यायाम होते है। इसे हमारे शरीर एवं हमारी मौजूदा परिस्थिति को ध्यान में रखकर किया जाता है। तो आइए जानते हैं सूर्य नमस्कार किस हालात में नहीं करना चाहिए, किसे परहेज करना चाहिए।
सूर्य नमस्कार एक शारीरिक व्यायाम है। इसे करने के लिए हमारा शरीर स्वस्थ होना चाहिए। हम बीमार है या तबियत ठीक नहीं है तो सूर्य नमस्कार नहीं करना चाहिए।
प्रेगनेंसी के तीन महीने के बाद सूर्य नमस्कार के योग करना ठीक नहीं है क्योंकि सूर्य नमस्कार में पेट से जुड़ी कसरत की जाती है। जो पेट में पल रहे बालक के लिए ठीक नहीं है।
ब्लड प्रेसर से जुड़ी समस्या है तो सूर्य नमस्कार करने से पहले डॉक्टर की राय लेना जरुरी है। शारीरिक कसरत हमारे BP को बढ़ाता है। इसीलिए इससे जुड़ी समस्या है तो सूर्य नमस्कार नहीं करना चाहिए।
हमारी हाथ की कलाई में या हाथ में कोई प्रॉब्लम है तो, ऐसे वक्त सूर्य नमस्कार नहीं करना चाहिए। क्योंकि हमारे सम्पूर्ण शरीर का वजन हमारे हाथ पर रहता है, ऐसे में हमारी समस्या बढ़ सकती है।
मासिक धर्म के दौरान सूर्य नमस्कार नहीं करना चाहिए क्योंकि यह एक उपासना भी है और ऐसी स्थिति में स्त्रियों को आराम करने की सलाह दी जाती है।
हमारे शरीर में किसी तरह की इंजरी या पीठ दर्द है तो, डॉक्टर की सलाह के बिना सूर्य नमस्कार नहीं करना चाहिए।
हदय सम्बन्धी कोई बीमारी है तो, सूर्य नमस्कार करने से पहले डॉक्टर या फिर योग शिक्षक की सलाह जरूर लें क्योंकि हदय की गंभीर बीमारियां शारीरिक कसरत में परेशानी पैदा करती है।
सूर्य नमस्कार खाली पेट किया जाता है। हम रोज जिम (व्यायाम शाला) में जाते हुए बहुत लोगो को देखते है। व्यायाम के महंगे सामान मंगवाते है। पैसे देकर व्यायाम करते है। इन सबमे सबसे उत्तम सूर्य नमस्कार है।
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हेल्लो दोस्तों लोगों की ज़िन्दगी में योग का खास महत्व है और बीते कुछ सालों में दुनियाभर में इसे अपनाने वालों की संख्या में बड़ा इजाफा हुआ है। आप सभी को योग का महत्व जानना चाहिये और उसे अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहिये। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को मनाने का प्रस्ताव रखा था।
भारत की पहल से ही योग दिवस संपूर्ण विश्व में मनाया जाता है। 21 जून, 2022 को विश्व स्तर पर 8 वें ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ (International Yoga Day) का आयोजन किया जाएगा। तब से हर साल अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (International Day of Yoga) मनाया जाता है। यह दिन साल का सबसे लंबा दिन होता है | लंबी उम्र के लिए योग करना बेहद जरूरी है।
योग एक ऐसी क्रिया है जिसमें व्यक्ति योग शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अभ्यास करता है योग कि उत्पत्ति भारत में हुई थी। जिसका वर्णन हमारे वेदों में भी किया गया है। तो आज इस संस्करण में हम अंतराष्ट्रीय योग दिवस, योग का महत्व एवम कुछ महत्वपूर्ण आसनों के बारे में जानेंगे।
भगवान शिव को योग का जनक माना जाता हैं। इसलिए भगवान शिव को आदियोगी भी कहा जाता हैं। भारतीय पौराणिक ग्रंथों के अनुसार योग का ज्ञान सबसे पहले ब्रम्हा जी ने सूर्य को दिया था। हिंदु धर्म ग्रंथों के अनुसार योग की उत्पत्ति ब्रम्हा जी ने की थी। इसके बाद सूर्य ने योग का ज्ञान नारद मुनि को दिया नारद मुनि ने योग का ज्ञान पृथ्वी पर मनु को दिया। इसके बाद धीरे धीरे योग का प्रचार और प्रसार शुरू हो गया । भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद गीता में अर्जुन को भी विभिन्न प्रकार के योग करने की सलाह दी है।
International Yoga Day
भगवद गीता में योग के 18 प्रकार बताए गए हैं। महर्षि पतंजलि ने योग के ऊपर योगसूत्र नाम से एक पुस्तक लिखी हैं। ऐसी मान्यता है कि यह पुस्तक 2200 वर्ष पूर्व लिखी गई थी। महर्षि पतंजलि ने योग को योगशास्त्र बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई। इसलिए महर्षि पतंजलि को योगशास्त्र का पिता कहा जाता हैं।
योग क्या है ?
योग एक ऐसी अध्यात्मिक प्रक्रिया है, जिसके प्रयोग मात्र से व्यक्ति के शरीर, मन, आत्मा को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है। इस शब्द कि प्रक्रिया, हिन्दू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म में ध्यान से घनिष्ठ संबंध रखती है। योग शब्द, भारत से बौद्ध धर्म के माध्यम से चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया और श्री लंका में पूर्व से ही प्रचलित है। वर्तमान में योग शब्द से ऐसा कोई व्यक्ति ही होगा जो इससे परिचित ना हो।
योग प्राचीन हिन्दू सभ्यता का वह मार्ग है, जो अनादि काल से मनुष्य को, मन और शरीर को स्वस्थ रखने के साथ-साथ आध्यात्म की पराकाष्ठा पर पहुंचा सकता है। योग के प्रचार-प्रसार में योग गुरुओं का काफी योगदान है, जिनमें से अयंगार योग के संस्थापक बी के एस अयंगर और योग गुरु रामदेव बाबा रामदेव मुख्य: शामिल हैं।
योग दिवस कब शुरू हुआ ?
अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष 21 जून को मनाया जाता है। यह दिन वर्ष का सबसे लम्बा दिन होता है और योग भी मनुष्य को दीर्घ जीवन प्रदान करता है। पहली बार यह दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया, जिसकी पहल भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नें 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण से की थी। जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की 193 सदस्यों की बैठक में अंतराष्ट्रीय स्तर पर योग दिवस के लिए हामी भर दी और 21 जून को अंतराष्ट्रीय योग दिवस नाम दिया गया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने अपने भाषण में कहा की :- “योग भारत की प्राचीन परम्परा का एक अमूल्य उपहार है यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है। मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है। विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला है तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को भी प्रदान करने वाला है। यह व्यायाम के बारे में नहीं है, लेकिन अपने भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति की खोज के विषय में है। हमारी बदलती जीवन-शैली में यह चेतना बनकर, हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सकता है। तो आयें एक अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस को गोद लेने की दिशा में काम करते हैं।” – प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
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पहला कब मनाया गया
पहला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून, 2015 को दुनिया भर में मनाया गया था। भारत में इस दिवस को मनाने की पूरी जिम्मेदारी भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा की गयी थी। भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 35 मिनट के इस कार्यक्रम में 21 आसनों का प्रदर्शन करते हुए दिल्ली के राजपथ पर योग किया था जिसमे लगभग 35,985 (लगभग 36000) लोगों सहित 84 देशों के गणमान्य व्यक्तियों ने हिस्सा लिया था। इस घटना को गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स में भी दर्ज किया गया है। इस गिनीज पुरस्कार को आयुष मंत्रालय की ओर से श्रीपद येसो नाइक ने ग्रहण किया था।
NCC कैडेट्स ने कई स्थानों पर प्रदर्शन करके “एकल वर्दीधारीयुवा संगठन द्वारा एक साथ सबसे बड़ा योग प्रदर्शन” के लिए लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में प्रवेश किया। राम देव जी ने भी 35 मिनिट का एक विशेष कार्यक्रम बनाया, जिसे उन्होंने अन्तराष्ट्रीय योग दिवस के दिन सभी के लिए किया।
योग दिवस थीम
हर साल की तरह इस साल भी International Yoga Day की थीम रखी गयी है और इस साल यानि की 2022 की थीम है “Focus on the benefits of yoga during” यानि की “योग के लाभों पर ध्यान दें”।
वर्ष 2022 का थीम
Focus on the benefits of yoga during (योग के लाभों पर ध्यान दें)
वर्ष 2021 का थीम
स्वास्थ्य के लिए योग (Yoga for well-being)
वर्ष 2020 का थीम
घर पर योग, परिवार के साथ योग (Yoga at Home and Yoga with Family)
वर्ष 2019 का थीम
योगा फॉर हार्ट (Yoga for Heart)
वर्ष 2018 का थीम
शांति के लिए योग (Yoga for Peace)
वर्ष 2017 का थीम
स्वास्थ्य के लिए योग (Yoga for Health)
वर्ष 2016 का थीम
युवाओं को कनेक्ट करें (Connect the youth)
वर्ष 2015 का थीम
सद्भाव और शांति के लिए योग (Yoga for Harmony and Peace)
21 जून को ही क्यों ?
एक साक्षात्कार में दिल्ली की एक छात्रा के एक सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा कि बहुत लोग पूछ रहे है कि 21 जून को ही अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के लिए क्यों चुना गया। उन्होंने कहा, “आज मैं पहली बार इसका खुलासा करता हूं। सूर्य पृथ्वी पर ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है। यह दिन हमारे भूभाग में सबसे बड़ा दिन होता है। हमें उस दिन सबसे ज्यादा ऊर्जा मिलती है। यही कारण है कि उस दिन का सुझाव दिया गया था।”
योग दिवस का लोगो
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के लोगो को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सावधानी से चुना गया था और यह उन सभी प्राथमिक तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है जो योग की बुनियादी चेतना को बनाते हैं।
लोगो को एक सफेद पृष्ठभूमि पर उकेरा गया है और यह हाथों की एक जोड़ी का प्रतिनिधित्व करता है जो शरीर से बाहर की ओर फैले हुए हैं और जुड़े हुए हैं।
दोनों हाथों का मिलन सार्वभौमिक चेतना और व्यक्तिगत चेतना के मिलन का प्रतिनिधित्व करता है। यह किसी भी योगी के अंतिम उद्देश्य, शरीर, मन और आत्मा के पूर्ण सामंजस्य का प्रतीक है।
मानव कला रूप के नीचे भूरे और हरे पत्तों के दो जोड़े हैं जो मिट्टी और प्रकृति के तत्वों का प्रतीक हैं।
नीली आकृति जल तत्व का प्रतीक है। सिर के ऊपर नारंगी प्रभामंडल अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है जो सभी ऊर्जा का स्रोत है और सर्वोच्च स्थान पर हावी है।
आकृति के पीछे पृथ्वी की एक छवि है, जो एकजुटता और एकता का प्रतीक है, जो नरेंद्र मोदी प्रशासन में मुख्य अभिनेताओं में से एक है।
लोगो के नीचे “सद्भाव और शांति के लिए योग” शब्द उत्कीर्ण है, जिसे योग का सार माना जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का लोगो समाज के सभी क्षेत्रों की भागीदारी बढ़ाने के लिए एक सार्वजनिक प्रतियोगिता के माध्यम से चयन करने के बाद नई दिल्ली स्थित पंचतत्व विज्ञापन के 18 सदस्यों की एक टीम द्वारा बनाया गया था। लोगो की आधिकारिक तौर पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और नई दिल्ली में राज्य मंत्री आयुष श्रीपद येसो नाइक द्वारा घोषणा की गई।
योग दिवस का उदेश्य
योग को प्राचीन भारतीय कला का एक प्रतीक माना जाता है। भारतीय योग को जीवन में सकारात्मकता और ऊर्जावान बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं। इस दिन को मनाने का उद्देश्य योग के प्रति लोगों में जागरुकता पैदा करने के साथ लोगों को तनावमुक्त करना भी है।
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महत्वपूर्ण योगासन के नाम
अब हम आपको कुछ योग के महत्वपूर्ण असानो और वे कैसे किये जाते है के बारे में बताने जा रहे है :-
ताड़ासन :- इसमें सीधे खड़े होकर धीरे- धीरे अपना पूरा वजन पंजे पर डालते हैं और एड़ी को उपर उठाते हैं। इस स्थिती को दौहरता हैं और इसी स्थिती में कुछ देर खड़े रहते हैं इसे होल्ड करना कहते हैं।
पादहस्तासन :- सीधे खड़े होकर आगे की तरफ झुकते हैं और घुटने मोड़े बिना अपने पैरो के अंगूठे छूते हैं। इसके बाद अपने सिर को जन्घो पर टच करने की कोशिश करते हैं।
शीर्षासन :- इसमें सिर के बल पर खड़ा हुआ जाता हैं।
त्रिकोणासन :- इसमें सीधे खड़े होकर पैरो के मध्य कुछ जगह की जाती हैं. कमर से नीचे की तरफ झुकते हैं साथ ही बिना घुटने मोड़े सीधे हाथ से उलटे पैर के पंजे को एवम उलटे हाथ से सीधे पैर के पंजे को स्पर्श करते हैं।
वज्रासन :- दोनों पैरो को मोड़ कर, रीढ़ की हड्डी को सीधा रख कर अपने हाथों को घुटनों पर रखते हैं।
शलभासन :- इसमें पेट के बल लेता जाता हैं एवम हाथो और पैरो को सीधे हवा में खोल कर रखा जाता हैं।
धनुरासन :- इसमें पेट के बल पर लेट कर हाथो से पैरो को पकड़ा जाता हैं। एक धनुष का आकार बनता हैं।
चतुरङ्गदण्डासन :- इसमें उलटा लेट कर अपने हाथ के पंजो एवम पैर की उँगलियों पर शरीर का पूरा बैलेंस बनाया जाता हैं।
भुजङ्गासन :- इसमें उल्टा लेट कर पेट, जांघ, घुटने एवम पैर के पंजे सभी जमीन पर होते हैं और शरीर के आगे का हिस्सा हाथों के बल पर उपर की तरह उठाया जाता हैं। इसमें हाथ की कोहनी थोड़ी सी मुड़ी हुई होती हैं।
योग के फायदे क्या है ?
अब हम आपको योग से होने वाले फायदों के बारे में बताने जा रहे है। रोजाना योग करने के बहुत से फायदे होते है जैसे की :-
फिटनेस अच्छी रहती है।
शरीर स्वस्थ रहता हैं।
वजन कम होता हैं।
चिंता का भाव कम होता हैं।
मानसिक शांति।
मनोबल बढ़ता हैं।
प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती हैं।
जीवन के प्रति उत्साह बढ़ता है।
उर्जा बढ़ती हैं।
शरीर लचीला बनता हैं।
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योग का महत्त्व
योग को प्राचीन भारतीय कला के एक प्रतीक के रूप में देखा जाता है। जीवन को सकारात्मक और ऊर्जावान बनाए रखने में योग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बीते वर्ष जब कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से संपूर्ण विश्व त्रस्त था ऐसे समय में भी लोग अनुलोम-विलोम, प्राणायाम जैसी योग-विधियों के माध्यम से अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा रहे हैं। इसके अलावा शरीर के किसी हिस्से में दर्द हो या फिर मानसिक तनाव इन सभी को बिना किसी नकारात्मक प्रभाव के ठीक करने में योग एक बेहतर विकल्प है, जिसे संपूर्ण विश्व विश्व द्वारा स्वीकारा जा रहा है। आधुनिक समय में तनाव को दूर करने में यह रामबाण दवा है।
दुनियाभर के कईं देशों में योग को जीवन का श्रृंगार माना जाता है। यूनिसेफ का कहना है कि बच्चे बिना किसी जोखिम के कई योगासन का अभ्यास कर सकते हैं और वयस्कों के समान लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इन लाभों में लचीलापन और फिटनेस, दिमागीपन और विश्राम में वृद्धि शामिल है।
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हेल्लो दोस्तों नवरात्रि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. हिंदू पंचांग के अनुसार साल में 4 बार नवरात्रि पर्व मनाने की परंपरा है। जो क्रमशः पौष, चैत्र, आषाढ़ और आश्विन में पड़ती है, इनमें से दो गुप्त नवरात्रि (Gupt Navratri Kab Aate Hain) कहलाती है। पहली नवरात्रि चैत्र मास में आती है जो प्रकट नवरात्रि कहलाती है, इसका आरंभ गुड़ी पड़वा से होता है और इसी दिन से हिंदू नवर्ष की शुरूआत भी होती है।
दूसरी नवरात्रि आषाढ़ मास में आती है जो गुप्त नवरात्रि कहलाती है। तीसरी नवरात्रि आश्विन मास में आती है, जिसमें गरबा आदि के माध्यम से देवी मां की आराधना की जाती है। साल की अंतिम नवरात्रि माघ मास में आती है, ये भी गुप्त नवरात्रि कहलाती है। गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है।
आषाढ़ का महीना हिंदू कैलेंडर का चौथा महीना होता है। इसकी शुरुआत 15 जून, बुधवार से शुरू हो चुकी है, जो 13 जुलाई, बुधवार तक रहेगा। गुप्त नवरात्रि के दौरान मां काली, मां तारा, त्रिपुर सुंदरी, मां भुवनेश्वरी, मां भैरवी, मां छिन्नमस्ता, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मां मातंगी और मां कमला की पूजा की जाती है।
आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि 30 जून से शुरू होकर 9 जुलाई तक रहेगी। इस बार तिथि क्षय व अधिक न होने से गुप्त नवरात्रि पूरे 9 दिन की ही रहेगी। गुप्त नवरात्रियों में साधू संन्यासी, अघोरी और तांत्रिक ध्यान और साधना करके दिव्य शक्तियां प्राप्त करते हैं। इसमें माता रानी की गुप्त तरीके से पूजा करने का विधान है।
Ashadha Gupt Navratri Vrat
विषयसूची :
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि शुभ मुहूर्त
Ashadha Gupt Navratri Shubh Muhurt
गुप्त नवरात्रि तिथि (उदयातिथि होने के कारण) – 30 जून 2022, दिन गुरुवार
गुप्त नवरात्रि प्रतिपदा तिथि प्रारंभ – 29 जून 2022, बुधवार को सुबह 8 बजकर 21 मिनट से
गुप्त नवरात्रि प्रतिपदा तिथि समाप्त – 30 जून 2022, गुरुवार सुबह 10 बजकर 49 मिनट तक
घट स्थापना का शुभ मुहूर्त – 30 जून 2022, गुरुवार को सुबह 05 बजकर 26 मिनट से 06 बजकर 43 मिनट तक
अभिजित मुहूर्त – 30 जून 2022, गुरुवार को सुबह 11 बजकर 57 से 12 बजकर 53 मिनट तक।
गुप्त नवरात्रि क्या है
What Is Gupt Navratri
यह नवरात्रि चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्री से कई मायनों में अलग है। वैसे तो इस नवरात्रि साधक गुप्त साधना कर सकते हैं, लेकिन इस नवरात्रि की साधना संत और साधु समाज खास तौर पर करता है। इस दिन अघोरी और तांत्रिक समाज 9 दिन तक तंत्र शक्ति को जागृत करने के लिए देवी की 10 महाविद्याओं का आह्वान करते हैं। इस नवरात्रि में मां काली के रुपों की पूजा का विधान है। जबकि शारदीय और चैत नवरात्रि में मां दुर्गा के रुप की पूजा की जाती है। इसे गृहस्थ वर्ग भी धूमधाम से करते हैं।
आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि में तंत्र-मंत्र से देवी की उपासना की जाती है। यह समय शाक्त (महाकाली की पूजा करने वाले) एवं शैव (भगवान शिव की पूजा करने वाले) के लिए विशेष होता है। गुप्त नवरात्रि में संहार करने वाले देवी-देवताओं के गणों एवं गणिकाओं अर्थात भूत-प्रेत, पिशाच, बैताल, डाकिनी, शाकिनी, खण्डगी, शूलनी, शववाहनी, शवरूढ़ा आदि की साधना की जाती है। इसके साथ ही पंच मकार (मद्य (शराब), मछली, मुद्रा, मैथुन, मांस) की साधना भी इसी नवरात्रि में की जाती है।
क्यों मनाते हैं गुप्त नवरात्रि
Gupt Navratri Kyo Manate Hain
तंत्र साधना के लिए गुप्त नवरात्रि अति महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। हिन्दू मान्यता के अनुसार जिस समयावधि में भगवान विष्णु का शयनकाल होता है। उस समयावधि में देवताओं की शक्तियां कमजोर होने लगती हैं और पृथ्वी पर यम, वरुण आदि का प्रकोप बढ़ने लग जाता है। तब पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों की विपदाओं और विपत्तियों से रक्षा के लिए गुप्त नवरात्रि में आदि शक्ति माँ दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती है। गुप्त नवरात्रि के दिनों में माँ दुर्गा पूजा अर्चना करने से बड़ा पुण्य प्राप्त होता है।
कुछ साधक विशेष गुप्त सिद्धियाँ और शक्ति को पाने के लिए गुप्त नवरात्रि में तंत्र साधना करते हैं। वो देवी माँ को प्रसन्न करने के लिए समस्त प्रकार से प्रयास करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गुप्त नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती पाठ, दुर्गा सहस्त्रनाम और दुर्गा चालीसा का पाठ शुभ फलदायी होता है। गुप्त नवरात्रि का अनुष्ठान संतान प्राप्ति और शत्रु पर विजय दिलाने वाला है।
Ashadha Gupt Navratri Vrat
इन देवियों की पूजा होती है
Gupt Navratri Me Kiski Pooja Hoti Hai
पुराणों के अनुसार गुप्त नवरात्रि में भगवान शिव और माँ काली की पूजा करने का विधान है। गुप्त नवरात्रि में 10 देवियों की पूजा की जाती है। उनमें माँ काली, भुवनेश्वरी माता, त्रिपुर सुंदरी, छिन्न माता, बगलामुखी देवी, कमला देवी, त्रिपुर भैरवी माता, तारा देवी, धूमावती माँ, और मातंगी देवी हैं।
गुप्त नवरात्रि की तिथियां
Ashadha Gupt Navratri Dates
30 जून, गुरुवार- प्रतिपदा तिथि – घटस्थापना और मां शैलपुत्री की पूजा
01 जुलाई, शुक्रवार- द्वितिया तिथि – मां ब्रह्मचारिणी पूजा
02 जुलाई, शनिवार- तृतीया तिथि – मां चंद्रघंटा की पूजा
03 जुलाई, रविवार- चतुर्थी तिथि – मां कूष्मांडा की पूजा
04 जुलाई, सोमवार- पंचमी तिथि – मां स्कंदमाता की पूजा
05 जुलाई, मंगलवार- षष्ठी तिथि – मां कात्यायनी की पूजा
06 जुलाई, बुधवार- सप्तमी तिथि – मां कालरात्रि की पूजा
07 जुलाई, गुरुवार- अष्टमी तिथि – मां महागौरी की पूजा
08 जुलाई, शुक्रवार- नवमी तिथि – मां सिद्धिदात्री की पूजा
09 जुलाई, शनिवार- दशमी तिथि – नवरात्रि का हवन और पारण
गुप्त नवरात्रि के दिन सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत्त होने के बाद विधिवत घट स्थापना करें।
इसके बाद नौ दिन के व्रत का संकल्प लेकर मां दुर्गा की पूजा की जाती है।
इसके लिए एक चौकी पर माता की मूर्ति स्थापित करें और लाल रंग का सिंदूर और लाल रंग की चुनरी के साथ शृंगार का सामान अर्पित करें।
दोनों समय (सुबह और शाम) की पूजा में मां दुर्गा को बताशे का भोग लगाया जाता है।
इसके बाद लाल रंग का पुष्प और शृंगार का सामान चढ़ाएं।
गलती से भी देवी माँ को तुलसी, आक, मदार और दूब अर्पित ना करें।
दोनों वक्त (सुबह और शाम) की पूजा में दुर्गा सप्तशती का पाठ जरुर करें।
सरसों के तेल का दीपक जलाकर माता के मंत्रों का जाप करें।
माता की उपासना के दौरान ‘ॐ दुं दुर्गायै नमः’ मंत्र का जाप किया जाता है।
इस दिन किसी विशेष कामना पूर्ति के लिए आधी रात में मां दुर्गा के विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।
आर्थिक समृद्धि व सुख, यश और वैभव की प्राप्ति के लिए गुप्त नवरात्रि में सुबह के समय मां दुर्गा को सफेद फूल और शाम के समय लाल फूल पूजा के दौरान अर्पित करें।
सुबह और शाम की पूजा में इस मंत्र का जाप ‘ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ज्वल हं सं लं फट् स्वाहा’ 108 बार करने से साधक की इच्छा पूर्ण होती है।
अंत में आरती के बाद सबको प्रसाद बाँटें और खुद भी खाएं।
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय श्रृंगी ऋषि के पास उनके भक्त अपनी समस्याएं और पीडाएं लेकर आए और श्रृंगी ऋषि उनसे मिलकर उनके कष्ट सुन रहे थे। उसी समय एक औरत भीड़ से निकलकर सामने आकर रोने लगी। श्रृंगी ऋषि ने उस महिला से उसके दुःख का कारण पूछा तो उसने कहा – हे ऋषिवर ! मेरा पति दुर्वसनों में लिप्त है। वो मांसाहार करता है, जुआ खेलता है, कभी पूजा-पाठ नहीं करता और ना ही मुझे करने देता है। परंतु मैं माँ दुर्गा की भक्त हूँ और मैं उनकी भक्ति करना चाहती हूँ जिससे मेरे और मेरे परिवार के जीवन में खुशियाँ आएं।
उस औरत के भक्तियुक्त वचन सुनकर श्रृंगी ऋषि अत्यंत प्रभावित हुए और उससे बोले – हे देवी ! मैं तुम्हारे दुखों को दूर करने का उपाय बताता हूँ, तुम ध्यान से सुनो। एक वर्ष में चार नवरात्रि आती हैं उसमें दो प्रकट (सामान्य) नवरात्रि होती हैं, चैत्र और शारदीय नवरात्रि जिसके विषय में सब जानते हैं परंतु इसके अतिरिक्त वर्ष में दो और नवरात्रि आती हैं उन्हें ‘गुप्त नवरात्रि’ कहते हैं। ये नवरात्रि आषाढ़ मास और माघ मास के शुक्ल पक्ष में आती है।
प्रकट (सामान्य) नवरात्रि में देवी माँ के नौ रूपों की पूजा- साधना होती है, परंतु गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्याओं की साधना की जाती है। जो भी कोई मनुष्य भक्तियुक्त चित्त से गुप्त नवरात्रि में माँ दुर्गा की उपासना करता है। माँ दुर्गा उसके जीवन के सभी दुखों को नष्ट कर देती है और उसके जीवन को सफल कर देती है। अगर कोई लोभी, मांसाहारी और पाठ-पूजा न करने वाला मनुष्य भी गुप्त नवरात्रि में माँ दुर्गा की उपासना करें तो माँ उसके जीवन को खुशियों से भर देती है और उसे मनोवांछित फल प्रदान करती है।
श्रृंगी ऋषि बोले परंतु इस बात का अवश्य ध्यान रखना कि गुप्त नवरात्रि की पूजा का प्रचार प्रसार न करें। श्रृंगी ऋषि से ऐसी बातें सुन वो स्त्री अतिप्रसन्न हुई। उसने श्रृंगी ऋषि के कथनानुसार पूर्ण भक्ति-भाव से गुप्त नवरात्रि में माँ दुर्गा की उपासना की, जिससे उसके जीवन के सभी दुखों का नाश हो गया और वो अपने पति के साथ सुख से जीवन बिताने लगी।
गुप्त व सामान्य नवरात्र में अंतर
Navratri And Gupt Navratri Difference
सामान्य नवरात्रों में माता रानी की पूजा सबको बताकर पूरे हर्षोउल्लास के साथ की जाती हैं जबकि गुप्त नवरात्र में माता रानी की पूजा को गुप्त रखना होता हैं। पूजा को जितना ज्यादा गुप्त रखा जायेगा उतना ही फल अधिक मिलता है।
सामान्य नवरात्र में माता रानी के लिए सात्विक व तांत्रिक दोनों पूजा की जा सकती हैं जबकि गुप्त नवरात्र में मुख्यतया तांत्रिक पूजा करके माता रानी की महाविद्या प्राप्त की जाती है।
सामान्य नवरात्र में जहाँ कन्या जिमाने का प्रावधान हैं वहीँ गुप्त नवरात्र में ऐसा कुछ नही किया जाता है।
गुप्त नवरात्रों में आपको इस बात का पूर्णतया ध्यान रखना है कि इसका ज्यादा प्रचार-प्रसार ना किया जाये व गोपनीय तरीके से ही माता की पूजा अर्चना की जाये तभी आपको मनचाहा फल मिलेगा।
गुप्त नवरात्र में क्या करें
Gupt Navratri Me Kya Karein
आपको ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ेगा।
सोने का बिस्तर नीचे जमीन पर लगाएं।
एक टाइम भोजन करें।
आप किसी भी मंत्र का जाप कर सकते हैं।
तामसिक भोजन ना करें।
Ashadha Gupt Navratri Vrat
नवरात्रि में आजमाएं ये टोटके
Gupt Navratri Ke Upay (Totke)
आषाढ़ में गुप्त नवरात्रि के दौरान रोज सुबह और शाम की पूजा के समय ‘ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ज्वल हं सं लं फट् स्वाहा’ मंत्र का 108 बार जाप करें, इससे साधक की हर मनोकामना पूर्ण होती है।
गुप्त नवरात्रि पर कच्चे सूत को हल्दी से रंगकर पीला करके, इसे मां लक्ष्मी को समर्पित करके गले में धारण करें। इससे बिजनेस में धन लाभ का योग बनता है।
सुबह मां दुर्गा की पूजा करते वक्त माता को लाल फूल चढ़ाएं और उनके सामने सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें। इससे साधक को कर्ज से मुक्ति मिलती है।
गुप्त नवरात्रि के दौरान लाल आसन पर बैठकर माता की उपासना करें। लाल कपड़े में 9 लौंग रखकर पूरे नौ दिन माता को चढ़ाएं। नवरात्रि समाप्त होने के बाद सारे लौंग लाल कपड़े में बांधकर अलमारी में रख लें। इससे धन की समस्या दूर हो जाती है।
कुंडली में ग्रहों की अशुभ दशा की वजह से आपके जीवन में बहुत सी समस्याएं चल रही हैं तो गुप्त नवरात्र में आपको ग्रह शांति यज्ञ करवाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि गुप्त नवरात्र में की गई पूजा कुंडली में अशुभ ग्रहों के प्रभाव को कम करती है।
गुप्त नवरात्रि का महत्व
Gupt Navratri Mahatv
गुप्त नवरात्रि कामनापूर्ति और सिद्धि प्राप्ति के लिए विशेष माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि गुप्त नवरात्रों के साधनाकाल में मां शक्ति का जप, तप, ध्यान करने से माता जीवन में आ रही सभी बाधाओं को नष्ट कर देती हैं। इस दौरान साधक तंत्र, मंत्र और विशेष पाठ गुप्त रूप से करते हैं, तभी उनकी कामना फलीभूत होती है। शास्त्रों में गुप्त नवरात्रों का बड़ा ही महत्त्व बताया गया है। मानव के समस्त रोग-दोष व कष्टों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्र से बढ़कर कोई साधना नहीं हैं। गुप्त नवरात्रियों में साधू संन्यासी, अघोरी और तांत्रिक ध्यान और साधना करके दिव्य शक्तियां प्राप्त करते हैं।
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हेल्लो दोस्तों वे लोग काफी खुशकिश्मत होते हैं जिनके खुद के घर होते हैं। जिनके पास अपनी खुद की एक पहचान होती है। जैसे कि हमारे देश में ऐसे कई निवासी हैं जिनके पास खुद की संपत्ति है। इसके अलावा देश के इन सभी नागरिकों को शिक्षा का अधिकार, कही भी घूमने-फिरने का अधिकार, खुद का रोजगार या फिर नौकरी करने का अधिकार प्राप्त है।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर किसी व्यक्ति या फिर किसी खास समुदाय के लोगों को ये बेहतरीन सुविधा और ये अधिकार ना मिल पा रहे हैं तो उनका जीवन कैसा होगा और उनके जीवन में इसकी वजह से क्या फर्क पड़ रहा होगा। हम बात कर रहे हैं रिफ्यूजी यानी शरणार्थी की। अगर आप इनके बारे में नहीं जानते तो कोई बात नहीं ।
बता दें पूरी दुनिया में 8 करोड़ महिलाएं, बच्चे और पुरुष शरणार्थी के तौर पर अपना जीवन बिता रहे हैं। हर वर्ष 20 जून को दुनिया भर में वर्ल्ड रिफ्यूजी डे मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थियों के साहस को सम्मान देने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। आज हम आपको अपने इस ब्लॉग के जरिए के बारे में बताएंगे विश्व शरणार्थी दिवस का इतिहास? क्यों मनाया जाता है यह दिवस? क्या है इसका महत्व?
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विश्व शरणार्थी दिवस का इतिहास
History Of World Refugee Day
दुनिया भर में हर साल 20 जून को वर्ल्ड रिफ्यूजी डे के तौर पर मनाया जाता है, लेकिन आपको बता दें कि पहले यह इस दिन नहीं मनाया जाता था। 4 जून 2000 को संयुक्त राष्ट्र संघ यानी UN ने इसे मनाने की घोषणा की। इसे मनाने के लिए 17 जून तारीख तय की गयी। इसके अगले साल, 2001 में संयुक्त राष्ट्र ने पाया कि इस वर्ष 1951 के शरणार्थियों की स्थिति से संबंधित कन्वेंशन (1951 Convention relating to the Status of Refugees) के 50 साल पूरे हो चुके हैं, जिसके बाद यह दिन 17 की बजाय 20 जून को पूरे विश्व में मनाया जाने लगा। तब से ही हर साल यह दिन 20 जून को ही मनाया जाता है।
इस दिन को मनाने का मुख्य कारण लोगों में जागरुकता फैलानी है कि कोई भी इंसान अमान्य नहीं होता फिर चाहे वह किसी भी देश का हो। एकता और समंवय की भावना रखते हुए हमें सभी को मान्यता देनी चाहिए। म्यांमार, लीबिया, सीरिया, अफगानिस्तान, मलेशिया, यूनान और अधिकांश अफ़्रीकी देशों से हर साल लाखों नागरिक दूसरे देशों में शरणार्थी के रूप में शरण लेते हैं। संयुक्त राष्ट्र की संस्था युएनएचसीआर रिफ्यूजी लोगों की सहायता करती है।
दुनिया भर में एक बड़ी संख्या में शरणार्थी (Refugee) रहते हैं। इनके साथ आए दिन प्रताड़ना, संघर्ष और हिंसा जैसी कई चुनौतियों के कारण इनको अपना देश छोड़कर बाहर भागने को मजबूर होना पड़ता है। जिसके बाद इन सभी को कईं देशों में पनाह मिल जाती है। वहीं, कई देशों से इनको निकाल भी दिया जाता है। बेशक इन्हें पनाह मिल जाए, लेकिन वो सम्मान और अधिकार नहीं मिल पाते। हर साल ‘वर्ल्ड रिफ्यूजी डे’ मनाने का मुख्य उद्देश्य शरणार्थी के साहस, शक्ति और संकल्प के प्रति सम्मान व्यक्त करना है। इसके साथ ही इस दिन को मनाये जाने का एक अन्य उद्देश्य शरणार्थियों की बुरी दुर्दशा की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करना और उनकी समस्याओं का हल करना है। आपको बताते चले कि म्यांमार, लीबिया, सीरिया, अफगानिस्तान, मलेशिया, यूनान और अधिकांश अफ़्रीकी देशों के लाखों नागरिक हर साल दूसरे देशों में शरणार्थी के रूप में शरण लेते हैं। जिसमें संयुक्त राष्ट्र की संस्था युएनएचसीआर (UNHCR) रिफ्यूजी लोगों की सहायता करती है।
World Refugee Day
विश्व शरणार्थी दिवस कैसे मनाया जाता है?
How Celebrate World Refugee Day
बहुत सारे अंतर्राष्ट्रीय संगठन और NGO’s इस अवसर पर अनेक गतिविधियाँ आयोजित करता है जैसे की :-
इस दिन शरणार्थी स्थलों के हालात का जाएज़ा लेते है।
शरणार्थियों और उनकी समस्याओं से संबंधित फिल्मों का प्रदर्शन।
जो शरणार्थियों किसी कारणवश गिरफ्तार हो गये हैं उसकी आज़ादी के लिए विरोध प्रदर्शन भी करते है।
जेल में बंद शरणार्थियों के लिए सही चिकित्सकीय सुविधा और नैतिक समर्थन उपलब्ध कराने के लिए रैलियाँ निकलते है।
विश्व शरणार्थी दिवस दुनिया भर के शरणार्थियों के दुखों और तकलीफों को दुनिया से रूबरू करने का दिन है।
विश्व शरणार्थी दिवस का उद्देश्य
World Refugee Day Motive
आपको बतादे की यह दिवस उन लोगों के साहस, शक्ति और संकल्प के प्रति सम्मान जताने के लिए माना जाता है जो हिंसा, संघर्ष, युद्ध और प्रताड़ना के चलते अपना घर और देश छोड़ने को मजबूर हो गए हैं या यूं कहें जो लोग अपना देश छोड़कर बाहर भागने को मजबूर हो गए हैं। शरणार्थियों की परिस्थितियों पर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए यह दिवस मनाया जाता है ताकि इस समस्या का हल निकाला जा सके।
विश्व शरणार्थी दिवस 2022 की थीम्स
World Refugee Day 2022 Theme
हर साल विश्व शरणार्थी दिवस की थीम्स के जरिए विश्व के तमाम लोगों को इसके बारे में जागरूक किया जाता है। पिछले साल कोरोना वायरस के बीच UN ने विश्व शरणार्थी दिवस ‘World Refugee Day’ 2022 के थीम का विषय ‘टूगैदर वी हील, लर्न एंड शाइन’ (साथ में स्वस्थ रहना, सीखना और चमकना) रखा है। कोविड महामारी ने हमें सिखा दिया है कि हम साथ रहकर किसी भी बीमारी को हरा सकते है। संयुक्त राष्ट्र स्पष्ट करता है कि इन शरणार्थियों को उनकी इस दयानीय स्थितियों के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ता है, जिनसे वे गुजरते हैं। यह हम जैसे अन्य लोगों की जिम्मेदारी है कि हम उनके साथ खड़े हों ताकि वे फिर खड़े हो सकें।
Years
Theme
वर्ष 2022 का थीम
Together we heal, learn and shine
वर्ष 2021 का थीम
Together we can achieve anything (हम सब मिलकर कुछ भी हासिल कर सकते हैं)
वर्ष 2020 का थीम
Every Actions Counts (हर क्रिया मायने रखती है)
वर्ष 2019 का थीम
Take A Step on World Refugee Day (शरणार्थियों से हमारा वैश्विक रिश्ता है)
वर्ष 2018 का थीम
Now More Than Ever, We Need to Stand with Refugees (अब से कहीं ज्यादा, हमें शरणार्थियों के साथ खड़े होने की जरूरत है)
वर्ष 2017 का थीम
Embracing Refugees to celebrate our Common Humanity (शरणार्थियों को हमारी आम मानवता का जश्न मनाने के लिए गले लगाओ)
वर्ष 2016 का थीम
We stand together with refugees (हम शरणार्थियों के साथ मिलकर खड़े हैं”)
वर्ष 2015 का थीम
With courage let us all combine (साहस के साथ, हम सभी को गठबंधन करते हैं)
वर्ष 2014 का थीम
Migrants and Refugees: Towards a Better World (प्रवासियों और शरणार्थियों: एक बेहतर दुनिया के लिए)
वर्ष 2013 का थीम
Take 1 minute to support a family forced to flee (पलायन करने को मजबूर किसी परिवार की 1 मिनट के लिए सहायता करें।)
वर्ष 2012 का थीम
1 family torn apart by war is too many (युद्ध के अलावा एक परिवार फटा हुआ बहुत अधिक है)
वर्ष 2011 का थीम
One Refugee without Hope Is Too Many (आशा के बिना एक शरणार्थी बहुत अधिक है)
वर्ष 2010 का थीम
1 refugee forced to flee is too many (एक शरणार्थी फिसलने के लिए मजबूर होना बहुत अधिक है)
वर्ष 2009 का थीम
Home (घर है)
World Refugee Day
विश्व शरणार्थी दिवस का महत्व
Importance Of World Refugee Day
यह दिवस मुख्य रूप से विश्व के उन सभी लोगों के लिए एक संवेदना के रूप में मनाया जाता है जो कभी अपने खुद के देश में खुद के घर में खुश थे, लेकिन उत्पीड़न और अपने ही देश में कई प्रकार से प्रताड़ित होने के कारण अपना घर मजबूरी में छोड़ना पड़ता है। दुनिया भर में ऐसी काफी घटनाएं हुई हैं जहाँ के निवासियों को मजबूर होकर अपना देश अपना घर और अपना सब कुछ छोड़ना पड़ता है। हर साल इस दिन को मनाया जाता है, ताकि लोग उन शरणार्थियों को याद कर सकें और उनके द्वारा सहन किए गए दर्द और पीड़ा से जुड़ सकें। इसके अलावा यह दिन कुछ ऐसे शरणार्थियों को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है, जिन्हें युद्ध या किसी अन्य संघर्ष की स्थिति में कठिन दिन और रात बिताने के लिए मजबूर किया गया, जिसमें उनकी कोई गलती नहीं थी।
यह हमेशा से रहा है, कि राष्ट्रों ने युद्ध किया है लेकिन उनकी आम जनता को भुगतना पड़ा है। दुनिया भर में लाखों शरणार्थी इसके उदाहरणों में शामिल हैं। आज भी, सीरिया से बहुत सारे शरणार्थी आजीविका की तलाश में और फिर से एक नया जीवन शुरू करने की उम्मीद में पास के विभिन्न देशों में चले जाते हैं। इनमें कई लोग ऐसे हैं जिनका अपनी जगह बड़ा नाम होता था, लेकिन अब वे अपने बच्चों को खिलाने के लिए भीख मांगने को मजबूर हैं। इसी कारण से यूएन हर साल इस दिवस को मना कर पूरे विश्व को जागरूक करता है कि ऐसे लोगों कि मदद के लिए देश अपने हाथ आगे बढ़ाएं और इन लोगों के बच्चों के भविष्य में अपनी मुख्य भूमिका निभाएं।
दोस्तों आपने आम से लेकर गाजर तक, और भी कई तरह के अचार खाए होंगे लेकिन इस बार हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसा अचार जिसके बारे में आपने शायद ही कभी कुछ सुना होगा। त्योहारों पर अगर मीठा खाते-खाते बोर हो चुके हैं तो इस बार दिवाली पर घर ट्राई करें ये चटपटा आलू का अचार… इसे खाने वाले अपनी उंगलियां चाटते रह जाएंगे। आइए जानते हैं कैसे बनता है ये टेस्टी मसालेदार आलू का अचार। Aloo Achaar Recipe
आपको ये रेसिपी कैसी लगी नीचे कमेंट बॉक्स में अपने विचार जरुर शेयर करें, और कोई सवाल हो तो पूछिए हम जवाब देने की पूरी कोशिश करेंगे ! और ऐसी ही अन्य रेसिपीज के लिए आप हमारेYouTube चैनल को जरुरसब्सक्राइबकीजिये ! बहुत बहुत धन्यवाद्
हेल्लो दोस्तों साउथ की टॉप और बॉलीवुड में बेहतर तलाश रहीं काजल अग्रवाल (Kajal Aggarwal Biography) 19 जून को अपना 37वां जन्मदिनघर आए नए मेहमान अपने बेटे के साथ मनाएंगी। काजल ने बतौर लीड एक्ट्रेस फिल्म ‘सिंघम’ से अपने बॉलीवुड करियर की शुरुआत की थी। इसके अलावा वह ‘स्पेशल 26’ और ‘दो लफ्जों की कहानी’ में भी नजर आ चुकी हैं। काजल बेशक बॉलीवुड में अपना सिक्का न जमा पाईं हो लेकिन साउथ इंडस्ट्री में काजल का नाम टॉप एक्ट्रेसेस में लिया जाता है। काजल भारतीय फिल्म अभिनेत्री और मॉडल हैं जो मुख्य रूप से तेलुगु और तमिल फिल्मों में काम करती हैं।
जब काजल छोटी थी तब उनका परिवार उन्हें प्यार से काजू बुलाता था, इसलिए उनका उपनाम काजू है। जब वह स्कूल में पढ़ती थी तो उसे एक्टिंग का बहुत शौक था इसलिए वह स्कूल में हर तरह के फंक्शन में हिस्सा लेती थी और उसे बखूबी निभाती थी। काजल ने वैसे तो साउथ में कई फिल्मों में काम किया है. लेकिन बॉलीवुड में उन्हें ‘सिंघम गर्ल’ के नाम से जाना जाता है.
उन्होंने 2004 की बॉलीवुड फिल्म “क्यूं! हो गया ना“, शुरू की. जिसमें इन्होंने अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय और विवेक ओबेरॉय के साथ अभिनय किया था. जो कुछ खास नहीं था। इसके बाद उन्होंने 2007 की तेलुगु फिल्म “लक्ष्मी कल्याणम” में अभिनय किया, जो उनकी पहली तेलुगु फिल्म थी। इसके बाद उन्होंने कई सुपरहिट तेलुगु और तमिल फिल्में दीं।
Kajal Aggarwal Biography
विषयसूची :
प्रारंभिक जीवन
काजल अग्रवाल का जन्म 19 जून 1985 को मुंबई, महाराष्ट्र में एक पंजाबी परिवार में हुआ था। उनके पिता विनय अग्रवाल, कपड़ा व्यवसाय में एक उद्यमी हैं और उनकी माँ सुमन अग्रवाल एक हलवाई हैं, और काजल की व्यवसाय प्रबंधक भी हैं। काजल की एक छोटी बहन निशा अग्रवाल है, जो तेलुगु, तमिल और मलयालम सिनेमा की एक अभिनेत्री है, जिसकी शादी करण वलेचा (प्रबंध निदेशक गोल्ड्स जिम, एशिया) से हुई है।
उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई मुंबई के सेंट ऐनी हाई स्कूल, किले में अध्ययन किया और जय हिंद कॉलेज में अपनी पूर्व-विश्वविद्यालय शिक्षा पूरी की। उन्होंने किशनचंद चेलाराम कॉलेज से मार्केटिंग और विज्ञापन में विशेषज्ञता के साथ मास मीडिया में स्नातक की पढ़ाई की। अपने बढ़ते वर्षों के दौरान एमबीए के सपनों को पूरा करने के बाद, वह जल्द ही स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करने का इरादा रखती है।
टॉलीवुड में पहली पसंद
काजल को अजय देवगन के साथ काम करने का मौका मिला। फिल्म हिट भी हुई लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। सिंघम के बाद काजल को अगला प्रोजेक्ट मिलने में देरी हुई। अब काजल बॉलीवुड को छोड़ टॉलीवुड में किस्मत चमका रही हैं। काजल टॉलीवुड में निर्देशकों की पहली पसंद बन गई हैं। हालांकि इसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत भी की है।फिल्म करियर शुरू करने से पहले, काजल ने कई विज्ञापनों में भी काम किया था। काजल ने सेंट एनी हाई स्कूल से पढ़ाई की। उसके बाद काजल ने केसी कॉलेज मुंबई से अपनी ग्रेजुएशन मास मीडिया स्ट्रीम में पूरी की। काजल ने हिंदी में भले ही कम फिल्में की हों, लेकिन टॉलीवुड में वो हर साल 4 से 5 फिल्म कर लेती हैं। उनके पास मिनू कूपर और ऑडी जैसी लग्जरी गाड़ियां भी हैं। काजल ने कई विज्ञापनों में भी काम किया है। कई बड़े विज्ञापनों की वो ब्रैंड एम्बेसडर भी हैं।
यहाँ से मिली प्रसिद्धि
काजल ने वैसे तो साउथ में कई फिल्मों में काम किया है. लेकिन बॉलीवुड में उन्हें ‘सिंघम गर्ल’ के नाम से जाना जाता है. हालांकि इन्होंने अपने अभिनय की शुरुआत एक हिन्दी फिल्म ‘क्यूं! हो गया ना…’ से शुरू की. जिसमें इन्होंने अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय और विवेक ओबेरॉय के साथ अभिनय किया था.
इन्होंने सुपरस्टार राम चरण तेजा के साथ बिग बजट तेलुगू फिल्म ‘मगधीरा’ से अपनी एक अलग पहचान बनाई. यह एक ऐतिहासिक काल वाली फिक्शन पर आधारित कहानी थी, जो कई भाषाओं में डब हुई और आज भी पसंद की जाती है.
काजल के करियर की सबसे बड़ी हिट ‘मगधीरा‘ मानी जाती है। ये राजामौली की फिल्म थी जिसने रिलीज के साथ ही बॉक्सऑफिस के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। चिरंजीवी के बेटे रामचरण इस फिल्म में हीरो थे। फिल्म इन्हीं के करेक्टर के दो जन्मों की कहानी थी। ‘मगधीरा’ काजल के करियर की उस समय की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म है। रिपोर्ट्स की मानें तो काजल एक फिल्म के 2 करोड़ चार्ज करती हैं।
Happy Birthday Kajal Aggarwal
बाहुबली से अफेयर
काजल कई प्रसिद्ध ब्रांडों के लिए विज्ञापन करती हैं। वह लक्स सीसीएल की ब्रांड एंबेसडर हैं। फिल्मों के अलावा विज्ञापन से काजल मोटी कमाई करती हैं। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो काजल साउथ के बाहुबली स्टार प्रभास की गर्लफ्रेंड भी रह चुकी हैं। एक समय पर दोनों के अफेयर की चर्चाएं जोरों पर थीं। हालांकि ये रिश्ता किसी मुकाम पर पहुंचने से पहले ही टूट गया।
क्रिकेटर पर आया दिल
बॉलीवुड स्टार्स और क्रिकेटर्स के बीच काफी पुराने समय से कनेक्शन चले आ रहे हैं, जहां सैफ अली खान की मां शर्मिला टैगोर और पिता नवाब मंसूर अली खान पटौदी से लेकर अनुष्का शर्मा और विराट कोहली तक लंबी लिस्ट है. लेकिन जब बॉलीवुड और साउथ सिनेमा की फेमस एक्ट्रेस काजल अग्रवाल ने एक क्रिकेटर का नाम लेकर अपनी पसंद बताई तो सभी को यह बात चौंकाने वाली लगी.
काजल किसी क्रिकेटर को डेट नहीं कर रहीं बल्कि क्रिकेटर रोहित शर्मा को काफी पसंद जरूर करती हैं. हाल ही यह बात खुद काजल अग्रवाल ने सबसे सामने स्वीकार की थी. लेकिन रोहित के शादीशुदा होने के कारण लोगों को काजल का यह बयान पसंद नहीं आया. एक इंटरव्यू के दौरान काजल ने बताया कि वह क्रिकेटर रोहित शर्मा को सिर्फ पसंद ही नहीं करती बल्कि उनकी दीवानी हैं.
Kajal Aggarwal Biography
काजल अग्रवाल की शादी
साल 2020 कोरोना वायरस के काल में काजल अग्रवाल ने 30 अक्टूबर 2020 को गौतम किचलू के साथ मुंबई में शादी कर ली. वायरस होने के कारण उन्होंने अपने सिर्फ नजदीकी रिश्तेदार और संबंधी को ही आमंत्रित किया था. उनकी वेडिंग ऑउटफिट अनामिका खन्ना ने और गौतम किचलू की शेरवानी अनिता डोंगरे ने डिजाइन की थी. उनकी हल्दी और मेहँदी की रस्म उनके घर पर ही हुई थी.
मां बनी काजल अग्रवाल
साल 2022 में काजल अग्रवाल के घर खुशियों ने दस्तक दी. 19 अप्रैल 2022 को काजल के घर बेटे का जन्म हुआ है. बेटे की खबर सुनकर दोनों पति पत्नी ख़ुशी के मारे रो पड़े, जिसकी सोशल मीडिया पर तस्वीर वायरल हुई थी. एक्ट्रेस की बहन ने काजल और गौतम के बेटे का नाम नील किचलू (Neil Kitchlu) रखा है. एक्ट्रेस और उनके पति गौतम किचलू पेरेंट क्लब में शामिल होकर खुशी से झूम रहे हैं.
पुरस्कार
2011 में फिल्म “वृंदावनम” के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (तेलुगु) का सिनेमा पुरस्कार जीता।
2012 में फेवरेट हीरोइन का अवार्ड।
2013 में साउथ इंडियन इंटरनेशनल मूवी अवार्ड्स में साउथ इंडियन सिनेमा का यूथ आइकन जीता।
2013 में बेस्ट एक्ट्रेस (क्रिटिक्स) का अवार्ड
2016 में एडिसन अवार्ड्स, द फैशन आइकॉन ऑफ द ईयर और द गॉर्जियस बेले ऑफ द ईयर।
2017 में जी तेलुगू गोल्डन अवार्ड्स।
काजल की बायोग्राफी
Names
Kajal Agarwal
Nickname
Kajju
Date of Birth
19 June 1985
Birth Place
Mumbai, Maharashtra, India
Height
5′ 5″
Weight
55 Kg
Figure Measurements
32-26-32
Star Sign
Gemini
Eye Colour
Black
Hair Colour
Dark Brown
School
St. Anne’s High School, Mumbai
College
Jai Hind College, Mumbai K.C. College, Mumbai
Educational Qualification
Degree in Mass Media specializing in Advertising and Marketing
Debut Film
Bollywood Film: Kyun! Ho Gaya Na (2004) Telugu Film: Lakshmi Kalyanam (2007) Tamil Film: Pazhani (2008)
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पैसा एक ऐसी चीज हैं जिसके पीछे आज पूरी दुनियां भाग रही हैं. हर कोई चाहता हैं कि उसके घर में जितना ज्यादा हो सके पैसा आना चाहिए. इस पैसे की आवक को बढ़ाने के लिए लोग दिन रात मेहनत भी करते हैं. लेकिन कई बार उन्हें अपनी मेहनत का वो फल नहीं मिल पाता हैं जिसकी उन्होंने उम्मीद की थी. ऐसा आपकी बुरी किस्मत के चलते भी हो सकता हैं. जब किस्मत खराब होती हैं तो एक के बाद एक सारे काम बिगड़ने लगते हैं. पैसो के मामले में अपनी किस्मत को बुलंद करने के लिए आप वास्तु का सहारा ले सकते हैं.
वास्तु शास्त्र भारत में बहुत ज्यादा फेमस हैं. घर का एक अच्छा वास्तु वहां पॉजिटिव एनर्जी पैदा करता हैं. ये पॉजिटिव एनर्जी आपके घर में सब कुछ अच्छा अच्छा करती हैं. इसी वास्तु शास्त्र में घर में मनीप्लांट लगाने की बात भी कही गई हैं. मनीप्लांट एक ऐसा पौधा होता हैं जिसका संबंध सीधा आपके घर की लक्ष्मी यानी पैसो से होता हैं. इसे घर में लगाना शुभ माना जाता हैं. वास्तु की माने तो इसे घर में लगाने से पैसो की आवक बढ़ जाती हैं. साथ ही घर में रखा पैसा भी जल्दी खर्च नहीं होता हैं.
आप में से कई लोगो के घर मनीप्लांट का पौधा लगा हुआ होगा. यदि आपको इस पौधे को लगाने के बाद भी फायदा नहीं मिल रहा हैं तो आप ने इसे लगाते समय जरूर कुछ गलतियाँ की होगी. दरअसल मनीप्लांट को आप सप्ताह के किसी भी दिन नहीं लगा सकते हैं. इससे पैसो का फायदा लेने के लिए इसे सप्ताह के एक ख़ास दिन एक ख़ास विधि से ही लगाया जाता हैं. आज हम आपको इसी के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं.
Benefits Of Money Plant
मनीप्लांट के फायदे
money plant ke faayde
अक्सर लोग अपने घरो की शोभा बढ़ाने के लिए मनी प्लांट घर में लगाते है कुछ लोग पौधे लगा तो लेते है लेकिन इससे उन्हें कोई फायदा नही होता है और लोग सोचने लग जाते है शायद उनकी किस्मत ही खराब है. लेकिन ऐसा कुछ नही होता है यदिआप मनी प्लांट से जुडी चीजो को फॉलो करते है तो आपको इससे पूरा फायदा हो सकता है. तो आइये जानते है क्या है ये चीजे और इनसे आप धनवान कैसे बन सकते है
1. मनीप्लांट के पौधे को सुख समृद्धि का पौधा कहा जाता है ये धनवान बनाने वाला पौधा है. इस संसार में हर व्यक्ति अमीर बनना चाहता है हर किसी को आज के समय में पैसा चाहिए. कुछ लोग अपनी मेहनत से अमीर बन जाते है और कुछ लोगो के लिए लक काम करता है.
2. मनीप्लांट के पौधे को कभी भी आपको खरीद कर नही लाना चाहिए इस पौधे को हमे चौरी करना होता है. वैसे चौरी करना बुरी बात है लेकिन ये पौधा हमे चौरी ही करना है. इस पौधे को आपको उस घर से चुराना है जहाँ पर रोजाना पूजा पाठ किया जाता हो साथ ही उस घर में धन भी बहुत ज्यादा हो ऐसे घर से अगर आप मनीप्लांट के पौधे को चुराते है तो ये आपके घर में सुख समृद्धि लाता है और आपको धनवान बनाने में सहायक होता है.
3. यदि आपके घर में किसी भी मनीप्लांट का पता जल जाए या खराब हो जाए तो आपको उस पते को खींचकर नही तोडना चाहिए आपको उसे कैंची की मदद से काटना चाहिए.
4. कभी भी आपको मनीप्लांट की जडो को बाहर दीखते हुए नही रखना है यदि वह गमले से बाहर दिखाई देती है तो आप उसे किसी चीज के साथ ढक दें ऐसा करने से आपके घर में हमेशा बरकत बनी रहती है.
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5. मनीप्लांट को अपने घर के अंदर मुख्य द्वार के उपर लगाए ताकि आपके घर में सुख समृद्धि बने रहे.
6. आपको घर में किस तरह का मनीप्लांट लगाना है ये भी आपको मालूम होना चाहिए. आपको घर में गोल पते वाला मनीप्लांट लगाना है. हरे भरे पतो वाले मनीप्लांट को जब आपको पानी देना है तो उसके अंदर 1 -2 चम्मच दूध के डालने है. ऐसा करने से आपके घर में कभी भी धन की हानि नही होगी.
इस दिन लगाना होता हैं शुभ
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यदि आप घर में मनीप्लांट का पौधा लगाने की सोच रहे हैं तो इसे ‘शुक्रवार’ के दिन ही लगाए. इस दिन घर में इसे लगाने से सबसे अधिक लाभ होता हैं. अब आप में से कई लोग सोच रहे होंगे कि इस दिन में ऐसी क्या ख़ास बात हैं? दरअसल शुक्रवार का दिन लक्ष्मी जी का दिन माना जाता हैं. और ये तो आप जानते ही हैं कि लक्ष्मी जी धन की देवी होती हैं. ऐसे में लक्ष्मी माँ के दिन यानी कि शुक्रवार को घर में मनीप्लांट लगाना पैसो की दृष्टि से काफी शुभ माना जाता हैं.
यदि आप ने अपने घर का मनीप्लांट शुक्रवार के दिन नहीं लगाया हैं तो आप एक अलग गमले में नया मनीप्लांट भी लगा सकते हैं. यदि आपका गमला बड़ा हैं तो आप उसी गमले में भी मनीप्लांट का नया पौधा जोड़ सकते हैं. बस इस बात का ध्यान रहे कि ये काम आप शुक्रवार को ही करे.
इस विधि से लगाएं मनीप्लांट
जब भी आप घर में मनीप्लांट लगाने वाले हो तो उसे पहले लक्ष्मी जी के सामने रख दे और फिर लक्ष्मी जी की आरती व पूजा करे. अंत में इस मनीप्लांट की भी पूजा करे और इसके बाद ही इसे किसी गमले या बोतल में लगा दे. इस विधि से लगाया गया मनीप्लांट ज्यादा अधिक लाभ देता हैं.
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हेल्लो दोस्तों फादर्स डे हर साल जून महीने के तीसरे रविवार को मनाया जाता है। यह दिन सभी के लिए बहुत ख़ास होता है क्योंकि इस दिन दुनिया भर में लोग फादर्स डे मनाते हैं। जिस तरह से मां के प्रति प्रेम और आभार जताने के लिए मदर्स डे मनाया जाता है, ठीक उसी तरह पिता के प्रति आभार प्रकट करने के लिए फादर्स डे मनाया जाता है।
भारत में पिता को एक ऐसा मजबूत और छायादार पेड़ माना जाता है, जो सारी परेशानी खुद सहकर अपने बच्चों और परिवार के सदस्यों की रक्षा करता है। विश्व के कई देशों में फादर्स डे अलग अलग तारीखों को मनाया जाता है। इस बार फादर्स डे 19 जून को मनाया जाएगा।
फादर्स डे पिताओं के बलिदान और उपलब्धियों को पहचानने, उनका सम्मान करने और उन्हें मनाने का दिन है। 1910 में, वाशिंगटन राज्य के गवर्नर ने 19 जुलाई को फादर्स डे घोषित किया। यह 1972 में एक स्थायी संघीय अवकाश बन गया जब राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने घोषणा की कि जून में तीसरे रविवार को फादर्स डे के रूप में जाना जाएगा।
इस दिन, बच्चे अपने प्यार और प्रशंसा को दिखाने के लिए अपने पिता और पिता की आकृतियों को मनाते हैं। बहुत से लोगों को फादर्स डे कब आता है या फादर्स डे किस तारिख को पड़ता है, ये पता नहीं होता तो चलिए हम बताते हैं –
फादर्स डे का इतिहास
दुनियाभर के कई सारे देशों में जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे (Father’s Day) मनाया जाता है लेकिन इस दिवस को मनाने के लिए एक बेटी ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। फादर्स डे मनाने की शुरुआत सबसे पहले अमेरिका से हुई थी। इस खास दिन की प्रेरणा साल 1909 में मदर्स डे से मिली थी।
दरअसल, 1909 में वॉशिंगटन के स्पोकेन शहर में सोनोरा लुईश स्मार्ट डॉड (Sonora Louise Smart Dodd) नाम की एक 16 साल की लड़की ने पिता के नाम इस दिवस को मनाने की शुरुआत की थी। सोनोरा, जब 16 साल की थी तब उसकी मां उसे और उसके 5 छोटे भाइयों को छोड़कर चली गईं थी। इसके बाद पूरे घर और बच्चों की जिम्मेदारी सोनोरा के पिता पर आ गई थी।
Happy Father’s Day
एक दिन सोनोरा ने 1909 में मदर्स डे के बारे में सुना और उसे महसूस हुआ कि पिता के लिए ऐसा एक दिवस होना चाहिए। इसलिए सोनोरा ने फादर्स डे मनाने के लिए याचिका दायर की। इस याचिका में सोनोरा ने कहा कि उसके पिता का जन्मदिन जून में आता है और इसलिए वह चाहती है कि जून में ही फादर्स डे मनाया जाए। इस याचिका के लिए उसे दो हस्ताक्षरों की जरूरत थी, इसलिए वह आस-पास मौजूद सभी चर्च के सदस्यों के पास गई और उन्हें हस्ताक्षर करने के लिए मनाया।
हालांकि, सोनोरा का किसी ने साथ नहीं दिया लेकिन सोनारा ने भी फादर्स डे मनाने की ठान ली थी। इसके लिए सोनोरा ने यूएस तक में कैंपेन किया और इस तरह से फादर्स डे (father’s day date) मनाया गया।
सोनोरा डॉड ने अपने पिता की स्मृति में इस दिन की शुरुआत की थी। इसके बाद साल 1916 में अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने इस दिवस को मनाने के प्रस्ताव को स्वीकृति दी। राष्ट्रपति कैल्विन कुलिज ने साल 1924 में इसे राष्ट्रीय आयोजन घोषित किया। वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने पहली बार साल 1966 में इस खास दिन को जून के तीसरे रविवार (father’s day kab aata hai) को मनाए जाने का फैसला किया।
पौराणिक कथा
फादर्स डे मनाने की शुरुआत यूरोपियन देशों में लगभग 109 साल पहले हुई है, लेकिन सनातन धर्म में पिता का महत्व कई युगों पहले ही बता दिया था. हिंदू धर्मग्रंथों में पिता-पुत्र के संबंध के कई किस्से हैं. आज हम आपको बताएं एक ऐसे पिता की कहानी जिसने अपने पुत्र को दिया था इच्छा मृत्यु का वरदान. महाभारत के अनुसार भीष्म पितामह को महाकाव्य का प्रमुख स्तंभ बताया गया है. भीष्म के पिता राजा शांतनु थे.एक बार जंगल में शिकार करने निकले शांतनु दूर तक चले गए. वापस लौटने में अंधेरा हो गया. शांतनु को वहां एक आश्रम मिला. जहां उनकी मुलाकात सत्यवती से हुई और दोनों मन ही मन में एक दूसरे को चाहने लगे.
Happy Father’s Day
अगले दिन राजा शांतनु निषाद कन्या सत्यवती के पिता के पास विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुंचे.सत्यवती के पिता ने राजा शांतनु से वचन मांगा कि उसकी पुत्री से उत्पन्न संतान ही राजा बनेगी, तब उन्होंने सत्यवती के पिता की शर्त को अस्वीकार कर दिया. जब ये बात भीष्म को पता चली तो वे सत्यवती के पिता के पास पहुंच गए. भीष्म ने सत्यवती के पिता को वचन दिया कि वे आजीवन ब्रह्मचारी रहेंगे और सत्यवती की संतान की राजा बनेगी और आग्रह किया कि पिता शांतनु और कन्या सत्यवती के विवाह का प्रस्ताव स्वीकार कर लीजिए. सत्यवती के पिता राजी हो गए और इस तरह उन्होंने भीष्म ने अपने पिता की इच्छा पूरी की. लिहाजा प्रसन्न होकर राजा शांतनु ने भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया था.
फादर्स डे का महत्व
फादर्स डे पिता के प्रति सम्मान प्रकट करने और आभार जताने के लिए मनाया जाता है, इससे समाज में पिता के महत्व की भी बात सामने आती है। फादर्स डे के दिन परिवार के लोग एकसाथ अलग-अलग तरह से सेलिब्रेट भी करते हैं, उन्हें गिफ्ट देते हैं या उनका फेवरेट खाना बनाते हैं। धीरे-धीरे फादर्स डे मनाने का ट्रेंड पूरी दुनिया में फैला। अब हर घर में हर फादर्स डे बहुत ही प्यार के साथ मनाया जाता है।