पिता ने जिस बेटी को मारना चाहा वो अब पैरालंपिक में रचेगी इतिहास

नारी शक्ति : कहते हैं की जाको राखे साईंया मार सके ना कोई ! जी हाँ टोक्यो पैरालंपिक में हिस्सा ले रहीं तैराक हेवन शेफर्ड (Paralympian haven shepherd story) पर ये बात पूरे तरह से लागू होती है ! इन्होने अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बताया कि कैसे उसने एक बम ब्लास्ट में अपने दोनों पैर खो दिए थे. उन्होंने दावा किया है ये बम ब्लास्ट खुद उसके पिता ने शेफर्ड को मारने के लिए किया था.

18 वर्षीय हेवन शेफर्ड पैरालंपिक में अमेरिकी टीम का हिस्सा हैं. उन्होंने दावा किया है कि बचपन में उनके पिता उससे छुटकारा पाना चाहते थे. अपने ही पिता के हाथों एक आत्मघाती बम हमले में चमत्कारिक ढंग से जीवित बच गईं थीं. हालांकि, इस हमले में उन्होंने अपने दोनों पैर खो दिए थे. दोनों पैर नहीं होने के बाद भी हेवन शेफर्ड ने हार नहीं मानी. वहां से उन्होंने आज टोक्यो पैरालंपिक (Tokyo Paralympics) तक सफर तय किया है. शेफर्ड अभी 18 साल की हैं.

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मूलरूप से शेफर्ड वियतनाम की रहने वाली हैं. 2004 में उनके पिता ने आत्मघाती बम हमले में बेटी को मारने की कोशिश की थी. इस हादसे में शेफर्ड तो बच गईं लेकिन उनके पिता और मां दोनों की मौत हो गई. सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड ने बताया कि उसके माता-पिता के विवाह के बाद भी किसी से संबंध थे, इसे लेकर घर में कलह होता था. पारिवारिक कलह के चलते पिता ने परिवार समेत आत्महत्या करने की ठानी थी. उन्होंने शेफर्ड के पेट में बम बांधकर ब्लास्ट कर दिया. लेकिन शेफर्ड बच गई और वो दोनों मारे गए.

हादसे के बाद खून से लथपथ शेफर्ड का अजनबियों ने इलाज करवाया. चिकित्सा देखभाल और ऑपरेशन के का पेमेंट किया, क्योंकि उसके दादा-दादी इतने गरीब थे, वे देखभाल का खर्च नहीं उठा सकते थे. बाद में उसे एक अमेरिकी परिवार, रॉब और शेली शेफर्ड ने गोद ले लिया और इस तरह से वो वियतनाम से अमेरिका में बस गई.

paralympian haven shepherd story
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यहां उसके कृत्रिम पैर लगे और उसके हौसलों को उड़ान मिलने लगी. उसने कड़ी मेहनत और लगन से तैराकी सीखी. 2013 में, सिर्फ नौ साल की उम्र में उसने ठान लिया कि वो पैरालंपिक खेलों में भाग लेगी और अब उसका ये सपना पूरा होने वाला है. शेफर्ड पांच तैराकी स्पर्धाओं में भाग लेंगी.

शेफर्ड (Paralympian Haven Shepherd)सोशल मीडिया पर लिखती हैं, ‘पैर खोने के बाद मैं अपने जीवन को बैठकर बिता सकती थी, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया. मैंने चलते रहने का फैसला किया और आज के दिन के लिए, मैं इस बात को लेकर काफी उत्साहित हूं कि यह सब मुझे कहां ले आया. याद रखें… अगर आप दौड़ नहीं सकते, तो चलें… अगर आप चल नहीं सकते हैं, तो रेंगें… अगर आप रेंग नहीं सकते…या दौड़ने से नफरत है…तो तैरें, लेकिन पीछे मत हटना.’

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