गणेश जी का विसर्जन अलग अलग दिन किया जाता है, लेकिन कभी किन्ही परस्थितियों में श्रद्धालु पूरे दस दिन तक पूर्ण विधि विधान करने में असमर्थ होते हैं इसलिए वे गणेश जी को एक दिन, तीन दिन अथवा पांच दिन बाद भी विसर्जित कर सकते हैं। किन्तु एक प्रश्न जो मन में उठता है है वह ये कि इतनी श्रद्धा से गणपति को हम घर लाते हैं फिर उनका पूजन करते हैं, तो दस दिन बाद हम क्यों उन्हें पानी में विसर्जित कर देते हैं?
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गणेश चतुर्थी के बाद गणेश जी की 10 दिन तक विधि विधान के साथ पूजा की जाती है फिर 10 दिन बाद गणेश विसर्जन किया जाता है लेकिन आखिर क्यों 10 दिन बाद गणेश विसर्जन किया जाता है? इस लेख में हम आपको इसके पीछे की एक पौराणिक कथा को बताएंगे तो अंत तक यह लेख जरूर पढ़ें।
विसर्जन का अर्थ क्या है :
विसर्जन संस्कृत भाषा का शब्द है उसका अर्थ है पानी में विलीन होना और यह सम्मान सूचक प्रकिया है। जब भी हम घर में किसी भगवान की मूर्ति की पूजा करते हैं और उसके बाद उनका विसर्जित करके उन्हें सम्मान दिया जाता है।
इस विसर्जन से ये सीख मिलती है कि मनुष्य को अगला जन्म पाने के लिए इस जन्म को त्यागना पड़ेगा। गणेश जी की मूर्ति मिट्टी की बनती है, उसकी पूजा होती है लेकिन फिर उन्हें अगले साल आने के लिए इस साल विसर्जित होना पड़ता है। इस प्रकार हमारा जीवन भी यही है और हमें अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करना होगा और समय समाप्त होने पर अगले जन्म के लिए हमें इस जन्म को छोड़ना पड़ेगा।
पधारे थे व्यास जी की कुटिया पर गणपति:-
हम सभी यह कथा जानते हैं कि वेद व्यास जी ने महाभारत गणेश जी से लिखवाई थी, क्योकि वह सभी देवों में सबसे अधिक बुद्धिमान एवं चतुर थे। और केवल वही बिना किसी त्रुटि के वह पुराण लिख सकते थे। चूँकि गणेश जी ने शर्त रखी थी कि वे लगातार ही महाभारत लिखेंगे, यदि व्यास जी बीच में बोलते हुए रुके तो वे लेखन बंद कर देंगे। यह शर्त व्यास जी ने स्वीकार कर ली और गणेश जी को अपनी कुटिया आने का निमंत्रण दिया।
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जिस दिन गणेश जी कुटिया में पधारे उस दिन चतुर्थी थी, और चतुर्थी के दिन से ही गणेश जी ने महाभारत लिखनी आरम्भ की थी। तब व्यास जी ने आँखे बंद कर के उन्हें महाभारत के घटनाक्रम बताने आरम्भ किये और लगातार दस दिनों तक आँखे बंद करके ही बोलते रहे।
इस बीच वेदव्यास जी ने 10 दिनों तक श्री गणेश को मनपसंद आहार अर्पित किए तभी से प्रतीकात्मक रूप से श्री गणेश प्रतिमा का स्थापन और विसर्जन किया जाता है और 10 दिनों तक उन्हें सुस्वादु आहार चढ़ाने की भी प्रथा है।
बढ़ गया था गणेश जी के शरीर का तापमान:-
दस दिन पश्चात जब वेद व्यास जी ने महाभारत पूर्ण करके आँखे खोली तो देखा लगातार लिखने की वजह से गणेश जी के शरीर का तापमान अत्यंत तीव्र हो गया है। श्री गणपति जी के शरीर का तापमान ना बढ़े इसलिए वेद व्यास जी ने उनके शरीर पर सुगंधित सौंधी माटी का लेप किया।
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यह लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई। माटी झरने भी लगी तब उन्होंने गणेश जी को पास के ही तालाब में ले जाकर उनका जल से अभिषेक किया, जिससे उनके शरीर का तापमान कुछ कम हुआ।
इसके बाद गणेश जी तालाब में स्नान करने उतर गए और उनका तापमान समान्य हो गया और यहीं से गणपति जी वेद व्यास जी को प्रणाम करके अपने धाम लौट गए। इसीलिए यह परंपरा बन गयी की गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी का स्वागत किया जाता है, उनको घर पर विराजित किया जाता है और फिर दस दिन बाद उन्हें उनके धाम विदा करने के लिए पानी में विसर्जित किया जाता है।
दूसरी मान्यता है कि …
मान्यता है कि गणपति उत्सव के दौरान लोग अपनी जिस इच्छा की पूर्ति करना चाहते हैं, वे भगवान गणपति के कानों में कह देते हैं। गणेश स्थापना के बाद से 10 दिनों तक भगवान गणपति लोगों की इच्छाएं सुन-सुनकर इतना गर्म हो जाते हैं कि चतुर्दशी को बहते जल में विसर्जित कर उन्हें शीतल किया जाता है।
विसर्जन से पूर्व रखें ध्यान ये बातें :
गणेश जी के विसर्जन में कुछ बातों का ख़ास ध्यान रखें, जैसे विसर्जन से पूर्व गणपति की आरती करें उनसे सुख और शांति की प्रार्थना करें और अंत में उन्हें अगले बरस आने का न्योता भी दें। इसके बाद गणपति बप्पा मोरया के जयकारे लगाते हुए उनका विसर्जन करें।
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आजकल एक फ्रेंडली गणेश जी भी आ रहे हैं जो कि हमारे पर्यावरण के लिए वरदान हैं, आप भी गणेश चतुर्थी पर एक फ्रेंडली गणेश जी को ही घर पर लाएं। और यदि आप उनका घर पर ही विसर्जन करना चाहते हैं तो एक गमले में पानी भर कर मिटटी के गणेश जी को उसमे विसर्जित करें और उसमे कोई पौधा ऊगा लें। पर ध्यान रखियेगा कि तुलसी का पौधा उसमे न लगाएं क्योकि तुलसी गणेश जी को नहीं चढ़ती।
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