रानी दुर्गावती बलिदान दिवस : गोंड रानी दुर्गावती जिसने अकबर के सामने नहीं झुकाया सिर, जानिए इतिहास | Rani Durgawati Balidan Diwas

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हेल्लो दोस्तों रानी दुर्गावती का नाम भारत की उन महानतम वीरांगनाओं की सबसे अग्रिम पंक्ति में आता है जिन्होंने मातृभूमि और अपने आत्मसम्मान की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान दिया। रानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीरत सिंह की पुत्री और गोंड राजा दलपत शाह की पत्नी थी। इनका राज्य क्षेत्र दूर-दूर तक फैला था।

रानी दुर्गावती बहुत ही कुशल शासिका थीं । इनके शासन काल में प्रजा बहुत सुखी थी और राज्य की ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी। इनके राज्य पर ना केवल अकबर बल्कि मालवा के शासक बाजबहादुर की भी नजर थी। रानी ने अपने जीवन काल में कई युद्ध लड़े और उनमें विजय भी पाई।

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सारा देश प्रतिवर्ष रानी दुर्गावती के साहस और शौर्य के लिए 24 जून को बलिदान दिवस के रूप में मनाता है और रानी दुर्गावती को याद किया जाता है। जबलपुर में रानी की समाधि है और जबलपुर में रानी दुर्गावती के नाम से एक विश्वविद्यालय भी है।रानी दुर्गावती का समाधि स्थल जबलपुर जिले के नरई नाला में स्थित है।

प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ कल्पना जायसवाल ने एक ताम्रपत्र खोजने का दावा किया है, जिससे इस बात की पुष्टि हो जाती है कि रानी दुर्गावती का जन्म कालिंजर के दुर्ग में ही हुआ था। इस ताम्रपत्र में रानी दुर्गावती की जन्म कुंडली भी बनी हुई है जो कि संस्कृत भाषा में है।

रानी दुर्गावती का जन्म

(Rani Durgavatis Birth)

रानी दुर्गावती का जन्म चंदेल राजा कीरत राय (कीर्तिसिंह चंदेल) के परिवार में कालिंजर के किले में 5 अक्टूबर 1524 को महोबा में हुआ था। राजा कीरत राय की पुत्री का जन्म दुर्गा अष्टमी के दिन होने के कारण उसका नाम दुर्गावती रखा गया। वर्तमान में कालिंजर उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में आता है। इनकी माता का नाम माहोबा था। इनके पिता राजा कीरत राय का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता था।

Rani Durgawati Balidan Diwas
Rani Durgawati Balidan Diwas

इनका सम्बन्ध उस चंदेल राज वंश से था जिसके राजा विद्याधर ने महमूद गजनबी को युद्ध में खदेड़ा था और विश्व प्रसिद्ध खजुराहो के कंदारिया महादेव मंदिर का निर्माण करवाया। कन्या दुर्गावती का बचपन उस माहोल में बीता जिस राजवंश ने अपने मान सम्मान के लिये कई लड़ाईयां लड़ी। कीर्तिराय की एकमात्र संतान दुर्गावती ही थी इसीलिए उन्होंने दुर्गावती को एक पुत्र के समान ही समझा था और उन्हें शस्त्र चलाने की शिक्षा बचपन से ही देने लगे थे।

रानी दुर्गावती का विवाह

(Rani Durgavati’s marriage)

दुर्गावती जब विवाह योग्य हुई तब 18 साल की उम्र में सन 1542 में उनका विवाह गोंड राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह (Dalpat Shah) के सांथ संपन्न हुआ। राजा संग्राम शाह का राज्य बहुत ही विशाल था उनके राज्य में 52 गढ़ थे और उनका राज्य वर्तमान मंडला, जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, भोपाल, सागर, दमोह और वर्तमान छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों तक फैला था।

गोंड राजवंश और राजपूतों के इस मेल से शेरशाह सूरी को करार झटका लगा। शेरशाह सूरी ने 1545 को कालिंजर पर हमला कर दिया और बड़ी मुश्किल से कालिंजर के किले को जीतने में सफल भी हो गया, परन्तु अचानक हुए बारूद के विस्फोट से वह मारा गया।

1545 में रानी दुर्गावती ने एक पुत्र को जन्म दिया। पुत्र का नाम वीरनारायण रखा गया। 1550 में राजा दलपत शाह बीमार पड़ गए और उनकी मृत्यु हो गई। पति के ना रहने पर उन्होंने सती होने जाने का निश्चय किया परंतु दलपतशाह के शुभचिंतकों के अनुरोध पर इस दु:ख भरी घड़ी में रानी को अपने नाबालिग पुत्र वीर नारायण को राजगद्दी पर बैठा कर स्वयं राजकाज की बागडोर संभालनी पड़ी।

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रानी दुर्गावती और उनका राज्य

(Rani Durgavati and her kingdom)

रानी दुर्गावती की राजधानी सिंगोरगढ़ थी। वर्तमान में जबलपुर-दमोह मार्ग पर स्थित ग्राम सिंग्रामपुर में रानी दुर्गावती की प्रतिमा से छः किलोमीटर दूर स्थित सिंगोरगढ़ का किला बना हुआ है। सिंगोरगढ़ के अतिरिक्त मदन महल का किला और नरसिंहपुर का चौरागढ़ का किला रानी दुर्गावती के राज्य के प्रमुख गढ़ों में से एक थे। रानी का राज्य वर्तमान के जबलपुर, नरसिंहपुर , दमोह, मंडला, होशंगाबाद, छिंदवाडा और छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों तक फैला था।

रानी के शासन का मुख्य केंद्र वर्तमान जबलपुर और उसके आस-पास का क्षेत्र था। अपने दो मुख्य सलाहकारों और सेनापतियों आधार सिंह कायस्थ और मानसिंह ठाकुर की सहायता से राज्य को सफलता पूर्वक चला रहीं थीं। रानी दुर्गावती ने 1550 से 1564 ईसवी तक सफलतापूर्वक शासन किया। रानी दुर्गावती के शासन काल में प्रजा बहुत सुखी थी और उनका राज्य भी लगातार प्रगति कर रहा था।

रानी दुर्गावती के शासन काल में उनके राज्य की ख्याति दूर-दूर तक फ़ैल गई। रानी दुर्गावंती ने अपने शासन काल में कई मंदिर, इमारते और तालाब बनवाये। इनमें सबसे प्रमुख हैं जबलपुर का रानी ताल, जो रानी दुर्गावती ने अपने नाम पर बनवाया। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरिताल और दीवान आधार सिंह के नाम पर आधार ताल बनवाया। रानी दुर्गावती ने अपने शासन काल में जात-पात से दूर रहकर सभी को समान अधिकार दिए उनके शासन काल में गोंड, राजपूत और कई मुस्लिम सेनापति भी मुख्य पदों पर आसीन थे।

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रानी दुर्गावती और बाज बहादुर की लड़ाई

(Rani Durgavati and Baz Bahadur Battle)

शेर शाह सूरी के कालिंजर के दुर्ग में मरने के बाद मालवा पर सुजात खान का अधिकार हो गया। जिसे उसके बेटे बाजबहादुर ने सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया। गोंडवाना राज्य की सीमा मालवा को छूती थी और रानी के राज्य की ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी। मालवा के शासक बाजबहादुर ने रानी को महिला समझकर कमजोर समझा और गोंडवाना पर आक्रमण करने की योजना बनाई।

1556 में बाजबहादुर ने रानी दुर्गावती पर हमला कर दिया। रानी की सेना बड़ी बहादुरी के सांथ लड़ी और बाजबहादुर को युद्ध में हार का सामना करना पड़ा और रानी दुर्गावती की सेना की जीत हुई। युद्ध में बाजबहादुर की सेना को बहुत नुकसान हुआ। इस विजय के बाद रानी का नाम और प्रसिद्धी और अधिक बढ़ गई।

Rani Durgawati Balidan Diwas
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रानी दुर्गावती और अकबर की लड़ाई

(Rani Durgavati and Akbar’s Battle)

1562 ईसवी में अकबर ने मालवा पर आक्रमण कर मालवा के सुल्तान बाजबहादुर को परास्त कर मालवा पर अधिकार कर लिया। अब मुगल साम्राज्य की सीमा, रानी दुर्गावती के राज्य की सीमाओं को छूने लगी थीं।वहीं दूसरी तरफ अकबर के आदेश पर उसके सेनापति अब्दुल माजिद खान ने रीवा राज्य पर भी अधिकार कर लिया। अकबर अपने साम्राज्य को और अधिक बढ़ाना चाहता था।

इसी कारण वह गोंडवाना साम्राज्य को हड़पने की योजना बनाने लगा। उसने रानी दुर्गावती को संदेश भिजवाया कि वह अपने प्रिय सफेद हांथी सरमन और सूबेदार आधार सिंह को मुगल दरवार में भेज दे। रानी अकबर के मंसूबों से भली भांति परिचित थी उसने अकबर की बात मानने से साफ इंकार कर दिया और अपनी सेना को युद्ध की तैयारी करने का आदेश दिया।

इधर अकबर ने अपने सेनापति आसफ खान को गोंडवाना पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया। जैसे ही मुगल सेना ने घाटी में प्रवेश किया रानी के सैनिकों ने उस पर धावा बोल दिया। लड़ाई में रानी की सेना के फौजदार अर्जुन सिंह मारे गये अब रानी ने स्वयं ही पुरुष वेश धारण कर युद्ध का नेतृत्व किया दोनों तरफ से सेनाओं को काफी नुकसान हुआ। शाम होते होते रानी की सेना ने मुगल सेना को घाटी से खदेड़ दिया और इस दिन की लड़ाई में रानी दुर्गावती की विजय हुई।

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रानी दुर्गावती का बलिदान

(Rani Durgavti Sacrifice)

दो बार हारकर आसफ खान लज्जा और ग्लानी से भर गया। रानी दुर्गावती अपने राजधानी में विजयोत्स्व मना रही थी। उसी गढ़मंडल के एक सरदार ने रानी को धोखा दे दिया। उसने गढ़मंडल का सारा भेद आसफ खान को बता दिया। आसफ खान ने अपने हार का बदला लेने के लिए तीसरी बार गढ़मंडल पर आक्रमण किया। अपनी हार से तिलमिलाई मुग़ल सेना के सेनापति आसफ खान ने दूसरे दिन विशाल सेना एकत्र की और बड़ी-बड़ी तोपों के सांथ दुबारा रानी पर हमला बोल दिया।

रानी दुर्गावती भी अपने प्रिय सफ़ेद हांथी सरमन पर सवार होकर युद्ध मैदान में उतरीं। रानी के सांथ राजकुमार वीरनारायण भी थे रानी की सेना ने कई बार मुग़ल सेना को पीछे धकेला। कुंवर वीरनारायण के घायल हो जाने से रानी ने उन्हें युद्ध से बाहर सुरक्षित जगह भिजवा दिया।

युद्ध के दौरान एक तीर रानी दुर्गावती के कान के पास लगा और दूसरा तीर उनकी गर्दन में लगा। तीर लगने से रानी कुछ समय के लिये अचेत हो गई। जब पुनः रानी को होश आया तब तक मुग़ल सेना हावी हो चुकी थी। रानी के सेनापतियों ने उन्हें युद्ध का मैदान छोड़कर सुरक्षित स्थान पर जाने की सलाह दी परन्तु रानी ने इस सलाह को दरकिनार कर दिया। अपने आप को चारो तरफ से घिरता देख रानी ने अपने शरीर को शत्रू के हाँथ ना लगने देने की सौगंध खाते हुए अपने मान-सम्मान की रक्षा हेतु अपनी तलवार निकाली और स्वयं तलवार घोपकर अपना बलिदान दे दिया और इतिहास में वीरंगना रानी सदा-सदा के लिये अमर हो गई।

जिस दिन रानी ने अपना बलिदान दिया था वह दिन 24 जून 1564 ईसवी था। भारत के इतिहास में रानी दुर्गावती और चाँदबीबी ही ऐसी वीर महिलाएं थी जिन्होंने अकबर की शक्तिशाली सेना का सामना किया तथा मुगलों के राज्य विस्तार को रोका। अकबर ने अपने शासन काल में बहुत सी लड़ाईयां लड़ी किन्तु गढ़मंडल के युद्ध ने मुग़ल सम्राट के दांत खट्टे कर दिए।

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रानी दुर्गावती की समाधि

(Rani Durgavati Samadhi)

वर्तमान में जबलपुर जिले में जबलपुर और मंडला रोड पर स्थित बरेला के पास नारिया नाला वह स्थान है जहां रानी दुर्गावती वीरगती को प्राप्त हुईं थी।  अब इसी स्थान के पास बरेला में रानी दुर्गावती का समाधि स्थल है। प्रतिवर्ष 24 जून को रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर लोग इस स्थान पर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।

रानी दुर्गावती का सम्मान

(In Honar of Rani Durgavati)

  • रानी दुर्गावती के सम्मान में 1983 में जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय कर दिया गया।
  • भारत शासन द्वारा 24 जून 1988 रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर एक डाक टिकट जारी कर रानी दुर्गावती को याद किया।
  • जबलपुर में स्थित संग्रहालय का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर रखा गया।
  • मंडला जिले के शासकीय महाविद्यालय का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर ही रखा गया है।
  • इसी प्रकार कई जिलों में रानी दुर्गावती की प्रतिमाएं लगाई गई हैं और कई शासकीय इमारतों का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर रखा गया है।

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