नमस्कार दोस्तों, आज मैं जिस टॉपिक पर बात करने जा रही हूँ वो हम सभी महिलाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है ! अगर मैं आपसे पूछूं की क्या इस भागदौड़ भरी लाइफ में अपना ध्यान रख पाती हैं? शायद नहीं। जी हां परिवार के हर सदस्य की जरूरत का ध्यान रखना यानि उनकी सेहत, खान-पान और बच्चों को पढ़ाई की सारी जिम्मेदारी को अपना फर्ज मानने वाली महिलाएं खुद अपनी सेहत के बारे में इतनी सजग नहीं होतीं। Every Woman Should Undergo These Tests
उम्र बढ़ने के साथ-साथ महिलाओं में सेहत से जुड़ी परेशानियां भी बढ़नी शुरू हो जाती हैं। 30 की उम्र के बाद महिलाओं में ब्लड प्रैशर, शुगर, जोड़ों का दर्द, पाचन क्रिया में गड़बड़ी, सिर में दर्द और शारीरिक कमजोरी आम सुनने को मिलती है। मगर 30 की उम्र के बाद महिलाओं को इसके अलावा भी बहुत-सी गंभीर बीमारियों का खतरा रहता है। इसलिए 30-40 की उम्र में महिलाओं को खास हैल्थ चेकअप करवा लेने चाहिए। महिलाओं को यह समझना होगा कि अगर उन्हें अपने परिवार को सुखी देखना है तो पहले उन्हें खुद के स्वास्थ्य पर ध्यान देना होगा।
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भागदौड़ भरी जिंदगी और उम्र के साथ शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव की वजह से पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं का जीवन ज्यादा कठिन होता है. यही वजह है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को कुछ बीमारियां भी अपना शिकार ज्यादा बनाती हैं. ऐसे में उन्हें अपने स्वास्थ्य की ज्यादा देखभाल करने की जरूरत होती है. अच्छी सेहत बनाए रखने के लिए महिलाओं को समय-समय पर कुछ जरूरी टेस्ट करवाते रहने चाहिए. आइए जानते हैं आखिर कौन से हैं वो जरूरी टेस्ट.
विषयसूची :
1. थायराइड :
थायराइड में वजन बढ़ने के साथ हार्मोन असंतुलन भी हो जाते हैं. एक स्टडी के मुताबिक, पुरुषों की तुलना में महिलाओं में थायराइड विकार दस गुना ज्यादा होता है.इसका मुख्य कारण है महिलाओं में ऑटोम्यून्यून की समस्या ज्यादा होना है. हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक,थायराइड हार्मोन शरीर के अंगों के सामान्य कामकाज के लिए जरूरी होते हैं. हाइपरथायरायडिज्म में वजन घटना, गर्मी न झेल पाना, ठीक से नींद न आना, प्यास लगना, अत्यधिक पसीना आना, हाथ कांपना, दिल तेजी से धड़कना, कमजोरी, चिंता, और अनिद्रा शामिल हैं. हाइपोथायरायडिज्म में सुस्ती, थकान, कब्ज, धीमी हृदय गति, ठंड, सूखी त्वचा, बालों में रूखापन, अनियमित मासिकचक्र और इन्फर्टिलिटी के लक्षण दिखाई देते हैं.
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2. एचपीवी :
एचपीवी का अर्थ ह्यूमन पेपिलोमा वायरस होता है.पेपिलोमा एक खास प्रकार का मस्सा होता है, जो किसी विशेष प्रकार के एचपीवी से फैलता है. ह्यूमन पेपिलोमा वायरस यानी एचपीवी बहुत खतरनाक होता है. यह वायरस बहुत तेजी से फैलता है. ह्यूमन पेपिलोमा वायरस संक्रमण ऐसा संक्रमण है, जिसके लक्षण आमतौर पर नजर नहीं आते हैं.ज्यादातर मामलों में यह संक्रमण स्वत: ही ठीक हो जाता है. लेकिन, गंभीर रूप लेने पर यह सरवाइकल कैंसर का कारण भी बन सकता है.
3. मेमोग्राम :
महिलाओं को ज्यादातर ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बना रहता है. ब्रेस्ट कैंसर और ट्यूमर की जांच के लिए यूं तो मेडिकल साइंस में कई टैस्ट बताए जाते हैं लेकिन मेमोग्राम इस रोग के बारे में सटीक जानकारी देने का सस्ता तरीका है. मेमोग्राम आपके स्तनों का एक्स-रे है.यह स्तनों के कैंसर की पहचान का सर्वश्रेष्ठ तरीका है. महिलाओं को 40 की उम्र के बाद स्तन कैंसर के खतरे से बचने के लिए प्रतिवर्ष मेमोग्राम करवाना चाहिए.
4. पैप स्मीयर :
गर्भाशय कैंसर का पता लगाने के लिए एक विशेष जांच की जाती है जिसे ‘पैप स्मीयर’ कहा जाता है. स्तन कैंसर के बाद सर्विक्स कैंसर दूसरी ऐसी बीमारी है जो आजकल महिलाओं को अपना शिकार बना रही हैं. पैप स्मीयर एक साधारण टेस्ट है जिसमें ग्रीवा से कोशिकाओं के एक छोटे से सैम्पल को कैंसर की स्थिति का पता लगाने के लिए लिया जाता है. 30 साल या इससे ज्यादा उम्र की महिलाओं को पैप स्मियर टेस्ट जरूर करवाना चाहिए.
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5. बोन डेंसिटी टेस्ट :
हड्डियों के कमजोर होने पर छोटा-मोटा झटका या चोट लगने पर इसके टूटने की संभावना बढ़ जाती है. जिसकी वजह से ऑस्टियोपोरोसिस और ऑस्टियोपीनिया जैसी बीमारियां का खतरा भी बना रहता है. आजकल गलत खान-पान की वजह से ये समस्या 20 से 30 साल की उम्र की लड़कियों में भी देखी जा सकती है.
बोन डेंसिटी टेस्ट डीएक्सए मशीन पर किया जाता है. डीएक्सए का अर्थ है ड्युअल एक्स-रे एबसोरपटियोमेट्री. इसकी जांच के नतीजों में एक जेड स्कोर आता है और एक टी स्कोर. टी स्कोर मेनोपॉज हासिल कर चुकी महिलाओं और 50 वर्ष से अधिक आयु के पुरुषों के निदान के बारे में जानकारी देता है.जबकि जेड स्कोर आपकी उम्र में सामान्य बोन डेंसिटी क्या होनी चाहिये के बारे में जानकारी देता है.
6. विटामिन डी :
आज के समय में हम प्रकृति में कम, एसी में ज्यादा समय बिताते हैं। ऐसे में हमारी बॉडी में विटामिन-डी की कमी हो जाती है। इसलिए 30 की उम्र के बाद महिलाओं के लिए विटामिन-डी का टेस्ट करवाना बेहद जरूरी होता है। विटामिन-डी फैट में घुलने वाले प्रो-हार्मोन्स का एक ग्रुप है, जो आंतों से कैल्शियम को सोखकर हड्डियों में पहुंचाता है। इसके अलावा बॉडी में विटामिन डी-3 की कमी कमजोर हड्डियों के लिए जिम्मेदार हो सकती है।
7. डिप्रेशन टेस्ट :
यह तो आप जानते ही हैं कि आज की महिलाएं अपने परिवार और ऑफिस में इस कदर उलझी रहती है कि वह सही तरीके से अपने खान-पान और आराम का ध्यान नहीं रख पाती हैं। जिससे उसको डिप्रेशन होने लगता है। यहां तक कि प्रेग्नेंसी के दौरान भी उन्हें डिप्रेशन होने लगता है। इसलिए डिप्रेशन को कम करने के लिए महिलाओं को स्क्रीनिंग टेस्ट करवाना बेहद जरूरी होता है। स्क्रिनिंग टेस्ट में डॉक्टर नींद की आदतों, परेशानियों, दबी हुई इच्छाओं और पसंदीदा एक्टिविटी आदि के बारे में सवाल पूछता है, जिससे महिलाओं का डिप्रेशन कम हो सकता है।
8. बीएमआई टेस्ट :
30 वर्ष की उम्र के बाद नियमित बीएमआई यानि बॉडी मास इंडेक्स चेक करना बेहद जरूरी होता है, इसलिए साल में एक बार बीएमआई जरूर करवाएं। बीएमआई से यह पता चलता है कि शरीर का वजन लंबाई के अनुपात में ठीक है या नहीं। महिलाओं का आदर्श बीएमआई 22 तक होता है। इससे अधिक बीएमआई मोटापे और कमजोर मसल्स का कारण बन सकता है।
9. ब्लड प्रेशर टेस्ट :
30 की उम्र के बाद BP की समस्या हो जाती है, इसलिए महीने में एक बार बीपी चेक कराएं। हाई ब्लड प्रेशर के कारण किडनी, हार्ट और ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ सकता है।
10. कोलेस्ट्रोल और हीमोग्लोबिन :
यूं तो यह बात हम सभी जानते हैं कि महिलाओं में हीमोग्लोबिन की कमी पाई जाती है। इसके साथ ही उनमें कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ने का खतरा भी ज्यादा होता है। ऐसे में इस उम्र के बाद यह दोनों चेकअप करवा लेने में ही समझदारी है। ये टेस्ट करवाकर आप अपनी डाइट को नियंत्रित कर सकती हैं।
11. डायबिटीज :
अगर आपने उम्र का 30 वां पड़ाव पार कर लिया है, आपका वजन ज्यादा है, डायबिटीज की फैमिली हिस्टरी है और प्रेग्नेंसी के दौरान आपको डायबिटीज रहा है तो साल में एक बार फास्टिंग और ब्लड शुगर लेवल चेक कराएं। बढ़ी हुई शुगर डायबिटीज का कारण बन सकती है।