हेल्लो दोस्तों सनातन संस्कृति के सभी व्रतों में विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi Vrat) का व्रत उत्तम माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत के करने मानव के सभी पापों का नाश हो जाता है और इहलोक में सभी सुखों को भोगने के बाद परलोक में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
विजया एकादशी का व्रत करने से मानव को विजय का वरदान मिलता है और उसको शत्रुबाधा से मुक्ति मिलती है। इसलिए शास्त्रों में विजया एकादशी के व्रत का बड़ा महत्व बतलाया गया है। विजया एकादशी को संकटों का नाश करने वाली एकादशी कहा गया है।
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सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। यूं तो सालभर में कई एकादशी व्रत है और सबका अपना-अपना महत्व है। 9 मार्च को विजय एकादशी है। विजया एकादशी हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी मनाई जाती है। यह एकादशी महाशिवरात्रि से दो दिन पहले आती है।
सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और कष्टों से मुक्ति मिलती है। विजया एकादशी के दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा अर्चना पूरे विधि-विधान से की जाती है।

माह में दो बार आती है एकादशी :
वैसे तो ग्रह-नक्षत्रों की गणना के अनुसार हर माह में दो बार एकादशी आती हैं। एक शुक्ल पक्ष के बाद और दूसरी कृष्ण पक्ष के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्षीय एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष एकादशी कहा जाता है।
हर पक्ष की एकादशी का अपना महत्व है। पद्म पुराण के बताया गया है कि खुद भगवान महादेव ने नारद जी को उपदेश देते हुए कहा था कि एकादशी व्रत महान पुण्य देने वाला होता है और जो मनुष्य एकादशी का व्रत रखता है उसके पितृ और पूर्वज कुयोनि को त्याग स्वर्ग लोक चले जाते हैं। इस दिन श्रीराम ने लंका विजय के लिए समुद्र किनारे पूजा की थी। श्रीराम को महर्षि वकदालभ्य ने अपने सेनापतियों के साथ विजया एकादशी का व्रत करने के लिए कहा था।
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विजया एकादशी व्रत शुभ मुहूर्त :
- एकादशी तिथि आरंभ– 08 मार्च 2021 दिन सोमवार दोपहर 03.44 मिनट से
- एकादशी तिथि समाप्त– 09 मार्च 2021 दिन मंगलवार दोपहर 03.02 मिनट पर
- विजया एकादशी पारणा मुहूर्त– 10 मार्च को 06:37:14 से 08:59:03 तक।
विजया एकादशी व्रत कथा :
पौराणिक कथा के अनुसार, राम वनवास के दौरान रावण ने माता सीता का हरण कर लिया. तब भगवान राम और उनके अनुज लक्ष्मण बहुत ही चिंतित हुए. माता सीता की खोज के दौरान हनुमान की मदद से भगवान राम की वानरराज सुग्रीव से मुलाक़ात हुई. वानर सेना की मदद से भगवान राम लंका पर चढ़ाई करने के लिए विशाल समुद्र तट पर आये. विशाल समुद्र के चलते लंका पर चढ़ाई कैसे की जाए. इसके लिए कोई उपाय समझ में नहीं आ रहा था.

अंत में भगवान राम ने समुद्र से मार्ग के लिए निवेदन किया. परन्तु मार्ग नहीं मिला. फिर भगवान राम ने ऋषि-मुनियों से इसका उपाय पूंछा. तब ऋषि-मुनियों ने विजया एकादशी का व्रत करने सलाह दी. साथ ही यह भी बतया कि किसी भी शुभ कार्य की सिद्धि के लिए व्रत करने का विधान है.
ऋषि-मुनियों की सलाह मानकर भगवान राम ने सभी वानर सेना सहित फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को विजया एकादशी का व्रत करके विधि विधान से पूजा पाठ किया. ऐसी मान्यता है कि विजया एकादशी व्रत के प्रभाव से भगवान राम को समुद्र से लंका जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ. यह भी कहा जाता है कि विजया एकादशी व्रत के पुण्य से ही श्रीराम ने रावण पर विजय प्राप्त कर सीता माता को वापस लाया. तब से विजया एकादशी व्रत का महत्त्व और बढ़ गया.
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विजया एकादशी व्रत पूजन विधि :
- एकादशी के दिन सबसे पहले सुबह उठकर स्नान के बाद साफ वस्त्र धारण करें।
- मंदिर में पूजा करने से पहले एक वेदी बनाकर 7 अनाज (उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा) रखें।
- पूजा की वेदी पर कलश स्थापना करें और आम या अशोक के 5 पत्ते लगाएं।
- वेदी पर भगवान विष्णु की प्राण प्रतिष्ठा करें या मूर्ति स्थापित करें।
- भगवान विष्णु को पीले फूल, ऋतुफल और तुलसी दल समर्पित करें और विष्णुजी की आरती उतारें।
- आरती करने के बाद ही फलाहार ग्रहण करें और रात्रि में विश्राम न करें बल्कि भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें।
- अगले दिन सुबह ब्राह्मण भोज कराएं और दान-दक्षिणा देकर विदा करें, इसके बाद खुद भोजन ग्रहण करें।
- संभव हो तो रात्रि जागरण करें और इस दिन जरूरतमंदों को दान दें।