जानिये शीतला सप्तमी/अष्टमी या बसोड़ा की पौराणिक कथा | Shitla Ashtmi Basoda Katha

Shitla Ashtmi Basoda Katha : शीतला अष्टमी होली पर्व के ठीक आठ दिनों बाद मनाई जाती है यानी अष्टमी को। शीतला अष्टमी इस बार 15 मार्च दिन बुधवार को है। हिन्दू धर्म में शीतला अष्टमी के पर्व को बसोड़ा के नाम से भी जाना जाता है। ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक मां शीतला की आराधना कई तरह के दुष्प्रभावों से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए की जाती है। माना जाता है कि माता शीतला का व्रत रखने से सभी प्रकार की बीमारियां दूर भाग जाती है। इसके साथ ही पूरे साल सभी लोग चर्म रोग तथा चेचक और कई बीमारियों से दूर रहते हैं।

शीतला सप्तमी जिसे बसौड़ा भी कहा जाता है, होली के बाद आने वाली सप्तमी या अष्टमी के दिन मनाई जाती है. इस दिन शीतला माता का व्रत और पूजन किया जाता है. शीतला माता की पूजा चेत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से आरंभ हो जाती है.यह पूजा होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार अथवा बृहस्पतिवार के दिन से शुरू की जाती है.

शीतला अष्टमी से जुडी दो कथायें प्रचलित है आज हम आपको उन दोनों कथाओं के बारे में बता रहे हैं –

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शीतला माता की पहली कथा –

एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो आज देखु कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता है, कौन मुझे मानता है। यही सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गाँव में आई और देखा कि इस गाँव में मेरा मंदिर भी नही है, ना मेरी पुजा है।

माता शीतला गाँव कि गलियो में घूम रही थी, तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी (मांड) निचे फेका। वह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में (छाले) फफोले पड गये। शीतला माता के पुरे शरीर में जलन होने लगी।

शीतला माता गाँव में इधर उधर भाग भाग के चिल्लाने लगी अरे में जल गई, मेरा शरीर तप रहा है, जल रहा हे। कोई मेरी मदद करो। लेकिन उस गाँव में किसी ने शीतला माता कि मदद नही करी। वही अपने घर के बहार एक कुम्हारन (महिला) बेठी थी। उस कुम्हारन ने देखा कि अरे यह बूढी माई तो बहुत जल गई है। इसके पुरे शरीर में तपन है। इसके पुरे शरीर में (छाले) फफोले पड़ गये है। यह तपन सहन नही कर पा रही है।

तब उस कुम्हारन ने कहा है माँ तू यहाँ आकार बैठ जा, मैं तेरे शरीर के ऊपर ठंडा पानी डालती हूँ। कुम्हारन ने उस बूढी माई पर खुब ठंडा पानी डाला और बोली है माँ मेरे घर में रात कि बनी हुई राबड़ी रखी है थोड़ा दही भी है। तू दही-राबड़ी खा लें। जब बूढी माई ने ठंडी (जुवार) के आटे कि राबड़ी और दही खाया तो उसके शरीर को ठंडक मिली।

Sheetla Ashtami Scientific Reason

तब उस कुम्हारन ने कहा आ माँ बेठ जा तेरे सिर के बाल बिखरे हे ला में तेरी चोटी गुथ देती हु और कुम्हारन माई कि चोटी गूथने हेतु (कंगी) कागसी बालो में करती रही। अचानक कुम्हारन कि नजर उस बुडी माई के सिर के पिछे पड़ी तो कुम्हारन ने देखा कि एक आँख वालो के अंदर छुपी हैं।

यह देखकर वह कुम्हारन डर के मारे घबराकर भागने लगी तभी उस बूढी माई ने कहा रुक जा बेटी तु डर मत। मैं कोई भुत प्रेत नही हूँ। मैं शीतला देवी हूँ। मैं तो इस घरती पर देखने आई थी कि मुझे कौन मानता है। कौन मेरी पुजा करता है। इतना कह माता चारभुजा वाली हीरे जवाहरात के आभूषण पहने सिर पर स्वर्णमुकुट धारण किये अपने असली रुप में प्रगट हो गई।

माता के दर्शन कर कुम्हारन सोचने लगी कि अब में गरीब इस माता को कहा बिठाऊ। तब माता बोली है बेटी तु किस सोच मे पड गई। तब उस कुम्हारन ने हाथ जोड़कर आँखो में आसु बहते हुए कहा- है माँ मेरे घर में तो चारो तरफ दरिद्रता है बिखरी हुई हे में आपको कहा बिठाऊ। मेरे घर में ना तो चौकी है, ना बैठने का आसन।

तब शीतला माता प्रसन्न होकर उस कुम्हारन के घर पर खड़े हुए गधे पर बैठ कर एक हाथ में झाड़ू दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हारन के घर कि दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फेक दिया और उस कुम्हारन से कहा है बेटी में तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हु अब तुझे जो भी चाहिये मुझसे वरदान मांग ले।

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कुम्हारन ने हाथ जोड़ कर कहा है माता मेरी इक्छा है अब आप इसी (डुंगरी) गाँव मे स्थापित होकर यही रहो और जिस प्रकार आपने आपने मेरे घर कि दरिद्रता को अपनी झाड़ू से साफ़ कर दूर किया ऐसे ही आपको जो भी होली के बाद कि सप्तमी को भक्ति भाव से पुजा कर आपको ठंडा जल, दही व बासी ठंडा भोजन चढ़ाये उसके घर कि दरिद्रता को साफ़ करना और आपकी पूजा करने वाली नारि जाति (महिला) का अखंड सुहाग रखना। उसकी गोद हमेशा भरी रखना। साथ ही जो पुरुष शीतला सप्तमी को नाई के यहा बाल ना कटवाये धोबी को पकड़े धुलने ना दे और पुरुष भी आप पर ठंडा जल चढ़कर, नरियल फूल चढ़ाकर परिवार सहित ठंडा बासी भोजन करे उसके काम धंधे व्यापार में कभी दरिद्रता ना आये।

तब माता बोली तथाअस्तु है बेटी जो तुने वरदान मांगे में सब तुझे देती हु । है बेटी तुझे आर्शिवाद देती हूँ कि मेरी पुजा का मुख्य अधिकार इस धरती पर सिर्फ कुम्हार जाति का ही होगा। तभी उसी दिन से डुंगरी गाँव में शीतला माता स्थापित हो गई और उस गाँव का नाम हो गया शील कि डुंगरी। शील कि डुंगरी भारत का एक मात्र मुख्य मंदिर है। शीतला सप्तमी वहाँ बहुत विशाल मेला भरता है। इस कथा को पड़ने से घर कि दरिद्रता का नाश होने के साथ सभी मनोकामना पुरी होती है।

Shitla Ashtmi Basoda Katha
Shitla Ashtmi Basoda Katha

शीतला माता की दूसरी कथा –

एक गांव था. उसमे कुम्हारन रहती थी .वह कुम्हारन बसौड़ा के दिन शीतला माता की पूजा करती और एक दिन पहले का बनाया हुआ ठंडा और बासी भोजन खाया करती थी. कुम्हारन के गांव में कोई भी माता की ना तो पूजा करता था और ना ही कोई ठंडी रोटी खाता था.

एक दिन उस गांव में एक बुढ़िया आई. उस दिन शीतला सप्तमी थी. वह बुढ़िया हर एक घर जाकर कहने लगी “कोई मेरी जुएँ निकाल दो, कोई मेरी जुएँ निकाल दो.” बुढ़िया जिस घर में जाती हर घर से बुढ़िया को यही जवाब मिलता कि तुम बाद में आना, अभी हम खाना बना रहे हैं. बुढ़िया कुम्हारन के घर गई, उसने कुम्हारन से कहा कि मेरी जुएँ निकाल दो. कुम्हारन खाली थी, क्योंकि उस दिन उसने शीतला माता का व्रत रखा था, उसे खाना नहीं बनाना था. क्योंकि वह उस दिन बासी और ठंडी रोटी खाती थी.

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कुम्हारन ने कहा “बुढ़िया मां आओ मैं तुम्हारी जुएँ निकाल देती हूं.” कुम्हारन ने बुढ़िया की सारी जुएँ निकाल दी. शीतला माता जिन्होंने बुढ़िया का वेश बना रखा था, वह कुम्हारन से बहुत प्रसन्न हुई और उन्होंने कुम्हारन को साक्षात दर्शन दिए और आशीर्वाद दिया. उसी दिन कुम्हारन के गांव में आग लग गई और सारा गांव जलकर राख हो गया. लेकिन कुम्हारन के घर पर कोई भी आंच नहीं आई. गांव वालों ने कुम्हारन से पूछा कि भला तेरा घर कैसे बच गया इस आग से. कुम्हारन बोली “यह तो शीतला माता की कृपा है जिन्होंने मेरा घर बचाया है.” कुम्हारन ने गांव वालों कहा कि मैं हर बसोड़ा को शीतला माता का पूजन करके ठंडा खाना खाती हूं.

यह बात राजा को पता चली राजा ने पूरे गांव में ढिंढोरा पिटवा कर मुनादी करवा दी कि अब से सब लोग शीतला माता की पूजा करेंगे और बसोड़ा के दिन बासी और ठंडा खाना खाएंगे. शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता का भोग लगाने के लिए एक दिन पहले ही भोजन बना लिया जाता है. इस बांसी भोग को बसोड़ा कहा जाता है और अष्टमी के दिन इसे नैवेद्य के रूप में देवी को चढ़ाया जाता है और प्रसाद के रूप में भक्तों को वितरित किया जाता है.

Shitla Ashtmi Basoda Katha
Shitla Ashtmi Basoda Katha

उत्तर भारत में शीतलाष्टमी का त्यौहार को बसौड़ा के नाम से जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि शीतला अष्टमी के बाद बासी खाना खाया नहीं जाता है. यह ऋतु का अंतिम दिन होता है जिस दिन बासी खाना खा सकते हैं. शीतला माता का बहुत अधिक माहात्म्य है. शीतला देवी का वाहन स्कंद पुराण में गर्दभ बताया गया है.

शीतला माता अपने हाथ में कलश ,सूप, झाड़ू तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं, जो इस बात का प्रतीक है चेचक का रोगी व्यग्रता में वस्त्र उतार देता है, सूप से रोगी की हवा की जाती है, झाड़ू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं और नीम के पत्ते फोडों को सड़ने नहीं देते, कलश का महत्व है की रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है और चेचक के दाग मिटाने के लिए गधे की लीद से लिपा जाता है. जिस दिन शीतला माता की पूजा होती है उस दिन घर में चूल्हा नहीं चलाया जाता.

प्रातः काल उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर ठंडे पानी से स्नान करें. उसके पश्चात संकल्प लेकर पूरे विधि विधान से मां शीतला की पूजा करें. इस दिन बासी भोजन का भोग लगाना चाहिए इस भोग में आप शीतला माता के पूजन के लिए भोग में पूरी , पापड़ी , हलवा, लापसी , चावल , राबड़ी अपनी इच्छा के अनुसार जैसी परम्परा हो बनाये. रात्रि में माता का गीत गाकर जागरण करें. शीतला माता का व्रत पूरे विधि विधान और सच्चे मन से करने पर शीतला माता धन-धान्य, सुख -संपत्ति, बच्चों पर चेचक और आरोग्य का आशीर्वाद देती हैं.

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