हिंदू धर्म में इस बात का वर्णन मिलता है कि जो इंसान एकादशी का व्रत करता है उसका जीवन कष्टों से दूर रहता है। एकादशी का व्रत करने वाले भक्तों के सभी काम पूर्ण होते हैं और उनके घर में सुख समृद्धि का वास होता है। इस वर्ष षटतिला एकादशी फरवरी महीने की पहली एकादशी को मनाई जाएगी। षटतिला एकादशी का बहुत महत्व है और इस दिन तिल का उपयोग करने का रिवाज है। कहा जाता है कि इस दिन जो इंसान तिल का उपयोग करता है और अपनी इच्छा अनुसार तिल का दान करता है उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। Shattila Ekadashi 2021
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फरवरी महीने में पहली एकादशी 7 फरवरी को पड़ रही है जिसे षटतिला एकादशी भी कहा जाता है। हिन्दू पचांग के अनुसार हर मास मे दो एकादशी पड़ती है अर्थात पूरे वर्ष मे कुल चौबीस (24)। इन सब मे माघ मास के कृष्ण पक्ष मे पड़ने वाली षटतिला एकादशी का अपना विशेष महत्व है। जैसे की नाम से ही स्पष्ट है “षटतिला “ अर्थात “छ प्रकार के तिल” जो की इस प्रकार से है “तिल का स्नान ,तिल का उबटन ,तिल का हवन , तिल का तर्पण, तिल से बन हुआ भोजन और तिल का दान” आज के दिन इन सभी वस्तुओ के प्रयोग और भगवान विष्णु की आराधना करने से व्यक्ति के सभी प्रकार के पापो का विनाश हो जाता है।
षटतिला एकादशी की तिथि, शुभ मुहूर्त और पारण समय
एकादशी तिथि प्रारम्भ- 07 फरवरी, रविवार को सुबह 06 बजकर 26 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त- 08 फरवरी, सोमवार को सबुह 04 बजकर 47 मिनट तक
षटतिला एकादशी पारणा मुहूर्त: 08 फरवरी, सोमवार को 07 बजकर 05 मिनट से 09 बजकर 17 मिनट तक

इस दिन जरूर करें ये काम…
- इस दिन तिल के जल से नहाएं।
- पिसे हुए तिल का उबटन लगाएं।
- तिलों का हवन करें
- तिल वाला पानी पीए
- तिलों का दान दें।
- तिलों की मिठाई बनाएं
क्यों हर मास मे पड़ती है एकादशी :
ये स्थिति पूर्णत चन्द्रमा की गति को निर्दिष्ट करती है। चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करने मे लगभग एक मास का समय लगाता है और लगभग इतना ही समय वह अपने अक्ष पर घूमने मे भी लगाता है जिससे इसकी स्थिति पृथ्वी के सापेक्ष मास के हर दिन बदलती रहती है जिसे हम चंद्रमा की कलाओ के रूप मे जानते है इसी गति के कारण हर माह मे चंद्रमा का आकार बढ़ता हुआ तथा घटता हुआ दिखाई पड़ता है जिसे हिन्दू पंचांग के अनुसार शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की संज्ञा दी गयी है इन सबमे से षटतिला एकादशी कीअपनी महत्ता है। क्योकि अधिकांशतः ज्योतिष और पंडितो मे यह भ्रांति फैली है की शुक्ल पक्ष मे पड़ने वाली एकादशी ही व्रत के लिए उत्तम है जो की पूर्णतः सही नही है।
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क्या है षटतिला एकादशी का महत्व?
जैसा कि हमने आपको बताया षटतिला एकादशी के दिन तिल का उपयोग करना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि जो इंसान इस दिन 6 तरह के तिल का उपयोग करता है उसके सारे पाप धुल जाते हैं और वह बैकुंठ धाम के योग्य हो जाता है। अगर आप भी एकादशी का व्रत करना चाहते हैं तो आप तिल का इस्तेमाल स्नान, उबटन, आहुति, तर्पण दान और खाने के लिए कर सकते हैं।
एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है लिहाज़ा इस दिन नहा धोकर सबसे पहले भगवान विष्णु की पूजा और ध्यान करें। अगले दिन द्वादशी पर सुबह सवेरे नहा धोकर भगवान विष्णु को भोग लगाएं और फिर ब्राह्मणों को भोजन कराएं। अगर ब्राह्मणोंं को भोजन कराने मे समर्थ ना हो तो एक ब्राह्मण के घर सूखा सीधा भी दिया जा सकता है। सीधा देने के बाद खुद अन्न ग्रहण करें।

षटतिला एकादशी की व्रत कथा..
भगवान विष्णु ने एक दिन नारद मुनि को षटतिला एकादशी व्रत की कथा सुनाई थी जिसके मुताबिक प्राचीन काल में धरती पर एक विधवा ब्राह्मणी रहती थी। जो मेरी बड़ी भक्त थी और पूरी श्रद्धा से मेरी पूजा करती थी। एक बार उस ब्राह्मणी ने एक महीने तक व्रत रखा और मेरी उपासना की। व्रत के प्रभाव से उसका शरीर तो शुद्ध हो गया लेकिन वो ब्राह्नणी कभी अन्न दान नहीं करती थी, एक दिन भगवान विष्णु खुद उस ब्राह्मणी के पास भिक्षा मांगने पहुंचे। जब विष्णु देव ने भिक्षा मांगी तो उसने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर देे दिया। तब भगवान विष्णु ने बताया कि जब ब्राह्मणी देह त्याग कर मेरे लोक में आई तो उसे यहां एक खाली कुटिया और आम का पेड़ मिला।
खाली कुटिया को देखकर ब्राह्मणी ने पूछा कि मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया क्यों मिली? तब मैंने बताया कि यह अन्नदान नहीं करने तथा मुझे मिट्टी का पिण्ड देने के कारण हआ है। तब भगवान विष्णु ने बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं, तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब वो आपको षटतिला एकादशी के व्रत का विधान बताएं। तब ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का व्रत किया और उससे उसकी कुटिया धन धान्य से भर गई।