दाम्पत्य सुख के लिए किया जाता है रवि प्रदोष व्रत, जानिये पूजन विधि, कथा, उद्यापन और महत्त्व | Ravi Pradosh Vrat Poojan

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देवों के देव महादेव शिव का पूजन के लिए सोमवार का दिन उत्तम माना गया है। लेकिन इसके अलावा सालभर में कई शुभ योग ऐसे होते हैं, जब भगवान शिव अपने भक्तों पर जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं।

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प्रदोष व्रत जब रविवार के दिन होता है तो उसे रवि प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है. रवि प्रदोष व्रत को करने से सुखी जीवन और लंबी आयु प्राप्त होती है. साथ ही शिव जी के आशीर्वाद से रोगों से मुक्ति मिलती है. माना जाता है कि जो व्यक्ति काफी समय से रोग से ग्रसित है, उसे रवि प्रदोष व्रत करना चाहिए.

रविवार का दिन सूर्य देव को समर्पित होता है. ऐसे में इस रवि प्रदोष व्रत (Ravi Pradosh Vrat) में भगवान शिव शंकर और माता पार्वती के साथ सूर्य देव की विधि पूर्वक पूजा करने से अपार धन-संपत्ति, सुख और वैभव की प्राप्ति होगी.

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ज्योतिष अनुसार व्रत को करने से जीवन की अनेक समस्याएं दूर की जा सकती हैं। रवि प्रदोष व्रत करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए और इस दिन किस विधि से करें भगवान शिव की उपासना, आइए जानते हैं…

रवि प्रदोष व्रत तिथि एवं पूजा मुहूर्त – Ravi Pradosh Shubh Muhurt

त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ – मार्च 19 सुबह 08 बजकर 07 मिनट ,
त्रयोदशी तिथि का समाप्त – मार्च 20 सुबह 04 बजकर 55 मिनट,
पूजा का मुहूर्त – मार्च 19 शाम 6 बजकर 31 से 8 बजकर 54 मिनट तक

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Ravi Pradosh Vrat Poojan

रवि प्रदोष व्रत विधि – Ravi Pradosh Vrat Vidhi

  • रवि प्रदोष व्रत के दिन व्रती को प्रात:काल उठकर नित्य क्रम से निवृत हो स्नान कर शिव जी का पूजन करना चाहिये। पूरे दिन मन ही मन “ऊँ नम: शिवाय ” का जप करें। पूरे दिन निराहार रहें।
  • व्रती को चाहिये की शाम को दुबारा स्नान कर स्वच्छ श्वेत वस्त्र धारण कर लें। पूजा स्थल अथवा पूजा गृह को शुद्ध कर लें। यदि व्रती चाहे तो शिव मंदिर में भी जा कर पूजा कर सकते हैं। पांच रंगों से रंगोली बनाकर मंडप तैयार करें। पूजन की सभी सामग्री एकत्रित कर लें।
  • कलश अथवा लोटे में शुद्ध जल भर लें। कुश के आसन पर बैठ कर शिव जी की पूजा विधि-विधान से करें। “ऊँ नम: शिवाय ” कहते हुए शिव जी को जल अर्पित करें। इसके बाद दोनों हाथ जो‌ड़कर शिव जी का ध्यान करें।

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रवि प्रदोष पूजन विधि – Ravi Pradosh Poojan Vidhi

  • इस दिन सूर्य उदय होने से पहले उठें। नहा धोकर साफ हल्के सफेद या गुलाबी कपड़े पहनें।
  • सूर्य नारायण जी को तांबे के लोटे से जल में शक्कर डालकर अर्घ्य दें।
  • सारा दिन भगवान शिव के मन्त्र ॐ नमः शिवाय मन ही मन जाप करते रहें और निराहार रहें।
  • सांध्य के समय प्रदोष काल में भगवान शिव को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से स्न्नान कराएं।
  • शुद्ध जल से स्न्नान कराकर रोली मौली चावल धूप दीप से पूजन करें।
  • साबुत चावल की खीर और फल भगवान शिव को अर्पण करें।
  • आसन पर बैठकर ॐ नमः शिवाय मन्त्र या पंचाक्षरी स्तोत्र का 5 बार पाठ करें।

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रवि प्रदोष व्रत कथा – Ravi Pradosh Vrat Katha

एक ग्राम में एक दीन-हीन ब्राह्मण रहता था। उसकी धर्मनिष्ठ पत्‍नी प्रदोष व्रत करती थी। उनके एक पुत्र था। एक बार वह पुत्र गंगा स्नान को गया। दुर्भाग्यवश मार्ग में उसे चोरों ने घेर लिया और डराकर उससे पूछने लगे कि उसके पिता का गुप्त धन कहां रखा है। बालक ने दीनतापूर्वक बताया कि वे अत्यन्त निर्धन और दुःखी हैं। उनके पास गुप्त धन कहां से आया। चोरों ने उसकी हालत पर तरस खाकर उसे छोड़ दिया।

बालक अपनी राह हो लिया। चलते-चलते वह थककर चूर हो गया और बरगद के एक वृक्ष के नीचे सो गया। तभी उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उसी ओर आ निकले। उन्होंने ब्राह्मण-बालक को चोर समझकर बन्दी बना लिया और राजा के सामने उपस्थित किया।

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राजा ने उसकी बात सुने बगैर उसे कारागार में डलवा दिया। जब ब्राह्मणी का लड़का घर नहीं पहुंचा तो उसे बड़ी चिंता हुई। अगले दिन प्रदोष व्रत था। ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत किया और भगवान शंकर से मन ही मन अपने पुत्र की कुशलता की प्रार्थना करने लगी।

उसी रात्रि राजा को स्वप्न आया कि वह बालक निर्दोष है। यदि उसे नहीं छोड़ा गया तो तुम्हारा राज्य और वैभव नष्ट हो जाएगा। सुबह जागते ही राजा ने बालक को बुलवाया। बालक ने राजा को सच्चाई बताई।

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राजा ने उसके माता-पिता को दरबार में बुलवाया। उन्हें भयभीत देख राजा ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘तुम्हारा बालक निर्दोष और निडर है। तुम्हारी दरिद्रता के कारण हम तुम्हें पांच गांव दान में देते हैं।’ इस तरह ब्राह्मण आनन्द से रहने लगा। शिव जी की दया से उसकी दरिद्रता दूर हो गई।

Ravi Pradosh Vrat Poojan
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रवि प्रदोष व्रत उद्यापन विधि – Ravi Pradosh Udyapan Vidhi

स्कंद पुराणके अनुसार व्रती को कम-से-कम 11 अथवा 26 त्रयोदशी व्रत के बाद उद्यापन करना चाहिये। उद्यापन के एक दिन पहले (यानी द्वादशी तिथि को) श्री गणेश भगवान का विधिवत षोडशोपचार विधि से पूजन करें तथा पूरी रात शिव-पार्वती और श्री गणेश जी के भजनों के साथ जागरण करें।

उद्यापन के दिन प्रात:काल उठकर नित्य क्रमों से निवृत हो जायें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा गृह को शुद्ध कर लें। पूजा स्थल पर रंगीन वस्त्रों और रंगोली से मंडप बनायें। मण्डप में एक चौकी अथवा पटरे पर शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें। अब शिव-पार्वती की विधि-विधान से पूजा करें। भोग लगायें। रवि प्रदोष व्रत की कथा सुने अथवा सुनायें।

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अब हवन के लिये सवा किलो (1.25 किलोग्राम) आम की लकड़ी को हवन कुंड में सजायें। हवन के लिये गाय के दूध में खीर बनायें। हवन कुंड का पूजन करें। दोनों हाथ जोड़कर हवन कुण्ड को प्रणाम करें। अब अग्नि प्रज्वलित करें। तदंतर शिव-पार्वती के उद्देश्य से खीर से ‘ऊँ उमा सहित शिवाय नम:’ मंत्र का उच्चारण करते हुए 108 बार आहुति दें।

हवन पूर्ण होने के पश्चात् शिव जी की आरती करें। ब्राह्मणों को सामर्थ्यानुसार दान दें एवं भोजन करायें। आप अपने इच्छानुसार एक या दो या पाँच ब्राह्मणों को भोजन एवं दान करा सकते हैं। यदि भोजन कराना सम्भव ना हो तो किसी मंदिर में यथाशक्ति दान करें। इसके बाद बंधु बांधवों सहित प्रसाद ग्रहण करें एवं भोजन करें।

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रवि प्रदोष व्रत में बरतें ये सावधानियां – Ravi Pradosh Tips

  • घर में और घर के मंदिर में साफ सफाई का ध्यान रखें।
  • साफ-सुथरे कपड़े पहन कर ही भगवान शिव और सूर्य की पूजा करें।
  • सारे व्रत विधान में मन में किसी तरीके का गलत विचार ना आने दें।
  • अपने गुरु और पिता के साथ सम्मान पूर्वक व्यवहार करें।
  • रवि प्रदोष व्रत विधान में अपने आप को भगवान शिव को समर्पण कर दें।

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रवि प्रदोष का महत्व – Ravi Pradosh Mahatva

प्रदोष व्रत की महत्वता सप्ताह के दिनों के अनुसार अलग-अलग होती है। रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत और पूजा से आयु वृद्धि तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है। रविवार को शिव-शक्ति पूजा करने से दाम्पत्य सुख भी बढ़ता है। इस दिन प्रदोष व्रत और पूजा करने से परेशानियां दूर होने लगती हैं। रवि प्रदोष का संयोग कई तरह के दोषों को दूर करता है। इस संयोग के प्रभाव से तरक्की मिलती है। इस व्रत को करने से परिवार हमेशा आरोग्य रहता है। साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

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