रंगभरी एकादशी (Rangbhari Ekadashi Vrat Katha) फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहा जाता है। इसे आमलकी एकादशी (aamlaki ekadashi) व्रत कहते हैं। रंगभरी ग्यारस (Rangbhari Gyaras) के दिन भगवान विष्णु जी की आराधना के साथ आंवले की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि आमलकी ग्यारस (aamlaki ekadashi) के दिन भगवान शिव मां पार्वती को पहली बार काशी में लेकर आए थे। इसलिए यह एकादशी बाबा विश्वनाथ के भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है।
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क्यों मनाते हैं रंगभरी एकादशी
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, फाल्गुन शुक्ल की एकादशी को रंगभरी एकादशी के रूप में मनाया जाता है. यह पर्व भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है. रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान शिव माता पार्वती को विवाह के बाद पहली बार काशी नगरी लाए थे। इस दिन समस्त भक्तगण उन पर व समस्त जनता पर रंग अबीर गुलाल उड़ाते, खुशियां मानते हैं।
काशी के विश्वनाथ मंदिर की गली गली इस दिन रंग में सराबोर हो जाती है। इस दिन बाबा अपने भक्तों के साथ अबीर-गुलाल से होली खेलते हैं। पूरा काशी इस दिन हर-हर महादेव के नारे और अबीर गुलाल से सराबोर रहता है। इस दिन बाबा विश्वनाथ के श्रृंगार का बहुत महत्व होता है और इस दिन से काशी में होली का पर्व शुरू हो जाता है. यह पर्व छह दिनों तक चलता है.

रंगभरी एकादशी व्रत मुहूर्त
Rangbhari Ekadashi Muhurat
02 मार्च 2023 को सुबह 06 बजकर 39 मिनट से एकादशी प्रारंभ होगी जो कि 03 मार्च को सुबह 09 बजकर 11 मिनट पर समाप्त होगी। हिंदू धर्म में व्रत उदया तिथि में मान्य होते हैं। ऐसे में पंचांग के अनुसार, रंगभरी या आमलकी एकादशी 03 मार्च 2023 को रखना शुभ रहेगा।
- एकादशी तिथि आरंभ- 02 मार्च 2023 को सुबह 06 बजकर 39 मिनट से
- एकादशी तिथि समाप्त- 03 मार्च को सुबह 09 बजकर 11 मिनट पर
रंगभरी एकादशी व्रत विधि
Rangbhari Ekadashi Vrat Vidhi
- इस दिन सुबह नहाकर पूजा करना जरुरी है।
- घर से एक लोटे में जल भरकर शिव मंदिर के लिए जाएं।
- समी, गुलाल, चन्दन और बेलपत्र भी साथ में ले जाएं।
- पहले शिव लिंग पर चन्दन लगाएं।
- फिर बेल पत्र और जल अर्पित करें।
- इसके बाद अबीर और गुलाल अर्पित करें।
- भोलेनाथ से अपनी सभी परेशानियों को दूर करने के लिए प्रार्थना करें।
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रंगभरी एकादशी का महत्व
Rangbhari Ekadashi Mahatva
फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ आंवले के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि सृष्टि की रचना के समय भगवान विष्णु ने आंवले को पेड़ के रूप में प्रतिष्ठित किया था। इसलिए आंवले के पेड़ में ईश्वर का वास माना गया है। आमलकी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान विष्णु का पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

रंगभरी एकादशी व्रत कथा
Rangbhari Ekadashi Vrat Katha
प्राचीन काल में चित्रसेन नाम का राजा था। उसके राज्य में एकादशी व्रत का बहुत महत्व था। राजा समेत सभी लोग एकादशी का व्रत श्रद्धा भाव के साथ किया करते थे। राजा की आमलकी एकादशी के प्रति बहुत गहरी आस्था थी। एक बार राजा शिकार करते हुए जंगल में बहुत दूर निकल गये।
उसी समय कुछ जंगली और पहाड़ी डाकुओं ने राजा को घेर लिया और डाकू शस्त्रों से राजा पर प्रहार करने लगे, परंतु जब भी डाकू राजा पर प्रहार करते वह शस्त्र ईश्वर की कृपा से पुष्प में परिवर्तित हो जाते। डाकुओं की संख्या अधिक होने के कारण राजा संज्ञाहीन होकर भूमि पर गिर गए। तभी राजा के शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई और उस दिव्य शक्ति ने समस्त दुष्टों को मार दिया, जिसके बाद वह अदृश्य हो गई।
जब राजा की चेतना लौटी तो उसने सभी डाकुओं को मरा हुआ पाया। यह दृश्य देखकर राजा को आश्चर्य हुआ। राजा के मन में प्रश्न उठा कि इन डाकुओं को किसने मारा। तभी आकाशवाणी हुई कि हे राजन! यह सब दुष्ट तुम्हारे आमलकी एकादशी का व्रत करने के प्रभाव से मारे गए हैं।
तुम्हारी देह से उत्पन्न आमलकी एकादशी की वैष्णवी शक्ति ने इनका संहार किया है। इन्हें मारकर वह पुन: तुम्हारे शरीर में प्रवेश कर गई। यह सारी बातें सुनकर राजा को अत्यंत प्रसन्नता हुई, एकादशी के व्रत के प्रति राजा की श्रद्धा और भी बढ़ गई। तब राजा ने वापस लौटकर राज्य में सबको एकादशी का महत्व बतलाया।
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