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हेल्लो दोस्तों एकादशी (ग्यारस) का जिस तरह महत्व माना गया है, उसी तरह प्रदोष व्रत की भी काफी मान्यता है। प्रदोष व्रत हर माह दो बार शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को पड़ता है। इस बार प्रदोष व्रत 11 जुलाई, सोमवार को शुक्ल पक्ष में होगा। आषाढ़ माह में पड़ने वाला सोम प्रदोष व्रत इस बार बहुत महत्वपूर्ण होने वाला है क्योंकि इस बार उस दिन 4 शुभ योग बन रहे हैं।
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शास्त्रों व पुराणों में प्रदोष व्रत को सर्वसुख प्रदान करने वाला माना गया है। जिस तरह से एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है, उसी प्रकार त्रयोदशी का व्रत भगवान शंकर को समर्पित होता है क्योंकि त्रयोदशी का व्रत शाम के समय रखा जाता है इसलिए इसे प्रदोष व्रत कहा जाता है। भगवान शिव को समर्पित इस व्रत को करने से मोक्ष और भोग की प्राप्ति होती है। इस दिन पूजा पाठ करने से कुंडली में कमजोर चंद्रमा बलवान बनता है। इससे कार्य में भी प्रगति होती है।
शास्त्रों में प्रदोष व्रत का बहुत अधिक महत्त्व बताया गया है किन्तु सोमवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ने से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। लोगों द्वारा सोम प्रदोष व्रत करने से चंद्रमा का शुभ प्रभाव प्राप्त होता है साथ ही इस दिन भगवान शिव की उपासना से मनुष्य की सारी मनोकामना पूरी होती है। जो भक्त इस प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) को पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ पूरा करते हैं उनके जीवन की सभी परेशानी और कष्टों को भगवान भोलनाथ दूर कर देते हैं और उत्तम स्वास्थ्य, आयु, धन, सौभाग्य, समृद्धि आती की प्राप्ति होती है। प्रदोष व्रत में प्रदोष काल में पूजा करने का बहुत खास महत्व होता है। तो आइए जानते हैं कि माघ शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत कब है? और पूजा का मुहूर्त क्या है?
सोम प्रदोष व्रत तिथि एवं पूजा का मुहूर्त
Som Pradosh Vrat Muhurt
- सोम प्रदोष व्रत 2022 तिथि – 11 जुलाई 2022
- सोम प्रदोष तिथि प्रारंभ – 11 जुलाई को प्रातः 11.13 बजे से शुरू होकर
- सोम प्रदोष तिथि समाप्त – 12 जुलाई को सुबह 7.46 बजे समाप्त
- सोम प्रदोष पूजा का शुभ मुहूर्त – रात 7:22 से 9:24 तक है।

सोम प्रदोष व्रत में पड़ रहे हैं 4 शुभ योग
Som Pradosh Shubh Yog
सोम प्रदोष व्रत में इस बार सर्वार्थ सिद्धि योग में पड़ रहा है जो सुबह से रात नौ बजे तक रहेगा। उसके बाद ब्रह्म योग बन रहा है। रवि योग सुबह 5:15 से 5:32 तक रहेगा। एक साथ जितने अधिक शुभ योग बनते हैं, उसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन जो लोग पूरे मन से शिव की पूजा करते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आपको बता दें कि इस दिन जया पार्वती का व्रत भी रखा जाएगा। ऐसे में आपको माता पार्वती की कृपा भी प्राप्त होगी।
क्या होता है प्रदोष काल?
Kya Hota Hai Pradosh Kaal
अनेक लोग प्रदोष व्रत के समय को भलीभांति नहीं जानते हैं प्रदोष काल वह समय कहलाता है, जब सूर्यास्त हो चुका हो और रात्रि प्रारंभ हो रही है यानी दिन और रात के मिलन को प्रदोष काल कहा जाता है। इस समय भगवान शिव की पूजा करने से अमोघ फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत के करने से आरोग्य और दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है।
प्रदोष व्रत की पूजा कब करनी चाहिए?
Som Pradosh Me Poojan
प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल में ही करनी चाहिए। यह प्रदोष काल सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक का माना जाता है, इस समय को प्रदोष काल कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
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सोम प्रदोष व्रत की पूजा विधि
Pradosh Vrat Poojan Vidhi
- सोम प्रदोष के दिन गोधूलिकाल (सूर्योदय एवं सूर्यास्त से ठीक पहले) का समय बहुत शुभ माना जाता है।
- प्रदोष व्रत में भगवान शिव का पूजन हमेशा सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक की जाती है।
- इस दिन हल्के लाल या गुलाबी रंग का वस्त्र धारण करना शुभ रहता है.
- अब पूजा स्थल पर देवी पार्वती, भगवान गणेश, भगवान कार्तिक और नंदी के साथ भगवान शिव की पूजा की जाती है।
- इसके बाद शिवलिंग पर दूध, दही और घी आदि से अभिषेक किया जाता है और फिर शिवलिंग पर बिल्व पत्र चढ़ाते हैं।
- ऐसा माना जाता है कि प्रदोष व्रत के दिन बिल्वपत्र चढ़ाने से बहुत ही शुभ फल प्राप्त होता है।
- अभिषेक करते समय “ॐ सर्वसिद्धि प्रदाये नमः” मन्त्र का 108 बार जाप करें.
- इसके बाद भक्त को प्रदोष व्रत कथा पढ़नी या सुननी चाहिए और साथ ही महामृत्युंजय मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए।
- व्रत कथा के बाद पूजा करके व्रत का पारण किया जाता है।
सोम प्रदोष व्रत कथा
Som Pradosh Vrat Katha
स्कंद पुराण में दी गयी एक कथा के अनुसार प्राचीन समय की बात है. एक विधवा ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ रोज़ाना भिक्षा मांगने जाती और संध्या के समय तक लौट आती. हमेशा की तरह एक दिन जब वह भिक्षा लेकर वापस लौट रही थी तो उसने नदी किनारे एक बहुत ही सुन्दर बालक को देखा लेकिन ब्राह्मणी नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है और किसका है ? दरअसल उस बालक का नाम धर्मगुप्त था और वह विदर्भ देश का राजकुमार था. उस बालक के पिता को जो कि विदर्भ देश के राजा थे, दुश्मनों ने उन्हें युद्ध में मौत के घाट उतार दिया और राज्य को अपने अधीन कर लिया. पिता के शोक में धर्मगुप्त की माता भी चल बसी और शत्रुओं ने धर्मगुप्त को राज्य से बाहर कर दिया. बालक की हालत देख ब्राह्मणी ने उसे अपना लिया और अपने पुत्र के समान ही उसका भी पालन-पोषण किया.
कुछ दिनों बाद ब्राह्मणी अपने दोनों बालकों को लेकर देवयोग से देव मंदिर गई, जहां उसकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई. ऋषि शाण्डिल्य एक विख्यात ऋषि थे, जिनकी बुद्धि और विवेक की हर जगह चर्चा थी. ऋषि ने ब्राह्मणी को उस बालक के अतीत यानि कि उसके माता-पिता के मौत के बारे में बताया, जिसे सुन ब्राह्मणी बहुत उदास हुई. ऋषि ने ब्राह्मणी और उसके दोनों बेटों को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और उससे जुड़े पूरे वधि-विधान के बारे में बताया. ऋषि के बताये गए नियमों के अनुसार ब्राह्मणी और बालकों ने व्रत सम्पन्न किया लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इस व्रत का फल क्या मिल सकता है.

कुछ दिनों बाद दोनों बालक वन विहार कर रहे थे तभी उन्हें वहां कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आईं जो कि बेहद सुन्दर थी. राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की एक गंधर्व कन्या की ओर आकर्षित हो गए. कुछ समय पश्चात् राजकुमार और अंशुमती दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और कन्या ने राजकुमार को विवाह हेतु अपने पिता गंधर्वराज से मिलने के लिए बुलाया. कन्या के पिता को जब यह पता चला कि वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार है तो उसने भगवान शिव की आज्ञा से दोनों का विवाह कराया. राजकुमार धर्मगुप्त की ज़िन्दगी वापस बदलने लगी. उसने बहुत संघर्ष किया और दोबारा अपनी गंधर्व सेना को तैयार किया. राजकुमार ने विदर्भ देश पर वापस आधिपत्य प्राप्त कर लिया.
कुछ समय बाद उसे यह मालूम हुआ कि बीते समय में जो कुछ भी उसे हासिल हुआ है वह ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के द्वारा किये गए प्रदोष व्रत का फल था. उसकी सच्ची आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे जीवन की हर परेशानी से लड़ने की शक्ति दी. उसी समय से हिदू धर्म में यह मान्यता हो गई कि जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा करेगा और एकाग्र होकर प्रदोष व्रत की कथा सुनेगा और पढ़ेगा उसे सौ जन्मों तक कभी किसी परेशानी या फिर दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ेगा.
सोम प्रदोष व्रत का महत्व
Som Pradosh Vrat Mahatva
हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत को बहुत शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन पूरी निष्ठा से भगवान शिव की अराधना करने से जातक के सारे कष्ट दूर होते हैं और मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. पुराणों के अनुसार एक प्रदोष व्रत करने का फल दो गायों को दान जितना होता है. इस व्रत के महत्व को वेदों के महाज्ञानी सूतजी ने गंगा नदी के तट पर शौनकादि ऋषियों को बताया था. उन्होंने कहा था कि कलयुग में जब अधर्म का बोलबाला रहेगा, लोग धर्म के रास्ते को छोड़ अन्याय की राह पर जा रहे होंगे उस समय प्रदोष व्रत एक माध्यम बनेगा जिसके द्वारा वो शिव की अराधना कर अपने पापों का प्रायश्चित कर सकेगा और अपने सारे कष्टों को दूर कर सकेगा.
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