प्रदोष व्रत जिसे त्रयोदशी व्रत के नाम से भी जाना जाता हैं। यह व्रत व पर्व माता पार्वती और भगवान शिव को समर्पित है। पुराणों के अनुसार मान्यता है की इस व्रत को करने से बेहतर स्वास्थ और लम्बी आयु का वरदान मिलता है. Pradosh Vrat Katha Vidhi
सूर्यास्त के बाद और रात के आने से पहला का समय प्रदोष काल कहलाता है. जो भगवान शिव की आराधना और इच्छापूर्ति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है.
शास्त्रों में प्रदोष व्रत को भगवान शिव के साथ जोड़ा जाता है. प्राचीन मान्यता के अनुसार चंद्र को क्षय रोग होने के कारण बहुत कष्ट हो रहा था और जिस दिन भगवान शिव ने उनके इस दोष का निवारण किया वो त्रयोदशी तिथि थी इसीलिए यह दिन प्रदोष कहा जाने लगा।
यह भी पढ़ें – जया एकादशी की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्व
साल 2020 में फ़रवरी माह की 7 तारीख शुक्रवार के दिन प्रदोष व्रत रखा जाएगा. शुक्रवार के दिन होने के कारण इसे शुक्र प्रदोष कहा जाता है.
प्रदोष व्रत में शिव पूजा का बड़ा विधान है। इस दिन जो कोई भी भक्त शास्त्रोक्त विधि -विधान से महादेव की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
प्रदोष का व्रत महीने में दो बार आता है और दोनों ही प्रदोष में व्रत और शिव पूजा का बहुत महत्व है। प्रदोष के दिन संध्याकाल में शिव उपासना करने से शिव प्रसन्न होते हैं और मनचाहा वरदान देते हैं।
विषयसूची :
प्रदोष व्रत पूजा विधि :
शास्त्रों में प्रदोष व्रत की पूजा और मंत्र शाम के समय करना शुभ माना जाता है त्रयोदशी तिथि के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान के बाद निराहार व्रत का संकल्प ले.
इसके बाद भगवान शिव की बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि पूजन सामग्री से भगवान शिव की पूजा करें।
पूरे दिन का उपवास के बाद सूर्यास्त होने से कुछ देर पहले फिर से स्नान करे और शुद्ध वस्त्र धारण करें पूजा स्थल को शुद्ध कर लें और मंडप तैयार करे
अब पूजा के लिए उतर-पूर्व दिशा में मुंह करके कुशा के आसन पर बैठकर भगवान शिव के मंत्र ऊँ नम: शिवाय का जाप करें और जल का अर्घ्य दे, इसके बाद भगवान शिव को चावल की खीर का भोग लगाए और अंत में व्रत कथा पढ़े व सुने.
यह भी पढ़ें – देवउठनी एकादशी पर न करें ये काम, नाराज हो सकते हैं विष्णु भगवान
प्रदोष व्रत कथा :
प्राचीनकाल में एक गरीब पुजारी हुआ करता था। उस पुजारी की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी अपने भरण-पोषण के लिए पुत्र को साथ लेकर भीख मांगती हुई शाम तक घर वापस आती थी।
एक दिन उसकी मुलाकात विदर्भ देश के राजकुमार से हुई, जो कि अपने पिता की मृत्यु के बाद दर-दर भटकने लगा था। उसकी यह हालत पुजारी की पत्नी से देखी नहीं गई, वह उस राजकुमार को अपने साथ अपने घर ले आई और पुत्र जैसा रखने लगी।
एक दिन पुजारी की पत्नी अपने साथ दोनों पुत्रों को शांडिल्य ऋषि के आश्रम ले गई। वहां उसने ऋषि से शिव जी के प्रदोष व्रत की कथा एवं विधि सुनी तथा घर जाकर अब वह भी प्रदोष व्रत करने लगी।
एक बार दोनों बालक वन में घूम रहे थे। उनमें से पुजारी का बेटा तो घर लौट गया, परंतु राजकुमार वन में ही रह गया। उस राजकुमार ने गंधर्व कन्याओं को क्रीड़ा करते हुए देखा तो उनसे बात करने लगा। उस कन्या का नाम अंशुमती था। उस दिन वह राजकुमार घर देरी से लौटा।
राजकुमार दूसरे दिन फिर से उसी जगह पहुंचा, जहां अंशुमती अपने माता-पिता से बात कर रही थी। तभी अंशुमती के माता-पिता ने उस राजकुमार को पहचान लिया तथा उससे कहा कि आप तो विदर्भ नगर के राजकुमार हो ना, आपका नाम धर्मगुप्त है।
अंशुमती के माता-पिता को वह राजकुमार पसंद आया और उन्होंने कहा कि शिवजी की कृपा से हम अपनी पुत्री का विवाह आपसे करना चाहते है, क्या आप इस विवाह के लिए तैयार हैं?
राजकुमार ने अपनी स्वीकृति दे दी तो उन दोनों का विवाह संपन्न हुआ। बाद में राजकुमार ने गंधर्व की विशाल सेना के साथ विदर्भ पर हमला किया और घमासान युद्ध कर विजय प्राप्त की तथा पत्नी के साथ राज्य करने लगा।
यह भी पढ़ें – मौनी अमावस्या पर क्यों रहते हैं मौन? जानिए क्या है शुभ मुहूर्त
वहां उस महल में वह पुजारी की पत्नी और पुत्र को आदर के साथ ले आया तथा साथ रखने लगा। पुजारी की पत्नी तथा पुत्र के सभी दुःख व दरिद्रता दूर हो गई और वे सुख से अपना जीवन व्यतीत करने लगे।
एक दिन अंशुमती ने राजकुमार से इन सभी बातों के पीछे का कारण और रहस्य पूछा, तब राजकुमार ने अंशुमती को अपने जीवन की पूरी बात बताई और साथ ही प्रदोष व्रत का महत्व और व्रत से प्राप्त फल से भी अवगत कराया।
उसी दिन से प्रदोष व्रत की प्रतिष्ठा व महत्व बढ़ गया तथा मान्यतानुसार लोग यह व्रत करने लगे। कई जगहों पर अपनी श्रद्धा के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों ही यह व्रत करते हैं। इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी कष्ट और पाप नष्ट होते हैं एवं मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होती है।
शुक्र प्रदोष व्रत के फायदे व महत्व :
प्रदोष व्रत का दिन के अनुसार अलग अलग महत्व होता है यदि यह व्रत रविवार को हो तो उपासक को आयु में वृद्धि और बेहतर स्वास्थ्य का वरदान मिलता है.
सोमवार का प्रदोष व्रत मनोकामनायों पूर्ती के लिए किया जाता है यदि यह व्रत मंगलवार को हो तो रोगों से मुक्ति दिलाता है बुधवार हो हो तो कामना सिद्ध करता है
बृहस्पतिवार के दिन प्रदोष व्रत करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है शुक्रवार के दिन प्रदोष व्रत रखने से सौभाग्य में वृद्धि होती है
वही यदि यह व्रत शनिवार को पड़े तो संतान प्राप्ति का वरदान व्यक्ति को प्राप्त होता है जो लोग शुक्र प्रदोष का व्रत करते है उनपर भगवान शिव की कृपा हमेशा बनी रहती है।
यह भी पढ़ें – साल 2020 में किन राशियों पर रहेगी शनि की मेहरबानी और किन पर होगी टेढ़ी नजर
शुक्र प्रदोष व्रत सावधानियां :
शास्त्रों के अनुसार शुक्र प्रदोष व्रत में कुछ सावधानियां को बरतना जरूरी माना गया है जैसे-
- इस दिन यदि कोई महिला आपके घर पर आये तो उनका मुँह अवस्य मीठा करे और उन्हें जल दे.
- इस दिन घर और घर के मंदिर की साफ-सफाई का जरूर ध्यान रखें।
- प्रदोष व्रत में भगवान शंकर जी की पूजा के समय लाल और पीले रंग के वस्त्र धारण करना शुभ होता है.
- इस दौरान मन में दुष्विचार नहीं आने देने चाहिए.
प्रदोष व्रत उद्यापन विधि :
- शास्त्रों के अनुसार जो लोग प्रदोष व्रत को 11 या फिर 26 त्रयोदशी तक रखते हैं तो उन्हें व्रत का उद्यापन पूरे विधि विधान से करना चाहिए.
- व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि के दिन ही करे.
- प्रदोष व्रत के उद्यापन से पहले श्री गणेश जी की पूजा करे.
- अगले दिन त्रयोदशी तिथि को सुबह जल्दी उठकर स्नान कर ऊँ उमा सहित शिवाय नम: मंत्र का 108 बार जाप और हवन करे.
- हवन पूरा होने के बाद भगवान शिव की आरती और शान्ति पाठ करे.
- अंत में दो ब्रह्माणों को भोजन कराकर उद्यापन की विधि पूरी करे.
यह भी पढ़ें – महिलाओं को जरूर खाना चाहिए कच्चा पपीता, होते हैं गजब के फायदे
शुक्र प्रदोष व्रत महाउपाय :
प्रदोष व्रत भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए विशेष दिन होता है. शुक्रवार के दिन पड़ने के कारण इसे शुक्र प्रदोष कहा जाता है.
शास्त्रों के अनुसार यदि शुक्र प्रदोष व्रत के दिन कुछ उपाय किये जाय तो व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं और उसकी यश कीर्ति में वृद्धि होती है.
शुक्र प्रदोष के दिन सुबह उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद सूर्य देवता को तांबे के लोटे से चीनी मिले जल से अघर्य दें और भगवान शिव के मन्त्र “ॐ नमः शिवाय” का जाप करें।
इसके बाद साबुत चावल की खीर बनाकर भगवान शिव को भोग लगाए इस प्रकार शुक्र प्रदोष के दिन इस उपाय को करने से व्यक्ति के सुख समृद्धि और सौभाग्य में वृद्धि होती है.
Keywords : Pradosh Vrat 2020, Pradosh Vrat Katha Puja Vidhi, Pradosh Vrat Katha, Pradosh Vrat Kab Hai, Pradosh Vrat Puja Vidhi, Pradosh Vrat Upaye