परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi Vrat 2020) को पार्श्व एकादशी, वामन एकादशी (Vaman Ekadashi), जयझूलनी (Jai Jhulni), डोल ग्यारस (Dol Gyaras), जयंती एकादशी आदि कई नामों से जाना जाता है मान्यता है कि इस एकादशी के व्रत से यज्ञ जितना पुण्य फल उपासक को मिलता है इस दिन भगवान विष्णु के वामन स्वरुप की आराधना की जाती है जो साधक अपने पूर्वजन्म से लेकर वर्तमान में जाने-अनजाने किये गए पापों का प्रायश्चित करना चाहते हैं और मोक्ष की कामना रखते हैं उनके लिए यह एकादशी मोक्ष देने वाली, समस्त पापों का नाश करने वाली मानी जाती है
इस साल यह एकादशी 29 अगस्त दिन शनिवार को पड़ रही है इस दिन यह 28 अगस्त की रात्री 8:20 से 29 अगस्त के प्रातः 08:40 तक मुहूर्त है
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इसलिए बोलते हैं परिवर्तिनी एकादशी :
हर मास में दो एकादशी तिथि आती है। इस तरह देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन के लिए प्रस्थान कर जाते हैं और चार महीने तक योगनिद्रा में रहते हैं। इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है। चातुर्मास धार्मिक कार्यों, भक्ति, कथाश्रवण और ध्यान के लिए सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं।
आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और आश्विन इन चार महीनों को चातुर्मास या चौमासा कहा जाता है। भगवान लक्ष्मीनारायण चार मास के श्रवण के बाद देवउठनी एकादशी पर उठते हैं, लेकिन भगवान विष्णु के शयन के दौरान एक समय ऐसा भी आता है, जब श्रीहरी निद्रा में करवट बदलते हैं। भगवान के करवट बदलने का समय भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आता है। इसलिए इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी के रूप में भी जाना जाता है।

परिवर्तिनी एकादशी पर ऐसे करें पूजा :
एकादशी के दिन सुबह उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहनें और लक्ष्मी जी और विष्णु भगवान की पूजा करें। सबसे पहले घर का मंदिर साफ कर विष्णु और लक्ष्मी जी को स्नान कराएं। उसके बाद उन्हें फूलों से सजाएं, फूलों में विशेषरूप से कमल का इस्तेमाल करें। रोली का तिलक लगा कर प्रसाद का भोग लगाएं। प्रसाद चढ़ाने के बाद आरती करें और रात में भजन-कीर्तन करें।
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परिवर्तिनी एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा :
प्राचीन काल में त्रेतायुग में बलि नाम का एक दैत्य रहता था। वह दैत्य भगवान विष्णु का परम उपासक था। प्रतिदिन भगवान विष्णु की पूजा किया करता था। राजा बलि जितना विष्णु भगवान का भक्त था उतना ही शूरवीर था।
एक बार उसने इंद्रलोक पर अधिकार जमाने की सोची इससे सभी देवता परेशान हो गए और विष्णु जी के पास पहुंचे। सभी देवता मिलकर विष्णु भगवान के पास जाकर स्तुति करने लगे। इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि वह भक्तों की बात सुनेंगे और जरूर कोई समाधान निकालेंगे।

विष्णु भगवान ने वामन स्वरूप धारण कर अपना पांचवां अवतार लिया और राजा बलि से सब कुछ दान में ले लिया। राजा बलि ने एक यज्ञ का आयोजन किया था उसमें विष्णु भगवान वामन रूप लेकर पहुंचें और दान में तीन पग भूमि मांगी। इस पर बलि ने हंसते हुए कहा कि इतने छोटे से हो तीन पग में क्या नाप लोगे। इस वामन भगवान ने दो पगों में धरती और आकाश को नाप लिया और कहा कि मैं तीसरा पग कहां रखू।
भगवान के इस रूप को राजा बलि पहचान गए और तीसरे पग के लिए अपना सिर दे दिया। इससे विष्णु भगवान प्रसन्न हुए और उन्होंने राजा बलि को पाताल लोक वापस दे दिया। साथ ही भगवान ने वचन दिया कि चार मास यानि चतुर्मास में मेरा एक रूप क्षीर सागर में शयन करेगा और दूसरा रूप पाताल लोक में राजा बलि की रक्षा के लिए रहेगा।
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दान का है बड़ा महत्व :
परिवर्तिनी एकादशी तिथि को दान का भी बड़ा महत्व है। इस दिन अन्न, धार्मिक पुस्तक, द्रव्य आदि के दान की महिमा बताई गई है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन अन्न का दान अवश्य करना चाहिए। छात्रों को शिक्षा और ज्ञान की बड़ी आवश्यकता होती है इसलिए इस दिन ज्ञान प्राप्ति के लिए ऋतुफलों से भरी टोकरी मंदिर में दान करना चाहिए। इसके साथ ही धार्मिक पुस्तक के दान का भी इस दिन बड़ा महत्व है। इस दिन तांबा और चांदी की वस्तु, दही, चावल के दान से शुभ फल मिलता है।
असाध्य बीमारी से त्रस्त लोगों को इस दिन गरीब बस्तियों में जाकर खाने और धनराशि का दान करना चाहिए। गरीबों को इस दिन अन्न का दान करने से श्रीहरी की कृपा प्राप्त होती है। धनप्राप्ति के लिए इस दिन अन्न दान के साथ साथ द्रव्य और वस्त्र का भी दान करना चाहिए। ब्लड प्रेशर और डायबिटीज से पीड़ित जातकों को इस दिन मंदिर में मिष्ठान्न का दान करना चाहिए और साथ ही श्रद्धानुसार मसूर की दाल और चीनी का दान करना चाहिए।

परिवर्तिनी एकादशी का महत्व :
मान्यताओं के अनुसार इस परिवर्तिनी एकादशी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। इस व्रत को करने से हजार यज्ञ का फल मिलता है। इसको करने से हजार यज्ञ का फल मिलता है और पापों का नाश होता है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग परिवर्तिनी एकादसी में विष्णु भगवान के वामन रूप की पूजा करते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्रीकृष्ण युधिष्ठर को इस परिवर्तिनी एकादशी का महत्व बताते हुए कहते हैं कि जिसने इस एकादशी में भगवान की कमल से पूजा की उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों की पूजा कर ली। परिवर्तिनी एकादशी के दिन दान का खास महत्व है।