हिंदू पंचांग के अनुसार, एक वर्ष में 24 द्वादशी मनाई जाती हैं। द्वादशी 2 प्रकार की होती है। एक शुक्ल पक्ष की द्वादशी और दूसरी कृष्ण पक्ष की द्वादशी। नरसिम्हा द्वादशी फाल्गुन माह के पवित्र महीने में शुक्ल पत्र की बाहरवीं तिथि को आती है। यह तिथि आज है। Narasimha Dwadashi Vrat
भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार उनके 12 स्वरूपों में से एक है. ये ऐसा अवतार था जिसमें श्रीहरि के शरीर आधा हिस्सा मानव का और आधा हिस्सा शेर का था. इसीलिए इस अवतार को नरसिंह अवतार कहा गया. भगवान ने ये अवतार अपने प्रिय भक्त प्रहलाद के प्राण बचाने के लिए लिया था. नरसिंह भगवान एक खंभे को चीरते हुए बाहर आए थे.
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जिस दिन ये घटना हुई, उस दिन फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी थी. तभी से हर साल होली से तीन दिन पहले द्वादशी के दिन नरसिंह भगवान की पूजा की जाती है और इस दिन को नरसिम्हा द्वादशी, नरसिंह द्वादशी (Narsingh Dwadashi) के रूप में जाना जाता है. इस उत्सव को पूरे देश में गोविंदा द्वादशी के रूप में भी जाना जाता है।
पूजन विधि :
- द्वादशी के दिन ब्रह्म मुहर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
- इसके बाद भगवान नरसिंह की तस्वीर सामने रखकर उनके समक्ष व्रत का संकल्प लें.
- इसके बाद उन्हें अबीर, गुलाल, चंदन, पीले अक्षत, फल, पीले पुष्प, धूप, दीप, पंचमेवा, नारियल वगैरह अर्पित करें.
- अब नरसिंह भगवान की कथा को पढ़ें और इस मंत्र का जाप करें -ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्, सिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम् .
- इसके बाद भगवान से घर के समस्त संकट दूर करने की प्रार्थना करें और भूल चूक के लिए क्षमा याचना करें.
- संभव हो तो दिन भर निराहार रहें. अगर इसमें दिक्कत हो तो फलाहार ले सकते हैं. लेकिन व्रत वाले दिन नमक का सेवन न करें.
- अगले दिन स्नानादि के बाद किसी जरूरतमंद को दक्षिणा और सामर्थ्य के अनुसार दान देकर व्रत खोलें.

व्रत का महत्व :
भगवान नरसिंह का ये व्रत करने से परिवार के संकट दूर होते हैं, खुशियां और बरकत आती है. माना जाता है कि हिरण्यकश्यप के वध के बाद नरसिंह भगवान ने प्रहलाद को भी वरदान दिया था कि जो भी भक्त इस दिन उनका श्रद्धा और भक्ति के साथ स्मरण करेगा उनका पूजन या व्रत करेगा, उसके जीवन के शोक, दुख, भय और रोग दूर होंगे. उसकी हर मनोकामना पूरी होगी. शास्त्रों के अनुसार, नरसिम्हा द्वादशी का व्रत करने से व्यक्ति के ब्रह्महत्या का पाप भी मिट जाता है। साथ ही यह व्रत करने से सांसारिक सुख, भोग और मोक्ष तीनों की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि अगर इस दिन सच्चे मन से यह व्रत किया जाए तो व्यक्ति के सातों जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं।
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ये है व्रत कथा :
प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप ने कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे एक वरदान मांगा कि उसे न कोई मनुष्य मार सके, न ही पशु, न ही वो दिन में मारा जाए और न ही रात में, न ही अस्त्र के प्रहार से और न ही शस्त्र से, न ही घर के अंदर मारा जा सके और न ही घर के बाहर.
इस वरदान को पाने के बाद वो खुद को अमर समझने लगा. लोगों को प्रताड़ित करने लगा और खुद को भगवान समझने लगा. उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा पर रोक लगा दी. लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था. उसके कई बार रोकने पर भी प्रहलाद ने भगवान की पूजा करना नहीं छोड़ी.
इससे नाराज हिरण्यकश्यम ने प्रहलाद को बहुत प्रताड़ित किया. कई बार उसे मारने का प्रयास किया, लेकिन हर बार प्रहलाद बच गया. उसने अपनी बहत होलिका के साथ प्रहलाद को आग में भी बैठाया क्योंकि होलिका को आग से न जलने का वरदान प्राप्त था, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गया और होलिका मर गई.

अंतिम प्रयास में हिरण्यकश्यम ने लोहे के एक खंभे को गर्म कर लाल कर दिया और प्रहलाद को उसे गले लगाने को कहा. तभी उस खंभे को चीरते हुए नरसिंह भगवान का उग्र रूप प्रकट हुआ. उन्होंने हिरण्यकश्यप को महल के प्रवेशद्वार की चौखट पर, जो न घर का बाहर था न भीतर, गोधूलि बेला में, जब न दिन था न रात, नरसिंह रूप जो न मनुष्य था, न पशु. भगवान नरसिंह ने अपने तेज नाखूनों, जो न शस्त्र थे, न अस्त्र, से उसका वध किया और प्रहलाद को जीवनदान दिया.
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