हेल्लो दोस्तों हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाता है, जिसे छोटी दिवाली, काली चौदस, रूप चौदस, यम चतुर्दशी जैसे विभिन्न नामों से जाना जाता है. आमतौर पर नरक चतुर्दशी का त्योहार लक्ष्मी पूजन यानी दीपावली से एक दिन पहले मनाया जाता है, लेकिन इस साल नरक चतुर्दशी और दीपावली एक ही दिन मनाई जाएगी. इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है और उनके निमित्त दीपदान किया जाता है. Narak Chaturdashi Vrat Katha
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कहा जाता है कि इस दिन यमराज की पूजा करने से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है और किसी पवित्र नदी में स्नान करने से इंसान को मृत्यु के पश्चात यमराज की यातना नहीं झेलनी पड़ती है. इस साल नरक चतुर्दशी का त्योहार 14 नवंबर 2020 (शनिवार) को मनाया जाएगा. चलिए विस्तार से जानते हैं नरक चतुर्दशी यानी छोटी दिवाली की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और पर्व से जुड़ी पौराणिक कथा.
नरक चतुर्दशी शुभ मुहूर्त :
- चतुर्दशी तिथि प्रारंभ- 13 नवंबर 2020 को शाम 06.01 बजे से,
- चतुर्दशी तिथि समाप्त- 14 नवंबर 2020 की दोपहर 02.20 बजे तक.
- अभ्यंग स्नान मुहूर्त- 14 नवंबर 2020 सुबह 05.23 बजे से सुबह 06.43 बजे तक.

नरक चतुर्दशी पूजन विधि :
नरक चतुर्दशी की सुबह शरीर की तिल के तेल से मालिश करना शुभ माना जाता है, इसलिए स्नान से पहले अपने शरीर की मालिश जरूर करें. स्नान के बाद दक्षिण दिशा में हाथ जोड़कर यमराज को प्रणाम करना चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है.
शाम के समय देवी-देवताओं की पूजा के बाद दीपक जलाकर घर की चौखट के दोनों तरफ रखना चाहिए और यमराज के नाम दीपदान करना चाहिए. यमराज के लिए और अपने पितरों के लिए दक्षिण दिशा में दीपक जलाना चाहिए, फिर यम देव और पितरों से अपनी गलतियों के क्षमा याचना करनी चाहिए.
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मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के दिन आधी रात में घर में पड़े बेकार सामान को बाहर फेंक देना चाहिए, क्योंकि अगले दिन दीपावली पर देवी लक्ष्मी घर में प्रवेश करती हैं, इसलिए घर की सफाई उचित तरीके से की जानी चाहिए. नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा का विधान भी है. कहा जाता कि इस दिन श्रीकृष्ण की उपासना से सौंदर्य की प्राप्ति होती है, इसलिए इसे रूप चौदस भी कहा जाता है.
नरक चतुर्दशी की कथा :
नरक चतुर्दशी से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में रन्तिदेव नाम का एक राजा था, जो हमेशा धर्म के कार्यों में लगा रहता था, लेकिन जब उसका अंतिम समय आया तो उनके प्राण हरने के लिए यमराज के दूत आए.
यमराज के दूतों ने राजा से कहा कि उनके नरक में जाने का समय आ गया है तब राजा ने कहा कि उसने कभी कोई अधर्म या पाप नहीं किया है, फिर उसे नरक क्यों ले जाया जा रहा है? इसके बाद यम के दूतों ने कहा कि राजा एक बार तुम्हारे महल के द्वार पर एक ब्राह्मण आया था, जो तुम्हारे द्वार से भूखा ही लौट गया था, इसलिए तुम्हे नरक में जाना पड़ रहा है.

यमराज के दूतों की बात सुनने के बाद राजा ने यमराज से एक साल का समय और देने की प्रार्थना की ताकि वो अपनी गलती सुधार सके. एक साल का समय मिलने के बाद राजा यमदूतों से मुक्ति पाने का उपाय जानने के लिए ऋषियों के पास गए.
राजा ने अपनी आप बीती ऋषियों को बताई, जिसके बाद ऋषियों ने कहा कि राजन आप कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत रखें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं. ऋषियों के कहे अनुसार राजा वे व्रत रखा और ब्राह्मणों को भोजन कराया, जिसके फलस्वरूप राजा को नरक जाने से मुक्ति मिल गई, इसलिए कहा जाता है कि इस दिन जो भी व्रत करता है और यमराज के निमित्त दीपदान करता है उसे नरक के दर्शन नहीं करने पड़ते हैं.
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छोटी दिवाली को क्यों कहते नरक चौदस :
एक अन्य कथा के अनुसार श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया था तथा उसकी कैद से 16100 कन्याओं को मुक्त किया था नरकासुर देवताओं को बहुत परेशां करता था जिसके वध के बाद देवताओं ने दीप जलाकर ख़ुशी मनाई. इसी दिन की याद में दीपावली के ठीक एक दिन पूर्व नरक चतुर्दशी मनाई जाने लगी.
मान्यता है कि नरकासुर की मृत्यु होने से उस दिन शुभ आत्माओं को मुक्ति मिली थी. नरक चौदस के दिन प्रातःकाल में सूर्योदय से पूर्व उबटन लगाकर नीम, चिचड़ी जैसे कडवे पत्ते डाले गए जल से स्नान का अधिक महत्व है. इस दिन सूर्यास्त के पश्चात् लोग अपने घरों के दरवाजों पर चौदह दिये जलाकर दक्षिण दिशा में उनका मुख करके रखते हैं तथा पूजा-पाठ करते हैं.

नरक चतुर्दशी का महत्व :
नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान करने से अकाल मौत और यमराज के भय से मुक्ति मिलती है. इस दिन अभ्यंग स्नान करने वाले व्यक्ति को नर्क की यातनाएं नहीं झेलनी पड़ती है और उसे अपने समस्त पापों से छुटकारा मिलता है. इस दिन शरीर में लेप और उबटन करने से रूप निखरता है, इसलिए इसे रूप चौदस भी कहते हैं.
मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के दिन जिस घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाया जाता है और यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है, उस घर के सभी सदस्यों को यमराज के भय से मुक्ति मिलती है.