हेल्लो दोस्तों हर साल मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को नंदा सप्तमी (Nanda Saptami 2021) मनाई जाती है. इस बार शुक्रवार को अभिजित और विजय मुहूर्त में नंदा सप्तमी का पूजन करना अतिलाभदायी रहेगा, क्योंकि ये दोनों ही मुहूर्त कार्यों के लिए शुभ माने जाते हैं. नंदा सप्तमी के दिन देवी नंदा (Nanda Devi) की पूजा की जाती है. इनके अलावा इस दिन सूर्य देव (Surya Dev) और प्रथम पूज्य गणेश जी (Lord Ganesha) की भी आराधना की जाती है. ऐसा करने से व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण होती है। इस वर्ष मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी 10 दिसंबर यानि आज (शुक्रवार) है. आइए जानते हैं नंदा सप्तमी की पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजा की विधि.
ये भी पढ़िए : तेजस्विनी संतान प्राप्ति के लिए इस तरह करें संतान सप्तमी का व्रत, ये है सम्पूर्ण विधि
नारद पुराण के मुताबिक, इस तिथि को कश्यप ऋषि के तेज और अदिति के गर्भ से मित्र नाम के सूर्य प्रकट हुए। जो असल में भगवान विष्णु की दाईं आंख की शक्ति ही थी। इसलिए इस तिथि में शास्त्रोक्त विधि से उनका पूजन करना चाहिए। उगते सूरज को जल चढ़ाने के साथ ही दिनभर व्रत रखकर ब्राह्मण भोजन करवाना चाहिए। ऐसा करने से बीमारियों से मुक्ति मिलती है। उम्र बढ़ती है और हर तरह के दोष भी खत्म हो जाते हैं।
विषयसूची :
नंदा सप्तमी का शुभ मुहूर्त | Shubh Muhurat Of Nanda Saptami :
मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि का प्रारंभ- 9 दिसंबर शाम 07 बजकर 53 मिनट से हो रहा है.
तिथि का समापन- 10 दिसंबर दिन शुक्रवार को शाम 07 बजकर 09 मिनट पर होगा. (ऐसे में नंदा सप्तमी 10 दिसंबर को मनाई जाएगी).
नंदा सप्तमी के दिन अभिजित मुहूर्त दिन में 11 बजकर 53 मिनट से दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक है.
विजय मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 58 मिनट से दोपहर 02 बजकर 39 मिनट तक है. (दोनों ही मुहूर्त कार्यों के लिए शुभ माने जाते हैं).
इस दिन राहुकाल दिन में 10 बजकर 56 मिनट से दोपहर 12 बजकर 14 मिनट तक है. (इस अवधि में पूजा न करें).
कौन हैं देवी नंदा :
नंदा सप्तमी के दिन देवी नंदा की पूजा की जाती है। नंदा देवी को पार्वती का ही एक रूप माना जाता है। हिमालयी क्षेत्र में देवी नंदा की पूजा प्राचीन काल से की जाती रही है। नंदा देवी को नवदुर्गाओं में से एक माना जाता है। नंद सप्तमी के अवसर पर आप माता पार्वती के आशीर्वाद से सुखी जीवन की कामना कर सकते हैं। इस दिन सूर्य देव को जल चढ़ाकर और उनके मंत्रों का जाप करते हुए श्रीगणेश की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।
नंदा देवी को हिमालय की देवी के रूप में जाना जाता है। कई लोकप्रिय यूनेस्को विश्व धरोहर में गिना जाता है, यह भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है जो गढ़वाल की वास्तविक पृष्ठभूमि की झलक दिखाती है। यह समुद्र तल से 7817 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और आगंतुकों को अपने विस्मयकारी विचारों से लुभाता है। यह दुनिया की 23 वीं सबसे ऊंची चोटी है। 1808 में संगणना साबित होने से पहले यह दुनिया का सबसे ऊँचा पर्वत माना जाता था। आज हम आपको नंदा देवी के बारे में, उनके इतिहास के बारे में, वास्तुकला, उनके आस पास के आकर्षण के बारे में बताएगे |
वह शिखर नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान से घिरा हुआ है, जहाँ कोई भी प्रकृति की महिमा को देख सकता है और विदेशी वनस्पतियों और जीवों के मनमोहक दृश्य को पकड़ सकता है। नंदा देवी पर्वत श्रृंखला में पश्चिमी और पूर्वी चोटियों सहित दो चोटियाँ हैं। जबकि पूर्वी शिखर का नाम देवी नंदा के नाम पर रखा गया है, पश्चिमी शिखर को सुनंदा चोटी के नाम से जाना जाता है।
ये भी पढ़िए : जानिए कब है शीतला सप्तमी? इस व्रत के प्रभाव से दूर होते हैं सभी रोग
नंदा देवी की पूजन विधि :
सप्तमी पर तांबे के लोटे में जल, चावल और लाल फूल डालकर उगते हुए सूरज को जल चढ़ाएं.
जल चढ़ाते वक्त ऊँ घृणि सूर्याय नम: मंत्र बोलते हुए शक्ति, बुद्धि और अच्छी सेहत की कामना करें.
जल चढ़ाने के बाद धूप और दीप से सूर्य देव की पूजा करें.
इस तिथि पर तांबे का बर्तन, पीले या लाल कपड़े, गेहूं, गुड़, माणिक्य, लाल चंदन का दान करें. इस दिन व्रत करें.
एक समय फलाहार कर सकते हैं, लेकिन दिनभर नमक न खाएं.