हेलो फ्रेंड्स , क्या आपको पता है की मंगला गोरी व्रत कब है हम आपको बता रहे है इस व्रत की पूजन विधि के बारे में बता रहे है। मंगला गौरी का व्रत करने से विवाह और वैवाहिक जीवन की हर समस्या दूर की जा सकती है. विशेषकर अगर मंगल दोष समस्या दे रहा हो तो इस दिन की पूजा अत्यधिक लाभदायी होती है. Mangala Gauri Vrat 2020
मां मंगला गौरी की उपासना से भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा होती है. मंगला गौरी का व्रत करने से विवाह और वैवाहिक जीवन की हर समस्या दूर की जा सकती है. विशेषकर अगर मंगल दोष समस्या दे रहा हो तो इस दिन की पूजा अत्यधिक लाभदायी होती है. पति की लंबी आयु के लिए भी इसे रखा जाता है. इस बार मंगला गौरी का व्रत 7 जुलाई को पड़ रहा है.
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मंगला गौरी व्रत का महत्व :
हिंदू शास्त्रों में मंगला गौरी व्रत का महत्व बताया गया है। सुहागन महिलाएं वैवाहिक सुख की प्राप्ति के लिए ये व्रत करती हैं। संतान सुख की चाह रखने वाले दंपत्तियों को भी लाभ मिलता है। पति के साथ संतान की लंबी उम्र के लिए भी ये व्रत किया जाता है।
पूजन विधि :
- सूर्य उगने से पहले उठें और नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ या नये कपड़े पहनें.
- इस व्रत में एक ही समय अन्न ग्रहण किया जाता है.
- एक लकड़ी के तख्त पर लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर मां मंगला गौरी यानी मां पार्वती की प्रतिमा या चित्र रखें.
- इस मंत्र का उच्चारण करें और व्रत का संकल्प लें. ‘मम पुत्रापौत्रासौभाग्यवृद्धये श्रीमंगलागौरीप्रीत्यर्थं पंचवर्षपर्यन्तं मंगलागौरीव्रतमहं करिष्ये’
- फिर उस प्रतिमा के सामने एक घी का दीपक (आटे से बनाया हुआ) जलाएं, दीपक ऐसा हो, जिसमें सोलह बत्तियां लगाई जा सकें.
इसके बाद इस मंत्र को पढ़ें:
‘कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम्।
नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्..।।
इस मंत्र को बोलते हुए माता मंगला गौरी का षोडशोपचार पूजन किया जाता है. मां को जो भी चढ़ाएं वह 16 की संख्या में हो. जैसे 16 मालाएं, लौंग, सुपारी, इलायची, फल, पान, लड्डू, सुहाग की सामग्री, 16 चुडि़यां तथा मिठाई चढ़ाई जाती है. इसके अलावा 5 प्रकार के सूखे मेवे, 7 प्रकार के अनाज-धान्य (जिसमें गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) आदि होना चाहिए. पूजन के बाद मंगला गौरी की कथा सुनी जाती है.
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मंगला गौरी की व्रत कथा :
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, धर्मपाल नाम का एक सेठ था. सेठ धर्मपाल के पास धन की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी. वह हमेशा सोच में डूबा रहता कि अगर उसकी कोई संतान नहीं हुई तो उसका वारिस कौन होगा? कौन उसके व्यापार की देख-रेख करेगा?
इसके बाद गुरु के परामर्श के अनुसार, सेठ धर्मपाल ने माता पार्वती की श्रद्धा पूर्वक पूजा उपासना की. खुश होकर माता पार्वती ने उसे संतान प्राप्ति का वरदान दिया, लेकिन संतान अल्पायु होगी. कालांतर में धर्मपाल की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया.
इसके बाद धर्मपाल ने ज्योतिषी को बुलाकर पुत्र का नामांकरण करवाया और उन्हें माता पार्वती की भविष्यवाणी के बारे में बताया. ज्योतिषी ने धर्मपाल को राय दी कि वह अपने पुत्र की शादी उस कन्या से कराए जो मंगला गौरी व्रत करती हो. मंगला गौरी व्रत के पुण्य प्रताप से आपका पुत्र दीर्घायु होगा.
यह व्रत महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र और पुत्र प्राप्ति के लिए करती हैं. सेठ धर्मपाल ने अपने इकलौते पुत्र का विवाह मंगला गौरी व्रत रखने वाली एक कन्या से करवा दिया. कन्या के पुण्य प्रताप से धर्मपाल का पुत्र मृत्यु पाश से मुक्त हो गया. तभी से मां मंगला गौरी के व्रत करने की प्रथा चली आ रही है.