Maha shivratri vrat katha 2022 | जानिये महाशिवरात्रि 2022 की पौराणिक व्रत कथा और पूजा विधि

फाल्गुन के महीने की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है. महाशिवरात्रि चतुर्दशी के दिन मनाई जाती है. इस बार चतुर्दशी 1 मार्च को है और महाशिवरात्रि इसी दिन मनाई जाएगी. पौराणिक कथाओं के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. इस कारण महाशिवरात्रि को बहुत पवित्र पर्व माना जाता है. Maha Shivratri Vrat Katha

महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा :

शिव पुराण के अनुसार, प्राचीन काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था। वो जंगल में जानवरों की हत्या करके अपने परिवार का पेट पलता था। अपनी गरीबी के चलते उसने एक साहूकार से कर्ज लिया था, लेकिन उसका समय पर ऋण न चुका पाया तो साहूकार ने क्रोधित होकर उस शिकारी को शिवमठ में कैद कर लिया था। संयोगवश उसी दिन शिवरात्रि भी थी।

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शाम होते ही साहूकार ने शिकारी को अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने की बात की। शिकारी ने साहूकार को वचन दिया की वो अगले दिन सारा ऋण लौटा देगा, तब साहूकार ने उसे छोड़ दिया। दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण वह भूख-प्यास से व्याकुल था इसलिए वो अपनी दिनचर्या की भांति जंगल में शिकार के लिए निकल गया लेकिन शिकार खोजते हुए वह बहुत दूर निकल गया। जब अँधेरा हो गया तो उसने रात जंगल में ही बिताने का सोचा। वह जंगल, एक तालाब के किनारे था. शिकारी एक बेल के पेड़ पर चढ़कर रात बीतने का इंतजार करने लगा।

उसी बिल्व वृक्ष के नीचे बिल्वपत्रों से ढंका हुआ एक शिवलिंग था। शिकारी को उस शिवलिंग के बारे में कुछ पता नहीं था। पेड़ पर पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोगवश शिवलिंग पर गिरती गई। इस प्रकार दिनभर से भूखे-प्यासे शिकारी का अनजाने में व्रत हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए।

रात का एक पहर बीत जाने पर एक गर्भवती हिरणी तालाब पर पानी पीने आई। जिसे देखकर शिकारी खुश हो गया. जैसे ही शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर प्रत्यंचा खींची, तभी हिरणी बोली- ‘ हे शिकारी ! मैं एक गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। अगर तुमने मुझे मारा तो तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब तुम मुझे मार देना।’

Shivratri Vrat Me Kya Na Khaye
Shivratri Vrat Me Kya Na Khaye

यह सुनकर शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी को जाने दिया। प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने में कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूटकर शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार उसने अनजाने में प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न कर लिया।

कुछ समय पश्चात् एक और हिरणी उधर से गुजर रही थी, शिकारी की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। जैसे ही हिरणी समीप आने लगी तब शिकारी ने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया- ‘हे शिकारी ! मैं अभी थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूँ और अपने पति की खोज में दर दर भटक रही हूं। जैसे ही मुझे मेरे पति मिल जायेंगे , मैं उनसे मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी तब मेरा शिकार कर लेना।’ यह सुनकर शिकारी ने उसे भी जाने दिया।

दो बार इतने करीब से अपने शिकार को खोकर वो गुस्से में आग बबूला हो गया। और चिंता में पड़ गया। धीरे धीरे रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। इस बार भी धनुष से लग कर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर गिरे और इस तरह दूसरे प्रहर की पूजा भी सम्पन्न हुई।

तभी एक अन्य हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से गुजरी। अब शिकारी के लिए यह एक स्वर्णिम अवसर जैसे था। उसने अपने धनुष पर तीर चढ़ाने में तनिक भी देरी नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली- ‘हे शिकारी! मैं अपने बच्चों को इनके पिता के पास छोड़ कर लौट आऊंगी तब तुम मुझे मार देन, इस समय मुझे जाने दो’

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ये सुनकर शिकारी जोर जोर से हंसने लगा और बोला – ‘मैं इतना भी मुर्ख नहीं हूँ जो सामने आए शिकार को बिना मारे छोड़ दूं, तुमसे पहले मैंने दो बार शिकार छोड़ चुका हूं। घर पर मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे।’

शिकारी की बात सुनकर हिरणी ने कहा- सुनो शिकारी, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की चिंता सता रही है, ठीक उसीप्रकार मुझे भी अपने बच्चों की चिंता है। इसलिए हे शिकारी ! मेरा विश्वास करो, मैं बच्चों को इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत तुम्हारे पास लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।

शिकारी ने जब हिरणी का दुखभरा स्वर सुना तो उसे उस हिरणी पर दया आ गई। और उसने उस हिरणी को भी जाने दिया। लम्बे समय से शिकार के अभाव में और भूख-प्यास से परेशान शिकारी अनजाने में ही बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था।

तभी अचानक उसे एक हष्ट-पुष्ट मृग आटे हुए दिखा । शिकारी ने मन ही मन ये ठान लिया था कि वह इसका शिकार अवश्य करेगा। उधर शिकारी की तनी प्रत्यंचा देख मृग विनीत स्वर में पूछा – ‘ हे शिकारी ! क्या तुमने मुझसे पहले आने वाली तीन हिरणियों और बच्चों को मार डाला है?

अगर हाँ तो तुम मुझे भी मारने में तनिक भी विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक पल भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति और उन बच्चों का पिता हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ समय का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा, फिर तुम मुझे मार देना’

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मृग की बात सुनकर शिकारी की आँखों के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया। और उसने पूरी कथा मृग को सुनाई. तब मृग ने कहा- ‘मेरी तीनों पत्नियां जैसे प्रतिज्ञाबद्ध होकर यहाँ से गई हैं, मेरी मृत्यु के पश्चात् अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबको लेकर तुम्हारे सामने अतिशीघ्र ही उपस्थित होने का वचन देता हूँ’

शिकारी ने उस मृग को भी जाने दिया। देखते देखते इस प्रकार सुबह हो आई। और शिकारी द्वारा अनजाने में उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई। लेकिन अनजाने में ही सही, की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला। और शिकारी का हिंसक हृदय अब निर्मल हो गया था।

थोड़ी ही देर बाद, वह मृग अपने परिवार सहित शिकारी के समक्ष उपस्थित हुआ, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। और उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया।

अनजाने में ही सही लेकिन शिवरात्रि के व्रत का पालन करने से शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई। और जब मृत्यु काल में यमदूत उसे के जाने के लिए आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया तथा शिकारी को अपने साथ शिवलोक ले गए। शिवजी की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महा शिवरात्रि व्रत के महत्व को समझकर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।

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इस कथा से यह सन्देश मिला :

शिकारी की कथा के अनुसार भगवान महादेव तो अनजाने में किए गए व्रत का भी फल दे देते हैं। लेकिन वास्तव में महादेवजी उस शिकारी की दया भाव से प्रसन्न हुए थे। क्योंकी अपने परिवार के कष्ट का ध्यान होते हुए भी शिकारी ने मृग परिवार को जीवनदान दिया।

यह करुणा भाव ही उस शिकारी को उन पंडित एवं पुजारियों से उत्कृष्ट बना देती है जो कि सिर्फ उपवास, रात्रि जागरण, एवं दूध, दही, बेल-पत्र आदि द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कथा में ‘अनजाने में किये गए पूजन’ पर विशेष बल दिया गया है। इसका यह अर्थ बिलकुल भी नहीं है कि शिवजी किसी भी प्रकार से किए गए पूजा पाठ को स्वीकार कर लेते हैं अथवा भगवान भोलेनाथ जाने या अनजाने में हुए पूजन में कोई भेदभाव नहीं कर सकते ।

देखा जाये तो वास्तव में वह शिकारी पूजन नहीं कर रहा था। इसका अर्थ यह हुआ कि वह किसी भी तरह के फल की कामना भी नहीं कर रहा था। उसने मृग परिवार को समय एवं जीवन दान दोनों दिए जो कि शिव पूजन के समान है। शिव का अर्थ ही कल्याण होता है। उन निरीह प्राणियों का कल्याण करने के कारण ही वह शिव तत्व को जान पाया और उसका महादेव से साक्षात्कार हुआ।

Maha Shivratri Vrat Katha
Maha Shivratri Vrat Katha

महाशिवरात्रि व्रत पूजा विधि :

  • महाशिवरात्रि के दिन सुबह-सवेरे उठकर स्‍नान कर स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें और व्रत का संकल्‍प लें.
  • इसके बाद शिव मंदिर जाएं या घर के मंदिर में ही शिवलिंग पर जल चढ़ाएं.
  • जल चढ़ाने के लिए सबसे पहले तांबे के एक लोटे में गंगाजल लें. अगर ज्‍यादा गंगाजल न हो तो सादे पानी में गंगाजल की कुछ बूंदें मिलाएं.
  • अब लोटे में चावल और सफेद चंदन मिलाएं और “ऊं नम: शिवाय” बोलते हुए शिवलिंग पर जल चढ़ाएं.
  • जल चढ़ाने के बाद चावल, बेलपत्र, सुगंधित पुष्‍प, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें, तुलसी दल, गाय का कच्‍चा दूध, गन्‍ने का रस, दही, शुद्ध देसी घी, शहद, पंच फल, पंच मेवा, पंच रस, इत्र, मौली, जनेऊ और पंच मिष्‍ठान एक-एक कर चढ़ाएं.
  • अब शमी के पत्ते चढ़ाते हुए ये मंत्र बोलें:
  • अमंगलानां च शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च।
  • दु:स्वप्रनाशिनीं धन्यां प्रपद्येहं शमीं शुभाम्।।
  • शमी के पत्ते चढ़ाने के बाद शिवजी को धूप और दीपक दिखाएं.
  • इसके बाद शिव चालीसा का पाठ करें.
  • अंत में कपूर या गाय के घी वाले दीपक से भगवान शिव की आरती उतारें.
  • महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखें और फलाहार करें.
  • सायंकाल या रात्रिकाल में शिवजी की स्तुति पाठ करें.
  • शिवरात्रि के दिन रात्रि जागरण करना फलदाई माना जाता है.
  • शिवरात्रि का पूजन ‘निशीथ काल’ में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है. रात्रि का आठवां मुहूर्त निशीथ काल कहलाता है. हालांकि भक्त रात्रि के चारों प्रहरों में से किसी भी एक प्रहर में सच्‍ची श्रद्धा भाव से शिव पूजन कर सकते हैं.

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