कोकिला व्रत, कोकिला व्रत कब है, कोकिला व्रत का शुभ मुहूर्त, कोकिला व्रत की पूजा विधि, कोकिला व्रत का महत्व, Kokila Vrat 2022 Date, Kokila Vrat 2022, Kokila Vrat 2022 Mein Kab Hai, Kokila Vrat Shubh Muhurat, Kokila Vrat Puja Vidhi, Kokila Vrat Importance, Kokila Vrat Significance, Kokila Vrat 2021
हेलो दोस्तों हिंदू पंचांग के अनुसार कोकिला व्रत हर वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा पर मनाया जाता है. यह व्रत मुख्यतः आषाढ़ मास की पूर्णिमा से प्रारंभ से होता है और इसे श्रावण मास की पूर्णिमा तक किया जाता है। इस व्रत की शुरुआत सबसे पहले माता पार्वती ने की थी। यह व्रत शादीशुदा महिलाओं और कुमारी कन्याओं के लिए बेहद अनुकूल माना गया है। इस बार कोकिला व्रत 13 जुलाई बुधवार के दिन रखा जाएगा। यह व्रत दक्षिण भारत में अधिक प्रचलित है।
इस व्रत को करने से सुंदरता भी बढ़ती है क्योंकि इस व्रत में इंसान को विशेष जड़ी बूटियों से नियम से आठ दिन तक नहाना होता है। प्रातः काल भगवान सूर्य देव की पूजा करने का विधान है। कोकिला व्रत देवी सती और भगवान शिव को समर्पित है। कोकिल नाम भारतीय पक्षी कोयल के नाम से संदर्भित है और देवी सती से जुड़ा हुआ है। इस व्रत को करने से सुहागन महिलाओं के पति की आयु लंबी होती है और वहीं कुंवारी लड़कियों को अच्छे वर की प्राप्ति होती है तो बिना किसी देरी के चलिए जानते हैं कोकिला व्रत कब है, कोकिला व्रत का शुभ मुहूर्त, कोकिला व्रत का महत्व और कोकिला व्रत की पूजा विधि।
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कोकिला व्रत 2022 शुभ मुहूर्त
Kokila Vrat 2022 Shubh Muhurat
- कोकिला व्रत तिथि – 13 जुलाई 2022, बुधवार
- कोकिला व्रत पूजा मुहूर्त – शाम 7 बजकर 22 से रात 9 बजकर 24 मिनट तक (13 जुलाई 2022)
- पूर्णिमा तिथि प्रारंभ – 13 जुलाई 2022, बुधवार, सुबह 4 बजे से
- पूर्णिमा तिथि समापन – 14 जुलाई 2022, गुरुवार, सुबह 12 बजकर 06 मिनट तक
कोकिला व्रत पूजन विधि
Kokila Vrat Puja Vidhi
- इस दिन जिसे व्रत रखना हो उसे ब्रह्मा मुहूर्त में उठकर अपने दैनिक कार्यों से निवृत होकर स्नान करना चाहिए।
- इस दिन महिलाओं का किसी पवित्र नदी या कुंड में स्नान करना शुभ माना जाता है।
- इसके बाद मंदिर में एक साफ चौकी पर गंगाजल छिड़कर कर भगवान शिव, माता पार्वती की प्रतिमा को स्थापित करके उनकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
- इसके साथ ही साथ एक मिट्टी से कोयल बनाकर उसकी भी पूजा करनी चाहिए
- अब भगवान शिव को जल, पुष्प, बेलपत्र, दूर्वा, धूप, दीप और माता पार्वती को श्रृंगार की वस्तुएं और वस्त्र आदि अवश्य अर्पित करने चाहिए
- इस दिन निराहार व्रत रखा जाता है। इसके बाद सूर्यास्त के बाद पूजा अर्चना करके फलाहार ग्रहण किया जाता है।
- कोकिला व्रत आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर श्रवण पूर्णिमा को समाप्त होता है।
- इसके बाद कोकिला व्रत की कथा अवश्य सुने और फिर अंत में धूप व दीप से भगवान शिव और माता पार्वती का आरती करें।
- इस दिन महिलाएं ब्रह्मचर्य का पालन करें और मन को शांत बनाएं रखें वहीं, जो कुंवारी कन्याएं यह व्रत करती हैं उन्हें योग्य वर मिलता है।
- पूजन के अंत में भगवान शिव और माता पार्वती से पूजा में हुई किसी भी भूल के लिए क्षमा याचना अवश्य करें और सूर्यास्त के बाद पूजा अर्चना करके फलाहार ग्रहण करें।

कोकिला व्रत कथा
Kokila Vrat Katha
शिव पुराण के अनुसार प्राचीन काल में ब्रह्माजी के मानस पुत्र दक्ष के घर पर देवी सती का जन्म हुआ था। देवी सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी, लेकिन दक्ष भगवान शिव से द्वेष करता था और वह इस विवाह के पक्ष में नहीं था। प्रजापति दक्ष भगवान विष्णु का भक्त था उसकी इच्छा के विरुद्ध देवी सती ने भगवान शिव से विवाह किया, इस वजह से दक्ष देवी सती से बहुत नाराज हुआ तथा भगवान शिव से बहुत क्रोधित हुआ। एक बार राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान करने के उद्देश्य से एक महायज्ञ का आयोजन किया तथा इसमें सभी देवी देवताओं और ऋषियों को आमंत्रित किया लेकिन सती और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया।
जब देवी सती को इस यज्ञ के बारे में पता चला तो वह भगवान शिव से यज्ञ में जाने के लिए अनुरोध करने लगी। लेकिन भगवान शिव ने यज्ञ में जाने से मना कर दिया देवी सती के बार-बार अनुरोध करने पर भगवान शिव ने सती को यज्ञ में जाने की आज्ञा दे दी। जब देवी सती दक्ष के घर पहुंची तो उसने भगवान शिव और सती को नहीं बुलाने का कारण पूछा तो दक्ष ने भगवान शिव का बहुत अपमान किया और उनके बारे में कटु शब्द कहें। देवी सती बहुत दुखी हुई और उस यज्ञ के कुंड में ही कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।
जब यह बात भगवान शिव को पता चली तो वे अत्यंत क्रोधित हो गई और उन्होंने दक्ष यज्ञ विध्वंस करने के लिए वीरभद्र के साथ अपनें गणों की विशाल सेना भेजी। उन सबनें वहां विध्वंस प्रारम्भ किया और दक्ष सहित उनके यहां आये हुए अनेक देवता मार डाले। किसी की आंख फोडी, किसी के दांत उखाड़े। यह देखकर देवताओं ने विष्णु भगवान की प्रार्थना की। विष्णु भगवान ने प्रकट होकर कहा कि “शिवजी को प्रसन्न करनें का प्रयत्त्न करो”। अब सब मिलकर शिवजी की अराधना करने लगे। देवताओं की अराधना से प्रसन्न हुए शिवजी प्रकट हो गए। उनके आदेश से ब्रह्मजी ने दक्ष के धड़ से बकरे का सिर लगाकर जोड दिया। जिससे दक्ष जीवित हो गए। इसी प्रकार अन्य देवताओं को भी जीवित किया गया।
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देवी सती हुई शापित :
दक्ष को तो शिवजी नें माफ कर दिया । परन्तु देवी सती से भी उनके इच्छा के विरुद्ध प्राण त्यागने के कारण बहुत नाराज हुए और उन्होंने देवी सती को हजारों वर्ष तक कोयल स्वरूप में रहने का श्राप दे दिया। श्राप के कारण देवी शक्ति हजारों वर्षों तक कोयल स्वरूप में रही और भगवान शिव की कठोर तपस्या की। सतीजी कोकिला बनकर दस हजार वर्षों तक नंदन वन में विचरती रहीं। तत्पश्चात पार्वती का जन्म पाकर उन्होंने आषाढ़ में नियमित एक मास तक यह व्रत किया, जिसके परिणामस्वरूप भगवान शिव उन्हें पुनः पति के रूप में प्राप्त हुए। इसलिए इस व्रत का नाम “कोकिला व्रत” हुआ। यह व्रत कुमारी कन्याओं के लिए श्रेष्ठ पति प्राप्त करानें वाला होता है ।

कोकिला व्रत का महत्व
Kokila Vrat Mahatv
सनातन धर्म में कोकिला व्रत को महिलाओं के लिए बहुत पवित्र और कल्याणकारी व्रत माना गया है। विवाहित महिलाओं और कुंवारी कन्याओं के लिए यह व्रत बहुत महत्वपूर्ण और अनुकूल माना गया है। इस व्रत को रखने से के कुंवारी लड़कियों को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है वहीं सुहागन महिलाएं इस व्रत को अपने पति की दीर्घायु के लिए रखती हैं। कहा जाता है कि जो शादीशुदा महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं वह अपने जीवन में कभी विधवा नहीं होती हैं इसके साथ उनके पति की उम्र लंबी होती है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से महिलाओं की सुंदरता भी बढ़ती है। क्योंकि इस व्रत में महिलाओं को विशेष जड़ी बूटियों से नहाना पड़ता है।
शास्त्रों के अनुसार कोकिला व्रत की शुरुआत करने वाली माता पार्वती थीं। जिन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए यह रखा था। माता पार्वती अपने इस जन्म को लेने से पहले कोयल बनकर दस हजार सालों तक नंदन वन में भटकती रहीं। इस श्राप से मुक्त होने के बाद मां पार्वती ने कोयल की पूजा की। इसके बाद भगवान शिव खुश हुए और उन्होंने माता पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।
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