करवा चौथ के दिन आखिर क्यों सुहागिनें छलनी से करती हैं चाँद का दीदार ?

हेल्लो दोस्तों हिंदू धर्म में करवा चौथ (Karwa Chauth Importance) पर्व का बहुत ही खास महत्व है। करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती है और रात को चन्द्रमा की पूजा-अर्चना करती हैं। इसके बाद ही व्रत का पारण किया जाता है।

करवा चौथ हर साल कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि मनाया जाता है। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब 4 बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि करवा चौथ के ही दिन महिलाएं आखिर छलनी से ही क्यों चाँद को देखती हैं.

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गांव की महिलाएं हो या शहरी महिलाएं सभी पर्व को पूरे दिल से मनाते हैं और अपने पति की लंबी उम्र की मनोकामना करती है वह सुबह से लेकर शाम तक भूखी प्यासी रहती है क्योंकि वह सातो जनम इन्ही को अपने पति के रूप में पाना चाहती हैं।

ऐसे पड़ा करवा चौथ नाम :

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करकचतुर्थी (करवा-चौथ) व्रत करने का विधान है। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। जो सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे यह व्रत रखती हैं। इस व्रत को करवाचौथ कहते हैं।

करवाचौथ दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘करवा’ यानि कि मिट्टी का बर्तन व ‘चौथ’ यानि गणेशजी की प्रिय तिथि चतुर्थी। प्रेम, त्याग व विश्वास के इस अनोखे महापर्व पर मिट्टी के बर्तन यानि करवे की पूजा का विशेष महत्त्व है, जिससे रात्रि में चंद्रदेव को जल अर्पण किया जाता है।

Karwa Chauth Importance
Karwa Chauth Importance

शास्त्रों में भी है उल्लेख :

रामचरितमानस के लंका काण्ड के अनुसार इस व्रत का एक पक्ष यह भी है कि जो पति-पत्नी किसी कारणवश एक दूसरे से बिछुड़ जाते हैं, चंद्रमा की किरणें उन्हें अधिक कष्ट पहुंचती हैं इसलिए करवाचौथ के दिन चंद्रदेव की पूजा कर महिलाएं यह कामना करती हैं कि किसी भी कारण से उन्हें अपने प्रियतम का वियोग न सहना पड़े।

महाभारत में भी एक प्रसंग है जिसके अनुसार पांडवों पर आए संकट को दूर करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के सुझाव से द्रोपदी ने भी करवाचौथ का व्रत किया था। इसके बाद ही पांडव युद्ध में विजयी रहे।

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कैसे करें करवा चौथ पूजा :

  • व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें।
  • दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।
  • आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। हलुआ बनाएं। पक्के पकवान बनाएं।
  • पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।
  • गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।
  • जल से भरा हुआ लोटा रखें।
  • वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें।
  • रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं।
  • गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें।
  • करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।
  • कथा सुनने के बाद अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।
  • तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें।
  • रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
  • इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें।
  • बाकी व्रत रखने की सबकी आपनी-अपनी परम्परायें और विधि है, आप अपनी कुल परम्परा के अनुसार पूजा करें I
  • जब चंद्र को अर्घ्य दें तो यह मंत्र बोलें….
  • “करकं क्षीरसंपूर्णा तोयपूर्णमयापि वा। ददामि रत्नसंयुक्तं चिरंजीवतु मे पतिः॥” या “ॐसोमसोमाय_नम:॥”
Karwa Chauth Importance
Karwa Chauth Importance

इसलिए देखते हैं छलनी से चांद :

भक्ति भाव से पूजा के उपरांत व्रती महिलाएं छलनी में से चांद को निहारती हैं। इसके पीछे पौराणिक मान्यता यह है कि वीरवती नाम की पतिव्रता स्त्री ने यह व्रत किया। भूख से व्याकुल वीरवती की हालत उसके भाइयों से सहन नहीं हुई, अतः उन्होंने चंद्रोदय से पूर्व ही एक पेड़ की ओट में चलनी लगाकर उसके पीछे अग्नि जला दी और प्यारी बहन से आकर कहा-‘देखो चाँद निकल आया है अर्घ्य दे दो ।’

बहन ने झूठा चाँद देखकर व्रत खोल लिया जिसके कारण उसके पति की मृत्यु हो गई। साहसी वीरवती ने अपने प्रेम और विश्वास से मृत पति को सुरक्षित रखा। अगले वर्ष करवाचौथ के ही दिन नियमपूर्वक व्रत का पालन किया जिससे चौथ माता ने प्रसन्न होकर उसके पति को जीवनदान दे दिया। तब से छलनी में से चाँद को देखने की परंपरा आज तक चली आ रही है।

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यह भी है छलनी की मान्यता :

करवा चौथ पर छलनी से चांद को अर्घ्य देना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। पुराणों के अनुसार चंद्रमा को दीर्घायु देने वाला कारक माना जाता है साथ ही चांद सुंदरता और प्रेम का भी प्रतिबिम्ब है। इसी वजह से करवा चौथ के दिन सुहागने छलनी से पहले चांद और फिर अपने पति का चेहरा देखती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। छलनी का प्रयोग आटा या अन्य तरह की चीजों को छानने के लिए किया जाता है।

छलनी से छलने के बाद किसी भी वस्तु की अशुद्धियां अलग हो जाती हैं। इसी कारण से करवा चौथ के मौके पर छलनी से ही चांद देखा जाता है। छलनी से चांद को देखकर पति की दीर्घायु और सौभाग्य में बढ़ोतरी की प्रार्थना की जाती है।

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