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हेल्लो दोस्तों भगवान शिव के प्रिय मास सावन माह (Sawan Month) की शुरूआत 14 जुलाई से हो चुकी है। वैसे तो हर माह के व्रत और त्योहारों का महत्व होता है किन्तु सावन में आने वाले व्रत और त्योहारों का खास महत्त्व होता है। हर माह की तरह सावन मास में भी दो एकादशी पड़ती हैं, जिनमें पहली को कृष्ण पक्ष और दूसरी को शुक्ल पक्ष में आती है। सावन मास में पड़ने वाली पहली एकादशी को कामिका एकादशी कहा जाता है। इस साल कामिका एकादशी (Kamika Ekadashi) 24 जुलाई दिन रविवार को पड़ रही है।
शास्त्रों के अनुसार कामिका एकादशी के दिन उपवास रखने और पूजा-अर्चना करने से जातकों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कामिका एकादशी के दिन शंख, चक्र गदा धारण करने वाले भगवान विष्णु की श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव और मधुसूदन आदि नामों से भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। मान्यता है कि कामिका एकादशी के दिन जो व्यक्ति भगवान के सामने घी अथवा तिल के तेल का दीपक जलाता है, उसके पुण्यों की गिनती चित्रगुप्त भी नहीं कर पाते हैं और भक्त पाप मुक्त भी होता है।
कामिका एकादशी के दिन तुलसी पत्ते का उपयोग करना शुभ माना जाता है। इस व्रत को करने से सभी तीर्थों में स्नान के समान ही पुण्य प्राप्त होता है, पापों का नाश होता है और ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिलती है. इस एकादशी के प्रभाव से मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। तो आइए जानते हैं कामिका एकादशी की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजन विधि, कथा और महत्त्व।
विषयसूची :
कामिका एकादशी शुभ मुहूर्त
Kamika Ekadashi Vrat Shubh Muhurt
- कामिका एकादशी तिथि प्रारंभ – 23 जुलाई, दिन शनिवार, सुबह 11 बजकर 27 मिनट से।
- कामिका एकादशी तिथि समापन – 24 जुलाई, दिन रविवार,, दोपहर 01 बजकर 45 मिनट पर तक।
- वृद्धि योग – 23 जुलाई, दिन शनिवार, दोपहर 02 बजकर 02 मिनट तक।
- द्विपुष्कर योग – 23 जुलाई, रात 10 बजे से 24 जुलाई, सुबह 05 बजकर 38 मिनट।
- शुभ समय या अभिजित मुहूर्त – 23 जुलाई, दोपहर 12 बजे से लेकर दोपहर 12 बजकर 55 मिनट तक।
- राहुकाल का समय – 23 जुलाई, शाम 05 बजकर 35 मिनट से शाम 07 बजकर 17 मिनट तक।
- व्रत पारण का समय – 25 जुलाई, प्रात: 05 बजकर 45 मिनट से सुबह 08 बजकर 26 मिनट के मध्य होगा।
- उदयातिथि की मान्यतानुसार, कामिका एकादशी व्रत 24 जुलाई को रखा जाएगा।
कामिका एकादशी व्रत व पूजा विधि
Kamika Ekadashi Poojan Vidhi
कामिका एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। कामिका एकादशी का व्रत एक दिन पूर्व यानि दशमी तिथि की रात से ही प्रारंभ हो जाता है। दशमी की रात से ही मनुष्य को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इस उत्तम व्रत की विधि इस प्रकार है –
- कामिका एकादशी के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर दैनिक कार्यों से निवृत होकर व्रत को स्नान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- संकल्प लेने के बाद कलश की स्थापना करके उस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा रखें और उनकी पूजा करें।
- इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत या गंगाजल से स्नान करवाकर नैवेध अर्पित करें।
- अब फूल, धूप, दीप से आरती करें, यदि आप स्वयं पूजन नहीं कर सकते तो किसी योग्य ब्राह्मण से भी पूजन करवा सकते हैं।
- इसके बाद भगवान विष्णु का विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और एकादशी व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
- पूजा में तुलसी के पत्तों का भी प्रयोग करें तथा पूजा के अंत में विष्णु आरती करें।
- शाम को भी भगवान विष्णु जी के समक्ष दीपक जलाकर उनकी आराधना करें।
- कथा के पश्चात ब्राह्मण को भोजन करवाएं और यथाशक्ति दान-दक्षिणा देकर संतुष्ट करें।
- इस दिन तीर्थ स्थानों पर स्नान एवं दान-पुण्य करने से मनुष्य को अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है।
- कामिका एकादशी के दिन रात को जागरण करने से साधक को अपार पुण्यफल मिलता है।
- जो व्यक्ति एकादशी पर मंदिर में दीपक प्रज्वलित करता है उसके पूर्वज (पितर) को सुख मिलता है।
- इस व्रत के दिन दुर्व्यसनों से दूर रहें और सात्विक जीवन जिएं।
- द्वादशी के समय शुद्ध होकर व्रत पारण मुहूर्त के समय व्रत खोलें।
कामिका एकादशी कथा
Kamika Ekadashi Vrat Katha
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी के बारे में विस्तार से पूछा। तब श्रीकृष्ण ने कामिका एकादशी की कथा सुनाई, आप भी ध्यानपूर्वक सुनें. बहुत समय पहले की बात है किसी नगर में एक जमींदार रहता था। वो स्वाभाव से क्रोधी और शरीर से बहुत बलिष्ट था। उसके निकट ही एक ब्राह्मण रहता था। उस जमींदार की उस ब्राह्मण से बिलकुल भी नहीं बनती थी. वो अक्सर आपस में झगड़ते रहते थे।
एक दिन उनकी आपस की लड़ाई बहुत बढ़ गई और क्रोध में आकर उस जमींदार ने उस ब्राह्मण की हत्या कर दी। जब उसका क्रोध शांत हुआ तो उसे अहसास हुआ कि उससे महापाप हो गया है। अपने किए पर पश्चाताप होने पर वह ब्राह्मण के दाह संस्कार में शामिल होने गया, लेकिन समाज के लोगों और पंडितों ने उसे वहां से भगा दिया। पंडितों ने ब्रह्माण की हत्या का दोषी मानकर पहलवान का सामाजिक बहिष्कार कर दिया। इसके साथ ही ब्राह्मणों ने पहलवान के यहां सभी धार्मिक कार्य करने से मना कर दिया। अब नगर का कोई भी व्यक्ति उससे कोई भी संबंध रखने को तैयार नहीं था। ब्रह्म हत्या के कारण उसका समस्त यश नष्ट हो गया और मान सम्मान, धन-संपत्ति सब नष्ट हो गया। सबके त्याग देने के कारण अब वो अकेला रह गया था।
परेशान होकर वो नगर को छोड़कर भटकता हुआ जंगल में पहुँच गया। वहां उसे एक ऋषि मिले, उस जमींदार ने अपनी सारी कहानी उन्हें सुनाई और उनसे सहायता मांगने लगा। तब ऋषि को उस पर दया आ गई और उन्होंने उसे पापों से मुक्त होने का उपाय बताया। ऋषि ने कहा, हे वत्स! ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए तुमें परम पुण्यदायिनी कामिका एकादशी का व्रत करना होगा और ऋषि ने उसे व्रत की सारी विधि बता दी।
उस जमींदार ने ऋषि के कहे अनुसार कामिका एकादशी का व्रत किया तो उसके सभी पाप नष्ट हो गए। तब भगवान ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर कहा, हे वत्स ! अब तुम्हारे सभी पापों का निवारण हो गया है। अब तुम इस व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हो गए हो। अपने पापों से मुक्त होकर वो जमींदार सुखी सुखी अपना जीवन यापन करने लगा और अंत में मोक्ष को प्राप्त हुआ।
कामिका एकादशी के व्रत से मनुष्य के पापों का नाश तो होता ही है साथ ही ये उसके मन से नकारात्मकता के भाव के अंधकार को भी नष्ट कर देता है और मनुष्य के मन को सकारात्मक के भाव के प्रकाश से प्रकाशित कर देता है।
कामिका एकादशी का महत्व
Kamika Ekadashi Mahatv
कामिका एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु अपने भक्तों को समस्त पापों से मुक्ति प्रदान करते हैं और सभी कष्टों को दूर करते हैं। कामिका एकादशी का व्रत करने से मनोवांचित फलों की प्राप्ति होती है। एकादशी के दिन तीर्थस्थलों में स्नान, दान का भी प्रावधान है। कामिका एकादशी व्रत के फल को अश्वमेघ यज्ञ से मिलने वाले फल के बराबर माना गया है। भगवान विष्णु की आराधना कर उन्हें तुलसी पत्र अर्पित की जाती हैं।
कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन करने से पूर्वज या पितृ प्रसन्न होते हैं। जिससे व्यक्ति के जीवन में आने वाले कष्ट दूर होते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी के दिन जो लोग सावन माह में भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उनके द्वारा गंधर्वों और नागों की पूजा भी संपन्न हो जाती है। कामिका एकादशी की कथा सुनने मात्र से ही यज्ञ करने के समान फल मिलता है।
इस एकादशी का व्रत करने से साधक को वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है। जो व्यक्ति इस दिन श्रीहरि विष्णु की उपासना करता है उसे गंगा, काशी, नैमिषारण्य और पुष्कर तीर्थ पर स्नान करने के समान पुण्य मिलता है। जो भी मनुष्य अपने किये पापों से भयभीत हो या उनका प्रायश्चित करना चाहता हो तो उसे यह व्रत अवश्य करना चाहिए। इस एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति का किसी बुरी योनी में जन्म नहीं होता है।
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