हेल्लो दोस्तों हर महीने कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है. इसके अनुसार, पौष माह में कृष्ण पक्ष की कालाष्टमी 06 जनवरी 2021, बुधवार को है. यह इस साल की पहली कालाष्टमी की पूजा है. कृष्णपक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी या भैरवाष्टमी के रूप मनाया जाता है. इस व्रत में भगवान काल भैरव की उपासना की जाती है और व्रत रखते हैं. उन्हें शिव का पांचवा अवतार माना गया है. इनके दो रूप हैं पहला बटुक भैरव जो भक्तों को अभय देने वाले सौम्य रूप में प्रसिद्ध हैं तो वहीं काल भैरव अपराधिक प्रवृतियों पर नियंत्रण करने वाले भयंकर दंडनायक हैं. इस व्रत के दिन कुत्ते को भोजन करवाना शुभ माना जाता है। Kalashtami Vrat Katha
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भगवान भैरव के भक्तों का अनिष्ट करने वालों को तीनों लोकों में कोई शरण नहीं दे सकता. पूजा करने से मन के भय दूर हो जाते है. काल भी इनसे भयभीत रहता है इसलिए इन्हें काल भैरव एवं हाथ में त्रिशूल, तलवार और डंडा होने के कारण इन्हें दंडपाणि भी कहा जाता है. कहते हैं काल भैरव की विधिवत पूजा करने से मन के भय दूर हो जाते हैं और सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. साथ ही कालभैरव की पूजा करने वालों से नकारात्मक शक्तियां भी दूर रहती हैं. काल भैरव की पूजा करने से शनि और राहू जैसे ग्रह भी शांत हो जाते हैं. कालभैरव की पूजा करने से शत्रु बाधा और दुर्भाग्य दूर होता है और सौभाग्य जाग जाता है.

पौष कालाष्टमी शुभ मुहूर्त :
व्रत प्रारंभ : सुबह 04:03 (06 जनवरी)
व्रत समाप्त : सुबह 02:06 (07 जनवरी)
निशिता पूजन : रात्री 12:00 से 12:54 (06 जनवरी)
कालाष्टमी की पूजन विधि :
- काल भैरव अष्टमी पर शाम को विशेष पूजा से पहले नहाएं और किसी भैरव मंदिर में जाएं।
- सिंदूर, सुगंधित तेल से भैरव भगवान का श्रृंगार करें। लाल चंदन, चावल, गुलाब के फूल, जनेऊ, नारियल चढ़ाएं।
- भैरव पूजा में ऊँ भैरवाय नम: बोलते हुए चंदन, चावल, फूल, सुपारी, दक्षिणा, नैवेद्य लगाकर धूप-दीप जलाएं।
- तिल-गुड़ या गुड़-चने का भोग लगाएं। सुगंधित धूप बत्ती और सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इसके बाद भैरव भगवान को प्रणाम करें।
- इसके बाद भैरव भगवान के सामने धूप, दीप और कर्पूर जलाएं, आरती करें, प्रसाद ग्रहण करें।
- भैरव भगवान के वाहन कुत्तों को प्रसाद और रोटी खिलाएं।
- भैरव भगवान के साथ ही शिवजी और माता-पार्वती की भी पूजा जरूर करें। इस दिन अधार्मिक कामों से बचना चाहिए।
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कालाष्टमी की कथा :
कालाष्टमी की एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार की बात है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों में श्रेष्ठता की लड़ाई चली। इस बात पर बहस बढ़ गई, तो सभी देवताओं को बुलाकर बैठक की गई। सबसे यही पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है? सभी ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए और उत्तर खोजा लेकिन उस बात का समर्थन शिवजी और विष्णु ने तो किया, परंतु ब्रह्माजी ने शिवजी को अपशब्द कह दिए। इस बात पर शिवजी को क्रोध आ गया और शिवजी ने अपना अपमान समझा।
शिवजी ने उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया। इस भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है। इनके एक हाथ में छड़ी है। इस अवतार को ‘महाकालेश्वर’ के नाम से भी जाना जाता है इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति कहा गया है। शिवजी के इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए।
भैरव ने क्रोध में ब्रह्माजी के 5 मुखों में से 1 मुख को काट दिया, तब से ब्रह्माजी के पास 4 मुख ही हैं। इस प्रकार ब्रह्माजी के सिर को काटने के कारण भैरवजी पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया। ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफी मांगी तब जाकर शिवजी अपने असली रूप में आए। भैरव बाबा को उनके पापों के कारण दंड मिला इसीलिए भैरव को कई दिनों तक भिखारी की तरह रहना पड़ा। इस प्रकार कई वर्षों बाद वाराणसी में इनका दंड समाप्त होता है। इसका एक नाम ‘दंडपाणी’ पड़ा था।

सुख-समृद्धि के लिए करें ये खास उपाय :
- उड़द के पकौड़े शनिवार की रात को कड़वे तेल में बनाएं और रात भर उन्हें ढंककर रखें। प्रात: 6 से 7 के बीच बिना किसी से कुछ बोलें घर से निकलें और रास्ते में मिलने वाले पहले कुत्ते को खिलाएं। पकौड़े डालने के बाद कुत्ते को पलटकर ना देखें। यह प्रयोग सिर्फ रविवार के लिए हैं।
- शनिवार के दिन शहर के किसी भी ऐसे भैरवनाथ जी का मंदिर खोजें जिन्हें लोगों ने पूजना लगभग छोड़ दिया हो। रविवार की सुबह सिंदूर, तेल, नारियल, पुए और जलेबी लेकर पहुंच जाएं। मन लगाकर उनका पूजन करें।
- बाद में 5 से लेकर 7 साल तक के बटुकों यानी लड़कों को चने-चिरौंजी का प्रसाद बांट दें। साथ लाए जलेबी, नारियल, पुए आदि भी उन्हें बांटें।
- हर गुरुवार के दिन कुत्ते को गुड़ खिलाएं।
- सवा किलो जलेबी बुधवार के दिन भैरव नाथ को चढ़ाएं और कुत्तों को खिलाएं।
- शनिवार के दिन कड़वे तेल में पापड़, पकौड़े, पुए जैसे विविध पकवान तलें और रविवार को गरीब बस्ती में जाकर बांट दें।
- रविवार या शुक्रवार को किसी भी भैरव मंदिर में गुलाब, चंदन और गुगल की खुशबूदार 33 अगरबत्ती जलाएं।
- पांच नींबू, पांच गुरुवार तक भैरव जी को चढ़ाएं।
- सवा सौ ग्राम काले तिल, सवा सौ ग्राम काले उड़द, सवा 11 रुपए, सवा मीटर काले कपड़े में पोटली बनाकर भैरव नाथ के मंदिर में बुधवार के दिन चढ़ाएं।
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काल भैरव अष्टमी पर भूलकर भी न करें ये गलतियां :
- इस दिन अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए व्रत के दौरान आप फलाहार कर सकते हैं।
- कालभैरव की पूजा कभी भी किसी के नाश के लिए न करें।
- आमतौर पर बटुक भैरव की ही पूजा करनी चाहिए क्योंकि यह सौम्य पूजा है।
- इस दिन नमक न खाएं। नमक की कमी महसूस होने पर सेंधा नमक खा सकते हैं।
- माता-पिता और गुरु का अपमान न करें।
- बिना भगवान शिव और माता पार्वती के काल भैरव पूजा नहीं करना चाहिए।
- गृहस्थ लोगों को भगवान भैरव की तामसिक पूजा नहीं करना चाहिए।
- इस दिन घर में गंदगी बिलकुल न करें। घर की साफ-सफाई करें। इसके बाद ही पूजा करें वरना शुभ फल नहीं मिलेगा।