History of Nag Panchami : हिंदू धर्म में नागपंचमी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व को पूर्वांचल क्षेत्रों में बड़े पर्व के रूप में मनाते है। यह पर्व सावन महीने की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। जिसमें घरों में पकवान, सिंवई सहित गेंहू चना को उबालकर खाया जाता है। कुछ लोग खीर बनाकर पूजन करते है।
लोग मंदिरों में जाकर भगवान शिव की पूजा अर्चना करते है और भोलेनाथ के भक्त नाग को दूध पिलाने की मान्यता को बखूबी निभाते है। महिलाएं मंदिरों में कटोरे या किसी पात्र में दूध रखकर आती है।
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कहते है काले सर्प आकर उस दूध को पीते है। क्योंकि लोगों की मान्यता है कि शिव मंदिरों में काले सर्पाें का वास होता है। इसलिये लोगों में दूध पिलाने का रिवाज है। महिलाएं घरों के दरवाजों पर गोबर से सर्प बनाकर खीर व दूध से भोग लगाती है। जिसके बाद घर में पूजन करने के बाद लोग भोजन ग्रहण करते है।
नागपंचमी की मान्यता :
नागपंचमी का त्योहार श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी (Nagpanchmi kyu manate hain) को मनाया जाता है। इस दिन नागों की पूजा की जाती है। इसलिये इस पंचमी को नागपंचमी कहते है। ज्योतिष गणपति गोपाल शास्त्री के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग है। पंचमी नागों की तिथि कही जाती है।

पंचमी को नाग पूजा करने वाले व्यक्ति को उस दिन भूमि नहीं खोदते है। इस वृत में चतुर्थी के दिन एक बार भोजन करने के बाद पंचमी के दिन उपवास करने के बाद शाम को भोजन करते है। इस दिन लोग सोना, चांदी, लकड़ी और मिट्टी की कलम व हल्दी चंदन की स्याही से 5 फन वाले पांच नाग बनाते है। तथा खीर, कमल पंचामृत, धूप, नवैध आदि से नागों की विधिवत पूजा की जाती है। पूजा के बाद ब्राह्मणों को लड्डू व खीर का भोजन कराते है। बड़े श्रद्धा भाव से हिंदू इस पर्व को मनाते है।
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खेतों में हल नहीं चलाते है किसान
मान्यता है कि एक किसान अपने परिवार के साथ अपना गुजर बसर करता था। उसके 2 लड़के व 1 लड़की तीन बच्चे थे। एक दिन वह खेत में हल चला रहा था, तो उसके फल मेंव में बिंधकर सांप के तीन बच्चे मर गये।
बच्चों की मौत पर मां नागिन विलाप करने लगी। गुस्से में नागिन ने मारने वाले से बदला लेने का प्रण लिया। एक रात जब किसान अपने बच्चों के साथ सो रहा था। तो नागिन ने किसान, उसकी पत्नी व दो बच्चो को डस लिया।

दूसरे दिन जब नागिन किसान की पुत्री को डसने आई, तो कन्या ने डरकर नागिन के सामने दूध का कटोरा रख दिया और हाँथ जोड़कर क्षमा मांगने लगी। पंचमी का दिन था, नागिन ने प्रसन्न होकर कन्या से वर मांगने को कहा।
लड़की बोली मेरे माता पिता व भाई जीवित हो जाए और आज के दिन जो भी नागों की पूजा करें उसे नाग कभी न डसे। नागिन तथास्तु कहकर वहां से चली गयी। उसी समय किसान का परिवार जीवित हो गया। उस दिन से नागपंचमी को खेत में हल चलाना व साग काटना बंद कर दिया गया।
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विधि विधान से होती है पूजा
प्राचीन काल में इस दिन घरों को गोबर में गेरू मिलाकर लीपा जाता था। फिर नाग देवता की विधि विधान से पूजा की जाती थी। पूजा के लिये एक रस्सी में 7 गांठे लगाकर रस्सी का सांप बनाया जाता था। फिर उसे लकडी के पट्टे के ऊपर सांप का रूप मानकर बैठाया जाता था। हल्दी, रोली, चावल व फूल चढ़ाकर नाग देवता की पूजा की जाती है।
फिर कच्चा दूध, घी, चीनी मिलाकर इसे लकडी के पट्टे पर बैठे सर्प देवता को अर्पित करते है, और आरती करते है। इसके बाद कच्चे दूध में शहद, चीनी या थोडा सा गुड मिलाकर किसी सांप की बांबी या बिल मे डाल दिया जाता है। जिसके बाद उस बिल की मिट्टी लेकर चूल्हे दरवाजे के निकट दीवारो पर तथा घर के कोनों में सांप बनाते है। इसके बाद भीगे बाजरे, घी और गुड से इनकी पूजा की जाती है। फिर आरती करके दक्षिणा चढ़ाने का प्रचलन है।

गुडिया पीटने का प्रचलन
नागपंचमी के दिन घरों में लडकियां व महिलायें कपड़े की गुडिया बनाती है। जिसके बाद घर में बने पकवान व गेंहू चना की कोहरी लेकर समीप के तालाब, नदी या नहरों के तट पर जाती है। जहां विधि विधान से पूजा कर भोग लगाती है। जिसके बाद वह कपड़े की बनाई हुयी गुडियों का नदी के जल मे प्रवाह करती है, जिन्हे युवक नदी मेे घुसकर कोडे या डंडे से पीटते है। लेकिन बीसंवी शताब्दी के इस नये युग में धीरे-धीरे गुडियां पीटने रिवाज विलुप्त होता जा रहा है। जो आज गांवों में सीमित होकर रह गया है।