हिन्दू समाज में चैत्र शुक्ल तृतीया का दिन गणगौर पर्व के रूप में मनाया जाता है। गणगौर लोकपर्व होने के साथ-साथ रंगबिरंगी संस्कृति का अनूठा उत्सव है। यह पर्व विशेष तौर पर केवल महिलाओं के लिए ही होता है। Gangaur Pooja Vidhi Or Katha
शिव-पार्वती हमारे आराध्य हैं, पूज्य हैं। इस दिन भगवान शिव ने पार्वतीजी को तथा पार्वतीजी ने समस्त स्त्री-समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। इस दिन सुहागिनें दोपहर तक व्रत रखती हैं। महिलाओं नाच-गाकर, पूजा-पाठ कर हर्षोल्लास से यह त्योहार मनाती हैं।
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विषयसूची :
गणगौर पूजा शुभ मुहूर्त :
- गणगौर पूजा तिथि : 27 मार्च 2020
- सर्वार्थ सिद्धि योग – सुबह 6 बजकर 17 मिनट से सुबह 10 बजकर 09 मिनट तक
- रवि योग- सुबह 10 बजकर 09 मिनट से अगले दिन सुबह 06 बजकर 15 मिनट तक
- तृतीया तिथि प्रारम्भ – शाम 7 बजकर 53 मिनट से (26 मार्च 2020)
- तृतीया तिथि समाप्त – अगले दिन रात 10 बजकर 12 मिनट तक (27 मार्च 2020)
कैसे करें गणगौर व्रत :
- चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को प्रातः स्नान करके गीले वस्त्रों में ही रहकर घर के ही किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोना चाहिए।
- इस दिन से विसर्जन तक व्रती को एकासना (एक समय भोजन) रखना चाहिए।
- इन जवारों को ही देवी गौरी और शिव या ईसर का रूप माना जाता है।
- जब तक गौरीजी का विसर्जन नहीं हो जाता (करीब आठ दिन) तब तक प्रतिदिन दोनों समय गौरीजी की विधि-विधान से पूजा कर उन्हें भोग लगाना चाहिए।
- गौरीजी की इस स्थापना पर सुहाग की वस्तुएँ जैसे काँच की चूड़ियाँ, सिंदूर, महावर, मेहंदी, टीका, बिंदी, कंघी, शीशा, काजल आदि चढ़ाई जाती हैं।
- सुहाग की सामग्री को चंदन, अक्षत, धूप-दीप, नैवेद्यादि से विधिपूर्वक पूजन कर गौरी को अर्पण किया जाता है।
- इसके पश्चात गौरीजी को भोग लगाया जाता है।
- भोग के बाद गौरीजी की कथा कही जाती है।
- कथा सुनने के बाद गौरीजी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से विवाहित स्त्रियों को अपनी मांग भरनी चाहिए।
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- कुँआरी कन्याओं को चाहिए कि वे गौरीजी को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
- चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) को गौरीजी को किसी नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर उन्हें स्नान कराएं।
- चैत्र शुक्ल तृतीया को भी गौरी-शिव को स्नान कराकर, उन्हें सुंदर वस्त्राभूषण पहनाकर डोल या पालने में बिठाएं।
- इसी दिन शाम को गाजे-बाजे से नाचते-गाते हुए महिलाएं और पुरुष भी एक समारोह या एक शोभायात्रा के रूप में गौरी-शिव को नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर विसर्जित करें।
- इसी दिन शाम को उपवास भी छोड़ा जाता है।
गणगौर पूजन का महत्व :
गणगौर एक ऐसा पर्व है जिसे, हर स्त्री के द्वारा मनाया जाता है. इसमें कुवारी कन्या से लेकर, विवाहित स्त्री दोनों ही, पूरी विधि-विधान से गणगौर जिसमे, भगवान शिव व माता पार्वती का पूजन करती है.
इस पूजन का महत्व कुवारी कन्या के लिये , अच्छे वर की कामना को लेकर रहता है जबकि, विवाहित स्त्री अपने पति की दीर्घायु के लिये होता है.
जिसमे कुवारी कन्या पूरी तरह से तैयार होकर और, विवाहित स्त्री सोलह श्रंगार करके पुरे, सोलह दिन विधि-विधान से पूजन करती है.
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गणगौर व्रत कथा :
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव और माता पार्वती वन में गए चलते चलते वह बहुत ही गहरे वन में पहुंच गए तब माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि भगवन मुझे प्यास लगी है तब भगवान शिव ने कहा कि देवी देखो उस ओर पक्षी उड़ रहे हैं। वहां अवश्य ही जल होगा।
पार्वती जी वहां पर गईं वहां पर एक नदी वह रही थी। पार्वती जी ने पानी की अंजली भरी तो उनके हाथ में दूव का गुच्छा आ गया। जब उन्होंने दूसरी बार अंजली भरी तो टेसू के फूल हाथ में आ गए और तीसरी बार अंजली भरने पर डोकला नाम का फल हाथ में आया।
इस बात से पार्वती जी के मन में कई तरह के विचार उठे पर उनकी समझ में कुछ नही आया।इसके बाद महादेव जी ने बताया कि आज चैत्र मास की तीज है सारी महिलाएं आज के दिन अपने सुहाग के लिए गौरी उत्सव करती हैं।
गौरी जी को चढ़ाए गए दूव, फूल और अन्य सामग्री नदी में बहकर आ रहे हैं। इस पर पार्वती जी ने विनती कि की हे स्वामी दो दिन के लिए आप मेरे माता पिता का नगर बनवा दें। जिससे सारी स्त्रियां यहीं आकर गणगौर के व्रत को करें और मैं खुद ही उन्हें उनके सुहाग की रक्षा का आशीवार्द दूं।
भगवान शिव ने ऐसा ही किया। थोड़ी देर में ही स्त्रियों का झूंड आया तो पार्वती जी को चिंता हुए और वह महादेव जी से कहने लगीं। हे प्रभू मैं तो पहले ही इन्हें वरदान दे चुकी हूं अब आप अपनी ओर से सौभाग्य का वरदान दें। पार्वती जी के कहने से भगवान शिव ने उन सभी स्त्रियों को सौभाग्य का वरदान दिया।