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दोस्तों हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह में पड़ने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) कहलाती है और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी विनायक चतुर्थी कहलाती है। इस प्रकार से एक माह में दो चतुर्थी व्रत होते हैं। वहीं ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को एकदंत संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस साल एकदंत संकष्टी चतुर्थी 9 मई दिन मंगलवार को है। इस दिन भक्तगण सुख, शांति और समृद्धि के लिए एकदन्त दयावन्त चार भुजा धारी भगवान श्री गणेश की विधि विधान से पूजा-आराधना करते हैं।
शास्त्रों के अनुसार, इस दिन भगवान गणेश की पूजा अर्चना करने से ज्ञान और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है और बड़े से बड़े विघ्न को आसानी से टाला जा सकता है। इसीलिए इन्हें विघ्नविनाशक भी कहते हैं, अर्थात जो बाधाओं को दूर करता है। गणेश जी प्रथम पूज्य हैं और शुभता के भी प्रतीक हैं। इस दिन व्रत करने से भगवान गणेश की असीम कृपा प्राप्त होती है और घर-परिवार में शुभता बनी रहती है। तो चलिए जानते हैं क्यों मनाई जाती है एकदन्त संकष्टी चतुर्थी और क्या है इसका महत्व।
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एकदंत संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त
Ekdant Sankashti Chaturthi Shubh Muhurt
- एकदंत संकष्टी चतुर्थी तिथि : 9 मई दिन मंगलवार
- एकदंत संकष्टी चतुर्थी तिथि प्रारंभ : 8 मई 2023 को शाम 6 बजकर 18 मिनट पर
- एकदंत संकष्टी चतुर्थी तिथि समापन : 9 मई को शाम 4 बजकर 8 मिनट पर
- अभिजित मुहूर्त : सुबह 11 बजकर 51 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक
एकदंत संकष्टी चतुर्थी पूजन विधि
Ekdant Sankashti Chaturthi Poojan Vidhi
- इस दिन ब्रह्म मूहर्त में उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। यदि संभव हो तो लाल वस्त्र पहनकर पूजा करें।
- इसके बाद जल, अक्षत और फूल लेकर व्रत का संकल्प लें।
- पूजन करते समय आपका मुख सदैव उत्तर या पूर्व दिशा को ओर होना चाहिए।
- इसके बाद मंदिर के स्थान को साफ करें और भगवान गणेश की मूर्ति साफ आसन या चौकी पर स्थापित करें।
- अब आप मंदिर में रखे दीपक जलाएं और भगवान श्रीगणेश को सिंदूर से तिलक करें और दूर्वा अर्पित करें।
- पूजा में भगवान गणेश को पंचामृत, चंदन का लेप, दूर्वा घास, कुमकुम, अगरबत्ती और धूप आदि का भोग लगाया जाता है।
- पूजन के दौरान पूरे मन से भगवान श्री गणेश जी के मंत्र “ॐ श्री गणेशाय नमः” या “ॐ गं गणपते नमः” का जाप करना चाहिए।
- इसके बाद भगवान गणेशजी की आरती करें और लड्डू, मोदक या फिर तिल से बनी मिठाई का भोग लगाएं।
- इसके बाद शाम को व्रत कथा पढ़कर और चांद को अर्घ्य देकर स्वयं भोजन कर व्रत खोलें।
- इस दिन गरीबों को भोजन खिलाएं और यदि संभव हो तो गरीबों को वस्त्र दान करें।

क्यों किए जाते हैं चंद्रदर्शन
Ekdant Sankashti Chaturthi Chandra Darshan
विनायक चतुर्थी (एकदंत संकष्टी चतुर्थी) के दिन चंद्र दर्शन का विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि सूर्योदय से शुरू होने वाला विनायक चतुर्थी का व्रत चंद्र दर्शन के बाद ही समाप्त होता है। शास्त्रों में उल्लेख है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत तभी पूर्ण माना जाता है, जब उस रात चंद्रमा की पूजा कर ली जाए अर्थात् यह तिथि चंद्रमा की पूजा के बिना अधूरी मानी जाती है। इस दिन चंद्रमा देर से उगता है। चंद्रमा को जल अर्पित करने के बाद ही व्रत का पारण करते हैं, अतः विनायक चतुर्थी के दिन चंद्रदर्शन जरूरी होते हैं।
एकदंत संकष्टी चतुर्थी की कथा
Ekdant Sankashti Chaturthi Katha
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु का विवाह लक्ष्मीजी से निश्चित हो गया था। शादी की तैयारियां शुरू हो गईं। सभी देवताओं को निमंत्रण भेजा गया, लेकिन गणेश को आमंत्रित नहीं किया, जो भी कारण हो। अब भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ गया। सभी देवता अपनी-अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में पहुंचे। उन सभी ने देखा कि गणेश कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। फिर वे आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेश को आमंत्रित नहीं किया गया है? या गणेशजी स्वयं नहीं आए हैं? इस पर सभी कोआश्चर्य होने लगे। तब सभी ने सोचा कि भगवान विष्णु से इसका कारण पूछा जाए।
भगवान विष्णु से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेश के पिता भोलेनाथ महादेव को निमंत्रण भेजा है। अगर गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आएं, अलग से निमंत्रण देने की जरूरत नहीं थी। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिन भर में चाहिए। यदि गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाना और इतना खाना पीना अच्छा नहीं लगता।
इतना बोलते हुए एक ने सुझाव दिया कि अगर गणेशजी आ भी गए तो उन्हें द्वारपाल बना देंगे, और बोल देंगे आप घर की रखवाली करना। यदि आप चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलते हैं तो आप बारात से बहुत पीछे रह जाएंगे। यह सुझाव सभी को पसंद आया, इसलिए भगवान विष्णु ने भी अपनी सहमति दे दी।
अब होना क्या था, गणेशजी वहां आ गए और उन्हें समझाने के बाद उन्होंने घर की रखवाली के लिए बैठा दिया। बारात चलती रही, जब नारदजी ने देखा कि गणेश द्वार पर बैठे हैं, तो वे गणेश के पास गए और रुकने का कारण पूछा। गणेशजी कहने लगे कि भगवान विष्णु ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारदजी ने कहा कि यदि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दीजिए तो वह रास्ता खोदेगी जिससे उनके वाहन धरती में धंसेंगे, तो तुम्हें उन्हें आदरपूर्वक बुलाना होगा।
अब गणेशजी ने अपनी मूषक सेना को शीघ्रता से आगे भेज दिया और सेना ने भूमि को खोखला कर दिया। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए। लाख कोशिश करने पर भी पहिए नहीं निकले। सभी ने अपने-अपने उपाय किए, लेकिन पहिए निकले नहीं, बल्कि जगह-जगह टूट गए। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करें।
तब नारदजी ने कहा- आप लोगों ने गणेश का अपमान करके अच्छा नहीं किया। यदि उन्हें मना कर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है। भगवान शंकर ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेश को लेकर आए। गणेश जी की आदर सम्मान के साथ पूजन किया, तब कहीं रथ के पहिए निकले। अब रथ के पहिए निकल तो गए, लेकिन वे टूट फूट गए, तो उनकी मरम्मत कौन करे ?
पास के खेत में खाटी काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। हाथी अपना काम करने से पहले, उन्होंने ‘श्री गणेशाय नमः’ कहकर गणेश की पूजा करना शुरू कर दिया। यह देखते ही खाटी ने सारे पहिये ठीक कर दिए।
तब खाटी कहने लगा कि हे देवों! आपने पहले गणेश को नहीं मनाया होगा और उनकी पूजा नहीं की होगी, इसलिए यह संकट आपके साथ आया है। हम तो मूर्ख अज्ञानी हैं, फिर भी हम पहले गणेश की पूजा करते हैं, उनका ध्यान देते हैं। आप लोग तो देवता हो फिर भी गणेश को कैसे भूले? अब अगर आप भगवान श्री गणेश का जाप करके जाएंगे तो आपके सारे काम हो जाएंगे और कोई संकट नहीं आएगा।
यह कह कर बारात वहां से निकल गई और विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्मी जी से कर सभी सकुशल अपने घर लौट गए। हे गणेशजी महाराज! आपने विष्णु को जैसो कारज साजो ऐसो कारज सबको सिद्ध करियो। बोलो गजानन भगवान की जय।
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गणेश चतुर्थी पर ज़रूर करें ये काम
Ekdant Sankashti Chaturthi Upay
मोदक अर्पित करें :
यदि आपकी कोई विशेष मनोकामना है, तो उसके लिए एकदंत संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की विधिपूर्वक पूजा कर उनको मोदक का भोग लगाएं। मोदक नहीं हैं, तो लड्डू भी अर्पित कर सकते हैं। इसके बाद गणेश चालीसा का पाठ करें। मनोकामना जरूर पूरी होगी।
दूर्वा अर्पित करें :
एकदंत संकष्टी चतुर्थी को पूजा के समय गणेश जी को 5 दूर्वा या दूर्वा की 21 गांठें इदं दुर्वादलं ऊं गं गणपतये नमः मंत्र के साथ उनके सिर पर अर्पित करें। भगवान गणेश को दूर्वा घास अति प्रिय होती है। भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए उन्हें दूर्वा घास जरूर अर्पित करें। जो भक्त भगवान गणेश को दूर्वा घास अर्पित करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। आप रोजाना भी भगवान गणेश को दूर्वा अर्पित कर सकते हैं। अगर आपके कार्यों में बार- बार विघ्न आ जाता है तो भगवान गणेश को दूर्वा जरूर अर्पित करें। ऐसा करने से आपके कार्यों के विघ्न दूर हो जाएंगे।
भगवान गणेश को सिंदूर लगाएं :
भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए उन्हें सिंदूर भी लगाएं। सिंदूर लगाने से गणपित भगवान प्रसन्न होते हैं। भगवान गणेश को सिंदूर लगाने के बाद अपने माथे में भी सिंदूर लगा लें। भगवान गणेश को सिंदूर लगाने से आरोग्य की प्राप्ति होती है। आप रोजाना भी भगवान गणेश को सिंदूर लगा सकते हैं।

संकष्टी चतुर्थी का महत्व
Ekdant Sankashti Chaturthi Mahatva
भगवान गणेश को ज्ञान, बुद्धि, समृद्धि, और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है और किसी भी शुभ काम की शुरूआत प्रथम पूज्य विघ्नहर्ता गणेश जी के पूजन से ही होती है। चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को अत्यंत प्रिय है इसलिए चतुर्थी को भगवान गणेश सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं। ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद देते हैं। एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत चंद्रमा के दर्शन और जल अर्पित करने के बाद ही पूर्ण होता है। कहा जाता है कि जो भक्त एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत रखता है उसके पाप हमेशा के लिए मिट जाते हैं तथा उसे सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है। यह व्रत रखने वाले भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि और धन की कमी कभी नहीं होती है। संतान प्राप्ति के लिए भी कई लोग एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत रखते हैं।
गणेश जी की आरती
Shri Ganesh Aarti
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एकदंत, दयावन्त, चार भुजाधारी,
माथे सिन्दूर सोहे, मूस की सवारी।
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।। ..
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया,
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ..
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जय बलिहारी।
गणेश जी की वंदना
Shri Ganesh Vandana
सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची
सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची
कंठी झलके माल मुक्ता फलांची।
जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति
दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति, जय देव जय देव।
रत्नखचित फरा तुज गौरीकुमरा
चंदनाची उटी कुमकुम केशरा
हीरे जड़ित मुकुट शोभतो बरा
रुणझुणती नूपुरे चरणी घागरिया।
जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति
दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति, जय देव जय देव।
लम्बोदर पीताम्बर फणिवर बंधना
सरल सोंड वक्र तुंड त्रिनयना
दास रामाचा वाट पाहे सदना
संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुरवर वंदना।
जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति
दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति, जय देव जय देव।
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