कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है. इसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है. देवउठनी या देवोत्थान एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु चार मास बाद जागते हैं. आषाढ़ शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी को भगवान श्री हरि विष्णु 4 मास के लिए क्षीरसागर में शयन के लिए चले जाते हैं। इस बार देवउठनी एकादशी 19 नवंबर 2018 सोमवार को है। Devuthni Gyaras Puja
विषयसूची :
देवउठनी एकादशी पारण मुहूर्त :
पारण का समय – सुबह 6.52 बजे से 8.58 बजे तकअवधि : 2 घंटे 7 मिनट
पारण समाप्त – द्वादशी को दोपहर 2.40 बजे
एकादशी तिथि अारंभ – दोपहर 1.34 बजे से (18 नवंबर)
एकादशी तिथि समाप्त – दोपहर 2.30 बजे (19 नवंबर)
मांगलिक कार्यों का शुभारंभ :
कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी दीपावली के बाद आने वाली एकादशी को ही देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। देवशयनी एकादशी के बाद अाषाढ़, शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान श्री हरि यानि विष्णु जी चार मास के लिये सो जाते हैं। उसे देवशयनी कहा जाता है और जिस दिन निद्रा से जागते हैं वह कहलाती है देवोत्थान एकादशी। इसे देव उठनी और प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। वह शुभ दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का होता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु, जो क्षीरसागर में सोए हुए थे, चार माह उपरान्त जागे थे। विष्णु जी के शयन काल के चार महीनों में विवाह अादि मांगलिक कार्यों का आयोजन करना वर्जित है। भगवान के जागने के बाद ही इस एकादशी से सभी शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं।
पौराणिक मान्यता :
माना जाता है कि चातुर्मास के दिनों में एक ही जगह रुकना ज़रूरी है। इन दिनों साधु संन्यासी किसी एक नगर या बस्ती में ठहरकर धर्म प्रचार का काम करते हैं। इन चार माह के दौरान कई धार्मिक कार्यक्रम भी होते हैं। देवोत्थान एकादशी को यह चातुर्मास पूरा होता है और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन देवता भी जाग उठते हैं। देवताओं का शयन काल मानकर ही इन चार महीनों में कोई विवाह, नया निर्माण या कारोबार आदि बड़ा शुभ कार्य शुरू नहीं किये जाते हैं।
व्रत एवं पूजन विधि :
- प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी या देवोत्थानी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा होती है. भगवान विष्णु से जागने का आह्वान किया जाता है.
- इस दिन सुबह-सुबह उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत का संकल्प लें.
- घर के आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाएं. लेकिन धूप में चरणों को ढक दें.
- इसके बाद एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल, मिठाई, ऋतुफल और गन्ना रखकर डलिया से ढक दें.
- इस दिन रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाए जाते हैं.
- रात में पूरे परिवार के साथ भगवान विष्णु और अन्य देवी-देवताओं की पूजा करें.
- शाम की पूजा में सुभाषित स्त्रोत पाठ, भगवत कथा और पुराणादि का श्रवण व भजन आदि गाया जाता है.
- इसके बाद भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर उठाना चाहिए.
- इसके साथ ही इन मंत्रों का जाप करें:
- उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास
- अंत में कथा श्रवण कर प्रसाद का वितरण करें.
व्रत कथा :
एक बार भगवान नारायण से लक्ष्मी जी ने कहा कि आप दिन-रात जागा करते हैं और जब सोते हैं तो लाखों-करोड़ों वर्ष तक सो जाते हैं और उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं। ऐसे में आप प्रतिवर्ष नियम से निद्रा लिया करें तो मुझे भी विश्राम करने का समय मिल जाएगा। लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्काराकर बोले कि मेरे जागने से सब देवों को और ख़ास कर तुमको कष्ट होता है। तुम्हें मेरी सेवा से जरा भी अवकाश नहीं मिलता। इसलिए, तुम्हारे कथनानुसार आज से मैं प्रति वर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। उस समय तुमको और देवगणों को अवकाश होगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी। मेरी अल्पनिद्रा भक्तों के लिए परम मंगलकारी उत्सवप्रद तथा पुण्यवर्धक होगी। इस काल में जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे तथा शयन और उत्पादन के उत्सव आनन्दपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में तुम्हारे सहित निवास करूंगा।
तुलसी विवाह:
देवउठनी एकादशी के दिन से शादियों का शुभारंभ हो जाता है. सबसे पहले तुलसी मां की पूजा होती है. देवउठनी एकादशी के दिन धूमधाम से तुलसी विवाह का आयोजन होता है. तुलसी जी को विष्णु प्रिया भी कहा जाता है, इसलिए देव जब उठते हैं तो हरिवल्लभा तुलसी की प्रार्थना ही सुनते हैं।
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी जी का विवाह शालिग्राम से की जाती है। तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह पूरे धूमधाम से की जाती है। इसीलिए तुलसी विवाह को देव जागरण के पवित्र मुहूर्त के स्वागत का आयोजन माना जाता है। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ तुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान करना है। शास्त्रों में भी कहा गया है कि जिन दम्पतियों के कन्या नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं।
अचूक उपाय –
1. दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर श्री विष्णु जी का जल से अभिषेक करें। इससे भगवान विष्णु जी प्रसन्न होते हैं और हजारो जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
2. किसी ब्राह्मण को दक्षिणा दें, और भोजन करायें। ऐसा करने से आपके सभी मनोरथ पूर्ण होंगे।
3. आप आमदनी में बढ़ोतरी करना चाहते हैं तो 7 कन्याओं को भोजन कराएं। भोजन में खीर को अवश्य शामिल करें, ऐसा करने से कुछ ही दिनों में आप जिस काम के लिए कोशिश कर रहे हैं, वह पूरा होगा।
4. नारियल व बादाम चढ़ाये। इससे रूकें हुये काम बनते हैं।
5. रूपये दक्षिणा विष्णु जी के समीप रखें। उस पैसे को तिजोरी में रख दें, ऐसा करने से धन, संपत्ति में निश्चित तौर पर वृद्धि होती है।