जानिए कब है महापर्व छठ, क्या है अर्घ्य और पारण का समय

हेल्लो दोस्तों सूर्य देव की आराधना और संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए समर्पित छठ पूजा (Chhath Poojan Vrat Vidhi) हर वर्ष दीपावली के छह दिन बाद का​र्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को बहुत ही धूमधाम से पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है। इस वर्ष 2022 में छठ पर्व की पूजा 30 अक्टूबर दिन रविवार को की जाएगी।

ये भी पढ़िए : छठ पूजा स्पेशल: ऐसे बनाइए अनरसा

छठ व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं और पानी भी ग्रहण नहीं करते. छठ पूजा कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे छठ, छठी माई के पूजा, छठ पर्व, छठ पूजा, डाला छठ, डाला पूजा, सूर्य षष्ठी व्रत आदि.

यह व्रत संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए किया जाता है। छठ पर्व षष्ठी तिथि से दो दिन पहले यानि चतुर्थी से नहाय-खाय से आरंभ हो जाता है जो अलग अलग तिथि के अनुसार 4 दिनों की होती है. छठ पर्व पूरे चार दिनों तक चलता है।

इस पर्व में मुख्यतः सूर्य देव को अर्घ्य देने का सबसे ज्यादा महत्व माना गया है। बिहार में यह पर्व विशेषतौर पर बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। तो आइए जानते हैं छठ पूजा की तिथियां, अर्घ्य का समय और पारण समय क्या है।

Chhath Poojan Vrat Vidhi
Chhath Poojan Vrat Vidhi

पहला दिन – नहाय खाय

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से छठ पूजा का आरंभ होता है। इस दिन को नहाय-खाय की परंपरा होती है। इस साल 28 अक्टूबर दिन शुक्रवार 2022 को नहाय-खाय का दिन रहेगा। इसमें घर की साफ-सफाई पूरी तरह से की जाती है और अगले तीन दिनों तक मांसहारी भोजन पर पूरी तरह से प्रतिबंध होता है. नहाय खाय के दिन अरवा चावल, लौकी की सब्जी और अन्य कई तरह के भोजन बनाए जाते हैं. इसे भोग लगाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है.

28 अक्टूबर सूर्योदय – 06 बजकर 46 मिनट पर 
28 अक्टूबर सूर्यास्त – शाम को 05 बजकर 26 मिनट पर 

ये भी पढ़िए : क्या आप जानते हैं छठ पूजा से जुड़ी ये खास बातें

दूसरा दिन – लोहंडा एवं खरना

छठ पूजा का दूसरा दिन यानि लोहंडा और खरना इस बार 29 अक्टूबर दिन शनिवार 2022 को होगा। यह कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी का दिन होता है। इस दिन शाम के वक्त खीर का प्रसाद बनता है, जिसे पूरे दिन के उपवास के बाद व्रति ग्रहण करती है और खरना के साथ महिलाओं का  36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है. खरना के दिन विशेषकर गुड़ की खीर, घी लगी हुई रोटी और फलों का प्रसाद होता है.

29 अक्टूबर सूर्योदय – प्रातः 06 बजकर 47 मिनट पर 
29 अक्टूबर सूर्यास्त – शाम को 05 बजकर 26 मिनट पर होगा

Chhath Poojan Vrat Vidhi
Chhath Poojan Vrat Vidhi

तीसरा दिन – छठ पूजा, पहला अर्घ्य

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पूजा की जाती है। इस दिन संध्या के समय सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस साल छठ पूजा 30 अक्टूबर को की जाएगी। इस दिन बांस के सूप में फल-फूल व ठेकुआ का प्रसाद सजाकर सूर्य देव को जल या दूध से अर्घ्य दी जाती है. संध्या अर्घ्य के बाद सपरिवार रात्रि में छठ गीत या कथा सुनी जाती है.

30 अक्टूबर सूर्योदय- सुबह 06 बजकर 48 मिनट पर 
30 अक्टूबर सूर्यास्त- शाम 05 बजकर 26 मिनट पर 

ये भी पढ़िए : छठ पूजा में बनाएं कुरकुरे टेस्टी ठेकुआ

चौथा दिन- पारण, सुबह का अर्घ्य

कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को छठ पूजा के व्रत का समापन किया जाता है। इस वर्ष 31 अक्टूबर को छठ के व्रत का पारण होगा। इस दिन सूर्योदय से पहले ही नदी पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य देने की प्रथा है. इसके बाद व्रति सूर्य देव से अपनी मनोकामना मांगने के बाद प्रसाद ग्रहण कर अपना व्रत खोलती है.

31 अक्टूबर सूर्योदय – प्रातः 06 बजकर 49 मिनट पर
31 अक्टूबर सूर्यास्त – शाम 05 बजकर 25 मिनट पर

Chhath Poojan Vrat Vidhi
Chhath Poojan Vrat Vidhi

छठ मनाए जाने की कथा

छठ पर्व कैसे शुरू हुआ, इस त्यौहार को कब से मनाया जाता है इसके पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं इन कहानियों और लोक कथाओं से पता चलता है कि छठ पर्व हज़ारों सालों पहले से मनाया जा रहा है

एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी जब कुंती ने सूर्य की उपासना की थी और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई थी और तब से कर्ण सूर्य पूजा करते थे कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है

यह भी पढ़ें – छठपर्व की 4 महत्वपूर्ण परंपराएं, जिनके बगैर अधूरी है सूर्य आराधना

एक अन्य कथा के मुताबिक जब पांडव अपना सारा राजपाठ जुए में हार गए तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मैया का संबंध भाई-बहन का है इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई.

पुराणों में छठ पूजा के पीछे की राम-सीताजी से भी जुड़ी हुई है पौराणिक कथाओं के अनुसार जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया. पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया.

मुग्दल ऋषि ने माँ सीता पर गंगा जल छिड़ककर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया जिसे सीताजी ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी.

ऐसी ही अन्य जानकारी के लिए कृप्या आप हमारे फेसबुक, ट्विटर, इन्स्टाग्राम और यूट्यूब चैनल से जुड़िये ! इसके साथ ही गूगल न्यूज़ पर भी फॉलो करें !

Leave a Comment