कैसे करें छठ पर्व का महाव्रत, पूजन विधि और बरतें ये सावधानियाँ

चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी चैती छठ और कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को कार्तिकी छठ कहा जाता है। यह पर्व सूर्यदेव की उपासना के लिए प्रसिद्ध है। मान्यता है कि छठ देवी सूर्यदेव की बहन है इसलिए छठ पर्व पर छठ देवी को प्रसन्न करने हेतु सूर्य देव को प्रसन्न किया जाता है। गंगा-यमुना या किसी भी नदी, सरोवर के तट पर सूर्यदेव की आराधना की जाती है। Chhath Poojan Vidhi

सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की थी। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है। छठ पर्व सूर्य षष्ठी व डाला छठ के नाम से जाना जाता है।

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यह पर्व वर्ष में दो बार आता है पहला चैत्र शुक्ल षष्ठी को और दूसरा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को, हालांकि षष्ठी तिथि को मनाया जाने के कारण छठ पर्व कहते हैं लेकिन यह पर्व और इसकी पूजा सूर्य से जुड़े होने के कारण सूर्य की आराधना से ताल्लुक रखने के कारण इसे सूर्य षष्ठी कहते हैं।

इस व्रत में भगवान सूर्य के अलावा उनकी छोटी बहन छठ मैय्या की उपासना की जाती है। इनके बारे में मान्यता है कि यह बड़ी ही दुलाली होती है और छोटी-छोटी बातों पर नाराज हो जाती हैं। इसलिए छठ पूजा के दौरान कई बातों का ध्यान रखना चाहिए।

Chhath Poojan Vidhi
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महाभारत में भी छठ पूजा का उल्लेख किया गया है। पांडवों की मां कुंती को विवाह से पूर्व सूर्य देव की उपासना कर आशीर्वाद स्वरुप पुत्र की प्राप्ति हुई जिनका नाम था कर्ण। पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी उनके कष्ट दूर करने हेतु छठ पूजा की थी। यह पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से आरंभ होकर सप्तमी तक चलता है। प्रथम दिन यानि चतुर्थी तिथि ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। आगामी दिन पंचमी को खरना व्रत किया जाता है और इस दिन संध्याकाल में उपासक प्रसाद के रूप में गुड-खीर, रोटी और फल आदि का सेवन करते हैं और अगले 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखते हैं।

मान्यता है कि खरन पूजन से ही छठ देवी प्रसन्न होती है और घर में वास करती है। छठ पूजा की अहम तिथि षष्ठी में नदी या जलाशय के तट पर भारी तादाद में श्रद्धालु एकत्रित होते हैं और उदीयमान सूर्य को अर्ध्य समर्पित कर पर्व का समापन करते हैं।

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छठ पर्व महत्व :

छठ पूजा मुख्य रूप से बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। हालांकि अब यह पर्व देश के कोने-कोने में मनाया जाता है| पौराणिक कथाओं के अनुसार यह भारत के सूर्यवंशी राजाओं के मुख्य पर्वों से एक था। एक समय मगध सम्राट जरासंध के एक पूर्वज को कुष्ठ रोग हो गया था। इस रोग से निजात पाने हेतु राज्य के शाकलद्वीपीय मग ब्राह्मणों ने सूर्य देव की उपासना की थी। फलस्वरूप राजा के पूर्वज को कुष्ठ रोग से छुटकारा मिला और तभी से छठ पर सूर्योपासना की पूजा आरंभ हुई है।

छठ व्रत पूर्ण नियम तथा निष्ठा से किया जाता है। श्रद्धा भाव से किए गए इस व्रत से नि:संतान को संतान सुख की प्राप्ति होती हैं और धन-धान्य की प्राप्ति होती है। उपासक का जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहता है।

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छठ व्रत की पूजा विधि :

  • छठ पर्व में मंदिरों में पूजा नहीं की जाती है और ना ही घर में साफ़-सफाई की जाती है।
  • पर्व से दो दिन पूर्व चतुर्थी पर स्नानादि से निवृत्त होकर भोजन किया जाता है।
  • पंचमी को उपवास करके संध्याकाल में किसी तालाब या नदी में स्नान करके सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया जाता है। तत्पश्चात अलोना (बिना नमक का) भोजन किया जाता है।
  • षष्ठी के दिन प्रात:काल स्नानादि के बाद संकल्प लिया जाता है। संकल्प लेते समय इन मंत्रों का उच्चारण करें।
  • ॐ अद्य अमुक गोत्रो अमुक नामाहं मम सर्व पापनक्षयपूर्वक शरीरारोग्यार्थ श्री सूर्यनारायणदेवप्रसन्नार्थ श्री सूर्यषष्ठीव्रत करिष्ये।
  • पूरा दिन निराहार और नीरजा निर्जल रहकर पुनः नदी या तालाब पर जाकर स्नान किया जाता है और सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है।

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अर्घ्य :

अर्घ्य देने की भी एक विधि होती है। एक बांस के सूप में केला एवं अन्य फल, अलोना प्रसाद, ईख आदि रखकर उसे पीले वस्त्र से ढक दें। तत्पश्चात दीप जलाकर सूप में रखें और सूप को दोनों हाथों में लेकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए तीन बार अस्त होते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य दें।

ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पया मां भक्त्या गृहाणार्घ्य दिवाकर:॥

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पूजा में बरतें ये सावधानियां :

  • छठी मैय्या का प्रसाद बनाते समय पूरी पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए। हाथ पैर धोकर साफ-सुथरे स्थान पर ही प्रसाद तैयार करें।
  • छठ का प्रसाद तैयार करने वाले को तब तक कुछ नहीं खाना चाहिए जब तक की प्रसाद तैयार न हो जाए।
  • छठ मैय्या के प्रसाद को पैर नहीं लगाना चाहिए।
  • सूर्य को अर्घ्य देते समय चांदी, स्टील, शीशा व प्लास्टिक के बने बर्तनों से अर्घ्य नहीं देना चाहिए।
  • छठी मैय्या की मनौती को नहीं भूलना चाहिए। जो मनौती हो उसे समय पर पूरा कर लेना चाहिए।
  • छठ का प्रसाद जहां बन रहा हो वहां भोजन नहीं करना चाहिए। इससे पूजा अशुद्ध माना जाता है।
  • छठ का व्रत करने वाले को कभी भी बुरा भला नहीं कहना चाहिए। ऐसा करने से पूजा का लाभ आपको नहीं मिलता।

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