भाई दूज पर इस तरह पूजन करने से होगी भाई की लंबी आयु, जानिए पूजन की विधि और पौराणिक कथा

Bhai Dooj Katha : भाई दूज भाई बहन का त्यौहार है. बहनों ने भाई दूज के दिन भाई के सेहतमंद जीवन और लंबी की कामना के साथ व्रत किया है. बहनें भाई के लिए मंगलकामना करते हुए रोली से टीका करेंगी. इसके बाद वो भाई को मिठाई खिलाती हैं और फिर इसके बाद ही खाना खाती हैं.

आइए जानते हैं भैया दूज का शुभ मुहूर्त और कथा…

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भाई दूज शुभ मुहूर्त :

  • इस साल कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि बुधवार, 26 अक्टूबर को दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से लेकर अगले दिन गुरुवार, 27 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक रहेगी. ऐसे में आप तिथि के शुभारंभ से लेकर इसके समापन के बीच किसी भी वक्त त्योहार मना सकते हैं.
Bhai Dooj 2020
Bhai Dooj Katha

भाई दूज मनाने की विधि :

  • दूज वाले दिन आसन पर चावल के घोल से चौक बनाएं। इस चौक पर भाई को बिठाकर बहन अपने के हाथों पर चावलों का घोल लगाएं।
  • उसके ऊपर सिंदूर लगाकर फूल, पान, सुपारी तथा मुद्रा रखकर धीरे-धीरे हाथों पर पानी छोड़ते हुए यह बोलें – गंगा पूजा यमुना को यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजे कृष्ण कोस गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई आप बढ़ें फूले फलें।
  • अब बहन भाई के मस्तक पर तिलक लगाकर कलावा बांधें। भाई को मिठाई, मिश्री माखन खिलाए।
  • वि‍वाहिता बहनें भाई बहन अपने भाई को भोजन के लिए अपने घर पर आमंत्रित करती है, और गोबर से भाई दूज परिवार का निर्माण कर, उसका पूजन अर्चन कर भाई को प्रेम पूर्वक भोजन कराती है।
  • बहन अपने भाई को तिलक लगाकर, उपहार देकर उसकी लम्बी उम्र की कामना करती है। भाई दूर से जुड़ी कुछ मान्यताएं हैं जिनके आधार पर अलग-अलग क्षेत्रों में इसे अलग-अलग तरह ये मनाया जाता है।

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ऐसी मान्यता है कि इस दिन भाई को तिलक लगाकर प्रेमपूर्वक भोजन कराने से परस्पर तो प्रेम बढ़ता ही है, भाई की उम्र भी लंबी होती है। चूंकि इस दिन यमुना जी ने अपने भाई यमराज से वचन लिया था, उसके अनुसार भाई दूज मनाने से यमराज के भय से मुक्ति मिलती है, और भाई की उम्र व बहन के सौभाग्य में वृद्धि होती है।

होली भाई दूज महत्व : 

यह रमणीय अवसर भाइयों और बहनों के बीच के खूबसूरत बंधन को समर्पित है। इस दिन बहनें अपने भाई की आरती उतारकर और अपने भाई के माथे पर टीका या तिलक लगाकर अपने भाइयों की भलाई के लिए प्रार्थना करती हैं।

Bhai Dooj Katha
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भाई दूज की कथा :

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्यदेव और उनकी पत्नी छाया की दो संताने थी। यमराज और यमुना। भाई और बहन दोनों में बड़ा ही स्नेह था। बहन यमुना हमेशा चाहती थी भाई यमराज उनके घर आकर भोजन ग्रहण किया करें। लेकिन हमेशा काम में व्यस्त रहने वाले यमराज बहन की विनती को टाल देते थे। 

एक बार बहन यमुना ने कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि पर अपने घर के दरवाजे पर भाई यमराज को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुई। बहन यमुना ने बहुत ही प्रसन्न मन से भाई यमराज को भोजन करवाया। बहन के स्नेह और प्यार को देखकर भाई यमदेव ने वर मांगने को कहा। 

तब बहन ने वरदान के रूप में यमराज से यह वचन मांगते हुए कहा कि आप हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर भोजन करने आएं। साथ ही इस तिथि पर जो बहने अपने भाई को टीका लगाकर उन्हें भोजन खिलाएं उनमें आपका भय न हो। 

तब यमदेव ने बहन यमुना को यह वरदान देते हुआ कहा कि आगे से ऐसा ही होगा। तब से यही परंपरा चली आ रही है कि हर वर्ष जो बहने अपने भाई के माथे पर तिलक लगाकर भोजन कराएंगी उसे और उसके भाई को कभी भी यमदेव का भय नहीं सताएगा।

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