हेलो फ्रेंड्स, योगिनी एकादशी व्रत 5 जुलाई को रखा जाएगा। प्रत्येक वर्ष आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। योगिनी एकादशी व्रत को करने से 88 हजार ब्राह्राणों को भोजन करने के बराबर का फल मिलता है इसलिए इस व्रत का अपना विशेष महत्व है। योगिनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करना शुभफलदायी माना गया है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि जो भक्त योगिनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं उन्हें कुष्ठ या कोढ़ रोग से मुक्ति मिलती है एवं उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह भी कहा जाता है कि योगिनी एकादशी व्रत करने वाले लोगों को मृत्यु के बाद भगवान विष्णु के चरणों में जगह प्राप्त होती है। आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन योगिनी एकादशी व्रत कथा को सुनने से व्रत का वास्तविक फल प्राप्त होता है। Yogini Ekadashi 2021
योगिनी एकादशी शुभ मुहुर्त :
योगिनी एकादशी 4 जुलाई शाम 7 बजकर 55 मिनट से शुरू होकर 5 जुलाई रात 10 बजकर 30 मिनट रहेगी। इस एकादशी का व्रत 5 जुलाई को रखा जाएगा।
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योगिनी एकादशी ऐसे करें पूजा :
- स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र पहनने के पश्चात घर के मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने दीपक जलाएं।
- भगवान को फूल, फल, नारियल और मेवे चढ़ाएं।
- पूजा में तुलसी के पत्ते जरूर रखें।
- पंचामृत बनाएं और पूजा में रखें।
- पीपल के पेड़ की पूजा करें।
- एकादशी की कथा सुनें या सुनाएं।
- इस दिन दान करना शुभ माना जाता है

योगिनी एकादशी भगवान विष्णु मंत्र :
- ॐ नमोः नारायणाय॥
- श्री विष्णु भगवते वासुदेवाय मंत्र
ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय॥ - श्री विष्णु गायत्री मंत्र
ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥ - विष्णु शान्ताकारं मंत्र
- मंगल श्री विष्णु मंत्र
मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।
मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥
कथा :
पौराणिक कथा के अनुसार, स्वर्गधाम की अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नाम का एक राजा रहता था। वह शिव भक्त था और प्रतिदिन शिव की पूजा किया करता था। हेम नाम का एक माली पूजन के लिए उसके यहां फूल लाया करता था। हेम की विशालाक्षी नाम की सुंदर स्त्री थी। एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तो ले आया लेकिन कामासक्त होने के कारण वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद तथा रमण करने लगा।
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इधर राजा उसकी दोपहर तक राह देखता रहा। अंत में राजा कुबेर ने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर माली के न आने का कारण पता करो, क्योंकि वह अभी तक पुष्प लेकर नहीं आया। सेवकों ने कहा कि महाराज वह पापी अतिकामी है, अपनी स्त्री के साथ हास्य-विनोद कर रहा होगा। यह सुनकर कुबेर ने क्रोधित होकर उसे बुलाया।
हेम माली राजा के भय से कांपता हुआ उपस्थित हुआ। राजा कुबेर ने क्रोध में आकर कहा- ‘अरे पापी! नीच! कामी! तूने मेरे परम पूजनीय ईश्वरों के ईश्वर श्री शिवजी महाराज का अनादर किया है, इसलिए मैं तुझे शाप देता हूं कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा।’
कुबेर के श्राप से हेम माली का स्वर्ग से पतन हो गया और वह उसी क्षण पृथ्वी पर गिर गया। भूतल पर आते ही उसके शरीर में श्वेत कोढ़ हो गया। उसकी स्त्री भी उसी समय अंतर्ध्यान हो गई। मृत्यु लोक में आकर माली के ऊपर मानो दुखों का पहाड़ टूट गया। वह जंगल में बिना अन्न और जल के भटकता रहा।

रात्रि को निद्रा भी नहीं आती थी, परंतु शिवजी की पूजा के प्रभाव से उसको पिछले जन्म की स्मृति का ज्ञान अवश्य रहा। घूमते-घ़ूमते एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुंच गया, जो ब्रह्मा से भी अधिक वृद्ध थे और जिनका आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान लगता था। हेम माली वहां जाकर उनके पैरों में पड़ गया।
उसे देखकर मार्कण्डेय ऋषि बोले तुमने ऐसा कौन-सा पाप किया है, जिसके प्रभाव से यह हालत हो गई। हेम माली ने सारा वृत्तांत सुनाया। यह सुनकर ऋषि बोले- निश्चित ही तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं, इसलिए तेरे उद्धार के लिए मैं एक व्रत बताता हूँ। यदि तू आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करेगा तो तेरे सब पाप नष्ट हो जाएंगे।
यह सुनकर हेम माली ने अत्यंत प्रसन्न होकर मुनि को साष्टांग प्रणाम किया। मुनि ने उसे स्नेह के साथ उठाया। हेम माली ने मुनि के कथनानुसार विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आकर वह अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।