चैत्र माह की विनायक चतुर्थी, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा | Vinayak Chaturthi Vrat Poojan Katha

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Vinayak Chaturthi Vrat Poojan Katha : पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह दो चतुर्थी पड़ती है। एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में। प्रत्येक माह पड़ने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं, जबकि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है। चैत्र माह की विनायक चतुर्थी 05 अप्रैल दिन मंगलवार को पड़ रही है। इस बार की विनायक चतुर्थी बेहद खास है, क्योंकि इस बार ये नवरात्री के मध्य में पड़ रही है।

चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को अत्यंत प्रिय है। इस दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा-अर्चना की जाती है। गणेश जी का स्थान सभी देवी-देवताओं में सर्वोपरि है। गणेश जी को सभी संकटों को दूर करने वाला और विघ्नहर्ता माना जाता है। जो भी जातक भगवान गणेश की पूजा-अर्चना नियमित रूप से करते हैं, उनके घर में सुख और समृद्धि बढ़ती है।

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चैत्र विनायक चतुर्थी कब मनाया जाता है? (Chaitra Vinayak Chaturthi kab hai)

पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी की शुरुआत 04 अप्रैल दिन सोमवार को दोपहर 01 बजकर 54 मिनट पर होगी। वहीं इस तिथि का समापन अगले दिन 05 अप्रैल मंगलवार को शाम 03 बजकर 45 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि 05 अप्रैल को होने की वजह से विनायक चतुर्थी व्रत 05 अप्रैल को रखा जाएगा।

विनायक चतुर्थी शुभ मुहूर्त (Vinayak Chaturthi Shubh Muhurat)

विनायक चतुर्थी की पूजा का शुभ मुहूर्त 05 अप्रैल को सुबह 11:09 मिनट से शुरू होकर दोपहर 01:39 मिनट तक रहेगा। इस मुहूर्त में आप विधि-विधान से गणेश जी की पूजा कर सकते हैं।

Vinayak Chaturthi Vrat Poojan Katha
Vinayak Chaturthi Vrat Poojan Katha

इस दिन बन रहे हैं खास योग (Vinayak Chaturthi Sanyog)

इस बार चैत्र माह की विनायक चतुर्थी के दिन खास योग बनने जा रहा हैं। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 06:07 मिनट से 04:52 मिनट तक है। वहीं इस अवधि में रवि योग का भी शुभ संयोग बन रहा है। इस दिन का शुभ मुहूर्त दिन में 11:59 बजे से दोपहर 12:49 बजे तक है. साथ ही इस दिन सुबह 8 बजे तक प्रीति योग और उसके बाद आयुष्मान योग बनेगा। ज्योतिष की मानें तो ये योग मांगलिक कार्यों के लिए बेहद शुभ हैं।

विनायक चतुर्थी पूजा विधि (Vinayak Chaturthi poojan vidhi)

शास्त्रों के अनुसार, चतुर्थी की पूजा दोपहर के समय करने का विधान है। इस दिन प्रात:काल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें और पूजा में पुन: शुद्ध होकर पूजास्थल को गंगाजल से पवित्र कर लें। फिर वहां गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें। पूजा में भगवान गणेश जी को पीले फूलों की माला अर्पित करने के बाद धूप-दीप, नैवेद्य, अक्षत और उनका प्रिय दूर्वा अर्पित करें। इसके बाद उन्हें लड्डओं और मोदक का भोग लगाएं। अंत में व्रत कथा पढ़कर गणेश जी की आरती करें। रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मण को दान दक्षिणा देकर व्रत को पारण करें।

मान्यता के अनुसार, भगवान गणेश को सिंदूर बेहद प्रिय है, इसलिए विनायक चतुर्थी के दिन पूजा के समय गणेश जी को लाल रंग के सिंदूर का तिलक लगाएं और स्वयं भी उसका तिलक करें। सिंदूर चढ़ाते समय नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें-

“सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्।
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्॥ “

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विनायक चतुर्थी व्रत कथा (Vinayak Chaturthi vrat katha)

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है. राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था. वह अपने परिवार का पेट पालने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाता था. किसी कारणवश उसके बर्तन सही से आग में पकते नहीं थे और वे कच्चे रह जाते थे. अब मिट्टी के कच्चे बर्तनों के कारण उसकी आमदनी कम होने लगी क्योंकि उसके खरीदार कम मिलते थे.

इस समस्या के समाधान के लिए वह एक पुजारी के पास गया. पुजारी ने कहा कि इसके लिए तुमको बर्तनों के साथ आंवा में एक छोटे बालक को डाल देना चाहिए. पुजारी की सलाह पर उसने अपने मिट्टी के बर्तनों को पकाने के लिए आंवा में रखा और उसके साथ एक बालक को भी रख दिया.

उस दिन संकष्टी चतुर्थी थी. बालक के न मिलने से उसकी मां परेशान हो गई. उसने गणेश जी से उसकी कुशलता के लिए प्रार्थना की. उधर कुम्हार अगले दिन सुबह अपने मिट्टी के बर्तनों को देखा कि सभी अच्छे से पक गए हैं और वह बालक भी जीवित था. उसे कुछ नहीं हुआ था. यह देखकर वह कुम्हार डर गया और राजा के दरबार में गया. उसने सारी बात बताई.

फिर राजा ने उस बालक और उसकी माता को दरबार में बुलाया. तब उस महिला ने गणेश चतुर्थी व्रत के महात्म का वर्णन किया. इस घटना के बाद से लोग अपने परिवार और बच्चों की कुशलता के लिए चतुर्थी व्रत रखने लगे.

विनायक चतुर्थी का महत्व (Vinayak Chaturthi mahatva)

विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणपति की पूजा करने से वे प्रसन्न होते हैं। भक्तों के कार्यों में आने वाले संकटों को दूर करते हैं। उनकी कृपा से व्यक्ति के कार्य बिना विघ्न बाधा के पूर्ण होते हैं। वे शुभता के प्रतीक हैं और प्रथम पूज्य भी हैं, इसलिए कोई भी कार्य करने से पूर्व श्री गणेश जी की पूजा की जाती है।

श्री गणेश की आरती (Vinayak Chaturthi Aarti)

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे,मूसे की सवारी॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥

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