जानिये विनायक चतुर्थी व्रत मुहूर्त, पूजा विधि, कथा और महत्त्व | Vinayak Chaturthi Vrat Katha

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हेल्लो दोस्तों भगवान गणेश को सभी देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय माना गया है इसलिए हर माह सिद्धिविनायक भगवान गणेश को समर्पित दो चतुर्थी मनाई जाती हैं। हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी या वरद चतुर्थी के रुप में मनाई जाती है।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से मनचाहा वरदान प्राप्त किया जा सकता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा अर्चना करने से बड़े से बड़े विघ्न को आसानी से टाला जा सकता है इसीलिए इन्हें विघ्नविनाशक भी कहते हैं, अर्थात जो बाधाओं को दूर करता है। इस दिन पूरे मन और विधिवत व्रत करने से घर परिवार पर भगवान गणेश की असीम कृपा प्राप्त होती है। विनायक चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा करने से ज्ञान और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। आज इस संस्करण में हम आपको साल 2022 में विनायक चतुर्थी (जनवरी से लेकर दिसंबर तक) कब-कब पड़ रही है, की सम्पूर्ण विनायक चतुर्थी तिथि के बारे में बताएंगे।

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कब है विनायक चतुर्थी व्रत (Vinayak Chaturthi 2022)

  • 06 जनवरी – गुरुवार – पौष विनायक चतुर्थी
  • 04 फरवरी – शुक्रवार – माघ विनायक चतुर्थी
  • 06 मार्च – रविवार – फाल्गुन विनायक चतुर्थी
  • 05 अप्रैल – मंगलवार – चैत्र विनायक चतुर्थी
  • 04 मई – बुधवार – वैशाख विनायक चतुर्थी
  • 03 जून – शुक्रवार – ज्येष्ठ विनायक चतुर्थी
  • 03 जुलाई – रविवार – आषाढ़ विनायक चतुर्थी
  • 01 अगस्त – सोमवार – श्रावण विनायक चतुर्थी
  • 31 अगस्त – बुधवार – भाद्रपद विनायक चतुर्थी
  • 29 सितंबर – गुरुवार – अश्विन विनायक चतुर्थी
  • 28 अक्टूबर – शुक्रवार – कार्तिक विनायक चतुर्थी
  • 27 नवंबर – रविवार – मार्गशीर्ष विनायक चतुर्थी
  • 26 दिसंबर – सोमवार – पौष विनायक चतुर्थी
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विनायक चतुर्थी शुभ मुहूर्त (Vinayak Chaturthi Shubh Muhurt)

उदयातिथि के अनुसार, विनायक चतुर्थी इस बार 26 दिसंबर यानी आज मनाई जा रही है. हर माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी का व्रत रखा जाता है. विनायक चतुर्थी की शुरुआत 26 दिसंबर यानी आज सुबह 04 बजकर 51 मिनट पर हो जाएगी और इसका समापन 27 दिसंबर रात 01 बजकर 37 मिनट पर होगा. साथ ही इस विनायक चतुर्थी सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण भी हो रहा है. सर्वार्थ सिद्धि योग की शुरुआत 26 दिसंबर यानी आज सुबह 07 बजकर 12 मिनट पर हो रही है और इस योग का समापन शाम 04 बजकर 42 मिनट पर होगा.

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    विनायक चतुर्थी की पूजा सामग्री (Vinayak Chaturthi Pooja Samagri)

    विनायक चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजन करने से पहले इन सामग्रियों को एकत्रित कर लें। विनायक चतुर्थी व्रत से प्रभु की कृपा और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

    लकड़ी की चौकी, लाल कपड़ा, गणेश प्रतिमा, कलश, पंचामृत, रोली, अक्षत्, कलावा, जनेऊ, गंगाजल, इलाइची और लौंग, चांदी का वर्क, नारियल और सुपारी, पंचमेवा, घी, मोदक और कपूर।

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      विनायक चतुर्थी व्रत पूजन विधि (Vinayak Chaturthi Poojan Vidhi)

      • इस दिन ब्रह्म मूहर्त में उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नान करें।
      • इसके बाद गणेश जी का मन ही मन ध्यान कर विनायक चतुर्थी व्रत का संकल्प लें।
      • इसके बाद मंदिर के स्थान को साफ करें और भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें।
      • गणेशजी की पूजा व स्थापना करते समय मुंह पूरब या उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए।
      • अब दीपक जलाएं और भगवान गणेश को सिंदूर से तिलक करें।
      • भगवान श्रीगेश को तुलसी नहीं चढ़ाना चाहिए। उन्हें शुद्ध स्थान से चुनी हुई दूर्वा को धोकर चढ़ाना चाहिए।
      • पूजा में भगवान गणेश को पंचामृत, चंदन का लेप, लाल उधूल या कोई अन्य फूल, दूर्वा घास, कुमकुम, अगरबत्ती और धूप आदि का भोग लगाया जाता है।
      • भगवान गणेश को ॐ गं गणपतये नमः मंत्र बोलते हुए 21 दूर्वा दल अर्पित करें।
      • बहुत से लोग इस दिन व्रत रखते हैं और पूरे विधि विधान से गणेश जी की पूजा करते हैं।
      • भगवान गणेश जी का व्रत रखते हुए पूरी विधि पूर्वक पूजन करें और आरती करें।
      • विनायक चतुर्थी के दिन मोदक या लड्डू का भोग जरूर लगाएं।
      • पूजा के बाद संकट नाशक गणेश स्त्रोत, गणेश चालीसा, गणेश पुराण आदि का पाठ करें।
      • विनायक चतुर्थी व्रत व पूजा के समय किसी प्रकार का क्रोध और गुस्सा नहीं करना चाहिए। यह हानिप्रद सिद्ध हो सकता है।
      Vinayak Chaturthi Vrat Katha
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      विनायक चतुर्थी की पौराणिक व्रत कथा (Vinayak Chaturthi Katha)

      कथा अनुसार एक बार माता पार्वती के मन में एक ख्याल आया कि उनका कोई पुत्र नहीं हैं। ऐसे में वो अपने मन से एक बालक बनाती हैं और उसमें प्राण दान देती हैं फिर वे उस बालक को आदेश देकर कि चाहें कुछ भी हो जाए कंदरा में कोई प्रवेश न कर पाएं। यह कहकर माता कंदरा में स्थित कुंड में स्नान करने चली जाती हैं।

      वह बालक अपनी मां के आदेश का पूरा पालन करता हैं, और कंदरा के द्वार पर पहरा देने लगता हैं। कुछ समय बीत जाने के बाद मां पार्वती से मिलने भगवान शिव वहां पहुंचते हैं जैसे ही शिव कंदरा के अंदर जाने लगते हैं तो वो बालक उनको रोक देता हैं। शिव बालक को समझाने का प्रयास करते हैं मगर वह उनकी बात नहीं मानता। इस पर भगवान क्रोधित हो जाते हैं और त्रिशूल से बालक का शीश धड़ से अलग कर देते हैं।

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      जब मां पार्वती को इस बात का पला चला तो वह बहुत क्रोधित हुईं। उन्होंने देखा कि उनका पुत्र धरती पर प्राण विहीन पड़ा हैं। उसका शीश उसके धड़ से अलग कटा हुआ हैं। मां पार्वती का क्रोध देख सभी देवी देवता भयभीत हो जाते हैं। शिव अपने सभी गणों को आदेश देते हैं कि एक ऐसे बालक का सिर लेकर आओ जिसकी माता की पीठ उसके बालक की ओर हो।

      शिवगण ऐसे बाल की तलाश में निकल जाते हैं और एक हथनी के बालक का शीश लेकर आते हैं शिव गज के शीश को बालक के धड़ से जोड़कर उसे जीवित कर देते हैं यह देख मां पार्वती कहती है कि यह शीश तो गज का है। हर कोई मेरे पुत्र का उपहास करेगा। तब शिव बालक को वरदान देते हैं। कि आज से इन्हें गणपति के नाम से जाना जाएगा। सभी देवों में गणपति प्रथम पूज्य होंगे। बिना इनके कोई भी मांगलिक कार्य पूर्ण नहीं होगा।

      विनायक चतुर्थी का महत्व (Vinayak Chaturthi Mahatva)

      धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विनायक चतुर्थी का विशेष महत्व है। भगवान गणेश को ज्ञान, बुद्धि, समृद्धि, और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है और किसी भी शुभ काम की शुरूआत प्रथम पूज्य विघ्नहर्ता गणेश जी के पूजन से ही होती है। चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को अत्यंत प्रिय है। इस दिन भगवान गणेश सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं और उन्हें ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद देते हैं। विनायक चतुर्थी का व्रत वे लोग रखते हैं, जो ऋद्धि-सिद्धि यानि धन, विद्या, निपुणता आदि की अभिलाषा रखते है। जबकि संकष्टी चतुर्थी व्रत जीवन के सभी बाधाओं को समाप्त करने के उद्देश्य से किया जाता है।

      इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश की पूजा करने से कार्यों में किसी भी तरह की कोई रुकावट नहीं आती है। इसलिए गणपति महाराज को विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है। विनायक चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन का भी विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि सूर्योदय से शुरू होने वाला विनायक चतुर्थी का व्रत चंद्र दर्शन के बाद ही समाप्त होता है, इसलिए विनायक चतुर्थी के दिन चंद्रदर्शन जरूरी होते हैं।

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