अखंड सौभाग्य के लिए सुहागिन महिलाएं ज़रूर रखें वट पूर्णिमा व्रत, जानें मुहूर्त, पूजन विधि और महत्व | Vat Purnima Vrat

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हेल्लो दोस्तों अखंड सौभाग्य की कामना से वट पूर्णिमा व्रत हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को रखा जाता है। कई जगहों पर वट पूर्णिमा व्रत (vat purnima vrat 2022) को वट सावित्री व्रत के नाम से भी जाना जाता है। वट पूर्णिमा व्रत हर साल वट सावित्री व्रत के 15वें दिन या 15 दिन बाद आता है। इस दिन वट यानि की बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है।

वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ अमावस्या को रखते हैं, जो उत्तर भारत में सुहागन महिलाएं रखती हैं। वट पूर्णिमा व्रत महाराष्ट्र, गुजरात समेत दक्षिण भारत के राज्यों में बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है। वट पूर्णिमा व्रत और वट सावित्री व्रत समान ही हैं, दोनों में ही सावित्री, सत्यवान और वट वृक्ष की पूजा की जाती है, अंतर बस ति​थियों का है।

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देशभर में वट पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। इस व्रत का संबंध सती सावित्री से है जिसने यमराज से अपने के प्राण वापस मांग लिए थे। यही वजह है कि विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख-सौभाग्य के लिए इस व्रत को रखती हैं। वटवृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास माना गया है। यह पेड़ लंबे समय तक अक्षय रहता है, इसलिए इसे ‘अक्षयवट’ कहते हैं। अखंड सौभाग्य और आरोग्य के लिए वटवृक्ष की पूजा की जाती है। बरगद वृक्ष बहुत ही लंबी आयु का होता है, ऐसी मान्यता है कि इस पेड़ के पूजन और परिक्रमा से पति भी दीर्घायु होती है। वट सावित्री पूर्णिमा का व्रत इस बार 14 जून को रखा जाएगा।

वट पूर्णिमा व्रत के नियम

(Vat Purnima Vrat Niyam)

हिन्दू धर्म में वट पूर्णिमा व्रत रखने के कुछ जरुरी नियम बताए गए हैं। व्रत रखने वाली सभी महिलाओं को इन नियमों का पालन करना आवश्यक होता है क्योंकि इन नियमों में छोटी सी त्रुटि (गलती) भी व्रती के लिए भारी पड़ सकती है।

वट पूर्णिमा व्रत को रखने वाली महिलाओं को इस दिन नीले, काले या सफेद रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए।
इसके साथ ही काली, नीली और सफ़ेद रंग की चूड़ियां भी नहीं पहननी चाहिए. ऐसा करना अशुभ माना जाता है।
पहली बार व्रत रखने वाली महिला को पूजन के समय सुहाग की सारी सामग्री मायके की ही इस्तेमाल करनी चाहिए।

Vat Purnima Vrat
Vat Purnima Vrat

पूर्णिमा वट सावित्री व्रत शुभ मुहूर्त

(Vat Purnima Vrat Shubh Muhurat)

  • ज्येष्ठ की पूर्णिमा तिथि प्रारंभ – 13 जून सोमवार को रात 09 बजकर 02 मिनट से
  • ज्येष्ठ की पूर्णिमा तिथि का समापन – 14 जून मंगलवार को शाम 05 बजकर 21 मिनट
  • राहुकाल का समय – शाम को 03 बजकर 51 मिनट से शाम 05 बजकर 35 मिनट तक
  • शुभ समय – सुबह 11 बजकर 54 मिनट से दोपहर 12 बजकर 49 मिनट तक
  • व्रत पारण तिथि – 15 जून 2022, बुधवार

उदयातिथि होने के कारण ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत 14 जून, मंगलवार को रखा जाएगा.

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वट पूर्णिमा व्रत 2022 शुभ योग

(Vat Purnima Vrat Shubh Yog)

वट पूर्णिमा व्रत 14 जून को रखा जाएगा। इस दिन प्रात:काल से साध्य योग बन रहा है, जो कि सुबह 09 बजकर 40 मिनट तक रहेगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार साध्य योग के बाद शुभ योग शुरू हो जाएगा। ये दोनों योग (साध्य और शुभ योग) मांगलिक कार्यों के लिए बहुत अच्छे माने जाते हैं। अतः इस समय पूजन करना शुभ रहता है। इस व्रत का पूजन आप सुबह के समय में (Vat Purnima Vrat 2022 shubh yog) कर सकती हैं।

वट पूर्णिमा व्रत पूजन विधि

(Vat Purnima Vrat Poojan Vidhi)

  • सबसे पहले सुबह उठकर स्नानादि करने के बाद सच्चे मन से व्रत का संकल्पृ लेना चाहिए।
  • इस दिन की पूजा वट वृक्ष (बरगद के पेड़) के नीचे की जाती है।
  • इसके लिए एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज रखे जाते हैं, जबकि दूसरी टोकरी में देवी सावित्री की प्रतिमा रखी जाती है।
  • इसके बाद वट वृक्ष पर जल चढ़ाकर कुमकुम और अक्षत अपर्ण किया जाता है।
  • फिर सूत के धागे से वट वृक्ष को बांधकर उसके सात चक्कर लगाए जाते हैं।
  • इसके बाद वट सावित्री की कथा सुनने के बाद चने-गुड़ का प्रसाद दिया जाता है।
  • सुहागिन महिलाओं को वट वृक्ष पर सुहाग का सामान भी अर्पित करना चाहिए।
Vat Purnima Vrat

पूर्णिमा वट सावित्री व्रत का महत्त्व

(Vat Purnima Vrat Mahatva)

वट पूर्णिमा व्रत की महत्ता वट सावित्री व्रत के समान ही है. महिलाएं अखण्ड सौभाग्यवती रहने के लिए यह व्रत रखती है। महाभारत में वर्णित है कि यह पर्व सावित्री और सत्यवान की कथा पर आधारित है। इस दिन वटवृक्ष (बरगद का पेड़) की पूजा की जाती है। मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु और डालियों व पत्तियों में भगवान शिव का वास होता है। इसलिए इ‍सकी पूजा करने से पति की दीर्घायु के साथ ही उत्‍तम स्‍वास्‍थ्‍य की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि वटवृक्ष ने ही अपनी जटाओं में सावित्री के पति सत्‍यवान के मृत शरीर को सुरक्षित रखा था ताकि कोई उसे नुकसान न पहुंचा सके। इसलिए वट सावित्री के व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा होती है।

कथानुसार माता सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राणों को यमराज से छुड़ाकर लाई थीं। अतः व्रत रखने वालों को मां सावित्री और सत्यवान की इस पवित्र कथा सुननी चाहिए। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो स्त्री उस व्रत को सच्ची निष्ठा से रखती है उसे न सिर्फ पुण्य की प्राप्ति होती है बल्कि उसके पति पर आई सभी परेशानियां भी दूर हो जाती हैं। महिलाओं के लिए इस व्रत का विशेष महत्व है।

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