किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान गणेश की अराधना की जाती है. ऐसी मान्यता है कि, संकष्टी चतुर्थी (Vakratund Sankashti Chaturthi Vrat) के दिन भगवान गणपति की पूरे विधि- विधान के साथ पूजा करने से सारी इच्छाएं पूरी होती हैं. संकष्टी चतुर्थी हर महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है. पूरे साल में संकष्टी चतुर्थी के 13 व्रत रखे जाते हैं.
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इसी दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की स्वस्थ सेहत और दीर्घायु के लिए करवाचौथ का व्रत करती हैं. आइये जानें क्या है इस व्रत का महात्म्य, पूजा-विधान और कथा.
वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि :
इस दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान कर स्वच्छ अथवा नया वस्त्र धारण करें. एक चौकी को साफ जल से धोकर उस पर गंगाजल छिड़क दें. इस पर पीले रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर भगवान श्रीगणेश जी की पीतल अथवा मिट्टी की प्रतिमा स्थापित करें. अब प्रतिमा के सामने धूप-दीप प्रज्जवलित करते हुए श्रीगणेश जी का मंत्र पढ़ें.

गणेशजी को लाल रंग का पुष्प एवं दूर्वा अर्पित करें. अब गणेशजी का स्तुतिगान करने के बाद श्रीगणेश चालीसा पढ़ें. इसके बाद भगवान गणेशजी को बेसन का लड्डू चढ़ाकर हाथ जोड़कर प्रणाम करें और मन ही मन अपनी कामना की पूर्ति करें. इसके बाद चंद्रोदय होने पर चांद का अर्घ्य देकर जल अर्पित करें, और व्रत का पारण करें.
वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी पारंपरिक कथा :
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एक बार देवतागण तमाम संकटों में घिरे हुए थे. कोई रास्ता नहीं मिलने पर वे भगवान शिव से मदद मांगने पहुंचे. उस समय शिव अपने दोनों पुत्रों कार्तिकेय और गणेशजी के साथ बैठे थे. देवताओं की सारी समस्या सुनने के बाद शिवजी ने कार्तिकेय व गणेशजी से पूछा कि तुममें से कौन देवताओं की सहायता कर सकता है. पिता की बात सुनते ही कार्तिकेय व गणेश जी दोनों ने ही सहायता करने की जिद की.
इस पर शिवजी ने कहा देवताओं की मदद करने से पूर्व तुम दोनों को पृथ्वी की परिक्रमा करनी होगी, जो पहले यहां पहुंचेगा, वही देवताओं की मदद करने जायेगा. शिवजी के मुख से यह वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए, परंतु गणेशजी ने थोड़ी देर सोचा, कि वह अगर मूसे पर सवार होकर पृथ्वी का चक्कर लगायेंगे, तब तो कार्तिकेय यह शर्त जीत जायेंगे.

कुछ देर सोचने के बाद गणेश जी ने पास बैठे शिव और पार्वती की सात बार परिक्रमा कर शिव जी के पास बैठ गये. कुछ ही समय के बाद पृथ्वी की परिक्रमा कर स्वामी कार्तिकेय पिता के पास लौटकर आये और स्वयं को शर्त जीतने का दावा किया.
शिवजी ने कार्तिकेय को समझाया कि यह सच है कि तुम पहले पृथ्वी की परिक्रमा कर यहां आये हो, लेकिन गणेश ने बुद्धि से कार्य करते हुए अपने माता-पिता को समस्त लोक मानते हुए हमारी सात परिक्रमा कर शर्त जीत चुके हैं. उन्होंने गणेश जी को आदेश दिया कि वे देवताओं की मदद करने के लिए प्रस्थान करें.
शिवजी ने गणेश जी को यह वरदान भी दिया कि चतुर्थी के दिन जो भी तुम्हारा व्रत और पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसके तीनों ताप (दैहिक, दैविक और भौतिक ताप) दूर होंगे, तथा व्रती को हर ओर से सुख-समृद्धि प्राप्त होगी, तथा उसे पूरी जिंदगी पुत्र-पौत्र, धन-ऐश्वर्य की कभी कमी नहीं रहेगी.
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वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी का महत्व :
वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी व्रत भगवान श्रीगणेश जी को समर्पित होता है. अमूमन सुहागन महिलाएं ही यह व्रत भगवान श्री गणेशजी को प्रसन्न करने के लिए करती हैं. मान्यता है कि यह व्रत रखने वालों की भगवान श्रीगणेश सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं, तथा घर में शुभता आती है, लेकिन वक्रतुण्ड संकष्टी का यह व्रत पूरे विधि-विधान से और सही उच्चारण के साथ मंत्रोच्चारण करना चाहिए.
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