हेल्लो दोस्तों उत्पन्ना एकादशी 11 दिसंबर शुक्रवार को मनाई जाएगी. हिंदू धर्म के पंचांग के अनुसार, उत्पन्ना एकादशी हर साल अगहन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, उत्पन्ना एकादशी का व्रत लक्ष्मीपति भगवान विष्णु को समर्पित माना जाता है. Utpanna Ekadashi Muhurt Katha
मान्यता है कि इस दिन विधि विधान के साथ भगवान विष्णु की आराधना करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है. एकादशी की तिथि माह में दो बार पड़ती है, पहली कृष्ण पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में. कुछ भक्तजन भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए इस दिन व्रत भी करते हैं. भगवान विष्णु के भक्त उत्पन्ना एकादशी व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ करते हैं. आइए जानते हैं उत्पन्ना एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और मंत्र…
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उत्पन्ना एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त:
तिथि प्रारम्भ- 10 दिसम्बर की दोपहर 12 बजकर 51 मिनट पर हो जाएगा.
तिथि का समापन- 11 दिसम्बर की सुबह 10 बजकर 04 मिनट पर होगा.
एकादशी व्रत पारण का समय- 11 दिसम्बर की दोपहर 01 बजकर 17 मिनट से 03 बजकर 21 मिनट पर भक्त व्रत का पारण कर सकेंगे.
पारण के दिन श्री विष्णु का वार समाप्त होने का समय दोपहर 03 बजकर 18 मिनट है.

पूजा-विधि :
उत्पन्ना एकादशी व्रत की तैयारी एक दिन पहले यानी कि दशमी के दिन से ही करनी शुरू कर दें. इसके लिए दशमी को रात में खाना खाने के बाद अच्छे से दातून से दांतों को साफ़ कर लें ताकि मुंह जूठा न रहे. इसके बाद आहार ग्रहण न करें और खुद पर संयम रखें. साथी के साथ शारीरिक संबंध से परहेज करें. उत्पन्ना एकादशी के दिन सुबह उठकर नित्यकर्म करने के बाद. नए कपड़े पहनकर पूजाघर में जाएं और भगवान के सामने व्रत करने का संकल्प मन ही मन दोहरायें. इसके बाद भगवान विष्णु की आराधना करें और पंडित जी से व्रत की कथा सुनें. ऐसा करने से आपके समस्त रोग, दोष और पापों का नाश होगा. इस दिन मन की सात्विकता का ख़ास ख्याल रखें.
मन में न लायें दूषित विचार: किसी के प्रति भी बुरा या कोई यौन संबंधी विचार मन में न लायें. शाम के समय भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना कर दीपदान करे. अब अगले दिन यानी कि द्वादशी को इस व्रत को खोल दें. इसके बाद किसी पंडित जी या ब्राह्मण को अपनी स्वेच्छानुसार दान-दक्षिणा दें. इस बात का ख़ास ख्याल रखें कि इस दिन केवल सुबह और शाम के समय ही आहार ग्रहण करना है.
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क्यों कहा जाता है उत्पन्ना एकादशी :
इस बात को बहुत कम ही लोग जानते हैं कि एकादशी एक देवी थी, जिनका जन्म भगवान विष्णु से हुआ था। एकादशी, मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी को प्रकट हुई थी, जिसके कारण इस एकादशी का नाम उत्पन्ना एकादशी पड़ा. इसी दिन से एकादशी व्रत शुरु हुआ था। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से मोक्ष की प्राप्ति होती है। धर्म शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को करने से अश्वमेघ यज्ञ, तीर्थ स्नान व दान आदि करने से भी ज्यादा पुण्य मिलता है। उपवास से मन निर्मल और शरीर स्वस्थ होता है। ऐसा मान्यता है कि उत्पन्ना एकादशी के दिन से ही एकादशी व्रत करने की शुरुआत की जाती है।

उत्पन्ना एकादशी कथा :
सतयुग में एक महाभयंकर दैत्य मुर हुआ करता था। दैत्य मुर ने इन्द्र आदि देवताओं पर विजय प्राप्त कर उन्हें, उनके स्थान से भगा दिया। तब इन्द्र तथा अन्य देवता क्षीरसागर में भगवान श्री विष्णु के पास गए । देवताओं सहित सभी ने श्री विष्णु जी से दैत्य के अत्याचारों से मुक्त होने के लिये विनती की। इन्द्र आदि देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान श्री विष्णु बोले -देवताओं मै तुम्हारे शत्रु का शीघ्र ही वध करूंगा।जब दैत्यों ने श्री विष्णु जी को युद्ध भूमि में देखा तो उन पर अस्त्रों-शस्त्रों का प्रहार करने लगे।
भगवान श्री विष्णु मुर को मारने के लिये जिन-जिन शस्त्रों का प्रयोग करते वे सभी उसके तेज से नष्ट होकर उस पर पुष्पों के समान गिरने लगे़ ।श्री विष्णु उस दैत्य के साथ सहस्त्र वर्षों तक युद्ध करते रहे़ परन्तु उस दैत्य को न जीत सके। अंत में विष्णुजी शान्त होकर विश्राम करने की इच्छा से बद्रिकाश्रम में सिंहावती नाम की गुफा,जो बारह योजन लम्बी थी, उसमें शयन करने के लिये चले गये। दैत्य भी उस गुफा में चला गया, कि आज मैं श्री विष्णु को मार कर अपने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लूंगा।
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जब देवी एकादशी ने की श्री विष्णु की रक्षा :
उस समय गुफा में एक अत्यन्त सुन्दर कन्या उत्पन्न हुई़ और दैत्य के सामने आकर युद्ध करने लगी। दोनों में देर तक युद्ध हुआ एवं उस कन्या ने राक्षस को धक्का मारकर मूर्छित कर दिया और उठने पर उस दैत्य का सिर काट दिया इस प्रकार वह दैत्य मृत्यु को प्राप्त हुआ।उसी समय श्री हरि की निद्रा टूटी,दैत्य को मरा हुआ देखकरआश्चर्य हुआ और विचार करने लगे कि इसको किसने मारा। इस पर कन्या ने उन्हें कहा कि दैत्य आपको मारने के लिये तैयार था उसी समय मैने आपके शरीर से उत्पन्न होकर इसका वध किया है। भगवान श्री विष्णु ने उस कन्या का नाम एकादशी रखा क्यों कि वह एकादशी के दिन श्री विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुई थी इसलिए इस दिन को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है।

उत्पन्ना एकादशी के उपाय :
- एकादशी के दिन किसी विष्णु मंदिर में पीले पुष्प की माला अर्पित करें।
- एकादशी के दिन विष्णु भगवान को तुलसी के पत्तों वाली केशर की खीर का भोग लगाएं।
- सुबह पीपल के पेड़ की पूजा करें, पेड़ की जड़ में कच्चा दूध चढ़ाएं और घी का दीपक जलाकर लौट आएं।
- एकादशी के दिन निर्जला व्रत करना चाहिए। व्रत का संकल्प लें और व्रत द्वादशी के दिन ही तोड़ें।
- इस दिन सुहागिन स्त्रियों को घर पर दावत दें, उन्हें फलाहार करवाएं और सुहा सामग्री दान करें।
- एकादशी के दिन तुलसी पूजा अति लाभकारी है। तुलसी के घी का दीपक जलाये और आरती गाएं।
- एकादशी पर तुलसी पूजा के साथ ॐ नमो भगवत वासुदेवाय मंत्र का जाप करें।
- तुलसी माता की 11 बार परिक्रमा करें।
- एकादशी के दिन दक्षिणावर्ती शंख की पूजा करें।
- इस दिन भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा करें।
- एकादशी पर्व पर पीले फलों, अन्न और पीले वस्त्र का दान करें।