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दोस्तों सीता नवमी मिथिला के राजा जनक और रानी सुनयना की बेटी और अयोध्या की रानी देवी सीता के अवतार दिवस के रूप मे मनाई जाती है, इसे जानकी नवमी भी कहा गया है। धार्मिक ग्रंथ के अनुसार इसी दिन माता सीता का प्राकट्य हुआ था। सीता नवमी के दिन माता सीता की पूजा करने से सुख सौभाग्य में वृद्धि होती है व दुखों से छुटकारा मिलता है।
सीता जयंती या जानकी जयंती को लोग बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। सुहागिन महिलाएं इस दिन अपने पति की लंबी आयु के लिए और वैवाहिक जीवन सुखमय करने के लिए व्रत रखती हैं तो कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं।
हिंदू कैलेंडर के मुताबिक जानकी नवमी भगवान राम के अवतरण दिवस रामनवमी से लगभग एक माह बाद मनाते हैं। जिस प्रकार से रामनवमी को बहुत शुभ फलदाई पर्व के रूप में मनाया जाता है क्योंकि इस दिन भगवान श्री रामचंद्र जी का जन्मदिन होता है, ठीक उसी तरह से वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुष्य नक्षत्र के मध्य काल में माता सीता का धरती पर अवतरण हुआ था तब से इस दिन को श्री जानकी जयंती के रूप में मनाया जाने लगा।
ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति श्री राम सीता का विधि विधान से पूजन करता है उसे विशेष फल (16 महान दानों का फल, पृथ्वी दान का फल तथा समस्त तीर्थों के दर्शन का फल) की प्राप्ति होती है। भगवान श्री राम स्वयं भगवान विष्णु के अवतार थे और माता सीता लक्ष्मी जी का अवतार थी।
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विषयसूची :
सीता नवमी शुभ मुहूर्त
Seeta Navmi 2023 date
उदयातिथि के अनुसार, सीता नवमी 29 अप्रैल यानी आज ही मनाई जा रही है. सीता नवमी की तिथि की शुरुआत 28 अप्रैल यानी कल शाम 04 बजकर 01 मिनट पर शुरू हो चुकी है और इसका समापन 29 अप्रैल यानी आज शाम 06 बजकर 22 मिनट होगा.
सीता नवमी का पूजन मुहूर्त सुबह 10 बजकर 59 मिनट से लेकर दोपहर 01 बजकर 38 मिनट तक रहेगा. यानी पूजन अवधि 02 घण्टे 38 मिनट की रहेगी. साथ ही आज रवि योग का निर्माण भी होने जा रहा है जो दोपहर 12 बजकर 47 मिनट से सुबह 05 बजकर 42 मिनट तक रहेगा.
जानकी जयंती क्यों मनाई जाती है
Kyo Manai Jaati Hai Sita Navami
भारत त्योहारों का देश है यहाँ हर माह अनेकों त्यौहार मनाए जाते हैं. जानकी जयंती मनाने का मुख्य उद्देश्य यही है कि इस दिन माता सीता का जन्म हुआ था और लोग माता सीता का जन्मोत्सव मनाने के लिए जानकी जयंती मनाते है.
इस जयंती पर कुंवारी महिलाएँ एक अच्छे वर प्राप्ति की कामना के उद्देश्य से माता सीता की पूजा करती है और विवाहित महिलाओं के लिए तो यह जयंती बहुत खास होती क्योंकि इस दिन विवाहित महिलाएँ अपनी पति की आयु में वृद्धि हो ऐसी माता सीता से कामना करती है और उनके प्रति अपनी इच्छाए प्रकट करती है. जानकी जयंती ज्यादातर विवाहित महिलाएँ ही मनाती हैं

कैसे मनाई जाती है जानकी जयंती
Kaise Manate Hain Sita Navami
- जानकी जयंती के दिन सबसे पहले भगवान गणेशजी, मां अंबिका और मां लक्ष्मी पूजा की जाती है।
- इसके बाद माता सीता के साथ-साथ भगवान श्रीराम की भी पूजा की जाती है।
- इस पूजा में माता सीता के भक्तगण उन्हें फूल, वस्त्र, सुहागिन का श्रृंगार चढ़ा कर पीले व्यंजनो का भोग लगाते है।
- इस पूजा को करने से वैवाहिक जीवन में सुख समृद्धि होती है.
- जीवन साथी की आयु लम्बी होती है और घर सभी प्रकार के कष्टों से छुटकारा मिलता है।
सीता नवमी व्रत पूजा-विधि
Sita Navmi 2023 Puja Vidhi
- जानकी जयंती के दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती हैं।
- इस दिन कुंवारी कन्याएं उत्तम जीवन साथी की कामना से निर्जला व्रत रखकर विधिवत पूजा-अर्चना करती हैं।
- इस दिन सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले घर की साफ़ सफाई करें और घर के पूजा स्थल को गंगाजल से छिड़ककर उसको स्वच्छ करें।
- इसके लिए 4 स्तंभों का मंडप तैयार किया जाता है। इस मंडप में भगवान राम, माता सीता, राजा जनक, माता सुनयना, और हल की प्रतिमाएं विराजी जाती हैं।
- इसके बाद प्रतिमा के सामने एक कलश की स्थापना करें और व्रत का संकल्प लें।
- ध्यान रहे पूजन शुरू करने से पहले भगवान श्री गणेश और माता गौरी जी की भी पूजा करनी चाहिए क्योंकि गणेश भगवान प्रथम पूज्य भगवान है।
- इसके बाद श्री राम व माता सीता को सिंदूर, कुमकुम, अक्षत, अबीर, गुलाल, मेहँदी, हल्दी अर्पित करें एवं पञ्च मेवा, पंचामृत, फल, मिठाई आदि का भोग लगाएं।
- पूजन करते समय पीले फूल, वस्त्र और सोलह श्रृंगार का सामान माता सीता को चढाएं।
- सबसे पहले गणपति की आरती करनी चाहिए उसके पश्चात् दीप और धूप-बत्ती लगाएं और राम-सीता की पूजा करें।
- पूजन करते समय “श्री सीतायै नमः” और “श्री सीता-रामाय नमः” मन्त्रों का जाप करें।
- भोग में पीली चीजों को अर्पित करें. उसके बाद माता सीता की आरती करें और मंगल गीत गाएं।
- अंत में भगवान से अपने सुहाग की लंबी आयु व परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करें।
- इसके बाद दशमी के दिन फिर विधि पूर्वक पूजा अर्चना के बाद मंडप का विसर्जन कर देना चाहिए।
माता सीता कौन थी ?
Who is Devi Sita
मान्यताओं के अनुसार असल में देवी सीता रावण और मंदोदरी की बेटी थी। माता सीता वेदवती का पुनर्जन्म थी। वेदवती एक बहुत सुंदर, सुशील धार्मिक कन्या थी, जो कि भगवान विष्णु की परम भक्त थी और उन्ही से विवाह करना चाहती थी, इसलिए भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए वेदवती ने कठोर तपस्या की.
कैसे हुआ माता सीता का जन्म
Maata Sita Janm Katha
रामायण काल के अनुसार एक बार मिथिला में भयंकर अकाल पड़ा उस समय मिथिला (जो बिहार के सीतामढी के पुनौरा राम गांव में स्थित है) के राजा जनक हुआ करते थे वह बहुत ही पुण्य आत्मा थे धर्म-कर्म के कार्यों में बढ़-चढ़कर रुचि लेते थे. ज्ञान प्राप्ति के लिए सभा में कोई न कोई शास्त्रार्थ करवाते थे और विजेताओं को गौदान भी देते थे. लेकिन इस अकाल ने उन्हें बहुत विचलित कर दिया. अपनी प्रजा को मरते देख उन्हें बहुत पीड़ा होती थी।
उन्होंने ज्ञानी पंडितों को दरबार में बुलाया और इस समस्या के कुछ उपाय जानने चाहे. सभी ने अपनी-अपनी राय राजा के सामने रखी, कुल मिलाकर बात यह सामने आई कि यदि राजा जनक स्वयं हल चलाकर भूमि जोते तो आकाल दूर हो सकता है अब अपनी प्रजा के लिए राजा जनक हल उठाकर चल पड़े।
वह दिन था वैशाख मास शुक्ल पक्ष की नवमी को राजा जनक (राजा जनक मिथिला के राजा थे, जनक उनके पूर्वजों द्वारा दी गई उपाधी थी उनका असली नाम सीराध्वाज था) हल जोतने लगे. हल चलाते-चलाते एक जगह आकर हल अटक गया उन्होंने पूरी कोशिश की लेकिन हल की नोक ऐसी धसी हुई थी कि निकलने का नाम नहीं ले रही थी लेकिन वह तो राजा थे।
उन्होंने अपने सैनिकों से कहा कि यहां आसपास की जमीन की खुदाई करें और देखें कि हल की नोक कहां फंसी हुई है सैनिकों ने खुदाई करनी शुरू की तो देखा कि वहां बहुत ही सुंदर और बड़ा सा कलश है जिसमें हल की नोक फंसी हुई थी कलश को बाहर निकाला गया तो देखा उसमें एक नवजात कन्या है. धरती मां के आशीर्वाद स्वरुप राजा जनक ने इसे अपनी कन्या के रूप में स्वीकार कर लिया।
बताते हैं कि उसी समय मिथिला में जोर की बारिश हुई और राज्य का आकाल दूर हो गया. तब कन्या का नामकरण किया जाने लगा क्योंकि हल की नोक को सीता कहा जाता है और उसी के कारण यह कन्या उन्हें प्राप्त हुई थी इसलिए उन्होंने उस कन्या का नाम सीता रखा. जिसका विवाह आगे चलकर प्रभु श्री राम के साथ हुआ।
वेदवती का पुनर्जन्म हैं माता सीता
एक और कहानी के अनुसार सीता वेदवती का पुनर्जन्म है। वेदवती एक खूबसूरत महिला थीं जिसने सभी सांसारिक चीजों को छोड़ दिया, भगवान विष्णु की भक्ति और ध्यान में लगी रहती थी। वो भगवान विष्णु को पति रुप में पाना चाहती थीं।
लेकिन एक दिन रावण उन्हें देख लेता है और मर्यादा का उल्लघं करने की चेष्टा करता है जिसे देख वेदवती आग में कूद गईं और मरने से पहले उऩ्होंने रावण को श्राप दिया कि अगले जन्म में मैं तुम्हारी पुत्री बनकर जन्म लूंगी और तुम्हारी मौत का कारण बनूंगी। इसके बाद मंदोदरी और रावण के यहां एक पुत्री ने जन्म लिया। रावण ने क्रुद्ध होकर उसे गहरे समुद्र में फेंक दिया।
उस कन्या को देखकर सागर की देवी वरूणी बहुत दुखी हुईं। वरूणी ने उस कन्या को पृथ्वी माता को दे दिया। धरती की देवी ने इस कन्या को राजा जनक और उनकी पत्नी सुनैना को दिया। इस प्रकार सीता धरती की गोद से राजा जनक को प्राप्त हुई थीं। जिस प्रकार सीता माता धरती से प्रकट हुईं उसी प्रकार उनका अंत भी धरती में समाहित होकर ही हुआ था।

सीता नवमी को करें ये उपाय
Sita Navami Ke Upay
- इस दिन को माता सीता के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन स्त्रियां अपने घर की सुख शांति और अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं।
- इस दिन मंदिरों में भगवान श्री राम और माता सीता की पूजा के लिए भक्तों का तांता लग जाता है।
- इस दिन जो भी व्यक्ति भगवान श्री राम और माता सीता की पूजा करता है उसे सोलह महादान का फल और पृथ्वी दान का फल प्राप्त होता है।
- जानकी जयंती का व्रत सौभाग्यशाली स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं।
- इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को ऊं श्री सीताय नम: का उच्चारण करना चाहिए। इससे बहुत अधिक लाभ प्राप्त होता है।
- इस दिन जो व्यक्ति भगवान श्री राम और माता सीता की विधि विधान से पूजा करता है। उसे 16 महान दानों का फल मिलता है। जिसमें पृथ्वी दान का फल तथा समस्त तीर्थों का फल मिलता है।
- विवाह में आ रही परेशानियों को दूर करने के लिए सीता नवमी की शाम श्री जानकी रामाभ्यां नमः मंत्र का 108 बार जाप करना बहुत ही लाभकारी होता है.
- जानकी जी को प्रसन्न करने और सुख समृद्धि पाने के लिए सीता नवमी के दिन रामायण का पाठ करवाना चाहिए.
सीता नवमी का महत्व
Sita Navami 2023 Ka Mahatva
सीता नवमी का हिंदू भक्तों के लिए एक बड़ा धार्मिक महत्व है। देवी सीता को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। देवी सीता राजा जनक की दत्तक पुत्री थीं और उन्हें ‘जानकी’ के नाम से भी जाना जाता था। माता सीता का जन्म पुष्य नक्षत्र में मंगलवार के दिन हुआ था.
भगवान राम ने मिथिला में राजा जनक द्वारा आयोजित ‘स्वयंवर’ में देवी सीता से विवाह किया था। देवी सीता हमेशा अपने पति के प्रति धैर्य और समर्पण के लिए जानी जाती थीं। सीता नवमी का पालन करने से व्यक्ति को सुखी और संतुष्ट वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
सीता माता की आरती
Shri Sita Mata Aarti
आरती श्री जनक दुलारी की । सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
जगत जननी जग की विस्तारिणी, नित्य सत्य साकेत विहारिणी,
परम दयामयी दिनोधारिणी, सीता मैया भक्तन हितकारी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की । सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
सती श्रोमणि पति हित कारिणी, पति सेवा वित्त वन वन चारिणी,
पति हित पति वियोग स्वीकारिणी, त्याग धर्म मूर्ति धरी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की । सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
विमल कीर्ति सब लोकन छाई, नाम लेत पवन मति आई,
सुमीरात काटत कष्ट दुख दाई, शरणागत जन भय हरी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की । सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
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