Sindhara Dooj Vrat 2023 : सिंधारा दूज क्यों मनाते हैं? जानिए पूजन विधि और महत्त्व

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चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा के दूसरे दिन द्वितीया पर सिंधारा दौज (Sindhara Dooj) या सिंधारा दूज का पर्व मनाया जाता है। यह एक ऐसा दिन है जो सभी बहूओं को समर्पित होता है। इस दिन महिलाएं उपवास रखकर अपने पतियों की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं।

सिंधारा दूज को सौभाग्य दूज, गौरी द्वितिया या स्थान्य वृद्धि के रूप में भी जाना जाता है। नवरात्रि के इस दिन माता ब्रह्मचारिणी की भी पूजा की जाती है।

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यह पर्व खासकर उत्तर भारतीय महिलाओं का पर्व है। उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों में सभी महिलाओं द्वारा सिंधारा दूज को बहुत उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। कुछ हिस्सों में, महिलाएं एक-दूसरे के साथ उपहारों का आदान-प्रदान करती हैं और पारंपरिक पोशाक भी पहनती हैं वहीं दक्षिण भारत में, खासकर तमिलनाडु और केरल में, महेश्वरी सप्तमत्रिका पूजा सिंधारा दूज के दिन की जाती है।

सिंधारा दूज कब है (

Sindhara Dooj Kab hai)

हिंदू कैलेंडर के अनुसार सिंधारा दूज पर्व 23 मार्च 2023 दिन गुरुवार को मनाया जाएगा।

सिंधारा दूज क्यों मनाते हैं

(Sindhara Dooj Kyu Manate Hain)

नवरात्रि के दूसरे दिन उत्तरी भारत के सभी हिस्सों में महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक आम्चलिक पर्व है जो संस्कृति एवं श्रद्धा का प्रतिक बनता है. इस अवसर पर महिलाएं अपने जीवन में वैवाहिक सुख एवं मांगल्य की कामना करती हैं. यह एक शुभ समय होता है जिस प्रकार तीज या अन्य व्रत मांगलय सुख को बनाए रखने हेतु किए जाते हैं उसी प्रकार इस व्रत का पालन भी बहुत ही विश्वास के साथ किया जाता है.

Sindhara Dooj Vrat
Sindhara Dooj Vrat

कुछ महिलाएं इस दिन उपवास करती है तो कुछ पूजा नियमों का पालन करती हैं अपनी अपनी परंपराओं के अनुसार इस दिन को कई क्षेत्रों में मनाया जाता है. पति की दीर्घायु के लिए प्रार्थना ओर परिवर के सुख की इच्छा हेतु स्त्रियां इस व्रत को करती हैं.

सिंधारा दूज की पूजन विधि

(Sindhara Dooj Poojan Vidhi)

  • सिंधारा दूज के अवसर पर महिलाएं अपने पारंपरिक कपड़े पहनती हैं और आभूषण पहनती हैं। वे इस दिन नई चूड़ियां खरीदते हैं और एक दूसरे को उपहार भी देते हैं।
  • इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की भी पूजा की जाती है। माँ को मिठाई और फूल अर्पण कर श्रद्धा के साथ पूजा की जाती है।
  • इस दिन विवाहित और अविवाहित महिलाएं दोनों हाथों और पैरों में मेहंदी लगाती हैं।
  • झूले इस त्योहार का एक और आकर्षण हैं। सिंधारा दूज के दिन पेड़ों पर कई झूले बांधे जाते हैं।
  • महिलाएं शाम को इन झूलों पर बैठकर पारंपरिक लोक गीतों को गाती और नृत्य करती हैं।
  • सिंधारा दूज पर बहुओं को उनकी सास द्वारा उपहार देने की परंपरा है। एक दिन पहले, बहू उपहार और मिठाई के साथ अपने माता-पिता के घर जाती हैं। वे वहां एक दिन के लिए रुकते हैं और अगली शाम को उसके ‘बाया’ के साथ लौटते हैं जिसमें अधिक मिठाइयाँ, फल, व्यंजन और पैसे का एक टोकन शामिल होता है, जो उसकी माँ द्वारा उपहार में दिया जाता है।
  • शाम को, ‘गौर माता’ (देवी पार्वती का एक अवतार) की पूजा पूरी भक्ति के साथ की जाती है। महिलाएं देवी की मूर्ति की पूजा करती हैं और धूप, दीपक, चावल, फूल और मिठाई के रूप में कई प्रसाद चढ़ाती हैं।
  • पूजा के बाद, बहुओं को अपनी सास को ‘बया’ भेंट करनी चाहिए।
  • इस दिन सुहाग के सामान का वितरण शुभ होता है।

सिंधारा दूज का महत्त्व

(Sindhara Dooj Mahatv)

सिंधार दूज के शुभ त्यौहार पर महिलाएं खुद को पारंपरिक पोशाक में सजाती हैं, अपने हाथों और पैरों पर मेहन्दी लगाती हैं और भारी गहने पहनती हैं। चूड़ीयां इस उत्सव का अभिन्न अंग है। वास्तव में, नई चूड़ीयां खरीदना और अन्य महिलाओं को चूड़ीयों का उपहार देना भी इस उत्सव की एक दिलचस्प परंपरा है।

चैत्रीय नवरात्री (Navratri) में आने वाली दूज को सिंधार दूज कहते हैं। इस दिन चंचुला देवी ने माँ पार्वती को सुन्दर वस्त्र आभूषण चुनरी चढ़ाई थी जिससे प्रसन्न होकर माँ ने उन्हें अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था। जिन लड़कियों की नई शादी होती है वह अपनी पहली तीज मायके में मनाती है।

इस दिन सास अपनी बहुओं को भव्य उपहार भेंट करती हैं, जो अपने माता-पिता के घर में इन उपहारों के साथ जाती हैं। सिंधारा दूज के दिन, बहुएं अपने माता-पिता द्वारा दिए गए ‘बाया’ लेकर अपने ससुराल वापस आ जाती हैं। ‘बाया’ में फल, व्यंजन और मिठाई और धन शामिल होता है। संध्याकाल में गौर माता या माता पार्वती की पूजा करने के बाद, अपने मायके से मिला ‘बाया’ अपनी सास को यह भेंट करती हैं।

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