श्राद्ध पक्ष में अपने पितरों की आत्मा शांति, उनकी तृप्ति और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए हर इंसान को अपने पितरों का श्राद्ध जरूर करना चाहिए। ऐसा कहा जाता है की जो व्यक्ति अपने पूर्वजों की संपत्ति का उपयोग करते हैं लेकिन उनका श्राद्ध तर्पण नहीं करते है तो ऐसे लोगों को पितृ दोष दवारा कई तरह के दुखों का सामना करना पड़ता हैं। Shradh Pitru Paksh 2020
आज हम आपको ये बताने जा रहे है कि श्राद्ध की कथा और श्राद्ध में कौन से कार्य नहीं करने चाहिए और कौन से कार्य करने चाहिए जिसकी मदद से आपको पितरो का आशीर्वाद मिल सके।
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विषयसूची :
श्राद्ध की कथा :
श्राद्ध पर्व पर यह कथा अधिकांश क्षेत्रों में सुनाई जाती है। कथा के अनुसार, महाभारत के दौरान, कर्ण की मृत्यु हो जाने के बाद जब उनकी आत्मा स्वर्ग में पहुंची तो उन्हें बहुत सारा सोना और गहने दिए गए। कर्ण की आत्मा को कुछ समझ नहीं आया, वह तो आहार तलाश रहे थे।
उन्होंने देवता इंद्र से पूछा किउन्हें भोजन की जगह सोना क्यों दिया गया। तब देवता इंद्र ने कर्ण को बताया कि उसने अपने जीवित रहते हुए पूरा जीवन सोना दान किया लेकिन श्राद्ध के दौरान अपने पूर्वजों को कभी भी खाना दान नहीं किया।
तब कर्ण ने इंद्र से कहा उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि उनके पूर्वज कौन थे और इसी वजह से वह कभी उन्हें कुछ दान नहीं कर सकें। इस सबके बाद कर्ण को उनकी गलती सुधारने का मौका दिया गया और 16 दिन के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया, जहां उन्होंने अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनका श्राद्ध कर उन्हें आहार दान किया। तर्पण किया, इन्हीं 16 दिन की अवधि को पितृ पक्ष कहा गया।
एक अन्य कथा :
पुराणों के अनुसार, जोगे तथा भोगे दो भाई थे। जोगे धनी था और भोगे निर्धन। दोनों में अत्यंत प्रेम था। जोगे की पत्नी को धन का घमंड था, लेकिन भोगे की पत्नी सरल हृदय की थी। पितृ पक्ष के आने पर जोगे की पत्नी ने उससे पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा तो जोगे इसे बेकार का काम समझकर टालने लगा, लेकिन उसकी पत्नी जानती थी कि यदि ऐसा नहीं किया तो लोग बातें बनाएंगे।
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साथ ही उसे अपने मायके वालों को दावत पर बुलाने और अपनी अमीरी दिखाने का यह सही अवसर लगा। अंत में वो बोली- आप मेरी परेशानी की वजह से ऐसा कह रहे हैं, तो मैं सहायता के लिए भोगे की पत्नी को बुला लूंगी। दोनों मिलकर सारा काम कर लेंगे।’ फिर उसने जोगे को अपने मायके न्यौता देने के लिए भेजा। दूसरे दिन उसके बुलाने पर सुबह-सवेरे ही भोगे की पत्नी आकर काम में लग गई।
उसने भोजन तैयार किया, अनेक तरह के पकवान बनाए फिर सभी काम खत्म कर अपने घर आ गई। उसे भी अपने घर पर पितरों का श्राद्ध-तर्पण करना था। इस मौके पर जोगे की पत्नी ने उसे नहीं रोका और ना वह रुकी। दोपहर के समय पितर भूमि पर उतरे।
जोगे-भोगे के पितर पहले जोगे के यहां गए तो उन्होंने देखा कि उसके ससुराल वाले पहले से ही भोजन पर जुटे हुए हैं। आखिरी में वो भोगे के घर गए जहाँ पितरों के नाम पर ‘अगियारी’ दे दी गई थी। पितरों ने अगियारी की राख चाटी और भूखे ही नदी के तट पर पहुंच गए।
थोड़ी देर में सभी पितर एकत्र हुए और अपने-अपने यहां के श्राद्धों की तारीफें करने लगे। जोगे-भोगे के पितरों ने अपनी आपबीती कही। फिर वो सोचने लगे- यदि भोगे समर्थ होता तो उन्हें भूखा नहीं रहना पड़ता, लेकिन भोगे के घर में तो दो वक़्त की रोटी भी खाने को नहीं थी। यही सब सोचकर उन्हें भोगे पर दया आ गई। अचानक वो ख़ुशी में चिल्लाने लगे की भोगे के घर धन हो जाए। भोगे भी धनवान हो जाए। शाम हो गई थी और भोगे के बच्चों भी भूखे थे।
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उन्होंने अपंनी मां से कहा- भूख लगी है। तब उन्हें टालने के लिए भोगे की पत्नी ने कहा- ‘जाओ! आंगन में हौदी औंधी रखी है, जाओ उसे खोल लो और जो भी मिले, बांटकर खा लेना।’ बच्चे वहां जाते है तो देखते हैं कि हौदी मोहरों से भरी पड़ी है। वे दौड़े कर मां के पास पहुंचे और सारी बातें बताईं। आंगन में जब भोगे की पत्नी ने यह सब देखा तो वह भी हैरान हो गई।
इस तरह भोगे भी धनवान हो गया, धन पाकर वह कभी घमंडी नहीं हुआ। अगले साल का पितृ पक्ष आया। भोगे की पत्नी ने श्राद्ध के दिन छप्पन प्रकार के भोग बनाएं। ब्राह्मणों को अपने घर बुलाकर श्राद्ध किया। भोजन कराया और दक्षिणा दी। सोने-चांदी के बर्तनों में जेठ-जेठानी को भोजन कराया। इससे पितर बहुत प्रसन्न और तृप्त हुए।
श्राद्ध में क्या न करे?
- रात में कभी भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए, क्योंकि रात को राक्षसी का समय माना गया है।
- संध्या के वक़्त भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
- श्राद्ध में कभी भी मसूर की दाल, मटर, राजमा, कुलथी, काला उड़द, सरसों एवं बासी भोजन आदि का प्रयोग करना वर्जित माना गया है।
- श्राद्ध के वक़्त घर में तामसी भोजन नहीं बनाना चाहिए।
- इस समय हर तरह के नशीले पदार्थों के सेवन से दूरी बनानी चाहिए।
- पितृ पक्ष के दिनों में शरीर पर तेल, सोना, इत्र और साबुन आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए।
- श्राद्ध करते समय क्रोध, कलह और जल्दबाजी नही करनी चाहिए।
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श्राद्ध में क्या करना चाहिए?
- पिता का श्राद्ध पुत्र द्वारा किया जाना चाहिए। पुत्र की अनुपस्थिति में उसकी पत्नी श्राद्ध कर सकती है।
- इस अवसर में बनने वाले पकवान पितरों की पसंद के होने चाहिये।
- इसमें गंगाजल, दूध, शहद, और तिल का उपयोग सबसे ज़रूरी माना गया है।
- श्राद्ध में ब्राह्मणो को सोने, चांदी, कांसे और तांबे के बर्तन में भोजन कराना सर्वोत्तम माना जाता हैं।
- श्राद्ध पर भोजन के लिए ब्राह्मणों को अपने घर पर आमंत्रित करना चाहिए।
- मध्यान्हकाल में ब्राह्मण को भोजन खिलाकर और दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
- इस दिन पितर स्तोत्र का पाठ और पितर गायत्री मंत्र आदि का जाप दक्षिणा मुखी होकर करना चाहिए।
- श्राद्ध के दिन कौवे, गाय और कुत्ते को ग्रास अवश्य डालनी चाहिए क्योंकि इसके बिना श्राद्ध अधूरा माना जाता है।
श्राद्ध में क्या दान करें?
तिल का दान :
श्राद्ध में तिल का बहुत महत्व होता है। भगवान विष्णु को काले तिल बहुत प्रिय है। पितृ पक्ष में कुछ भी दान करते हुए काले तिल हाथ में लेकर ही दान करना चाहिए। ऐसा करने से दान का सम्पूर्ण फल पितरों को मिलता है, साथ ही पितरो के निमित श्राद्ध में काले तिल का दान करने से पितर हमारे परिवार की हर संकट से रक्षा करता है।
स्वर्ण दान :
ऐसा माना जाता है की स्वर्ण दान करने से परिवार से कलह दूर होता है और परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम और सौहार्द की स्थापना होती है। अगर किसी व्यक्ति से स्वर्ण का दान करना संभव ना हो तो वह अपनी श्रद्धा अनुसार धन का दान भी कर सकता है।
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घी का दान :
पितरों के श्राद्ध में अपने सामर्थ्य के अनुसार गाय के घी का दान किसी ब्राह्मण को करना अति मंगलकारी माना जाता है।
अन्न दान :
शास्त्रों में अन्न दान को काफी फलदायी माना गया है। अन्नदान में आप सात प्रकार में से किसी भी अन्न का दान कर सकते है। यह दान श्राद्ध से संकल्प सहित करने से इंसान की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है।
वस्त्र दान :
पितरों को भी मनुष्य की तरह ही सर्दी-गर्मी का एहसास होता है। इसी कारण पितृ अपने परिवारजनों से वस्त्र की इच्छा रखते है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग अपने पितरों को वस्त्रो का दान करते है उन पर सदैव पितरो की कृपा बनी रहती है।