जानिए कब है शीतला सप्तमी? इस व्रत के प्रभाव से दूर होते हैं सभी रोग


हेल्लो दोस्तों शीतला सप्तमी व्रत अन्य व्रतों में बेहद खास महत्व है। शीतला माता को रोगों को दूर करने वाला माना जाता है। इस बार शीतला सप्तमी 30 जुलाई को पड़ रही है। संयोग से इस दिन शुक्रवार है, जो कि माँ लक्ष्मी का ही दिन कहलाता है. माँ लक्ष्मी भी दुर्गा का ही एक रूप हैं, ऐसे में ये व्रत काफी प्रभावी है चिकन पॉक्स यानि चेचक नामक रोग को बोलचाल की भाषा में माता ही कहा जाता है। शीतला माता की कृपा परिवार के सभी सदस्यों पर बनी रहे इसलिए शीतला सप्तमी और अष्टमी का उपवास रखा जाता है। Sheetla Saptami 2021

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शीतला सप्तमी व्रत की खासियत यह है कि इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है। इस दिन शीतला माता के प्रसाद से ही परिवार के सभी सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं। ऐसी मान्यता है कि शीतला सप्तमी के दिन भोजन के रूप में एक दिन पहले का ही भोजन यानी बासी भोजन का भोग लगाया जाता है।

शीतला सप्तमी हिंदू धर्म के अनुयायियों द्वारा मनाए जाने वाला लोकप्रिय त्योहार है। यह पर्व शीतला माता जी को समर्पित होता है। भारत में चेचक और छोटी माता जैसे रोगों से मुक्ति पाने के लिए शीतला माता का पूजन करते हैं। भारत में उत्तर प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में इस दिन को विशेष माना जाता है। भारत के दक्षिणी क्षेत्रों में मरियम्मन देवता या पोलरम्मा देवी के रूप का पूजन किया जाता है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्यों में इस सप्तमी के त्योहार को पोलला अमावस्या कह कर मनाते हैं। शीतला माता अपने हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते धारण किए हुए रहती हैं और गधे की सवारी करती हैं

Sheetla Saptami 2021
Sheetla Saptami 2021

शुभ मुहूर्त :

  • अभिजीत मुहूर्त : 30 जुलाई दिन शुक्रवार को सुबह 11:59 से दोपहर 12:52 तक
  • विजय मुहूर्त : दोपहर 02:44 से 03:38
  • गोधूली मुहूर्त : शाम 07:09 से 07:27 तक

शीतला सप्तमी कब मनाई जाती है? :

हिंदुओं द्वारा इस पर्व को वर्ष में दो बार मनाया जाता है। लेकिन चैत्र माह में आने वाली सप्तमी को अधिक महत्ता दी जाती है। इसलिए विशेष चैत्र माह की शीतला सप्तमी को पहले जानते हैं। पहले चैत्र माह में आने वाले कृष्ण पक्ष के चलते सप्तमी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। वहीं दूसरी बार इस त्योहार को श्रावण के महीने में शुक्ल पक्ष के सातवें दिन को मनाया जाता है।

शीतला सप्तमी क्यों मनाई जाती है? :

माता दुर्गा के उपासक शीतला सप्तमी में आर्शीवाद प्राप्ति की कामना से इस दिन को मनाते हैं। शीतला माता को दुर्गा अवतार कहा गया है। मान्यताओं के अनुसार निरोगी जीवन की प्राप्ति के लिए की गई पूजा और व्रत को सबसे उत्तम माना जाता है। चेचक और छोटी माता जैसे रोगों से मुक्ति पाने के लिए विशेष अनुष्ठानों के साथ इनका पूजन किया जाता है। सप्तमी के दिन की गई पूजा से अत्यंत शीघ्र ही फल की प्राप्ति हो जाती है। इसलिए इस दिन को रोगों से मुक्ति पाने की कामना से भी मनाया जाता है। इस दिन पूरा कुटुम्ब मिल कर शीतला माता जी की आराधना में लग जाते हैं। विवाहित महिलाओं द्वारा अखंड सौभाग्य को प्राप्त करने के लिए इस सप्तमी के व्रत को किया जाता है। वहीं माताएं अपने बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य की कामना से इस व्रत का पालन करती हैं।

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पूजा-विधि :

  • इस दिन सफेद पत्थर से बनी माता शीतला की मूर्ति की पूजा की जाती है।
  • उत्तर भारत में खासकर भगवती शीतला की पूजा विशेष रूप से की जाती है।
  • इस दिन व्रती को प्रात:काल उठकर शीतल जल से स्नान कर स्वच्छ होना चाहिए।
  • फिर व्रत का संकल्प लेकर विधि-विधान से माता शीतला की पूजा करनी चाहिए।
  • पहले दिन बने हुए यानि बासी भोजन का भोग लगाना चाहिए। साथ ही शीतला सप्तमी-अष्टमी व्रत की कथा भी सुननी चाहिए।
  • इस दिन लोग गुड़ और चावल का बने पकवान का भोग लगाते हैं
  • रात में माता का जागरण भी किया जाना अच्छा माना जाता है।

शीतला सप्तमी व्रत की कथा

एक कथा के अनुसार एक बार शीतला सप्तमी के दिन एक बुढ़िया और उसकी दो बहुओं ने व्रत रखा। उस दिन सभी को बासी भोजन ग्रहण करना था। इसलिये पहले दिन ही भोजन पका लिया गया था। लेकिन दोनों बहुओं को कुछ समय पहले ही संतान की प्राप्ति हुई थी कहीं बासी भोजन खाने से वे और उनकी संतान बिमार न हो जाए इसलिए बासी भोजन ग्रहण न कर अपनी सास के साथ माता की पूजा अर्चना के बाद पशुओं के लिये बनाये गए भोजन के साथ अपने लिए भी रोटी बना उनका चूरमा बनाकर खा लिया।

जब सास ने बासी भोजन ग्रहण करने की कही तो काम का बहाना बनाकर टाल गई। उनके इस कार्य से माता कुपित हो गई जिस कारण उन दोनों के नवजात शिशु मृत मिले। जब सास को पूरी कहानी पता चली तो उसने दोनों को घर से निकाल दिया। दोनों अपने शिशु के शवों को लिए जा रही थी कि एक बरगद के पेड़ के नीचे विश्राम के लिए ठहर गई।

Sheetla Saptami 2021
Sheetla Saptami 2021

मिला माता का आशीर्वाद :

वहीं पर ओरी और शीतला नामक दो बहनें भी थी जो अपने सर में पड़ी जूंओं से बहुत परेशान थी। दोनों बहुओं को उन पर दया आयी और उनकी मदद की सर से जूंए कम हुई तो उन्हें कुछ चैन मिला और बहुओं को आशीष दिया कि तुम्हारी गोद हरी हो जाए उन्होंने कहा कि हरी-भरी गोद ही लुट गई है इस पर शीतला ने लताड़ लगाते हुए कहा कि पाप कर्म का दंड तो भुगतना ही पड़ेगा। बहुओं ने पहचान लिया कि ये तो साक्षात माता हैं तो चरणों में पड़ गई और क्षमा याचना की, माता को भी उनके पश्चाताप करने पर दया आयी और उनके मृत बालक जीवित हो गए। तब दोनों खुशी-खुशी गांव लौट आयी। इस चमत्कार को देखकर सब हैरान रह गए। इसके बाद पूरा गांव माता को मानने लगा।

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शीतला सप्तमी का महत्व :

स्कंद पुराण में इस पर्व के बारे स्पष्ट रूप से वर्णन देखने को मिलता है। इस पर्व का सबसे प्राचीन सनातन धर्म में बहुत महत्व है। शास्त्रों में लिखा गया है कि शीतला देवी, मां दुर्गा और माता पार्वती का ही एक अन्य रूप है। इन दो माताओं का अवतार माने जाने वाली शीतला माता जी का पूजन बहुत की फलदायी होता है। इनको उपचार की देवी कहा जाता है, इसलिए शीतला माता को प्रकृति में उपचार शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इनके नाम का अर्थ है शीतलता अथवा शांत। शीतला माता जी के उपासक इस दिन व्रत का पालन करके पूजा को पूरे विधि विधान से करते हैं।

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