शनि प्रदोष व्रत, जानें मुहूर्त, व्रत विधि और कथा

प्रदोष व्रत हर माह में त्रयोदशी तिथि के दिन रखा जाता है। शनिवार के दिन पड़ने के कारण इसे शनि प्रदोष व्रत (Shani Pradosh Vrat Katha) कहा जाता है।

प्रदोष व्रत में भगवान शिव और मां पार्वती की आराधना की जाती है। वहीं शनि प्रदोष व्रत में शिव-पार्वती की पूजा के साथ-साथ शनि देव की भी पूजा की जाती है। ऐसा करने से शनि दोष से मुक्ति मिलती है। प्रदोष व्रत भगवान शिव के साथ चंद्रदेव से भी जुड़ा है।

ये भी पढ़िए : शिवजी के इस व्रत में शामिल होने पृथ्वी पर आते है देवी देवता

मान्यता है कि प्रदोष का व्रत सबसे पहले चंद्रदेव ने ही किया था। माना जाता है शाप के कारण चंद्र देव को क्षय रोग हो गया था। तब उन्होंने हर माह में आने वाली त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत रखना आरंभ किया था।

जिसके शुभ प्रभाव से चंद्रदेव को क्षय रोग से मुक्ति मिली थी। इस व्रत को रखने वाले भक्तों के जीवन से दु:ख दरिद्रता भी दूर होती है। इस दिन प्रदोष काल में विधिवत्त तरीके से भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है, सब संकट दूर हो जाते हैं और मान-सम्मान बढ़ता है।

Shani Pradosh Vrat katha
Shani Pradosh Vrat katha

शनि प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त

(Shani Pradosh Vrat Muhurt)

प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल में करनी चाहिए। सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक का समय प्रदोष काल कहा जाता है। माना जाता है कि प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने से जीवन में शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

ये भी पढ़िए : जानिए भौम प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और कथा

शनि प्रदोष व्रत पूजा विधि

(Shani Pradosh Vrat Poojan Vidhi)

  • शनि प्रदोष व्रत (Shani Pradosh 2021) बिना जल ग्रहण किए अर्थात निर्जला किया जाता है।
  • सुबह स्नान के बाद भगवान शिव, पार्वती और नंदी को पंचामृत और जल से स्नान कराएं।
  • फिर गंगाजल से स्नान कराकर बेल पत्र, गंध, अक्षत, चावल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य, भोग, फल, पान, सुपारी, लौंग और इलायची चढ़ाएं।
  • प्रदोष बेला में फिर से भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करने के बाद गंगाजल मिले हुए शुद्ध जल से भगवान का अभिषेक करें।
  • शिवजी की पूजा के बाद आरती, भजन करें। इससे शिवजी भक्त की मनोकामना पूरी करते हैं
  • शनिवार होने की वजह से इस दिन व्रती को शनि महाराज के निमित्त पीपल में जल देना चाहिए।
  • शनि स्तोत्र और चालीसा का पाठ करना भी इस दिन शुभ रहता है। तत्पश्चात कपूर प्रज्वलित कर भगवान की आरती कर भूल-चूक की क्षमा मागें।
  • शाम के समय जब सूर्यास्त होने वाला होता है उस समय सफेद वस्त्र धारण करके भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
Shani Pradosh Vrat katha
Shani Pradosh Vrat katha

शनि प्रदोष व्रत कथा

(Shani Pradosh Vrat Katha)

प्राचीन समय की बात है। एक नगर सेठ धन-दौलत और वैभव से सम्पन्न था । वह अत्यन्त दयालु था। उसके यहां से कभी कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था। वह सभी को जी भरकर दान-दक्षिणा देता था। लेकिन दूसरों को सुखी देखने वाले सेठ और उसकी पत्नी स्वयं काफी दुखी थे। दुःख का कारण था- उनके सन्तान का न होना। सन्तानहीनता के कारण दोनों घुले जा रहे थे। एक दिन उन्होंने तीर्थयात्र पर जाने का निश्चय किया और अपने काम-काज सेवकों को सोंप चल पडे।

अभी वे नगर के बाहर ही निकले थे कि उन्हें एक विशाल वृक्ष के नीचे समाधि लगाए एक तेजस्वी साधु दिखाई पड़े। दोनों ने सोचा कि साधु महाराज से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा शुरू की जाए। पति-पत्नी दोनों समाधिलीन साधु सामने हाथ जोड़कर बैठ गए और उनकी समाधि टूटने की प्रतीक्षा करने लगे। सुबह से शाम और फिर रात हो गई, लेकिन साधु की समाधि नही टूटी। मगर सेठ पति-पत्नी धैर्यपूर्वक हाथ जोड़े पूर्ववत बैठे रहे। अंततः अगले दिन प्रातः काल साधु समाधि से उठे।

ये भी पढ़िए : दाम्पत्य सुख के लिए किया जाता है रवि प्रदोष व्रत, जानिये पूजन विधि

ऐसे हुई मनोकामना पूर्ण 

सेठ पति-पत्नी को देख वह मन्द-मन्द मुस्कराए और आशीर्वाद स्वरूप हाथ उठाकर बोले- ‘मैं तुम्हारे अन्तर्मन की कथा भांप गया हूं वत्स! मैं तुम्हारे धैर्य और भक्तिभाव से अत्यन्त प्रसन्न हूं।’ साधु ने सन्तान प्राप्ति के लिए उन्हें शनि प्रदोष व्रत करने की विधि समझाई और शंकर भगवान की निम्न वन्दना बताई।

हे रुद्रदेव शिव नमस्कार शिव शंकर जगगुरु नमस्कार ॥ हे नीलकंठ सुर नमस्कार । शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार
हे उमाकान्त सुधि नमस्कार । उग्रत्व रूप मन नमस्कार ॥ ईशान ईश प्रभु नमस्कार। विश्वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार ॥

तीर्थयात्रा के बाद दोनों वापस घर लौटे और नियमपूर्वक शनि प्रदोष व्रत करने लगे। कालान्तर में सेठ की पत्नी ने एक सुन्दर पुत्र जो जन्म दिया। शनि प्रदोष व्रत के प्रभाव से उनके यहां छाया अन्धकार लुप्त हो गया। दोनों आनन्दपूर्वक रहने लगे।

डिसक्लेमर– इस लेख में निहित किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, मान्यताओं, धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।

Leave a Comment