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दोस्तों ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को शनि जयंती (Shani Jayanti) मनाई जाती है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान शनि देव का जन्म हुआ था। ज्योतिष के अनुसार सभी नौ ग्रहों में शनिदेव को न्यायाधीश, कर्मफलदाता और दंडाधिकारी का दर्जा प्राप्त है। यह उपाधि शनिदेव को भगवान शंकर ने दी है। शनि देव के पिता सूर्य देव हैं। हनुमान भक्तों को शनि देव कभी भी परेशान नहीं करते हैं। शनि ऐसे देवता हैं जो राजा को रंक और रंक को राजा बना देते हैं।
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इस दिन शनि देव के भक्त पूरे दिन व्रत रखते हैं और विधि-विधान के साथ शनि देव की आराधना करते हैं। इस दिन विशेष उपाय करने से शनि दोष से भी छुटकारा मिलता है।इस साल शनि जयंती 30 मई, दिन सोमवार को मनाई जाएगी। ऐसी मान्यता है कि शनि जयंती के पावन पर्व पर पूरे विधि-विधान से शनि देव की पूजन करने पर कुंडली से जुदा शनि दोष दूर हो जाता है और शनिदेव की कृपा बरसती है।
शनि जयंती शुभ मुहूर्त
Shani Jayanti Shubh Muhurt
- शनि जयंती तिथि – 19 मई, दिन शुक्रवार
- शनि जयंती तिथि प्रारंभ – 18 मई रात 09:42 से
- शनि जयंती तिथि समाप्त – 19 मई रात 09:22 तक

ऐसे करें शनिदेव की पूजा
Shani Jayanti Poojan Vidhi
- इस दिन प्रात:काल जल्दी उठकर शौचादि से निवृत होकर स्नानादि से शुद्ध हों।
- इसके बाद चौकी पर काला वस्त्र बिछाकर उस पर एक सुपारी रखकर उसके दोनों ओर शुद्ध घी व तेल का दीपक जलाकर धूप जलाएं।
- इसके बाद शनिदेवता के इस प्रतीक स्वरूप पर अबीर, गुलाल, सिंदूर, कुमकुम व काजल लगाकर नीले फूल अर्पित करें।
- भक्त मंदिर में जाकर शनिदेव की मूर्ति पर तेल, फूल माला और प्रसाद अर्पित करें।
- उनके चरणों में काली उड़द और तिल चढ़ाएं, तत्पश्चात इमरती व तेल में तली वस्तुओं का नैवेद्य अपर्ण करें।
- इसके बाद श्री फल सहित अन्य फल भी अर्पित करें।
- पूजन के बाद शनि मंत्र (ओम् शं शनैश्चराय नमः) का कम से कम एक माला जप भी करना चाहिए।
- इसके बाद तेल का दीपक जलाकर शनि चालीसा का पाठ करें।
- पूजन के आखिरी में शनि महाराज की आरती भी उतारनी चाहिए।
- ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम: मंत्र बोलते हुए शनिदेव से संबंधित वस्तुओं जैसे कंबल, जूते-चप्पल आदि का दान करें।
न्याय के देवता हैं शनि देव
शनि महाराज को न्याय का देवता माना जाता है और वह व्यक्ति के काम के हिसाब से उसको दंड देते हैं। शास्त्रों शनि देव को 9 ग्रहों के समूह में इन्हें सबसे क्रूर माना गया है, लेकिन ऐसा नहीं है। भगवान सूर्य और उनकी पत्नी छाया की संतान शनि देव जी अगर किसी पर मेहरबान हो तो वो इसे धन-धान्य से परिपूर्ण कर देते हैं। ज्योतिष के अनुसार, शनि को अशुभ माना जाता है व 9 ग्रहों में शनि का स्थान सातवां है। शनि महाराज एक ही राशि में करीब 30 दिन तक रहते हैं। ये मकर और कुंभ राशि के स्वामी माने जाते हैं। शनि की महादशा 19 वर्ष तक रहती है। शनि की गुरूत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी से 95वें गुणा ज्यादा मानी जाती है। माना जाता है इसी गुरुत्व बल के कारण हमारे अच्छे और बुरे विचार चुंबकीय शक्ति से शनि के पास पंहुचते हैं जिनका कृत्य अनुसार परिणाम भी जल्द मिलता है। असल में शनिदेव बहुत ही न्यायप्रिय राजा हैं।
मान्यता है कि शनि महाराज की दृष्टि जिस व्यक्ति पर पड़ती है, उसका कुछ न कुछ अनिष्ट जरूर होता है। नौ ग्रहों में शनि महाराज का विशिष्ठ स्थान है। शनि देव गरीबों की सेवा करने और उनका ख्याल ऱकने वाले पर विशेष प्रसन्न होते हैं और उनके ऊपर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखते हैं। शनिदेव अच्छे कर्म करने पर अच्छा फल देते हैं और बुरे कर्म करने पर बुरा। शनि देव की दृष्टी से आम आदमी तो छोड़ो देवता भी नहीं बच पाए। ऐसी मान्यता है की शनि के कारण भगवान राम और लंकापति रावण दोनों को भी कष्ट भोगना पड़ा। इसके अलावा इन्हीं के प्रभाव के कारण भगवान कृष्ण को भी द्वारिका नगरी में शरण लेनी पड़ी थी। आम आदमी के जीवन में शनि की ढैय्या और साढ़ेसाती बेहद कष्टकारी मानी जाती है, जिससे बचने के लिए शनि जयंती पर पूजन और उपाय किए जाते हैं।
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शनि देव की कथा
Story Of Shani Dev
शास्त्रों के अनुसार, कश्यप मुनि के वंशज भगवान सूर्यनारायण की पत्नी छाया ने संतान के लिए शंकर जी की कठोर तपस्या की। इसके फल में ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि ने जन्म लिया। तेज गर्मी व धूप के कारण शनि का वर्ण काला हो गया था। लेकिन अपनी माता की कठोर तपस्या के चलते शनि में अपार शक्तियां का समावेश था।
एक बार शनि के पिता अपनी पत्नी से मिलने आए। उन्हें देखकर शनि ने अपनी आंखें बंद कर लीं। सूर्य देव में इतना तेज था कि शनि उन्हें देख नहीं पाए। सूर्य ने अपने पुत्र के वर्ण को देखा और अपनी छाया पर संदेह व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह बालक उनका नहीं हो सकता है।
इसके चलते शनि के मन में अपने पिता के लिए शत्रुवत भाव पैदा हो गया। जब से शनि का जन्म हुआ था तब से लेकर उनके पिता ने कभी भी उनके लिए पुत्र प्रेम व्यक्त नहीं किया था। ऐसे में शनि ने शिव जी की कड़ी तपस्या की और उन्हें प्रसन्न किया। शिव जी ने प्रसन्न होकर शनि से वरदान मांगने को कहा। तब शनि ने शिव जी से कहा कि उसके पिता सूर्य उसकी माता को प्रताड़ित और अनादर करते हैं। इससे उनकी माता हमेशा अपमानित होती हैं।
ऐसे में शनि ने शिव जी से सूर्य से ज्यादा ताकतवर और पूज्य होने का वरदान मांगा। भगवान शिव ने शनि को वरदान दिया कि वो नौ ग्रहों में श्रेष्ठ स्थान पाएंगे। साथ ही सर्वोच्च न्यायाधीश व दंडाधिकारी भी होंगे। सिर्फ मानव ही नहीं देवता, असुर, सिद्ध, विद्याधर, गंधर्व व नाग भी उनसे भयभीत होंगे।
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इन बातों का रखें ध्यान
Shani Jayanti Tips
शनि देव की पूजन वाले दिन सूर्योदय से पहले शरीर पर तेल मालिश कर स्नान करना चाहिए।
इस दिन शनि पूजा के साथ-साथ हनुमान जी की भी पूजन करनी चाहिए।
इस दिन व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और किसी भी प्रकार की यात्रा को भी स्थगित कर देना चाहिए।
आसपास की गरीब व्यक्ति को तेल में बने खाद्य पदार्थों का सेवन करवाना चाहिए और दान करना चाहिए।
गाय और कुत्तों को भी तेल में बने पदार्थ खिलाने चाहिए।
बुजुर्गों व जरुरतमंद की सेवा और सहायता भी करनी चाहिए।

शनि जयंती के उपाय
Shani Jayanti Ke Upay
शनि जयंती के दिन शनि देव के साथ भगवान शिव की पूजा करना भी शुभ फलदायी माना जाता है।
इस दिन शिवजी का काले तिल मिले हुए जल से अभिषेक करना चाहिए। इससे शनि पीड़ा से मुक्ति मिलती है।
शनि दोष की शांति के लिए शनि जयंती पर महामृत्युंजय मंत्र या ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप किया जाता है।
शनिदेव की कृपा पाने के लिए शनि जयंती पर व्रत भी रख सकते हैं।
इस दिन गरीब लोगों की सहायता करें ऐसा करने से कष्ट दूर होते हैं। इस दिन शनिदेव से संबंधित वस्तुएं जैसे तेल, काली उड़द, काले वस्त्र, लोहा, काला कंबल आदि चीजें दान कर सकते हैं।
शनि जयंती पर एक कटोरी में सरसों का तेल लेकर उसमें अपना चेहरा देखकर तेल को कटोरी सहित शनि मंदिर या शनि का दान लेने वालों को दान कर दें। ऐसा करने से शनि देव की कृपा बनती है।
शनि देव को प्रसन्न करने या उनके प्रकोप से बचने के लिए पीपल के पेड़ की पूजा करनी चाहिए।
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