हेल्लो दोस्तों हिंदू धर्म में व्रत त्योहारों को विशेष माना जाता हैं वही हर मास की चतुर्थी तिथि को श्री गणेश को समर्पित गणेश चतुर्थी व्रत किया जाता हैं। पंचांग के मुताबिक पौष मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को अखुरथ संकष्टी चतुर्थी व्रत रखा जाता हैं अखुरथ संकष्टी चतुर्थी व्रत दो जनवरी 2021, शनिवार को रखा जाएगा। मान्यताओं के मुताबिक इस दिन श्री गणेश की विधि विधान से पूजा करने से व्रती की सभी इच्छाएं पूरी हो जाती है और बिगड़े काम बन जाते हैं तो आज हम आपको शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और कथा बताने जा रहे हैं। Sankashti Chaturthi Vrat
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अखुरथ संकष्टी चतुर्थी व्रत करने वालों के सभी संकट दूर हो जाते हैं भगवान श्री गणेश के आशीर्वाद से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती हैं ऐसा माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी व्रत करने वालों को श्री गणेश की कृपा प्राप्त होती हैं संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने से कुंडली और विवाह से संबंधित दोष दूर हो जाते हैं जिन लोगों को शिक्षा से संबंधित बाधाओं का सामना करना पड़ रहा हो, उन्हें भी श्री गणेश को समर्पित इस व्रत को करना चाहिए।
संतान के कष्टों को दूर करने के लिए संकट चतुर्थी पर भगवान श्रीगणेश और माता पार्वती की पूजा की जाती है। माताएं अपनी संतान के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन तिल दान करने का विशेष महत्व है। इस व्रत के प्रभाव से संतान को रिद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है। भगवान श्रीगणेश के पूजन के बाद चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करें। चंद्र देव से घर-परिवार की सुख-शांति के लिए प्रार्थना करें।
विषयसूची :
शुभ मुहूर्त :
सुबह की पूजा का मुहूर्त – 5 बजकर 24 मिनट से 6 बजकर 21 मिनट तक
शाम की पूजा का मुहूर्त – 5 बजकर 35 मिनट से शुरू होकर 6 बजकर 57 मिनट तक
संकष्टी चतुर्थी का अर्थ :
संकष्टी चतुर्थी का अर्थ होता है- संकट को हरने वाली चतुर्थी। संकष्टी शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है- कठिन वक्त से मुक्ति पाना। संकष्टी चतुर्थी के दिन लोग अपने कष्टों से मुक्ति पाने के लिए भगवान गणेश की अराधना करते हैं। शास्त्रों के अनुसार, चतुर्थी के दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
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व्रत करने की विधि :
संकष्टी चतुर्थी को गणाधिपति संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता हैं इस दिन श्री गणेश की पूजा की जाती हैं इस दिन व्रत करने से घर में सुख शांति बनी रहती हैं और भगवान की कृपा भी मिलती हैं। कार्यों में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं और सफलता मिलती हैं श्री गणेश भगवान अपने भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करते हैं।
- सुबह स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनें। संभव हो तो पीले वस्त्र धारण करें।
- एक चौकी लें। उस पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र करें। अब पीले रंग का कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश की प्रतिमा विराजित करें।
- धूप, दीप और अगरबत्ती और फूल-माला भगवान को अर्पित करें।
- भगवान को दूर्वा अतिप्रिय है। इसलिए संभव हो तो भगवान को दूर्वा अर्पित करें।
- गणेश चालीसा, गणेश स्तुति और गणेश स्तोत्र का पाठ करें। गणेश मंत्रों का जाप करना भी शुभ माना जाता है।
- श्री गणेश को बेसन के लड्डू का भोग लगाएं।
- इसके बाद भगवान गणेश की आरती उतारें।
- शाम को चंद्रमा को जल देकर अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण करें।
संकष्टी व्रत कथा :
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार देवता कई विपदाओं से घिरे थे। परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए वह सभी भगवान शंकर के पास गए। उस समय शंकर जी के साथ उनके बेटे कार्तिकेय और श्रीगणेश भी थे। देवताओं ने महादेव को अपनी समस्या सुनाई। जिसके बाद भगवान शंकर ने कार्किकेय और गणेश जी से सलाह ली। शंकर जी ने अपने बेटों से कहा कि कौन इस समस्या को हल करेगा। जिस पर कार्तिकेय और गणेश जी को दोनों ही सक्षम लगे। दोनों ने ही कहा कि वह उस काम को कर लेंगे।
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लेकिन भगवान शंकर ने अपने बेटों की परीक्षा लेने का फैसला किया। शंकर जी ने कहा कि जो इस धरती की सबसे पहले परिक्रमा करके वापस आएगा। वह देवताओं की मदद करेगा। शंकर जी की बात सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर धरती की ओर चल पड़े। गणेश जी का वाहन चूहा था। अगर वह धरती की परिक्रमा के लिए जाते तो उन्हें बहुत समय लगता। ऐसे में गणेश जी ने अपने माता-पिता की ही 7 बार परिक्रमा कर ली।
जब कार्तिकेय धरती की परिक्रमा करके वापस लौटे तो खुद को विजेता बताने लगे। तब शंकर जी ने गणेश जी से पूछा कि आखिर वह धरती की परिक्रमा के लिए क्यों नहीं गए। तब गणेश जी ने कहा कि माता-पिता के चरणों में ही समस्त संसार है। तब शिवजी ने देवताओं की मदद के लिए गणेश जी आशीर्वाद देकर भेजा।