26 जून को रखा जाएगा आषाढ़ महीने का पहला प्रदोष व्रत, जानिए मुहूर्त, कथा, पूजन विधि और महत्त्व | Ravi Pradosh Vrat Katha Poojan

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हेल्लो दोस्तों शास्त्रों में प्रदोष व्रत को बहुत महत्त्व दिया गया है. रविवार को आने वाले प्रदोष को रवि प्रदोष (Ravi Pradosh Vrat Katha Poojan) या भानु प्रदोष (Bhanu Pradosh Vrat) कहते हैं. रविवार प्रदोष के दिन भगवान शिवजी और सूर्य देव की विशेष रूप से पूजा की जाती है. रविवार को आने वाला यह प्रदोष स्वास्थ्य की दृष्टि से शुभ माना गया है.

आषाढ़ मास का पहला प्रदोष व्रत उदया तिथि होने के कारण 26 जून को पड़ रहा है. इस दिन शिवजी की पूजा करने से जीवन में खुशहाली बनी रहती है और भक्तों की सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं। मान्यता है कि इस दिन पूजा-व्रत आदि करने से महादेव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों के सभी संकट दूर करते हैं।

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सनातन धर्म में 33 करोड़ देवी देवताओं में भगवान शिव को देवाधिदेव महादेव की उपाधि मिली है। भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए शिव पुराण में विविध व्रतों का उल्लेख मिलता है। प्रदोष व्रत अत्यंत प्रभावशाली तथा शीघ्र फलदाई माना गया है।

यह व्रत करने वाले की स्वास्थ्य से संबंधित समस्या दूर होती है इससे उम्र बढ़ती है और बीमारियां दूर होती है रविवार को शिव और शक्ति की पूजन करने से दाम्पत्य जीवन को सुख मिलता है सभी परेशानियां दूर होती है इस प्रदोष से सभी मान्यता पूरी होती है।

रवि प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त

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  • रवि प्रदोष व्रत आरंभ – 25 जून, शनिवार, देर रात 1 बजकर 09 मिनट तक
  • रवि प्रदोष व्रत समाप्त – 27 जून, सोमवार, दोपहर 03 बजकर 25 मिनट तक
  • रवि प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त – 26 जून, रविवार, शाम 07 बजकर 23 मिनट से लेकर रात 09 बजकर 23 मिनट तक
  • रवि प्रदोष व्रत का अभिजीत मुहूर्त – 26 जून, रविवार, सुबह 11 बजकर 56 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 52 मिनट तक
Ravi Pradosh Vrat Katha Poojan
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रवि प्रदोष व्रत पूजन विधि

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  • सुबह पहले स्नान करके सफेद वस्त्र धारण करना चाहिए।
  • सबसे पहले गणेश जी की पूजन करें
  • फिर शिवजी पूजन के साथ पूरे शिव परिवार की पूजन करना चाहिए।
  • भगवान शिव का अभिषेक करने के बाद उन्हें वस्त्र आभूषण सुगंध के साथ बेलपत्र धतूरा मदार आदि अर्पित करके धूप दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
  • प्रदोष व्रत में शाम के समय प्रदोष काल में भगवान शिव की विधि विधान पूर्वक पंचोपचार व षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए।
  • प्रदोष व्रत की कथा का पाठ करें और पूजन के दौरान ओम् नम: शिवाय मंत्र का जप करें।
  • पूजा के बाद भगवान शिव की आरती उतारें और प्रसाद लोगों में बांट दें।
  • भगवान शिव की महिमा में उनकी प्रसन्नता के लिए प्रदोष स्त्रोत का पाठ एवं स्कंध पुराण में वर्णित प्रदोष व्रत कथा का श्रवण अवश्य करना चाहिए।
  • फिर फलाहार कर अगले दिन इस व्रत का पारण करें।

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कहा गया है कि अगर

  • रविवार के दिन प्रदोष व्रत आप रखते हैं तो सदा नीरोग रहेंगे।
  • सोमवार के दिन व्रत करने से आपकी इच्छा फलितहोती है।
  • मंगलवार कोप्रदोष व्रत रखने से रोग से मुक्ति मिलती है और आप स्वस्थ रहते हैं।
  • बुधवार के दिन इस व्रत का पालन करने से सभी प्रकार की कामना सिद्ध होती है।
  • बृहस्पतिवार के व्रत से शत्रु का नाश होता है। शुक्र प्रदोष व्रत सेसौभाग्य की वृद्धि होती है।
  • शनि प्रदोष व्रत से पुत्र की प्राप्ति होती है
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Ravi Pradosh Vrat Katha Poojan

रवि प्रदोष व्रत कथा

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एक गाँव में अति दीन ब्राह्मण निवास करता था। उसकी साध्वी स्त्री प्रदोष व्रत किया करती थी, उसे एक ही पुत्र रत्न था। एक समय की बात है वह पुत्र गंगा स्नान करने के लिये गया। दुर्भाग्यवश मार्ग में चोरों ने उसे घेर लिया और वे कहने लगे कि हम तुम्हें मारेंगे, नहीं तो तुम अपने पिता के गुप्त धन के बारे में हमें बतला दो। बालक दीन भाव से कहने लगा कि बंधुओं! हम अत्यंत दु:खी दीन हैं। हमारे पास धन कहाँ है? तब चोरों ने कहा- “तेरे इस पोटली में क्या बंधा है?”

बालक ने नि:संकोच कहा- “मेरी माँ ने मेरे लिये रोटियाँ दी हैं। ”यह सुनकर चोर ने अपने साथियों से कहा- “साथियों ! यह बहुत ही दीन दु:खी मनुष्य है। अत: हम किसी और को लूटेंगे।” इतना कहकर चोरों ने उस बालक को जाने दिया। बालक वहाँ से चलते हुए एक नगर में पहुँचा। नगर के पास एक बरगद का पेड़ था। वह बालक उसी बरगद के वृक्ष की छाया में सो गया। उसी समय, उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उस बरगद के वृक्ष के पास पहुँचे और बालक को चोर समझकर बंदी बना राजा के पास ले गये। राजा ने उसे कारावास में बंद करने का आदेश दिया।

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ऐसे मिला व्रत का फल

ब्राह्मणी का लड़का जब घर नहीं लौटा, तब उसे अपने पुत्र की बड़ी चिता हुई। अगले दिन प्रदोष व्रत था, ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत किया और भगवान शंकर से मन-ही-मन अपने पुत्र के कुशलता की प्रार्थना करने लगी। भगवान शंकर ने उस ब्राह्मणी की प्रार्थना स्वीकार कर ली।उसी रात भगवान शंकर ने उस राजा को स्वप्न में आदेश दिया कि वह बालक चोर नहीं है, उसे प्रात: काल छोड़ दें, अन्यथा उसका सारा राज्य-वैभव नष्ट हो जायेगा। प्रात:काल राजा ने शिव जी की आज्ञानुसार उस बालक को कारावास से मुक्त कर दिया।

बालक ने अपनी सारी कहानी राजा को सुनाई। सारा वृतांत सुनकर, राजा ने अपने सिपाहियों को उस बालक के घर भेजा और उसके माता-पिता को राज दरबार में बुलाया। उसके माता पिता बहुत हीं भयभीत थे। राजा ने उन्हें भयभीत देखकर कहा- “आप भयभीत न हो। आपका बालक निर्दोष है।” राजा ने ब्राह्मण को पांच गाँव दान में दिये, जिससे वे सुख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सके। भगवान शिव की कृपा से ब्राह्मण परिवार आनंद से रहने लगे। जो भी इस प्रदोष व्रत को करता है ,वह सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करता है।

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व्रत में बरतें ये सावधानियां

Ravi Pradosh Vrat Katha Tips

  • घर में और घर के मंदिर में साफ सफाई का ध्यान रखें।
  • साफ-सुथरे कपड़े पहन कर ही भगवान शिव और सूर्य की पूजा करें।
  • सारे व्रत विधान में मन में किसी तरीके का गलत विचार ना आने दें।
  • अपने गुरु और पिता के साथ सम्मान पूर्वक व्यवहार करें।
  • रवि प्रदोष व्रत विधान में अपने आप को भगवान शिव को समर्पण कर दें।

शिव को प्रसन्न करने के उपाय

Ravi Pradosh Vrat Upay

  • यदि सूर्य के कारण आपके दाम्पत्य जीवन में तनाव आ गया है तो 27 लाल गुलाब के फूलों को लाल धागे में पिरोएं और पति-पत्नी मिलकर सांध्य के समय भगवान शिव को अर्पण करें और वहीं बैठकर भगवान शिव से प्रार्थना करें ऐसा करने से दांपत्य जीवन में मधुरता आएगी।
  • जिन लोगों को सरकारी नौकरी में समस्या आ रही हो वह इस रवि प्रदोष पर संध्या के समय भगवान शिव को कच्चे दूध से स्नान कराएं और गुलाब का इत्र अर्पण करें। इससे सरकारी नौकरी की चिंता परेशानी बहुत जल्द समाप्त होगी।
  • जिस किसी को भी सूर्य से संबंधित कोई रोग हो जैसे- हृदय रोग आदि तो वह जातक सफेद चंदन में गंगाजल मिलाकर इसका लेप रवि प्रदोष की संध्या पर शिवजी को करें।
  • रवि प्रदोष पर रात को सोते समय एक गिलास दूध भर कर अपने सिरहाने रखें, फिर सोमवार यानि महाशिवरात्रि को सूर्योदय से पहले उठें और स्नान आदि से निवृत्त होकर दूध को बबूल के पेड़ की जड़ में अर्पित कर दें और फिर लगातार 7 या 11 रविवार यह उपाय करने से धन धान्य में वृद्धि होगी।
  • इस बार रवि प्रदोष पर तांबे के बर्तन या घी का दान करें। इस दिन आदित्य हृदय स्त्रोत और रुद्राष्टक का पाठ करना लाभकारी रहेगा। इसके साथ ही नेत्रोपनिषद का पाठ करने से नेत्रों की ज्योति सही रहगी। इस दिन तांबे के लोटे में जल भर कर, इसमें लाल फूल डालकर सूर्य को अर्घ्य देने से नेत्र बाधा हटेगी।
  • इस दिन किसी भी सूर्य मंत्र का 21 बार जाप करें। इस रवि प्रदोष पर लाल वस्तुओं का अधिक से अधिक दान करना लाभकारी सिद्ध होगा। साथ ही माणिक्य, गुड़, कमल-फूल, लाल-वस्त्र, लाल-चंदन, तांबा, स्वर्ण सभी वस्तुएं इस दिन दान करें।
  • मनोकामना पूर्ति के लिए ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप करें या फिर पूजा के समय बेलपत्र पर ओम नम: शिवाय लिख कर भगवान भोलेनाथ को चढ़ाएं. इस उपाय से आपकी जो भी मनोकामना है, वह शिव कृपा से पूरी होगी.
  • यदि आप किसी रोग की चपेट में हैं या फिर कोई विकट समस्या है, जिसका समाधान नहीं मिल पा रहा है, तो आप रवि प्रदोष व्रत के दिन महामृत्युंजय मंत्र का जाप कराएं.
  • जमीन-जायदाद या अन्य मामलों से जुड़े कोर्ट केस से आप परेशान हैं, तो प्रदोष व्रत के दिन गंगाजल में अक्षत मिलाकर भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करें. शिव कृपा से आपकी समस्या का समाधान होगा.
  • अनजाने भय से डरे हुए हैं, शरीर शक्तिहीन लगता है, आत्मविश्वास की कमी है, तो प्रदोष व्रत के दिन शिव पंचाक्षरी मंत्र ओम नम: शिवाय का 108 बार जप करें. मंत्र जाप के लिए रुद्राक्ष या चंदन की माला का उपयोग करें. आपको लाभ मिलेगा.
Pradosh Vrat Muhurat Katha Poojan Vidhi

रवि प्रदोष व्रत उद्यापन विधि

Ravi Pradosh Udyapan Vidhi

  • स्कंद पुराण के अनुसार इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
  • उद्यापन वाली त्रयोदशी से एक दिन पूर्व श्री गणेश का विधिवत षोडशोपचार से पूजन किया जाना चाहिये। पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है।
  • इसके बाद उद्यापन के दिन प्रात: जल्दी उठकर नित्यकर्मों से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध कर लें।
  • रंगीन वस्त्रों और रंगोली से सजाकर मंडप तैयार कर लें। मंडप में एक चौकी पर शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें। और विधि-विधान से शिव-पार्वती का पूजन करें।
  • भोग लगाकर उस दिन जो वार हो उसके अनुसार कथा सुनें व सुनायें।
  • ‘ऊँ उमा सहित शिवाय नम:’ मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन किया जाता है। हवन में आहूति के लिए गाय के दूध से बनी खीर का प्रयोग किया जाता है।
  • हवन समाप्त होने के बाद भगवान शिव की आरती की जाती है और शान्ति पाठ किया जाता है।
  • अंत में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। इसके बाद प्रसाद व भोजन ग्रहण करें।

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