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हेल्लो दोस्तों रक्षाबंधन का त्यौहार भाई बहन के रिश्ते का प्रसिद्ध त्यौहार है जो हर साल श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। रक्षा बंधन पर्व का मतलब होता है कि “एक ऐसा बंधन जो रक्षा प्रदान करता हो”। यहाँ “रक्षा” का मतलब रक्षा प्रदान करना होता है और “बंधन” का मतलब होता है बाध्य।
रक्षाबंधन हिन्दुओं का महत्वपूर्ण पर्व है जिसको भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है। इस त्यौहार का आध्यात्मिक महत्व के साथ साथ ऐतिहासिक महत्त्व भी है। राखी सामान्यतः बहन के द्वारा भाई को ही बाँधी जाती है लेकिन यह ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों के द्वारा सम्मानित संबंधियों जैसे कि पुत्री द्वारा पिता को भी बाँधी जाती है।
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इस दिन बहन अपने भाई की कलाई में रक्षा सूत्र बांधकर उनकी लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं। भाई-बहन के अटूट प्रेम के प्रतीक रक्षाबंधन को लेकर इस बार लोगों के मन असमंजस की स्थिति बनी है। दरअसल इस बार पूर्णिमा तिथि (Raksha Bandhan 2022 Date) दो दिन 11 और 12 को पड़ रही है, जिसके कारण लोग समझ नहीं पा रहे हैं राखी आखिर किस दिन बांधी जाएगी। रक्षा बंधन के दिन भद्रा काल का विशेष ध्यान रखा जाता है क्योंकि इस समय में राखी बांधना अशुभ माना जाता है। पंचांग के अनुसार इस साल रक्षा बंधन के दिन भद्रा काल (Bhadra Kaal) का साया है। तो आइए जानते है रक्षा बंधन का शुभ मुहूर्त और भद्रा काल समय।
इस दिन बांधी जाएगी राखी
हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 11 अगस्त को सुबह 10 बजकर 38 मिनट पर शुरू होकर अगले दिन 12 अगस्त को 07 बजकर 05 मिनट पर समाप्त हो रही है। इस लिहाज से 12 अगस्त को उदया तिथि होने के बाद भी रक्षा बंधन 11 को ही मनाया जाएगा क्योंकि 11 अगस्त को पूर्णिमा तिथि पूरा दिन है।
रक्षा बंधन शुभ मुहूर्त

Raksha Bandhan Shubh Muhurt
- रक्षाबंधन तिथि – 11 अगस्त 2022, गुरुवार।
- पूर्णिमा तिथि आरंभ – 11 अगस्त 2022, सुबह 10 बजकर 38 मिनट से।
- पूर्णिमा तिथि की समाप्ति – 12 अगस्त 2022, सुबह 07 बजकर 05 मिनट पर।
- शुभ मुहूर्त – 11 अगस्त 2022, सुबह 09 बजकर 28 मिनट से रात 09 बजकर 14 मिनट।
- अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12 बजकर 06 मिनट से 12 बजकर 57 मिनट तक।
- अमृत काल – शाम 06 बजकर 55 मिनट से रात 08 बजकर 20 मिनट तक।
- ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04 बजकर 29 मिनट से 05 बजकर 17 मिनट तक।
- दोपहर में राखी बंधवाने का शुभ मुहूर्त – 1 बजकर 46 मिनट से 4 बजकर 26 मिनट तक।
- शाम में राखी बंधवाने का शुभ मुहूर्त – प्रदोष काल में 7 बजकर 6 मिनट से 9 बजकर 14 मिनट तक।
रक्षा बंधन भद्रा काल
Raksha Bandhan 2022 Bhadra Kaal
- रक्षा बंधन के दिन भद्रा पूंछ – 11 अगस्त, शाम 05 बजकर 17 मिनट से 06 बजकर 18 मिनट तक।
- रक्षा बंधन भद्रा मुख – 11 अगस्त, शाम 06 बजकर 18 मिनट से लेकर रात 08 बजे तक।
- रक्षा बंधन के दिन भद्रा काल की समाप्ति – 11 अगस्त, रात 08 बजकर 51 मिनट पर।
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क्यों भद्रा काल में नहीं बांधते राखी
Bandra Kaal Me Kyo Nahi Baandhte Rakhi
रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) के दिन भद्रा काल (Bhadra Kaal) का विशेष ध्यान रखा जाता है दरअसल इस अवधि या समय को राखी बांधने के लिए अशुभ समय माना जाता है। इसके पीछे एक कथा प्रचलित है। पौराणिक कथा के अनुसार, भद्रा भगवान सूर्य और छाया की पुत्री है, इस दृष्टिकोण से भद्रा शनि देव की बहन हुईं। ऐसा कहा जाता है कि जब भद्रा का जन्म हुआ तो वह समस्त सृष्टि को निगलने वाली थीं। इसके साथ ही वे हवन, यज्ञ और पूजा-पाठ इत्यादि मांगलिक कार्यों में विघ्न बाधा उत्पन्न करने लगी थीं, जिससे सभी कार्यों में बाधा होती थी। तभी से लोग भद्रा काल में राखी बांधना अशुभ समझते हैं।
रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है?
Why Raksha Bandhan is Celebrated
रक्षा बंधन का पर्व भाई-बहनों के बीच मनाया जाता है जो कि एक भाई का अपने बहन के प्रति कर्तव्य को जाहिर करता है। इस त्यौहार के दिन सभी भाई बहन एक साथ भगवान की पूजा आदि करके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस अवसर पर बहन भाई को राखी बांधती है और भगवान से उसके खुशहाल रहने की प्रार्थना करती है तथा बदले में बही बहन को उपहार देता है और बहन की रक्षा करने की प्रार्थना करता है।

एक रीति के अनुसार, बहन भाई को राखी बांधने से पहले प्रकृति की सुरक्षा के लिए तुलसी और नीम के पेड़ को राखी बांधती है जिसे वृक्ष-रक्षाबंधन भी कहा जाता है। रक्षाबंधन के दिन पत्नी अपने पति को और शिष्य अपने गुरु को भी राखी बांधते हैं। रक्षा बंधन एक ऐसा त्यौहार है जिसे मुख्य रूप से भारत के उत्तरी और पश्चिमी हिस्से के लोगों द्वारा मनाया जाता है। यह एक विशेष हिंदू त्यौहार है जिसे भारत और नेपाल जैसे देशों में भाई और बहन के बीच प्यार का प्रतीक बनाने के लिए मनाया जाता है। त्यौहार का वास्तविक आनंद पाने के लिए धर्म-परायण होना जरूरी है। इस पर्व में दूसरों की रक्षा के धर्म-भाव को विशेष महत्व दिया गया है।
राखी बांधने का मंत्र
Rakhi Bandhne Ka Mantra
राखी बांधते समय बहनों द्वारा इस मंत्र को पढ़ना शुभ फलदायी माना जाता है। इस रक्षा सूत्र का वर्णन महाभारत में भी आता है।
येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:।
सिंदूर, रोली चंदन लगाने का मंत्र :-
सिन्दूरं सौभाग्य वर्धनम, पवित्रम् पाप नाशनम्।
आपदं हरते नित्यं, लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा॥
रक्षाबंधन की पूजन विधि
Raksha Bandhan Poojan Vidhi
- रक्षा बंधन के दिन सुबह सभी कार्यों को कर स्नान कर लें। इसके बाद बहन राखी की थाली को अच्छे से सजाएं।
- इस थाली में राखी, रोली, चंदन, कुमकुम, अक्षत, पीली सरसों के बीज, दीपक, मिठाई और फूल रखें।
इस थाली में एक घी का एक दीपक भी जलाएं।
राखी की थाल को पूजा स्थल में रखें और सबसे पहली राखी बाल गोपल या अपने ईष्ट देवता को अर्पित कर कर भगवान का स्मरण करें। - राखी बंधते समय भाई का मुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। इससे आपकी राखी को देवताओं का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- इसके बाद भाई को भाई को राखी बांधने की प्रक्रिया शुरू करें।
राखी बंधवाते समय भाईयों को सिर पर रुमाल या कोई स्वच्छ वस्त्र रखना चाहिए। - सबसे पहले भाई के माथे पर तिलक लगाकर उसके दाहिने हाथ (सीधे हाथ) में रक्षा सूत्र यानी कि राखी बांधें।
- भाई की नजर उतारने के लिए दीप से आरती दिखाएं। कहीं-कहीं बहनें अपनी आंखों का काजल भी भाई को लगाती हैं।
भाई की आरती उतारकर अंत में भाई का मुंह मीठा करें। ध्यान रखें कि भद्रा रहित काल में ही राखी बांधें।
अगर भाई आपसे बड़ा है तो उसका आशीर्वाद लें और अगर बहन बड़ी हो तो भाई को चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेना चाहिए। - राखी बांधने के बाद भाइयों को इच्छा और सामर्थ्य के अनुसार बहनों को भेंट देनी चाहिए।
- इस दिन ब्राह्मण या पंडित भी अपने यजमान की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधते हैं।

रक्षा बंधन का इतिहास
Raksha Bandhan History in Hindi
रानी कर्णावती और हुमायूँ –
यह उस समय की बात है जब अपना राज्य को बचाने के लिए राजपूतों को मुसलमान राजाओं से युद्ध करना पड़ रहा था। सन 1535 के आस पास, चित्तोड़ की रानी कर्णावती हुआ करती थी और वो एक विधवा रानी थी। रानी कर्णावती को यह लगने लगा कि उनका साम्राज्य गुजरात के सुलतान बहादुर शाह से नहीं बचाया जा सकता तो उन्होंने हुमायूँ, जो कि पहले चित्तोड़ का दुश्मन था, को राखी भेजी और एक बहन के नाते मदद माँगी। और हुमायूँ ने भी अपनी बहन की रक्षा के हेतु अपनी एक सेना की टुकड़ी चित्तोड़ भेज दी. जिससे बाद में बहादुर शाह की सेना को पीछे हटना पड़ा था।
राजा बलि और माँ लक्ष्मी –
असुर सम्राट बलि भगवान विष्णु का बहुत ही बड़ा भक्त था। बलि की इतनी ज्यादा भक्ति से प्रसन्न होकर विष्णु जी ने बलि के राज्य की रक्षा स्वयं करनी शुरू कर दी। ऐसे में माता लक्ष्मी इस चीज़ से परेशान होने लगी क्योकि विष्णु जी अब और वैकुंठ पर नहीं रहते थे। अब लक्ष्मी जी ने एक ब्राह्मण औरत का रूप लेकर बलि के महल में रहने लगी। कुछ समय बाद में उन्होंने बलि के हाथों में राखी भी बांध दी और बदले में उनसे कुछ देने को कहा। अब बलि को ये नहीं पता था की वो औरत और कोई नहीं माता लक्ष्मी है इसलिए उन्होंने उसे कुछ भी मांगने का अवसर दिया। इस पर माता ने बलि से विष्णु जी को उनके साथ वापस वैकुंठ लौट जाने का आग्रह किया। इसलिए उन्हें भगवान विष्णु को वापस लौटना पड़ा।
कृष्ण और द्रौपदी –
जब लोगों की रक्षा करने के लिए दुष्ट राजा शिशुपाल का भगवान कृष्ण ने वध किया तो इस युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण के अंगूठे में गहरी चोट आई थी। तब द्रौपदी ने अपने वस्त्र का उपयोग कर उनकी खून बहने को रोक दिया था। भगवान कृष्ण द्रौपदी के इस कृत्य से काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने उनके साथ एक भाई बहन का रिश्ता निभाया। उन्होंने उनसे ये भी वादा किया कि समय आने पर वो उनका जरुर से मदद करेंगे। बहुत वर्षों बाद जब कौरवों का राजकुमार दुःशासन द्रौपदी का चीर हरण करने लगा। इस पर कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा की थी और उनकी लाज बचायी थी।
संतोषी माँ से सम्बंधित कहानी –
भगवान गणेश के दोनों पुत्र शुभ और लाभ इस बात को लेकर परेशान थे कि उनकी कोई बहन नहीं है। इसलिए इन दोनों भाइयों ने भगवान गणेश से एक बहन की मांग की। कुछ समय के बाद भगवान नारद ने भी गणेश से पुत्री के विषय में कहा। इस पर भगवान गणेश राज़ी हो गए। भगवान गणेश की दो पत्नियों रिद्धि और सिद्धि, की दिव्य ज्योति से माँ संतोषी का अविर्भाव हुआ। इसके बाद माँ संतोषी के साथ शुभ लाभ रक्षा बंधन मना सके।
यम और यमुना की कहानी –
एक अन्य पौराणिक कहानी के अनुसार, मृत्यु के देवता यम जब अपनी बहन यमुना से 12 वर्ष तक मिलने नहीं गये, तो यमुना दुखी हुई और माँ गंगा से इस बारे में बात की। तब गंगा माता के परामर्श पर यम जी ने अपने बहन के पास जाने का निश्चय किया। यम को देख कर यमुना बहुत खुश हुईं और उनके लिए विभिन्न तरह के व्यंजन भी बनाये। यम को इससे बेहद ख़ुशी हुई और उन्होंने यमुना से कहा कि वे मनचाहा वरदान मांग सकती हैं। इस पर यमुना ने उनसे ये वरदान माँगा कि वे (यम) उनसे मिलने बार बार आएं। यम अपनी बहन के प्रेम और स्नेह से गदगद हो गए और यमुना को अमरत्व का वरदान दिया।
रक्षा बंधन का महत्व
Raksha Bandhan Ka Mahatva
रक्षाबंधन का त्यौहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को मजबूत प्रेम पूर्ण आधार देता है। रक्षाबंधन पर्व का ऐतिहासिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और राष्ट्रीय महत्व है। यह भाई एवं बहन के भावनात्मक संबंधों का प्रतीक पर्व है। इस दिन बहन भाई की कलाई पर रेशम का धागा बांधती है तथा उसके दीर्घायु जीवन एवं सुरक्षा की कामना करती है। बहन के इस स्नेह बंधन से बंधकर भाई उसकी रक्षा के लिए कृत संकल्प होता है। अब राखी देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, धर्म की रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है। यह महीना सभी किसानों, मछवारे और सामुद्रिक यात्रा करने वाले व्यवसायों के लिए भी काफी महत्व रखता है। मछवारे भी अपने मछली पकड़ने की शुरुआत इसी दिन से करते हैं क्योंकि इस समय समुद्र शांत होता है और उन्हें पानी में जाने में कोई खतरा नहीं होता है।
प्रकृति की रक्षा के लिए वृक्षों को राखी बांधने की परंपरा भी शुरू हो चुकी है। रक्षा सूत्र सम्मान और आस्था प्रकट करने के लिए भी बांधा जाता है। यह पर्व आत्मीय बंधन को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ हमारे भीतर सामाजिकता का विकास करता है। यह त्यौहार परिवार, समाज, देश और विश्व के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति हमारी जागरूकता भी बढ़ाता है। रक्षाबंधन को विष तारक यानी विष को नष्ट करने वाला और पुण्य प्रदायक यानी पुण्य देने वाला भी माना जाता है।श्रावणी पूर्णिमा या संक्रांति तिथि को राखी बांधने से बुरे ग्रह कटते हैं।
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