भौम प्रदोष व्रत का मुहूर्त, प्रदोष व्रत पूजन की विधि, प्रदोष व्रत कथा, भौम प्रदोष व्रत का महत्व, Pradosh Vrat Muhurat Katha Poojan Vidhi, Pradosh Vrat Muhurat, Pradosh Vrat Pujan vidhi, Pradosh Vrat katha, Pradosh Vrat Mahatva
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास पहला महीना होता है. इस साल 2022 में चैत्र का महीना 19 मार्च से शुरू हुआ और 16 अप्रैल तक रहेगा. इस महीने को मधुमास के नाम से भी जानते हैं. प्रदोष व्रत हर महीने 2 बार आता है. कहा जाता है कि इस व्रत को हर महीने के दोनों पक्षों में त्रयोदशी तिथि के दिन रखते हैं. इस बार चैत्र महीने में प्रदोष व्रत 29 अप्रैल मंगलवार को है.
प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों को विशेष फल प्राप्त होता है. बताया जाता है कि जिस दिन प्रदोष होता है, उस दिन के नाम पर प्रदोष व्रत होता है. जैसे अगर किसी दिन सोमवार को प्रदोष व्रत पड़े तो उसे सोम प्रदोष व्रत कहते हैं. इस बार प्रदोष व्रत मंगलवार को है, इसलिए इसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाएगा. साथ ही साथ इस व्रत को काफी खास माना जा रहा है, क्योंकि इस बार यह मंगलवार को पड़ रहा है.
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तो आइये जानते है भौम प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और कथा के बारे में…
विषयसूची :
भौम प्रदोष व्रत का मुहूर्त (Pradosh Vrat Muhurat)
चैत्र कृष्ण त्रयोदशी तिथि प्रारंभ : 29 मार्च 2022 दोपहर 02.38 बजे से शुरू होगा.
प्रदोष काल पूजन का मुहूर्त : सायं 06.37 से रात्रि 8.57 बजे तक.
चैत्र कृष्ण त्रयोदशी तिथि समाप्त : 30 मार्च 2022, बुधवार को दोपहर 01.19 बजे.
प्रदोष व्रत पूजन की विधि (Pradosh Vrat Pujan vidhi)
प्रदोष व्रत वाले दिन भगवान शिव की पूजा होती है. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त प्रदोष व्रत रखते हैं, क्योंकि यह व्रत उनको काफी पसंद है. इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है. इसके बाद विधिपूर्वक भगवान शंकर की पूजा की जाती है, जिसमें उन्हें धतूरा और फूल अर्पित किए जाते हैं. इसके बाद शाम को फिर से भगवान की पूजन अर्चना की जाती है. इस दिन प्रदोष व्रत की कथा भी सुनी जाती है. वहीं, भगवान शिव के मंत्रों का जाप करने से भी विशेष लाभ प्राप्त होता है.

प्रदोष व्रत कथा (Pradosh Vrat katha)
स्कंद पुराण में दी गयी एक कथा के अनुसार, प्राचीन समय की बात है. एक विधवा ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ रोज़ाना भिक्षा मांगने जाती और संध्या के समय तक लौट आती. हमेशा की तरह एक दिन जब वह भिक्षा लेकर वापस लौट रही थी तो उसने नदी किनारे एक बहुत ही सुन्दर बालक को देखा लेकिन ब्राह्मणी नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है और किसका है? दरअसल उस बालक का नाम धर्मगुप्त था और वह विदर्भ देश का राजकुमार था.
उस बालक के पिता को जो कि विदर्भ देश के राजा थे, दुश्मनों ने उन्हें युद्ध में मौत के घाट उतार दिया और राज्य को अपने अधीन कर लिया. पिता के शोक में धर्मगुप्त की माता भी चल बसी और शत्रुओं ने धर्मगुप्त को राज्य से बाहर कर दिया. बालक की हालत देख ब्राह्मणी ने उसे अपना लिया और अपने पुत्र के समान ही उसका भी पालन-पोषण किया.
कुछ दिनों बाद ब्राह्मणी अपने दोनों बालकों को लेकर देवयोग से देव मंदिर गई, जहां उसकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई. ऋषि शाण्डिल्य एक विख्यात ऋषि थे, जिनकी बुद्धि और विवेक की हर जगह चर्चा थी. ऋषि ने ब्राह्मणी को उस बालक के अतीत यानि कि उसके माता-पिता के मौत के बारे में बताया, जिसे सुन ब्राह्मणी बहुत उदास हुई.
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ऋषि ने ब्राह्मणी और उसके दोनों बेटों को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और उससे जुड़े पूरे विधि-विधान के बारे में बताया. ऋषि के बताये गए नियमों के अनुसार ब्राह्मणी और बालकों ने व्रत सम्पन्न किया लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इस व्रत का फल क्या मिल सकता है.
कुछ दिनों बाद दोनों बालक वन विहार कर रहे थे तभी उन्हें वहां कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आईं जो कि बेहद सुन्दर थीं. राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की एक गंधर्व कन्या की ओर आकर्षित हो गए. कुछ समय पश्चात् राजकुमार और अंशुमती दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और कन्या ने राजकुमार को विवाह हेतु अपने पिता गंधर्वराज से मिलने के लिए बुलाया. कन्या के पिता को जब यह पता चला कि वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार है तो उसने भगवान शिव की आज्ञा से दोनों का विवाह कराया. राजकुमार धर्मगुप्त की ज़िन्दगी वापस बदलने लगी. उसने बहुत संघर्ष किया और दोबारा अपनी गंधर्व सेना को तैयार किया. राजकुमार ने विदर्भ देश पर वापस आधिपत्य प्राप्त कर लिया.
कुछ समय बाद उसे यह मालूम हुआ कि बीते समय में जो कुछ भी उसे हासिल हुआ है, वह ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के द्वारा किये गए प्रदोष व्रत का फल था. उसकी सच्ची आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे जीवन की हर परेशानी से लड़ने की शक्ति दी. उसी समय से हिदू धर्म में यह मान्यता हो गई कि जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा करेगा और एकाग्र होकर प्रदोष व्रत की कथा सुनेगा और पढ़ेगा उसे सौ जन्मों तक कभी किसी परेशानी या फिर दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ेगा.
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भौम प्रदोष व्रत का महत्व (Pradosh Vrat Mahatva)
भौम प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति को आरोग्य की प्राप्ति होती है. शिव कृपा से रोग और दोष दूर होते हैं. असाध्य रोगों से छुटकारा पाने के लिए आप यह प्रदोष व्रत कर सकते हैं, आपको इससे लाभ मिल सकता है. हालांकि प्रदोष व्रत करने से सुख, समृद्धि, धन, धान्य, संतान आदि की भी प्राप्ति होती है.
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