हिंदू धर्म कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद की पूर्णिमा से पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष 2020 की शुरुआत होगी। भाद्रपद की पूर्णिमा और अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को पितृ पक्ष कहते हैं। वर्ष 2022 में पितृ पक्ष 10 सितंबर 2022, शनिवार से आरंभ होकर 25 सितंबर 2022, रविवार तक रहेगा। हर वर्ष 16 दिनों की इस अवधि के दौरान लोग अपने पितृ अर्थात पूर्वजों को याद करते है और उनके लिए पिंडदान करते हैं। वैदिक काल और उसके भी पहले हमारे ऋषि मुनियों ने पितृ और उनकी शांति के लिए पूजा पाठ और अनुष्ठान के नियम तय कर दिए थे। Pitru Paksha Niyam
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पितृ/श्राद्ध पक्ष की तिथियां :
- 10 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध (शुक्ल पूर्णिमा), प्रतिपदा श्राद्ध (कृष्ण प्रतिपदा)
- 11 सितंबर- आश्निव, कृष्ण द्वितीया
- 12 सितंबर- आश्विन, कृष्ण तृतीया
- 13 सितंबर- आश्विन, कृष्ण चतुर्थी
- 14 सितंबर- आश्विन,कृष्ण पंचमी
- 15 सितंबर- आश्विन,कृष्ण पष्ठी
- 16 सितंबर- आश्विन,कृष्ण सप्तमी
- 18 सितंबर- आश्विन,कृष्ण अष्टमी
- 19 सितंबर- आश्विन,कृष्ण नवमी
- 20 सितंबर- आश्विन,कृष्ण दशमी
- 21 सितंबर- आश्विन,कृष्ण एकादशी
- 22 सितंबर- आश्विन,कृष्ण द्वादशी
- 23 सितंबर- आश्विन,कृष्ण त्रयोदशी
- 24 सितंबर- आश्विन,कृष्ण चतुर्दशी
- 25 सितंबर- आश्विन,कृष्ण अमावस्या
यह वह समय होता है जब पित्तरों का तर्पण और श्राद्ध कर्म किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार पित्तरों का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर ही करना चाहिए और यदि आप उनकी मृत्यु तिथि नहीं जानते तो आप उनका श्राद्ध किस तिथि को कर सकते हैं। इसके अलावा घर की सुहागन स्त्रियों का श्राद्ध किस तिथि पर करें। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपको अपने पित्तरों का श्राद्ध किस तिथि पर करना चाहिए और किसी तिथि पर नहीं करना चाहिए। अगर नहीं तो आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे तो चलिए जानते हैं पितृ पक्ष में कब करें किसका श्राद्ध।
घर पर श्राद्ध कर्म करने की सरल विधि :
- सुबह स्नान के बाद घर की साफ-सफाई करें। पुरे घर में गंगाजल और गौमूत्र छिड़के।
- श्राद्ध कर्म में दूध, गंगाजल, शहद, सफेद कपड़े, जौ और तिल मुख्य रूप से महत्वपूर्ण है।
- दक्षिण दिशा कि तरफ मुंह करे और बांए पैर को मोड़कर कर बैठ जाएं। इसके बाद तांबे के बर्तन में तिल, जौ, दूध, गंगाजल, थोड़े पुष्प और स्वच्छ जल रखे। उस जल को हाथों में भरकर सीधे हाथ के अंगूठे से उसी बर्तन में गिरा दे। पितरों को स्मरण करते हुए ऐसा लगतार 11 बार करें।
- पितरों के लिए सात्विक भोजन बनाएं। ब्राह्मण, घर की स्वासिनी (बहन बेटी) को न्यौता देकर बुलाएं।
- पितरों के निमित्त बनी खीर को अग्नि में अर्पण करें। ब्राह्मण भोज से पहले गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए भोजन सामग्री निकाल ले। पितृपक्ष के दौरान जो भी भोजन बनाएं उसमें से एक हिस्स पितरों के नाम से निकालकर गाय या कुत्ते को खिला दें।
- श्रद्धानुसार एक या तीन ब्राह्मणों को प्रसन्न होकर भोजन कराएं।
- भोजन के उपरांत वस्त्र, दक्षिणा आदि सामग्री ब्राह्मण को प्रणाम कर दे। ब्राह्मण वैदिक पाठ करें और गृहस्थ एवं पितर के प्रति शुभकामनाएं दें।
- श्राद्ध कर्म के दिन व्रत रहकर भोजन बनाकर ब्राह्मणों, बहन-बेटी को खिलाने के बाद ही भोजन करें।
- पितरों की शांति के लिए प्रतिदिन एक माला “ऊं पितृ देवताभ्यो नम:” की करें और “ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम:” का जाप करते रहें। भगवद्गीता या भागवत का पाठ भी कर सकते हैं।
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यदि आप भी इसके बारे में जानना चाहते हैं तो हम आपको श्राद्ध पक्ष की प्रत्येक तिथि का महत्व बताएंगे और साथ ही यह भी बताएंगे कि आप पितृ पक्ष में आप कौन सी तिथि पर किसका श्राद्ध कर सकते हैं।
पितृ पक्ष में कब करें किसका श्राद्ध :
हर साल पितृपक्ष मे हमारे पितर धरती पर आते हैं और उनकी सेवा की जाती है। आमतौर पर किसी व्यक्ति की मृत्यु जिस तिथि पर होती है, पितृ पक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। पर कुछ स्थिति में पितृ पक्ष में किस तिथि पर किसका श्राद्ध होता है, आइए विस्तार से उनके बारे में जानते हैं-
पूर्णिमा का श्राद्ध :
किसी व्यक्ति की मृत्यु पूर्णिमा को हो तो उसका श्राद्ध भाद्र पूर्णिमा को करना चाहिए। दादा-दादी, परदादी का श्राद्ध भी भाद्र पूर्णिमा को करना चाहिए। अगर आप अपने दिवंगत लोगो की मृत्यु तिथि के बारे में नहीं जानते तो आप उनका श्राद्ध सर्वपितृ अमावस्या के दिन कर सकते हैं।
भरणी का श्राद्ध :
कई लोग अपने जीवन में कोई भी तीर्थयात्रा नहीं कर पाते है। ऐसे लोगों की मृत्यु होने पर उन्हें मातृगया, पितृगया, पुष्कर तीर्थ और बद्रीकेदार आदि तीर्थों पर किए गए श्राद्ध का फल मिले, इसके लिए भरणी श्राद्ध किया जाता है। यह श्राद्ध करने से गया श्राद्ध करने जितना महत्व है। भरणी श्राद्ध पितृपक्ष मे भरणी नक्षत्र के दिन किया जाता है।
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अविवाहित व्यक्ति का श्राद्ध :
अगर किसी अविवाहित व्यक्ति की मृत्यु हो गई है तो उसका श्राद्ध पंचमी तिथि पर करना चाहिए। इस साल 07 सितंबर दिन सोमवार को अविवाहित व्यक्ति का श्राद्ध किया जाएगा।
नवमी का श्राद्ध :
घर की सौभाग्यवती स्त्रियों यानी पति के जीवित रहते ही मरने वाली सुहागन स्त्रियों का श्राद्ध केवल पितृ पक्ष की नवमी तिथि को ही करना चाहिए।चाहें उनकी मृत्यु किसी भी तिथि को क्यों न हुई हो। इसके अलावा नाना या नानी का श्राद्ध भी केवल पितृ पक्ष की प्रतिपदा तिथि को ही करना चाहिए। और संन्यासियों का श्राद्ध पार्वण पद्धति से द्वादशी में किया जाता है, भले ही इनकी मृत्यु तिथि कोई भी क्यों न हो।
मघा का श्राद्ध :
जिनके जन्म कुंडली में पितृदोष के कारण घर परिवार में और पति पत्नी में क्लेश अशांति हो, मघा नक्षत्र मे श्राद्ध करने से वह शांत हो जाती है। घर में सुख शांति बन जाती हैं।
अकाल मृत्यु वालों का श्राद्ध :
जिन लोगों की अकाल मृत्यु (वाहन दुर्घटना, सांप के काटने से, जहर के खाने से) हुई हो उसका श्राद्ध मृत्यु तिथि वाले दिन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। आपको इन लोगों को श्राद्ध सिर्फ चतुर्दशी तिथि को ही करना चाहिए। चाहें उनकी मृत्यु किसी भी दिन हुई हो।
वहीँ चतुर्दशी तिथि में मरने वालों का श्राद्ध चतुर्दशी में नहीं करना चाहिए, इनका श्राद्ध त्रयोदशी या अमावस्या को करना चाहिए। जिसे किसी की मृत्यु की तिथि का ज्ञान न हो उसका श्राद्ध अमावस्या को करना चाहिए।