हेल्लो दोस्तों पौष माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पौष पुत्रदा एकदशी कहा जाता है। इस बार पुत्रदा एकादशी का व्रत 24 जनवरी को किया जाएगा। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु का पूजन किया जाता है। नि:संतान दंपतियों के लिए पौष पुत्रदा एकादशी (Pausha Putrada Ekadashi) व्रत बहुत ही शुभ फल प्रदान करने वाला है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से योग्य संतान की प्राप्ति होती है। इसलिए इस व्रत का नाम पुत्रदा एकादशी है। इस एकादशी का व्रत सच्ची निष्ठा और नियमों के साथ करने से संतान प्राप्ति और संतान की उन्नति होती है। भगवान विष्णु आपकी संतान की रक्षा करते हैं।
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हिंदू पंचांग के अनुसार, हिंदू धर्म में कुल 24 एकादशियां आती हैं। बता दें कि हिन्दू पंचांग की 11वीं तिथि को एकादशी आती है। यह तिथि एक महीने में दो बार आती है। एक पूर्णिमा के बाद और एक अमावस्या के बाद। इन्हीं में से एक पुत्रदा एकादशी है। हिंदू धर्म में पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा का बहुत माहतम्य है। माना जाता है कि इस व्रत की कथा पढ़ने और श्रवण करने से व्यक्ति को संतान प्राप्ति के साथ सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
मान्यता है कि जो भी इस व्रत को करता है उसे संतान की प्राप्ति होती है। जो जातक एकादशी का व्रत करता है उसे एक दिन पहले ही अर्थात् दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत के नियमों का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए। आइए जानते हैं पुत्रदा एकादशी की शुभ मुहूर्त और महत्व।

पुत्रदा एकादशी का शुभ मुहूर्त:
- एकादशी तिथि प्रारम्भ – 23 जनवरी, शनिवार रात 08 बजकर 56 मिनट से
- एकादशी तिथि समाप्त – 24 जनवरी, रविवार रात 10 बजकर 57 मिनट तक
- पारण का समय – 25 जनवरी, सोमवार सुबह 07 बजकर 13 मिनट से सुबह 09 बजकर 21 मिनट तक
पुत्रदा एकादशी पूजा विधि :
- सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर नहाना चाहिए।
- उसके बाद शुद्ध और स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण करके श्रीहरि विष्णु का ध्यान करना चाहिए।
- इस पूजा के लिए श्रीहरि विष्णु की फोटो के सामने दीप जलाकर व्रत का संकल्प लेने के बाद कलश की स्थापना करनी चाहिए।
- फिर कलश को लाल वस्त्र से बांधकर उसकी पूजा करें।
- भगवान श्रीहरि विष्णु की प्रतिमा रखकर उसे स्नानादि से शुद्ध करके नया वस्त्र पहनाएं।
- इसके बाद धूप-दीप आदि से विधिवत भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना तथा आरती करें
- इसके बाद नैवेद्य और फलों का भोग लगाकर प्रसाद वितरण करें।
- श्रीहरि विष्णु को अपने सामर्थ्य के अनुसार फल-फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बेर, आंवला आदि अर्पित किए जाते हैं।
- पूरे दिन निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनने के बाद फलाहार करें।
- इस दिन दीपदान करने का बहुत महत्व है।
- दूसरे दिन ब्राह्मणों को भोजन तथा दान-दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए, उसके बाद भोजन करना चाहिए।
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पुत्रदा एकादशी पौराणिक कथा :
बहुत समय पहले भद्रावती नगर में सुकेतु नामक राजा राज्य किया करते थे। उसकी पत्नी का नाम शैव्या था। शादी के कई वर्ष हो जाने के पश्चात भी उनकी कोई संतान नहीं थी। जिसके कारण वे दोनों पति-पत्नी बहुत दुःखी रहते थे। इसी व्यथा के कारण एक दिन राजा और रानी मंत्री को राजपाठ सौंपकर वन को चले गये। इस दौरान संतान दुख के कारण उनके मन में आत्महत्या करने का विचार आया, लेकिन उसी समय राजा को यह बोध हुआ कि आत्महत्या से बढ़कर कोई पाप नहीं है।
वहीं पर अचानक उन्हें वेद पाठ के स्वर सुनाई दिये, जिस दिशा से वेद पाठ की ध्वनि आ रही थी, वे उसी दिशा में बढ़ते चलें गए। जब वे साधुओं के पास पहुंचे तो उन्होंने अपनी सारी व्यथा उन्हें सुनाई। जिसके बाद साधुओं ने उन्हें पौष पुत्रदा एकादशी व्रत के महत्व को समझाया। इसके बाद दोनों पति-पत्नी ने पूरी निष्ठा और नियम के साथ पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से उन्हें संतान की प्राप्ति हुई। इसलिए निःसंतान दंपतियों के लिए यह व्रत बहुत ही शुभ माना जाता है।

पुत्रदा एकादशी का महत्व:
वर्ष में आने वाली 24 एकादशियों में से पुत्रदा एकादशी का स्थान बेहद विशेष है। मान्यता है कि जिन व्यक्तियों को संतान होने में बाधाएं आती हैं या जिन्हें पुत्र प्राप्ति की कामना हो उन्हें पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। यह व्रत बहुत ही शुभ फलदायक होता है। इस दिन श्री हरि की आराधना की जाती है। इस दिन व्यक्ति को पूरे तन, मन और जतन से इस व्रत को पूरा करना चाहिए। साथ ही ऐसा भी कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा करता है या सुनता है उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
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