कब है सृष्टि के प्रथम पत्रकार नारद मुनि की जयंती, पिता के श्राप से नहीं हुई शादी | Narad Jayanti Date Katha Mahatva

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हेल्लो दोस्तों देव ऋषि नारद का जन्म भारतीय कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को भगवान विष्णु भक्त नारद का जन्म हुआ था। उनके जन्मदिन को ही नारद जयंती के रूप में मनाया जाता है। नारद जयंती (Narad Jayanti 2023) के दिन देव ऋषि नारद की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। इनको देव ऋषि नारद को प्रथम पत्रकार भी कहा जाता है क्योंकि यह तीनों लोकों में सूचनाओं का आदान प्रदान करते थे। देवर्षि नारद का देवताओं और असुरों दोनों में पूजनीय स्थान है।

देवर्षि नारद को ब्रह्मदेव के मानस पुत्र के रूप में भी जाना जाता है। कहा जाता है कि कठिन तपस्या के बाद नारद को ब्रह्मर्षि का पद प्राप्त हुआ था। नारद जी परमज्ञानी थे जिसकी वजह से राक्षस हो या देवी-देवता सभी उनका बेहद आदर और सत्कार करते थे। इनको (देवर्षि नारद) महर्षि व्यास, महर्षि बाल्मीकि और महाज्ञानी शुकदेव का गुरु माना जाता है। कहते हैं कि नारद मुनि के श्राप के कारण ही भगवान राम को देवी सीता से वियोग सहना पड़ा था। नारद मुनि, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक है। उन्होने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया था। वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक माने जाते है।

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नारद जयंती क्यों मनाई जाती है

Narad Jayanti Kyo Manai Jati Hai

नारद जयंती उनके जन्मोत्सव को हर वर्ष मनाई जाती है इस बार नारद जयंती 6 मई 2023 को है। नारद जी ने ही ध्रुव एवं प्रह्लाद को ज्ञान देकर भक्ति का मार्ग दिखाया था। नारद जयंती, बुद्ध पूर्णिमा के अगले दिन ही होती है, प्रतिपदा तिथि ना होने की स्थिति में यह बुद्ध पूर्णिमा के दिन भी हो सकती है।

नारद जी तीनों लोकों में सूचनाओं का आदान प्रदान करते थे इसलिए नारद को देवों का दूत, संचारकर्ता और सृष्टि का पहला पत्रकार कहा जाता है। ब्रह्मवैर्तव्रत पुराण के अनुसार संगीत और वीणा के जनक देव ऋषि नारद का जन्म सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी के कंठ से हुआ था। नारद जी को निरंतर चालायमान और भ्रमणशील होने का वरदान मिला है। आइए जानते हैं नारद जयंती का शुभ मुहूर्त, पूजन विधि, कथा और महत्त्व।

नारद जयंती कब है?

Narad Jayanti Kab Hai

देवर्षि नारद मुनि की जयंती हर वर्ष ज्येष्ठ माह की कृष्‍ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है. भक्त नारद जयंती का त्यौहार प्रतिवर्ष देवर्षि के जन्मदिवस के अवसर पर बड़े ही समर्पण और उत्साह के साथ मनाते हैं. नारद जयंती अक्सर मई के महीने में बुद्ध पूर्णिमा के अगले दिन आती है.

Narad Jayanti Date Katha Mahatva
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कैसै करें नारद मुनि की पूजा

Narad Jayanti Poojan Vidhi

  • नारद जयंती के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करके साफ वस्त्र धारण कर घर व पूजन स्थल की सफाई कर लें।
  • इसके बाद व्रत का संकल्प लें और नारद का ध्यान करते पूजा-अर्चना करें।
  • अब नारद मुनि की प्रतिमा को चंदन, तुलसी के पत्ते, कुमकुम, अगरबत्ती, फूल आदि अर्पित करें।
  • इस दिन पूरे दिन उपवास रखना चाहिए और और शाम को पूजा अर्चना करके नारद जी व भगवान विष्णु की आरती करें।
  • इस दिन दान पुण्य का कार्य शुभफलदायी होता है।
  • इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें कपड़े और पैसे दान करें।
  • इस दिन इस दिन पव‍ित्र नदियों में स्‍नान का विधान है साथ ही किसी मंदिर में बांसुरी की भेंट करना शुभ माना जाता है।
  • नारद जयंती के दिन उनके आराध्य श्री हर‍ि व‍िष्‍णु की भी पूजा की जाती है।

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ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं नारद जी

Narad Jayanti Katha

एक बार की बात है, गंधर्व और अप्सराएँ भगवान ब्रह्मा की पूजा कर रही थीं। उस समय गंधर्वों के ‘उपरत्न’ (नारद जी जो पूर्व जन्म में गंधर्व थे) अप्सराओं के साथ श्रंगार गृह में प्रकट हुए थे। यह देखकर भगवान ब्रह्मा क्रोधित हो गए और उन्होंने शूद्र योनि में जन्म लेने के लिए ‘अपर्णा’ को शाप दिया। ब्रह्मा के श्राप के परिणामस्वरूप, नारद का जन्म ‘शूद्र दासी’ के घर पर हुआ था। इसके बाद उन्होंने भगवान की भक्ति की, फिर उन्होंने एक दिन भगवान के दर्शन किए।

इससे ईश्वर और सत्य को जानने की उनकी इच्छा बढ़ गई। उसी समय आकाश में आवाज आई कि हे बालक, तुम मुझे इस जन्म में नहीं देख पाओगे। अगले जन्म में तुम मेरे पार्षद बनोगे। इसके बाद, उन्होंने भगवान श्रीहरि विष्णु की कठिन तपस्या की, जिसके परिणामस्वरूप अंततः ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हो गए।

मान्यता है कि नारद मुनि का जन्म सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी की गोद से हुआ था। नारद को ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक माना गया है। नारद को देवताओं का ऋषि माना जाता है। इसी वजह से उन्हें देवर्षि भी कहा जाता है। मान्यता है कि नारद तीनों लोकों में विचरण करते रहते हैं। इनके भाई-बहन सनकादि ऋषि तथा दक्ष प्रजापति हैं और इनकी सवारी बादल (मायावी बादल जो बोल सुन सकता है) है।

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ब्रह्मा ने दिया था नारद मुनि को श्राप :

नारद मुनि को अक्सर इधर की बात उधर करने के रुप में जाना जाता है। नारद मुनि ही केवल ऐसे देवता थे जो कभी भी, किसी भी क्षण देवी-देवता, ऋषि, मुनि, असुर दैत्यों, स्वर्ग, नरक, धरती, आकाश सर्वत्र जा सकते थे। उन्हें कभी किसी से आज्ञा लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। वो ब्रह्मचारी और ज्ञानी थे उन्होंने कई ऋषि-मुनियों के ज्ञान देकर धन्य किया है। मान्यता है कि देवर्षि नारद भगवान विष्णु के परम भक्त हैं। श्री हरि विष्णु को भी नारद अत्यंत प्रिय हैं। नारद हमेशा अपनी वीणा की मधुर तान से विष्णु जी का गुणगान करते रहते हैं। वे अपने मुख से हमेशा नारायण-नारायण का जाप करते हुए विचरण करते रहते हैं।

मान्यता है कि नारद ने ही भक्त प्रह्लाद, भक्त अम्बरीष और ध्रुव जैसे भक्तों को उपदेश देकर भक्तिमार्ग में प्रवृत्त किया। किन्तु अपने ही पिता के श्राप के कारण वे आजीवन अविवाहित (कुंवारे) रहे। शास्त्रों के अनुसार ब्रह्माजी ने नारद जी से सृष्टि के कामों में हिस्सा लेने और विवाह करने के लिए कहा लेकिन उन्होंने अपने पिता की आज्ञा का पालन करने से मना कर दिया। तब क्रोध में ब्रह्माजी ने देवर्षि नारद को आजीवन अविवाहित रहने का श्राप दे दिया था। पुराणों में ऐसा भी लिखा गया है कि राजा प्रजापति दक्ष ने नारद को श्राप दिया था कि वह दो क्षण से ज्यादा कहीं रुक नहीं पाएंगे।

यही वजह है कि नारद अक्सर यात्रा करते रहते थे। कहते हैं राजा दक्ष की पत्नी आसक्ति से 10 हज़ार पुत्रों का जन्म हुआ था। लेकिन इनमें से किसी ने भी दक्ष का राज पाट नहीं संभाला क्योंकि नारद जी ने सभी को मोक्ष की राह पर चलना सीखा दिया था। बाद में दक्ष ने पंचजनी से विवाह किया और इनके एक हज़ार पुत्र हुए। नारद जी ने दक्ष के इन पुत्रों को भी सभी प्रकार के मोह माया से दूर रहकर मोक्ष की राह पर चलना सीखा दिया। इस बात से क्रोधित दक्ष ने नारद जी को श्राप दे दिया कि वह सदा इधर उधर भटकते रहेंगे अर्थात एक स्थान पर ज़्यादा समय तक नहीं टिक पाएंगे।

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नारद जयंती का महत्व

Narad Jayanti Date Mahatva

देव ऋषि नारद भगवान विष्णु के अनन्य उपासक थे। नारद जी हमेशा नारायण नारायण का जाप करते थे। नारद जयंती के दिन व्रत करने व पूजा अर्चना करने से बल और बुद्धि के साथ-साथ सात्विक शक्ति भी मिलती है। शास्त्रों में इन्हें भगवान का मन कहा गया है। इसी कारण सभी युगों में, सभी लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गो में नारद जी का सदा से एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। मात्र देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर किया है। समय-समय पर सभी ने उनसे परामर्श लिया है।

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