हेल्लो दोस्तों देव ऋषि नारद का जन्म भारतीय कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ माह की कृष्ण प्रतिपदा को भगवान विष्णु भक्त नारद का जन्म हुआ था। उनके जन्मदिन को ही नारद जयंती के रूप में मनाया जाता है। नारद जयंती (Narad Jayanti 2021) के दिन देव ऋषि नारद की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। देव ऋषि नारद को प्रथम पत्रकार भी कहा जाता है क्योंकि यह तीनों लोकों में सूचनाओं का आदान प्रदान करते थे। देवर्षि नारद का देवताओं और असुरों दोनों में पूजनीय स्थान है।
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नारद जयंती उनके जन्मोत्सव को हर वर्ष मनाई जाती है इस बार नारद जयंती 27 मई 2021 गुरुवार को है। नारद जी तीनों लोकों में सूचनाओं का आदान प्रदान करते थे इसलिए नारद को देवों का दूत, संचारकर्ता और सृष्टि का पहला पत्रकार कहा जाता है। ब्रह्मवैर्तव्रत पुराण के अनुसार संगीत और वीणा के जनक देव ऋषि नारद का जन्म सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी के कंठ से हुआ था। नारद जी को निरंतर चालायमान और भ्रमणशील होने का वरदान मिला है। आइए जानते हैं इस साल किस मुहूर्त में नारद मुनि की पूजा करने से ज्यादा लाभ होगा।
विषयसूची :
शुभ मुहूर्त :
नारद जयंती की तिथि 26 मई के दिन शाम 4 बजकर 43 मिनट से शुरू होकर 27 मई को दोपहर 1 बजकर 2 मिनट पर समाप्त होगी। इस साल नारद जंयति पर ज्येष्ठा नक्षत्र और सिद्ध और साध्य दो योग हैं। सिद्ध योग 26 मई की रात 10 बजकर 51 मिनट से 27 मई की सुबह 6 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। वहीं, साध्य योग 27 मई की शाम 6 बजकर 50 मिनट से शुरू होकर 28 मई की दोपहर 2 बजकर 50 मिनट तक रहेगा।
शुभ काल में करें पूजा :
- अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 11 बजकर 57 मिनट से दोपहर 12 बजकर 50 मिनट तक (27 मई)।
- अमृत काल मुहूर्त – दोपहर 2 बजकर 42 मिनट से शाम 4 बजकर 7 मिनट तक।
- ब्रम्ह मुहूर्त – सुबह 4 बजकर 9 मिनट से लेकर सुबह 4 बजकर 57 मिनट तक।
कैसै करें नारद मुनि की पूजा :
- नारद जयंति के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करके साफ कपड़े पहनें और व्रत का संकल्प करें।
- घर की व पूजा स्थल की सफाई करके पूजा-अर्चना करें।
- नारद मुनि को चंदन, तुलसी के पत्ते, कुमकुम, अगरबत्ती, फूल अर्पित करें।
- सुबह उपवास रखें और शाम को पूजा अर्चना करके नारद जी व भगवान विष्णु की आरती करें।
- दान पुण्य का कार्य करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें कपड़े और पैसे दान करें।
- इस दिन मंदिर में बांसुरी का भेंट करना शुभ माना जाता है।
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कैसे हुआ नारद मुनि का जन्म :
एक बार की बात है, गंधर्व और अप्सराएँ भगवान ब्रह्मा की पूजा कर रही थीं। उस समय गंधर्वों के ‘उपरत्न’ (नारद जी जो पूर्व जन्म में गंधर्व थे) अप्सराओं के साथ श्रंगार गृह में प्रकट हुए थे। यह देखकर भगवान ब्रह्मा क्रोधित हो गए और उन्होंने शूद्र योनि में जन्म लेने के लिए ‘अपर्णा’ को शाप दिया। ब्रह्मा के शाप के परिणामस्वरूप, नारद का जन्म ‘शूद्र दासी’ के घर पर हुआ था। इसके बाद उन्होंने भगवान की भक्ति की, फिर उन्होंने एक दिन भगवान के दर्शन किए।
इससे ईश्वर और सत्य को जानने की उनकी इच्छा बढ़ गई। उसी समय आकाश में आवाज आई कि हे बालक, तुम मुझे इस जन्म में नहीं देख पाओगे। अगले जन्म में तुम मेरे पार्षद बनोगे। इसके बाद, उन्होंने भगवान श्रीहरि विष्णु की कठिन तपस्या की, जिसके परिणामस्वरूप अंततः ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हो गए।
मान्यता है कि नारद मुनि का जन्म सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी की गोद से हुआ था। नारद को ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक माना गया है। नारद को देवताओं का ऋषि माना जाता है। इसी वजह से उन्हें देवर्षि भी कहा जाता है। मान्यता है कि नारद तीनों लोकों में विचरण करते रहते हैं। इनके भाई-बहन सनकादि ऋषि तथा दक्ष प्रजापति हैं और इनकी सवारी बादल (मायावी बादल जो बोल सुन सकता है) है
नारद जयंती का महत्व :
देव ऋषि नारद भगवान विष्णु के अनन्य उपासक थे। नारद जी हमेशा नारायण नारायण का जाप करते थे। नारद जयंती के दिन व्रत करने व पूजा अर्चना करने से बल और बुद्धि के साथ-साथ सात्विक शक्ति भी मिलती है। शास्त्रों में इन्हें भगवान का मन कहा गया है। इसी कारण सभी युगों में, सभी लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गो में नारद जी का सदा से एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। मात्र देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर किया है। समय-समय पर सभी ने उनसे परामर्श लिया है।