Naag Diwali Shubh Muhurat Katha : नाग दिवाली मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है. इस दिन नागों की विशेष पूजा का खास महत्व है. इस साल यह तिथि देव दिवाली से बीस दिन बाद 28 नवंबर 2022 सोमवार को नाग दिवाली (Nag Diwali 2022 kab hai) पड़ रही है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नागों को पाताललोक का स्वामी माना गया है. नाग दीपावली पर उनके पूजन का विशेष महत्व है.
इस मौके पर घरों में रंगोली बनाकर नाग के प्रतीक के सामने दीपक लगाने से मनोवांछित मिलते हैं. मान्यता है कि नाग देवता के पूजन से जीवन की सभी समस्याओं का समाधान होता है. इनका कुंडली के कालसर्प दोष का पूरी तरह निवारण कर देता है. साथ ही जीवन में आ रही दुविधाओं का समाधान मिलता है
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विषयसूची :
नाग दिवाली तिथि
Naag Diwali 2022 Shubh Muhurat
28 नवंबर 2022 दिन सोमवार को नाग दिवाली की तिथि पड़ रही है।
पंचमी तिथि प्रारंभ – 27 नवंबर 2022 दिन रविवार को शाम 4:20 पर पंचमी तिथि प्रारंभ
पंचमी तिथि समाप्त – 28 नवंबर 2022 दिन सोमवार को दोपहर 1:30 पर समाप्त होगी
राहुकाल – 28 नवंबर 08:13 AM – 09:30 AM
क्या है पौराणिक मान्यता ?
Naag Diwali 2022 Katha
नाग दीपावली (Naag Diwali 2022) पर नागों के पूजन का विशेष महत्व है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नागों को पाताललोक का स्वामी कहा जाता है. मान्यता है कि इस मौके पर घरों में रंगोली बनाकर नाग के प्रतीक के सामने दीपक लगाने से मनचाहा फल मिलता है. चमोली जिले के लोगों का मानना है कि नाग देवता के पूजन से जीवन की सभी समस्याओं का समाधान होता है. इनकी पूजा करने से कुंडली के कालसर्प दोष का पूरी तरह से निवारण हो जाता है. साथ ही जीवन में आ रही दुविधाओं से मुक्ति मिलती है.
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नाग देवता का अद्भुत मंदिर
उत्तराखंड के चमोली जिले में नाग देवता का रहस्यमय मंदिर है. यहां पुजारी आंख और मुंह पर पट्टी बांधकर पूजा करते हैं. यह मंदिर चमोली के बांण गांव में हैं. यह मंदिर स्थानीय स्तर पर लाटू देवता मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है. यहां के स्थानीय लोगो का कहना है की मंदिर में नागमणि है और उस मणि की रक्षा नाग देवता स्वयं करते है जिस कारण नाग देव अपने मुह से लगातार फुफकार के सहारे अपना विष छोड़ते रहते है. ताकी जो कोई उस मणि को हाथ लगाऐ वह तुरंत मृत्यु को प्राप्त हो जाऐ. और कहा जाता है की इस मणि की रोशनी इतनी तेज है की व्यक्ति उसकी तेज रोशनी से अंधा हो जाता है.
यही वजह है कि लोग करीब 80 फीट की दूरी से इनकी पूजा करते हैं. यहां के पुजारी भी आंख-मुंह में पट्टी बांधकर पूजा करने मंदिर के पास जाते हैं. यह मंदिर मां पार्वती के चचेरे भाई लाटू के नाम पर बनाया गया है. मंदिर का कपाट साल में एक बार ही खोला जाता है. यह कपाट वैशाख पूर्णिमा को खोला जाता है.
इस दिन यहां विशाल मेला लगता है और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ होता है. स्थानीय लोग लाटू देवता को ही आराध्य मानते हैं, यह मंदिर समुद्र तल से कुल 8500 फीट की ऊंचाई पर है. मान्यता है कि यहां सच्चे हृदय से अगर कोई मनोकामना मांगे तो वह अवश्य पूरी होती है.
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